औडिहार-जौनपुर रोड पर दो साल पहले चार बजे भोर से ही सेना की तैयारी करनेवाले युवाओं के जूतों के शोर से सड़क गुलजार हो जाती थी। उनकी दौड़ में जितनी लय थी उतनी ही उम्मीद भी कि जल्द ही वे अपनी मंजिल पा लेंगे। लेकिन दो घटनाओं ने उनकी उम्मीदों पर तुषारापात कर दिया। एक तो मोदी सरकार ने अग्निपथ योजना लाकर सेना की नौकरी को चार साल में समेट दिया और नए सैनिकों को शहीद का दर्ज़ा भी गैर अनिवार्य कर दिया।
दूसरी स्थानीय घटना ने उन्हें और भी अधिक तोड़ने का काम किया। सिधौना इलाके के कई गाँवों के लोगों ने बताया कि थाना खानपुर के थानाध्यक्ष ने कई युवाओं का गुंडा एक्ट में चालान करने की धमकी देकर उनसे अच्छी-ख़ासी रकम वसूली। इस घटना के बाद बहुत से युवाओं ने तैयारी करना छोड़ दिया। अब वे दिशाहीन हैं और उनके भीतर मोदी सरकार की नीतियों और योगी के प्रशासन को लेकर गहरा आक्रोश है।
इस संदर्भ में एक स्थानीय नेता का कहना है कि खानपुर थानाध्यक्ष ने प्रतिदिन किसी न किसी युवा को पकड़ा और उसका चालान करने के बहाने पचास-हज़ार से एक लाख तक वसूला। यह ओबीसी युवाओं खासकर यादव युवकों का मनोबल तोड़ने के लिए काफी था। आज ऐसे बहुत से युवा दिल्ली मुंबई भाग गए जिन्हें फर्जी तरीके से फंसाया गया था। इस तरह हम देखते हैं कि सत्ता का धौंस दिखाकर न केवल बड़े पैमाने पर वसूली हुई बल्कि सेना में नौकरी की चाहत रखनेवाले बहुत से युवा डर के मारे पलायन कर गए।
ऐसे अनेक भुक्तभोगी युवाओं ने अपना दर्द सुनाते हुये बताया कि हम लोग तो सेना में जाने का सपना देखते और अपने को तैयार करते थे लेकिन जब हमारे ऊपर आपराधिक धाराएँ, डकैती और गैगस्टर आदि लगाने की बात की जाने लगी तो पहले तो हमने किसी तरीके से पैसा देकर खुद को बरी कराया और अंततः उस सपने को ही त्याग दिया।
महेश कुमार नामक एक युवा ने कहा कि ‘हर थाने पर ठाकुर-बाभन थानाध्यक्ष हैं और हम उनके लिए नर्म चारा हैं। योगी खुद इतने जातिवादी हैं कि ऊपर से नीचे तक अपनी जाति के लोगों को नियुक्त किए हैं और ये लोग वसूली एजेंट की तरह काम करते हैं। फिर बताइये हमारी कहाँ सुनवाई होगी? कौन हमारे साथ न्याय करेगा?’
अग्निपथ योजना ने ज़्यादातर युवाओं के सपनों पर पानी फेर दिया है। जिस समय तक वे अपना लक्ष्य निर्धारित करते तब तक अग्निपथ योजना में भर्ती होने का समय आ जाता है और चार साल के बाद उन्हें बोरिया-बिस्तर समेट कर घर लौटना पड़ता है। इस योजना ने भविष्य को लेकर सपने बुनने वाले युवाओं को ऐसे भँवर में डाल दिया जहां न वे आगे बढ़ पाते हैं और न पीछे रहना संभव होता है।
अकेले गाजीपुर जिले के विभिन्न गाँवों में तीस हज़ार से ज्यादा युवा सेना में जाने की तैयारियाँ करते थे लेकिन अब उनकी संख्या में बहुत ज्यादा कमी आ चुकी है। नौजवानों का कहना है कि जिस सेना में जाना हमारे लिए जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी अब उसमें हमारी दिलचस्पी खत्म हो गई है।
यही हाल पूर्वाञ्चल के दूसरे जिलों के युवाओं का भी है। पड़ोसी बलिया जिले में भी बड़ी संख्या में युवा सेना में भर्ती के लिए तैयारियाँ करते थे लेकिन अब वे निराश हैं। सिकंदरपुर और मनियर के बीच पड़नेवाले एक गाँव खरीद के युवा रजनीश कुमार यादव बताते हैं कि ‘इस इलाके के युवा सेना में जाने के लिए बहुत इच्छुक रहते हैं। लेकिन जब से यह अग्निपथ योजना आई है तब से इस क्षेत्र के युवा नर्वस हो गए हैं। वे युवा चाहते हैं कि जो यह अग्निवीर योजना है इसे वापस करके पहले की तरह सेना की नौकरी को बहाल किया जाय। इससे सेना में जाने के लिए इधर के नौजवान फिर से अपनी इच्छाशक्ति मजबूत करें।’
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अग्निपथ योजना लागू होने के बाद कुछ समय तक युवाओं में काफी आक्रोश था लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने हालात से समझौता कर लिया और इस योजना के तहत सेना में जाने लगे हालांकि उनकी संख्या में बहुत कमी आई। ज्यादातर युवाओं की उम्र 20 वर्ष से ज्यादा होने के कारण वे तकनीकी रूप से इस योजना से बाहर हो जाते थे।
रजनीश कहते हैं कि ‘मेरी उम्र निकल गई है। मैंने सेना में दो बार बनारस से दौड़ भी निकाल लिया था। कुछ उम्र कोरोना में निकल गई और फिर मैं बाहर हो गया। लेकिन आनेवाली पीढ़ी भी इन्हीं परेशानियों में अपनी उम्र निकाल देगी तो उसके साथ बहुत अन्याय होगा। इधर के गाँवों के मध्य वर्ग के लड़के केवल सेना में ही नौकरी पा सकते हैं क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे दूसरी नौकरी पा सकें। न वे एमबीबीएस कर सकते हैं न ही कोई और तैयारी।’
रजनीश के साथ ही मौजूद राहुल वर्मा कहते हैं कि ‘अब तो भर्ती के नियम ही उलट गए हैं। पहले दौड़ होती थी फिर पेपर होता तब मेरिट बनती थी। लेकिन अब नियम बदल गए। अब नियम यह है कि पहले पेपर होगा। उसके बाद दौड़ होगा। उसके बाद कटऑफ बनेगा उसके बाद भर्ती होगी। वह भी सिर्फ चार साल के लिए। चार साल के बाद क्या होगा इसकी कोई गारंटी नहीं।’
राहुल कहते हैं कि यह सब देखकर मुझे नहीं लगता कि अब सेना में कोई भविष्य रह गया है। चूंकि पहले से दिल-दिमाग में यही बात भरी हुई है इसलिए हम सेना की उम्मीद पालते थे लेकिन अब चार साल के लिए वहाँ जाकर क्या करेंगे। सबसे बड़ी बात तो यह कि अग्निवीर के मरने पर शहीद का सम्मान और दर्ज़ा तक नहीं मिलनेवाला है।’
कई वर्ष पहले सेना में जाने की तैयारी करनेवाले मनोज विश्वकर्मा ने अब सेना में जाने का सपना देखना छोड़ दिया। वे कई साल तक तैयारी करते रहे और जब अग्निपथ योजना लागू हुई तब उनकी उम्र 22 साल हो चुकी थी। वह भाजपा सरकार से इस बात को लेकर बहुत नाराज हैं कि काम पाने की उम्र में रिटायर करने की योजना ले आई है सरकार। फिलहाल मनोज अब खेती कर रहे हैं और उसी में अपने भविष्य को संवारने में लगे हैं।
ऐसा केवल मनोज विश्वकर्मा, राहुल वर्मा और रजनीश कुमार यादव के साथ नहीं हुआ है बल्कि बड़ी तादाद में लोगों का सपना टूटा है। गाजीपुर जिले के कई गाँव ऐसे हैं जहां के हर घर से कोई न कोई भारतीय सेना में नौकरी करता था लेकिन नई पीढ़ी के लोगों के लिए अब यह दुर्लभ हो गया है। अब आम युवा किसी अन्य नौकरी के लिए कोशिशें करने लगा है।
समाजवादी पार्टी के सदस्य और जिला पंचायत सदस्य कमलेश यादव राय साहब कहते हैं कि ‘सरकार ने युवाओं के साथ बहुत भद्दा मज़ाक किया है। उनमें सेना के प्रति एक क्रेज और सरोकार होता था। वे सेना को अपने श्रेष्ठ देते रहे हैं। उन्होंने खुद को शहीद किया लेकिन पीठ नहीं दिखाई। लेकिन सरकार की एक गलत नीति के चलते युवाओं के सपनों पर पानी फेर दिया गया है। स्वयं सेना के लिए भी यह गौरव की बात नहीं रही।’
सैदपुर के वरिष्ठ पत्रकार बसंत शर्मा का कहना है कि ‘विगत वर्षों में कई तरह की बातें सामाजिक व्यवहार का हिस्सा होती गई हैं। जिन युवाओं की उम्र सेना में जाने की है लेकिन वे नहीं जा पा रहे हैं वे गहरे डिप्रेशन में जा रहे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें। इसके साथ ही ऐसे लड़कों की शादियों में भी समस्या आ रही है जो नौकरी करने की उम्र में रिटायर हो रहे हैं। इसके साथ ही युवाओं में नशाखोरी और अपराध भी बढ़ा है। यह किसी भी रूप में भारत के अच्छे भविष्य का संकेत नहीं है।’
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अग्निपथ योजना के आने से युवाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा सेना में नौकरी पाने की उम्मीद खो चुका है और अब दूसरे कामों में अपने को खपाने में लगा है।
इसका एक सिरा पारिवारिक खेती-बाड़ी की ओर जाता है लेकिन अन्य सिरे नशे या अपराध अथवा किस तरफ जा रहे हैं इसके बारे में कुछ भी कहना आसान नहीं है।
अठारहवीं लोकसभा चुनाव के दौरान जनसभाओं में इंडिया गठबंधन के नेता राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने सत्ता में आते ही अग्निपथ योजना की वापसी का वादा किया था लेकिन इंडिया गठबंधन को सत्ता नहीं मिली और यह वादा वादा ही रह गया।
लेकिन एनडीए के घटक दल जनता दल यूनाइटेड ने इस योजना पर पुनर्विचार और समीक्षा की बात कही है लेकिन सत्ता में बिना शर्त शामिल होने की ढुलमुल चाल ने इस बात को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया है।