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ग्राउंड रिपोर्ट

डेढ़गावाँ गाजीपुर : लाखों की लागत से बने शौचालय पर तीन साल से ताला और अस्पताल से अनुपस्थित डॉक्टर

सरकार के लाख दावे के बावजूद जमीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचारअपने चरम पर है। गाँवों में शौचालय, पेयजल, अस्पताल और प्रधानमंत्री आवासों के वितरण में घोर अनियामिततायें देखी जा रही हैं. गाजीपुर के दक्षिणी छोर पर स्थित डेढ़गाँवां गाँव में इसकी एक बानगी देखी जा सकती है। यहाँ के सार्वजनिक शौचालय में तीन साल से ताला लटक रहा है और अस्पताल परिसर में घास और गंदगी फैली हुई है। ग्रामवासियों का कहना है कि अस्पताल में डॉक्टर कभी नहीं आते। डेढ़गाँवां के हालात पर यह ग्राउंड रिपोर्ट।

एक ही ज़मीन पर हैंडपंप, अस्पताल और सार्वजनिक शौचालय और तीन साल से लगा ताला

ऐसा लगता है हमारे देश का सारा विकास भाषणों में ही होता है। वास्तविकता यह है कि सार्वजनिक जगहें विकास को अंगूठा दिखाती हैं। खासकर गांवों और कस्बों में ऐसे दृश्य आम हैं कि वहाँ बनी हुई सार्वजनिक जगहें लोगों के उपयोग से दूर दिखाने का दाँत भर रह गई हैं। इसका एक उदाहरण  गाजीपुर जिले के रेवतीपुर ब्लॉक के डेढ़गावां गांव है। इस गाँव में लगभग आठ लाख रुपए की लागत से बना शौचालय पिछले तीन सालों से बंद है। शौचालय पर अभी भी ताला लगा हुआ है जबकि गांव कागजों में ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित है।

गांव में मुख्य गेट से प्रवेश करते ही लगभग एक किलोमीटर अन्दर जाने के बाद सड़क के दाहिने ओर स्थित शौचालय के ठीक बगल में बने सरकारी अस्पताल में कब की साफ-सफाई हुई है यह गांव के किसी व्यक्ति को नहीं मालूम। अस्पताल की स्थिति बहुत ही दयनीय लगी। अस्पताल की दीवारें काई के कारण काली पड़ चुकी हैं। देखने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे पिछले एक दशक से भी अधिक समय से इसपर सफेदी नहीं हुई  है। अस्पताल के पीछे भी साफ-सफाई नहीं नजर आई। पूरा परिसर गन्दगी से भरा पड़ा हुआ था। जगह-जगह पर बड़ी-बड़ी  घासें उग आई हैं।

डेढ़गावां का सरकारी अस्पताल उपेक्षा का शिकार

अस्पताल परिसर में लगा हैंडपम्प काफी पहले ही खराब हो चुका है लेकिन उसे बनवाने की अब तक किसी ने जहमत नहीं उठाई। अब उससे पानी नहीं आता। हैंडपंप की बात करने पर इसी गांव के दयाशंकर राजभर बोले ‘इसको लगे तो काफी समय हो गया, लेकिन लगने के कुछ ही दिनों बाद इससे पानी आना बंद हो गया। हैंडपम्प का चबूतरा भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। कुछ ही दिनों में सब उखड़ गया।’

अस्पताल परिसर में लगा हैण्डपम्प सालों से ख़राब

गौरतलब है कि हैंडपंप, अस्पताल और सार्वजनिक शौचालय तीनों एक ही ज़मीन पर अगल-बगल हैं। सामने एक पोखरी है जो झाड़-झंखाड़ से भरी हुई है। ऊपर से देखने पर यह एक सामान्य दृश्य लग सकता है लेकिन थोड़ा गहराई से छानबीन करने पर इसका अर्थ ग्रामवासियों के लिए अलग-अलग हो सकता है।

आठ शहीदों का गाँव

गाजीपुर के दक्षिणी छोर पर स्थित डेढ़गाँवाँ बहुत सम्मानित गाँव माना जाता है। यहाँ स्वतन्त्रता आंदोलन में आठ लोगों ने अपनी शहादत दी थी। डेढगावां का द्वार शहीद कर्नल एम एन राय के नाम पर बना हुआ है। गांव के द्वार के बगल में ही शहीद कर्नल एम एन राय की प्रतिमा भी बनी हुई है, जिसे देखकर नौजवानों का दिल जोश से भर जाता है। इसलिए इस गांव का नाम लोग बड़े गर्व से लेते हैं।

गाँव की आबादी 7 हजार के आसपास है जबकि वोटरों की संख्या 4 हजार है। 43 सौ बीघा जमीन खेती योग्य है। आबादी के हिसाब से सबसे ज्यादा कुशवाहा हैं। उसके बाद क्रमशः भूमिहार, हरिजन, पासी और अन्य दूसरी जातियां गांव में निवास करती हैं।

फिलहाल यहाँ के ग्राम प्रधान राधेश्याम राय हैं। गाँव में कई लोगों ने दबे स्वर उनको लेकर अनेक बातें कही लेकिन किसी ने खुलकर नहीं कही। वे दबंग व्यक्ति माने जाते हैं।

तीन साल से ताला लगा है सार्वजनिक शौचालय पर

डेढगावां गांव के इस सामुदायिक शौचालय को लगभग आठ लाख रुपए में बनाकर तैयार किया गया है, लेकिन आज इसका लाभ गांव के किसी व्यक्ति को नहीं मिल रहा है, क्योंकि इसमें लगभग तीन सालों से ताला लगा हुआ है। शौचालय के आसपास गंदगी का अंबार लग चुका है। पास में पोखरे के आकार का एक बड़ा गड़हा है, जो बीमारियों का घर बनता जा रहा है। इसके सुन्दरीकरण की चिंता न तो गांव के प्रधान को है न ही पंचायत विभाग के किसी अफसर को।

डेढगावां की मनीषा प्रजापति कहती हैं ‘इस सार्वजनिक शौचालय में दो तीन वर्षों से ताला लगा हुआ है। हम लोग क्या कर सकते हैं। सरकार ने लाखों रुपया लगाकर यह सार्वजनिक शौचालय तो बनवा दिया लेकिन गांव के लोगों को इसका लाभ कहां मिल रहा है?’

आप लोगों ने इसकी शिकायत कभी की या नहीं?’ सवाल के जवाब में मनीषा प्रजापति बोलीं,  ‘हम लोगों को अपने काम से फुरसत ही नहीं, कौन शिकायत करने जाय।’

मनीषा प्रजापति

सामुदायिक शौचालय के पास मनीषा से बातचीत चल रही थी कि इसी दौरान गांव के रहने वाले बुजुर्ग रिटायर प्रिंसिपल विजयनारायण आ धमके। थोड़ी देर बातचीत को सुनने के बाद बोले ‘विकास के नाम पर इस गांव में कुछ नहीं हुआ। सड़कों का हाल आप देख ही रहे हैं। सड़क पर चलना दूभर है। सामुदायिक शौचालय बनने के बाद भी तीन साल से ताला लटका हुआ है। गांव के अस्पताल का हाल भी आप देख ही रहे हैं। अस्पताल के चारों ओर गंदगी फैली है। शौचालय के चारों ओर गंदगी। साफ-सफाई का नामोनिशान तक नहीं है। गांव के विकास के सवाल पर चुटकी लेते हुए विजयनारायण बोले ‘वर्तमान प्रधान ने इतना काम कर दिया है कि चारों तरफ विकास ही विकास दिख रहा है।’

रिटायर प्रिंसिपल विजयनारायण

सार्वजनिक शौचालय पर तीन साल से ताला लगे होने की बात पर बोले ‘कहने के लिए भले ही यह गांव ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) हो लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। इस शौचालय में ताला लगा है। मेरे पास भी अपना कोई शौचालय नहीं है। ऐसे में हम खुले में ही शौच करने को मजबूर हैं। कई बार प्रयास कर चुका हूं इसके लिए लेकिन अभी तक न तो यह मिला और न ही प्रधानमंत्री आवास।’

अपने मन की पीड़ा को व्यक्त करते हुए दयाशंकर आगे बोले ‘प्रधानमंत्री आवास योजना में मेरे नाम पर आया हुआ मकान किसी और को दे दिया गया। पूछने पर अधिकारी लोग बोले चलो तुम्हें अगली बार दे दिया जाएगा।’ दयाशंकर आगे कहते हैं ‘इसी गांव के रहने वाले दयाशंकर नाम के एक दूसरे व्यक्ति को मेरे नाम से आया हुआ आवास दे दिया गया।’

दयाशंकर के चार भाई हैं। सभी अलग- अलग रहते हैं। मां-बाप अभी इन्हीं के साथ रहते हैं। खेती के नाम पर कुछ नहीं है। मजदूरी करके दो बच्चों सहित परिवार के कुल छः लोगों का भरण-पोषण कर रहे हैं। बोले ‘इस सरकार में कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। सरकार केवल लोगों को अनाज दे रही है, वह भी कम ही मिलता है। हम इतने गरीब हैं कि घर या शौचालय बनवाने के बारे में सोच भी नहीं सकते।’

दयाशंकर राजभर

गाँव की एक महिला ने कहा कहने को सार्वजनिक शौचालय बना दिया गया है लेकिन वहाँ एक ढाँचे के अलावा कोई व्यवस्था नहीं है। पानी तक की व्यवस्था नहीं है। रात-बेरात हाज़त होने पर हम डर से उधर नहीं जा सकते। जहरीले जानवरों का डर रहता है।

अस्पताल में डॉक्टर नहीं कंपाउंडर करता है इलाज

शौचालय जैसा हाल गांव के अस्पताल का भी है, जहां पर साफ-सफाई जैसी कोई व्यवस्था नहीं दिखी। गांव के लोगों को अक्सर डॉक्टर के गायब रहने पर कम्पाउण्डर से ही दवा लेने को मजबूर होना पड़ता है। इस बारे में गांव के बुजुर्ग सामराज यादव कहते हैं ‘डॉक्टर कम आते हैं और जब आते भी हैं तो उनको दिखाइए तो वे सस्ती दवाएं ही देते हैं और महंगी दवाएं बाहर जाकर लेने को कह देते हैं। अस्पताल में डॉक्टर नहीं आते तो कम्पाउण्डर ही देखकर दवाएं दे देते हैं।’

सामराज यादव

कहते हैं ‘गांव का हाल बहुत बुरा है। स्वास्थ्य केन्द्र पर डॉक्टर नहीं आते। प्रधान को चाहिए कि भाग दौड़ कर यहां पर डॉक्टरों को बुलाएं। डॉक्टर नहीं आते, दो-तीन कर्मचारी हैं, वही मरीजों को देखकर दवा दे देते हैं। सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती। सब मिलकर अपनी खिचड़ी पका रहे हैं।’

प्रधान के दादा एमएलए थे उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता

नाराजगी भरे स्वर में सोमर सिंह आगे बोले ‘राधेश्याम राय की जगह पर किसी दूसरी जाति का आदमी प्रधान होता तो अब तक उसके खिलाफ न जाने कितनी शिकायतें पड़ चुकी होतीं, लेकिन आज राधेश्याम राय  के खिलाफ कोई चूं तक नहीं कर रहा है।’

वहीं दूसरी ओर गांव की बदहाली युवाओं के मन को दुखी कर देती है। गांव का एक युवा नाम न छापने की शर्त पर कहता है ‘इस सरकार में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। अस्पतालों में कोई साफ-सफाई नहीं है। सामुदायिक शौचालय पर वर्षों से ताला लगा हुआ है। प्रधान के खिलाफ किसी की बोलने की हिम्मत नहीं है। यही अगर छोटी जाति का कोई प्रधान होता तो उस पर अब तक कार्रवाई हो चुकी होती। लेकिन इस प्रधान के खिलाफ कोई मुंह नहीं खोलता।’

सोमर सिंह

 कारण पूछने पर यह युवा आगे बोला ‘यहां छोटी जाति के लोगों की हैसियत रोज कमाने रोज खाने की है। एक दिन काम न मिले तो चूल्हे में आग नहीं जलती। ऐसे में इन बड़े लोगों के खिलाफ बोलकर कौन आफत मोल ले? प्रधान के ही पास देख लीजिए डेढ़ सौ बीघा जमींन है। दादा एमएलए रहे।’

इन समस्याओं के संबंध में तसदीक करने के लिए जब ग्राम प्रधान राधेश्याम राय से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा मैं गाँव से बाहर एक मीटिंग में हूँ। और उन्होंने फोन काट दिया।

अफसरों को खबर तक नहीं

गांव में बंद पड़े शौचालय और अस्पताल में साफ-सफाई के सवाल पर रेवतीपुर के ब्लॉक के बीडीओ कौस्तुभ पाठक बोले ‘मेरे संज्ञान में यह मामला अभी तक नहीं आया था। आज आपके माध्यम से मुझे इसकी जानकारी हुई है। मामला अब मेरे संज्ञान में आ गया है इसलिए इस पर मैं शीघ्र ही उचित  कार्रवाई करूंगा।’

सरकार लाख दावे कर ले लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि गावों में विकास के नाम पर जो भी पैसा जा रहा है वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा है। इसका ताजा उदहारण है डेढ़गाँवाँ के सामुदायिक शौचायल और अस्पताल के चारों तरफ की गन्दगी। इसके साथ ही यह एक बड़ा सवाल है कि 8 लाख कि लागत से बना सामुदायिक शौचायल आखिर बना क्यों और आम जनता के लिए कब खुलेगा?

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