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ग्राउंड रिपोर्ट

गुजरात दंगा : बाइस साल बाद भी गोधरा के सवाल खत्म नहीं हुये हैं

यात्रियों में 1700 कारसेवक थे, जो अयोध्या से वापस आ रहे थे। हर स्लीपर कोच की तरह एस-6  कोच की क्षमता भी 72 यात्रियों की थी लेकिन 27 फरवरी 2002 के दिन पूरा कोच खचाखच भरा हुआ था और गोधरा स्टेशन पर कोच के बाहर भी दो हजार लोग थे। गोधरा के मुसलमानों ने पूरी ट्रेन को घेरकर सिर्फ एस-6 कोच को आग लगा दी। क्यों? क्या यह प्रश्न मन में उठना जरूरी नहीं है?

आज से 22 वर्ष पहले गोधरा की घटना है। साबरमती एक्सप्रेस, जिसमें 11 कोच थे और 1100 यात्रियों की क्षमता थी लेकिन उस दिन लगभग 2000 यात्री सफर कर रहे थे। इन यात्रियों में 1700 कारसेवक थे, जो अयोध्या से वापस आ रहे थे। हर स्लीपर कोच की तरह एस-6  कोच की क्षमता भी 72 यात्रियों की थी लेकिन 27 फरवरी 2002 के दिन पूरा कोच खचाखच भरा हुआ था और गोधरा स्टेशन पर कोच के बाहर भी दो हजार लोग थे। गोधरा के मुसलमानों ने पूरी ट्रेन को घेरकर सिर्फ एस-6 कोच को आग लगा दी। क्यों? क्या यह प्रश्न मन में उठना जरूरी नहीं है?

एस-6 कोच का दरवाजा बाहर से बंद कर आग लगा दी गई। कोच जलकर खाक हो गया और बाद में 59 अधजले शव मिले, जिनमें 26 शव महिलाओं के, 12 बच्चों और 21 पुरुषों के थे। 43 लोग जख्मी हुए, इनमें से पांच को गोधरा अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया। एक की मौत अस्पताल में हो गई और बचे हुए लोगों को तीन-चार दिन के बाद छुट्टी दे दी गई। बुरी तरह से जल चुके 59 अधजले शवों को पहचानना मुश्किल था।

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, स्वास्थ्य मंत्री अशोक भट्ट के साथ अन्य मंत्रीगण ने डी एम जयंती रवि से 27 फरवरी को दोपहर लगभग दो बजे मुलाक़ात की। मोदी ने साबरमती एक्सप्रेस से ही उन शवों को ले जाने का निर्णय लिया। लेकिन कानून व्यवस्था को देखते हुए डीएम जयंती रवि ने उन शवों को गोधरा से अहमदाबाद ले जाने के इस निर्णय का सख्त विरोध किया। इसके बावजूद नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी मंत्रियों ने डीएम के आग्रह को दरकिनार करते हुए गुजरात वीएचपी के अध्यक्ष जयेश पटेल को यह काम सौंप दिया।

महिला डीएम की बातों का विरोध करते हुए अधजले शवों को खुले ट्रकों के पर लादकर, अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल ले जाया गया। जबकि इन शवों को वहाँ ले जाने का कोई औचित्य नहीं था। पहले तो शव इतने जल चुके थे कि किसी को भी नहीं पहचाना जा सकता था और दूसरा उनके किसी नाते-रिश्तेदार ने यह मांग नहीं की थी कि हमें शव दिया जाए। ऐसे में शवों को खुले ट्रकों पर डालकर अहमदाबाद की सड़कों पर जुलूस निकालने का उद्देश्य क्या था?

जबकि इस तरह की कोई भी घटना घटने के बाद, जिम्मेदार व्यक्ति सबसे पहले कानून और व्यवस्था की चिंता कर ऐसा निर्णय लेता है, जिससे शांति व्यवस्था बने रहे, लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री, जो गृह मंत्रालय की भी जिम्मेदारी सम्हाल रहे थे, ने यह निर्णय लिया जो गुजरात को आग के हवाले करने के लिए काफी था।

गुजरात दंगों के जांच करने वाले कमीशन ने क्या यह पूछा कि अहमदाबाद शहर बंद होने के बावजूद शवों का जुलूस निकालने की इजाजत किसने दी थी? जिसके कारण पूरा गुजरात दंगे की आग में जल उठा और हजारों आम जनता की मौत हुई। क्या कमीशन ने इसका संज्ञान लिया? इस मामले में अब तक किसे और कौन सी सजा सुनाई गई है?

बजरंग दल और वीएचपी द्वारा 28 फरवरी 2002 के दिन गुजरात बंद की घोषणा करने बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजरात बंद की घोषणा करते हैं। गुजरात बंद होने के बावजूद 59 अधजले शवों को खुले ट्रक पर रखकर जुलूस निकाला गया। सवाल यह है कि इस जुलूस के बाद गुजरात में कितनी शांति-सद्भावना बनी रही? आज बाइस साल के बाद भी यह सवाल उठना औए इन बातों का मूल्यांकन होना बहुत जरूरी है।

आज भी रोज नये-पुराने चेहरे हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए प्रयासरत हैं। ‘एक हिंदू लडकी के साथ, अगर किसी मुसलमान ने शादी की है तो वह ‘लव जेहाद’ हो जाता है। और इसका अंजाम होता है, दस मुस्लिम लड़कियों को हिंदू सबक सिखाने का काम करते हैं।

लगातार हेट स्पीच दी जा रही है। लड़की हिंदू हो या मुसलमान उसकी अपनी कोई पहचान नहीं है। वह एक वस्तु मात्र है, जिसका इस्तेमाल दोनों समाजों के भीतर ध्रुवीकरण करने के लिए एक जलावन की तरह किया जाता है।

वयस्क हो जाने के बाद लड़की हो या लड़का दोनों को इस देश के नागरिक की हैसियत से मतदान में हिस्सा लेने का अधिकार मिल जाता है। देश के संविधान के अनुसार उन्हें जीवन का कोई भी निर्णय लेने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त  हो जाता है। लेकिन समाज के जो ठेकेदार समाज और संस्कृति बचाने का ठेका लिए होते हैं वे लड़कियों को उठाने की बात करते हैं। वे आधी आबादी महिलाओं का अपमान करते हुए अपने बनाए नियम पर चलने के लिए दबाव बनाते हैं। देश की महिलाएं सिर्फ 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाकर अपने अधिकारों की इतिश्री कर लेती हैं। वे जान लें कि इस तरह की हरकतों को रोकने का काम उन्हें ही करना है।

सवाल यह है कि कब तक आम नागरिकों की मौत पर नेता राजनैतिक रोटियाँ सेंकने का काम करेंगे? यहाँ सत्ता में बैठे लोग अपनी देशभक्ति उन अंतरराष्ट्रीय सट्टेबाजों के लिए प्रदर्शित करते रहेंगे जो देश की संपत्ति औने-पौने दामों में बेच रहे हैं। जब उसकी पोल खुलने लगी तो वह विपक्ष पर आरोप मढ़ रहा है कि वह भी देश के पर हमला बोल रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर का विश्व का सबसे बड़ा आर्थिक घोटाला करने वाले आदमी को देशभक्ति की आड़ में छुपाने में मदद करने वाले मंत्रियों को भी शामिल देखकर लगता है कि यह देश 140 करोड जनसंख्या के लोगों का न होकर चंद घोटालेबाजों का है। इन लोगों ने देश को अपने बाप की जागीर समझ रखा है। 140 करोड़ लोगों में से एक नागरिक होने के नाते और अपने देश की आज़ादी के पचहत्तर साल पूरे होने पर हर हाल में ऐसे पाखंडियों के हाथों से देश को बचाने के संकल्प करता हूँ। जो लुटेरे फिर से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का षड्यंत्र कर रहे हैं उनका पर्दाफाश करूंगा और दोबारा गोधरा नहीं होने दूंगा।

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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