भदोही शहर और जिला मुख्यालय की दूरी बीस किलोमीटर के आस-पास है। जिला मुख्यालय ज्ञानपुर तहसील में सरपतहा गाँव में बनाया गया है जहां सभी प्रशासनिक कार्यालय और अधिकारियों के आवास हैं। यहीं पर 100 शय्यायुक्त भदोही जिला चिकित्सालय भी है। चीरघर है। भदोही को जिला बने तीस वर्ष हो चुके हैं। भदोही का सौ शय्या वाला जिला अस्पताल बसपा के शासनकाल में 2008 में शुरू किया गया लेकिन लंबे समय समय तक इसका निर्माण चलता रहा और अंततः 18 करोड़ की लागत से यह बनकर तैयार हो गया लेकिन इन वर्षों में यहाँ सिर्फ ओपीडी चलती है। भदोही के निवासी कहते हैं ‘यहाँ जाने का मतलब है आपको मिर्ज़ापुर, सोनभद्र या बनारस के लिए रेफर कर दिया जाएगा। इसके बाद आप भटकते रहिए।’
अगर भदोही के जिले की बनावट को देखा जाय तो यह जगह जिले के चारों कोनों से लगभग समान दूरी पर है लेकिन लोग कहते हैं कि यहाँ पहुँच कर भी क्या हासिल है? ओपीडी में देख लेंगे फिर मिर्ज़ापुर या बनारस के लिए रेफर कर देंगे। इसलिए लोग या तो स्थानीय निजी अस्पतालों की सेवा लेते हैं या सीधे बनारस का रुख करते हैं।
जब हम भदोही जिला अस्पताल पहुंचे तो दोपहर का समय था और अस्पताल पर ताला लटक रहा था। बगल की बिल्डिंग में सीएमओ का दफ्तर है। वहाँ कुछ लोगों को छोड़कर लगभग सारे दफ्तर निर्जन थे। स्वयं सीएमओ संतोष कुमार चक कहीं बाहर निकले थे। मालूम करने पर पता चला जिलाधिकारी कार्यालय गए हैं।
बहुत पहले से चली आ रही हैं शिकायतें
आखिर इस जिला अस्पताल का लाभ क्या है? ज्ञानपुर में पहले से दो राजकीय अस्पताल महाराजा चेत सिंह अस्पताल और महाराजा बलवंत सिंह अस्पताल मौजूद है लेकिन लोग कहते हैं कि जिले की आबादी की जरूरतों को देखते हुये यह नाकाफी है। यहाँ जरूरी सुविधाएं नहीं थीं इसलिए स्थानीय जनता की मांग लंबे समय से चली आ रही थी कि यहाँ अधिक सुविधायुक्त अस्पताल बनाया जाय। इसके लिए लोगों ने एक लंबी मुहिम चलाई।
लेकिन जिला अस्पताल बन जाने से क्या बदला? आसपास के लोगों से बात करने पर पता चलता है कि जिला अस्पताल में अराजकता का आलम यह है कि वे समय से आते ही नहीं हैं। इस संदर्भ में 23 अगस्त 2022 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के X (ट्विटर) हैंडल YogiAdityanathOffice से एक आदेश जारी किया गया – ‘यह सुनिश्चित किया जाय कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर समय से OPD में बैठें।
कहीं से कोई शिकायत मिले तो तत्काल संज्ञान लेते हुये कार्रवाई की जाए: मुख्यमंत्री श्री @myogiadityanath जी महाराज’।
लेकिन क्या इस ट्वीट के बाद व्यवस्था सुधर गई? इसे सिर्फ एक औपचारिकता माननी चाहिए कि समय-समय पर सरकार कोई आदेश जारी कर अपनी पीठ थपथपा लेती है और व्यवस्था फिर वही नौ दिन चले अढ़ाई कोस की स्थिति में चलती रही है। लोगों का आरोप है कि अस्पताल में दवाइयाँ नहीं होतीं और अक्सर डॉक्टर बाहर से दवाइयाँ लिखते हैं।
कुछ लोगों ने तो और भी संगीन आरोप लगाए हैं कि डॉक्टर अपने सरकारी आवास पर न सिर्फ मरीजों को फीस लेकर देखते हैं बल्कि अस्पताल की मशीनें भी अपने घर में रखते हैं और जांच करके पैसा बनाते हैं।
हाल ही में अस्पताल की एक्सरे आदि कई मशीनों को केवल इसलिए बंद रखने का आरोप सामने आया क्योंकि अस्पताल के पास रेडियोलोजिस्ट नहीं है।
चिराग तले अंधेरा
भदोही जिला अस्पताल के ठीक पीछे जोरई गाँव है। यहाँ के एक निवासी कहते हैं ‘देखिये देखिये, अस्पताल है यहाँ लेकिन कोई मरीज ही नहीं जाता है। जब डॉक्टर ही नहीं हैं तो मरीज कहाँ से आएंगे? सीएमओ अपना ऑफिस संभाल रहे हैं। बीमार होने पर या तो हम चेतसिंह सरकारी अस्पताल ज्ञानपुर जाते हैं या भदोही किसी प्राइवेट अस्पताल में जाएँ। इस जिला अस्पताल का हमें कोई लाभ नहीं। इतना दिन हो गया लेकिन यहाँ का तो एक ही मतलब है बस रेफर कर दिया बनारस चले जाओ। इलाहाबाद जाओ।’
इसी गाँव के राजकुमार शर्मा कहते हैं इस अस्पताल का होना और न होना बराबर है। लोगों को दिखाने के लिए अस्पताल बना दिया गया। अस्पताल है। बेड है लेकिन दवाई नहीं है और डॉक्टर नहीं हैं इसलिए मरीज भी नहीं हैं।’
सामाजिक कार्यों में भागीदारी करनेवाले माताचरण विश्वकर्मा भी इसी गाँव के हैं। वह हैं कि भदोही जिला अस्पताल अभी भी अपनी शैशवास्था में है। हाशिए के लोग हैं, जो गरीब हैं, जो नर्सिंग होम में अपना इलाज नहीं करवा सकते, वे कहते हैं कि जब हम जिला चिकित्सालय में जाते हैं जो कि 100 बेड का अस्पताल है तो हमको इलाज नहीं मिल पाता। वहां से हमको दूसरे जिलों के लिए रिफर करते हैं।’
जोरई के ग्राम प्रधान रमेश यादव ददा कई साल तक अस्पताल को सर्वसुविधायुक्त बनाने और ओपीडी से आगे बढ़कर 24×7 संचालन के लिए चलनेवाले आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले लोगों में हैं। वह कहते हैं ‘यहाँ के लोगों ने सोशल मीडिया के जरिये इस अस्पताल को चलाने के लिए आंदोलन किया और मैं भी उसमें शामिल रहा हूँ। अस्पताल की हालत बुरी है। यहाँ लोगों को कोई इलाज नहीं मिल पाता। उन्हें बनारस जाना पड़ता है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि जिलाधिकारी महोदय जो जनपद के प्रतिनिधि हैं उनके सामने का हास्पिटल है। सही बात है कि यहाँ ढंग से डॉक्टर नहीं हैं। लोग वहाँ इलाज के लिए नहीं जाते जबकि उससे छोटा हॉस्पिटल ज्ञानपुर है वहाँ भीड़ लगी रहती है। यहाँ न अच्छे डॉक्टर नियुक्त हैं न यहाँ की व्यवस्था ठीक है। साफ-सफाई भी ठीक-ठाक नहीं हैं। यहाँ की बिल्डिंगें अधूरी हैं। कई ठेकेदार आए। पैसा गबन कर लिए लेकिन काम नहीं किया। जितना बजट यहाँ का बताया जा रहा है उसके हिसाब से कोई काम ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है। कॅम्पस में जाने पर इतनी गंदगी मिलती है कि कहना ही क्या। जिला अस्पताल का मतलब क्या रह जाता है। सब लापरवाही स्वास्थ्य विभाग की है। अगल-बगल के गांवों सहित जनपद की आम जनता को उम्मीद थी कि सौ शय्या का जिला अस्पताल खुल रहा है तो हम लोगों को अब कहीं भटकना नहीं पड़ेगा। लेकिन इसके बावजूद भटकना पड़ रहा है।’
रमेश ददा कहते हैं ‘यह दुर्व्यवस्था शुरू से है। सम्पन्न लोग निजी अस्पताल में इलाज करा लेते हैं लेकिन गरीब के सामने प्राण त्यागने के अलावा कोई चारा नहीं है। यह जिला अस्पताल है यहाँ अच्छी मशीनें आनी चाहिए लेकिन नहीं हैं। जबकि प्राइवेट अस्पतालों में अच्छी मशीनें हैं। लेकिन निजी अस्पताल में लाख-पचास हज़ार लगाना पड़ता है। अब गरीब आदमी कहाँ से ले आए इतना पैसा?’
मुख्य चिकित्साधिकारी कहते हैं सुविधाओं का अभाव नहीं है
ऐसा नहीं है कि यहाँ किसी चीज की कमी है। यहाँ अत्याधुनिक मशीनें और पर्याप्त स्टाफ है। वर्तमान मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ संतोष कुमार चक कहते हैं ‘जैसी कि सरकार की मंशा है कि ग्रामीणों के साथ ही सभी व्यक्तियों को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करायी जाएँ। हमारे जिले में तीन जिला अस्पताल हैं। दो जिला अस्पतालों में मरीज भर्ती होते हैं और एक में ओपीडी चल रही है। हमारे यहां 6 ब्लॉक स्तरीय अस्पताल हैं। 6 ब्लॉक भी हैं। हमारे यहां 18 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। 206 उपकेन्द्र हैं जिनमें से 185 सक्रिय हैं। इनमें से 84 एएनएम रहती हैं और डिलिवरी करवा रही हैं।’
वह आगे कहते हैं कि ‘आपने मरीजों को रेफर करने वाली जो बात कही तो जब मैं शुरू में यहाँ आया तो मैंने जिलाधिकारी से इस बारे में बात की। विषेशज्ञ डॉक्टर यहां के अगल-बगल के जिलों में चले जाते हैं। जिला अस्पताल और सीएचसी पर 24 घंटे हमारी सेवाएं जारी रहती हैं। इमरजेंसी के मरीज जिन्हें दूसरे जिलों को रिफर नहीं किया जा सकता हैं उन्हें 1 से 1.30 घंटे के भीतर चिकिस्सकीय सुविधा प्रदान की जाती है। हमारे यहां की जो रिफरल की प्रवृति थी उसका ग्राफ हम काफी नीचे ला दिए हैं। मेरा सरकारी मोबाइल हमेशा चालू रहता है। इमरजेंसी का कोई केस आता है और उसकी चिकित्सकीय सुविधा यहां संभव है और उसके बावजूद उसे रिफर करने की बात आती है तो वे मुझे तत्काल फोन करें। मैं 15 मिनट के अन्दर उन्हें चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध करवाऊंगा। मैं मरीज को वहीं भर्ती करवाऊंगा और विशेषज्ञ डॉक्टर से व्यक्ति का इलाज करवाऊंगा।’
‘जिला अस्पताल में कितने विभाग हैं? इस सवाल पर डॉ सन्तोष चक ने बताया कि यहां पर सर्जरी, आर्थोपेडिक्स, गायनिक, मेडिसिन विभाग हैं। डीएम के सुझाव से यहां के विभागों में काफी बदलाव किया गया है। सरकारी अस्पतालों में ऐसा देखा जाता है कि कभी-कभी डॉक्टर बाहर की दवा लिख देते हैं। इसे रोकने के लिए हमारे यहां के डीएम ने ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ 5 हजार का जुर्माना लगाने का आदेश दिया है। पहले से स्थितियां बहुत बदल चुकी हैं। हमारे यहां 206 प्रकार की दवाएं मौजूद हैं। जिला अस्पताल, सीएचसी और पीएचसी पर पर्याप्त मात्रा में दवाएं मौजूद हैं।
‘ज्ञानपुर मुख्यालय के पास 100 बेड का अस्पताल है उसमें कितने विशेषज्ञ हैं?’ इस पर डॉ संतोष चक ने बताया कि यहां पर सीएमएस को लेकर 9 विषेशज्ञ हैं। 20 स्टॉफ हैं। 8 फार्मासिस्ट हैं। यह ओपीडी का ही भवन है। एक बर्न वार्ड है जिसमें विशेषज्ञों की तैनाती नहीं हुई है, लेकिन जिले में हमारे दो अस्पताल, सौ बेड वाला अस्पताल और अघोरी सीएचसी है। अंडर एसआईटी जांच चल रही थी। उसका भी काम शुरू हो गया है। इसका भी निर्माण कार्य चुनाव के बाद शुरू हो जाएगा।
मैंने देखा है कि दूसरी जगहों पर जांच और दवाएं बाहर की लिख दी जाती हैं। यहां की क्या स्थिति है?’ वह कहते हैं ‘यहां के हमारे पीएचसी, सीएचसी या जिला अस्पताल में 14 नहीं तो 8-10 जांच हो रही हैं। 17 जांच जो सीएचसी पर होनी चाहिए, जिनकी मैं खुद मानिटरिंग कर रहा हूं। 12-13 जांच हो रही हैं। 63 तरह की जांच जिला अस्पताल में होनी चाहिए। लेकिन उसमें होता क्या है कि उपकरणों की खराबी की वजह से समय पर जांच नहीं हो पाती है। यही नहीं, जांच हो जाने के बाद कभी-कभी मशीनों के खराबी के कारण भी जांच रिपोर्ट देने में देरी होती है। सरकार के निर्देश पर उस पर भी हम काम कर रहे हैं।’
इसके बावजूद क्यों नहीं सुधर रही है व्यवस्था
लोगों की मांग है कि अस्पताल की ओपीडी के अलावा इमरजेंसी और भर्ती की सुविधाएं यहाँ तत्काल शुरू की जाएँ लेकिन अभी यह दूर की कौड़ी लगती है। आखिर इसके पीछे क्या कारण हैं? डॉ संतोष कुमार चक का कहना है यहाँ अभी कई प्रकार की दिक्कतें हैं। यहां पर सीएमओ और एडिशनल सीएमओ के लिए अभी कोई आवास नहीं है। उसके लिए भी मैंने डीएम से बात की और लिखा पढ़ी की है। भदोही के जो सब सेंटर थे, वहां पर जो एएनएम होती थीं, वो प्रसव करा कर चली जाती थीं। जो विशेषज्ञ प्रयागराज या जौनपुर के होते थे, वे भी चले जाते थे। लेकिन अब यदि उस डॉक्टर या महिला डॉक्टर के खिलाफ कोई शिकायत आती है तो उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जाती है। मैं यहां पर इसकी मॉनिटरिंग करता रहता हूं। जहां भी शिकायत मिलती है वहां पर इनके खिलाफ कार्रवाई करता हूं। अब रेफरल वाली शिकायतें मेरे पास आनी बंद हो गई हैं।’
भदोही बनारस और इलाहाबाद के बीच में स्थित है और अपेक्षाकृत ग्रामीण बहुल इलाका है। इसका एक अर्थ यह भी है कि कस्बों में बंटे इस जिले की कोई शहरी आवाज नहीं है जिसका जनप्रतिनिधियों पर कोई असर पड़े। ग्रामीण आबादी का नेतृत्व अभी भी बहुत मजबूत नहीं दिखता। जिन जिलों में अधिक जनदबाव नहीं होता वहाँ परियोजनाएं ऐसी ही लटकती रहती हैं। भदोही, चंदौली, सोनभद्र, बलिया, गाजीपुर जैसे जिलों में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का यही हाल है और ये हर तरह से बनारस या किसी बड़े शहर के ऊपर निर्भर हैं।
रमेश यादव ददा कहते हैं कि इस दिशा में अगर सांसद या विधायकों ने इस बात को सदन तक उठाया होता तो यह अस्पताल आज एक समस्या नहीं बल्कि समाधान बन गया होता। हमलोग तो ग्रामीण स्तर के लोग हैं ज्यादा से ज्यादा हम अपनी मांग को मजबूती से उठा सकते हैं। सांसद अगर इसे केंद्रीय सदन और विधायक विधानसभा में इसे उठाएँ तो यह समस्या हल हो जाती।’
निष्कर्ष यह निकल रहा है कि भदोही जिला अस्पताल फिलहाल प्रशासनिक ढुलमुलयकीनी ही नहीं, राजनीतिक दुरभिसंधियों का भी शिकार होकर रह गया है। एक ढांचे के बनने और बनने की प्रक्रियाओं पर राजनीतिक स्वार्थ की रोटी सेंकने की मंशा ने उसे अस्पताल बनने ही नहीं दिया। ऐसे में वहाँ ओपीडी भी खुलती हो तो लोगों की क्या दिलचस्पी हो सकती है? जबकि उनकी मांग है कि इसे एक सुविधायुक्त और निरंतर चलने वाला अस्पताल बनाया जाय।