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राजस्थान : मिट्टी से भविष्य की फसल उगाते युवा

पिछले कई दशकों में युवा गांव में खेती-किसानी की जगह शहरी नौकरियों, मेट्रो-ज़िंदगी और शहरों की चमक-दमक की तरफ खिंचे चले आए हैं। लेकिन अब एक बार फिर से बदलाव नजर आने लगा है। कुछ युवा वापस गाँव और खेती की तरफ लौट रहे हैं या कम-से-कम खेती को एक सम्मानजनक, तकनीकी और लाभदायक करियर विकल्प के रूप में देखते हुए लाखों की आमदनी कर रहे हैं।

राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित नाथवाना गांव का 28 वर्षीय जोगिंदर जब सुबह सुबह अपना ट्रैक्टर लेकर खेतों की ओर निकलता है तो गांव का हर इंसान उसे हैरत से देखता है, खासकर युवाओं में वह चर्चा का विषय बन जाता है। राजधानी जयपुर के एक प्रतिष्ठित संस्थान से एमबीए करने के बाद जोगिंदर ने किसी कंपनी में नौकरी करने की जगह गांव में अपनी पुश्तैनी खेती को चुना। उसने परंपरागत खेती की जगह नए आइडिया और नई तकनीक को जोड़ा जिससे उसके खेतों की फसल पहले से अच्छी होने लगी। दरअसल, पिछले कई दशकों में युवा गांव में खेती-किसानी की जगह शहरी नौकरियों, मेट्रो-ज़िंदगी और शहरों की चमक-दमक की तरफ खिंचे चले आए हैं। लेकिन अब एक बार फिर से बदलाव नजर आने लगा है। कुछ युवा वापस गाँव और खेती की तरफ लौट रहे हैं या कम-से-कम खेती को एक सम्मानजनक, तकनीकी और लाभदायक करियर विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। अगर राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रवृत्ति सिरे चढ़े, तो उसके सामाजिक, आर्थिक और मानवीय असर दूरगामी होंगे। इससे न केवल फसल बढ़ेगी बल्कि गाँव की आत्म-सम्मान, परिवारों की सुरक्षा और स्थानीय जीवन की गुणवत्ता भी उभरेगी।

सबसे पहले एक बात स्पष्ट करनी जरूरी है कि ‘कितने प्रतिशत युवा खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं’? इसका कोई सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इसे अलग-अलग अध्ययनों में अलग तरीके से नापा गया है। कुछ अध्ययनों ने केवल ‘रुचि’ मापी है, तो कुछ ने वास्तविक ‘भागीदारी’ या स्वरोजगार अपनाने को मापा है। एक अध्ययन में युवा वर्ग में लगभग 79.8% ने खेती में रुचि होने की दर बताई गई है। यानी बहुत से युवा कहते हैं कि वे खेती को लेकर इच्छुक हैं, बशर्ते उन्हें सही प्रशिक्षण, संसाधन और अवसर मिले।

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वहीं राजस्थान पर केन्द्रित शोधों ने दिखाया है कि जिलेवार और गतिविधि-वार भिन्नता बहुत है। कुछ जिलों में युवा अधिक सक्रिय रूप से फसलों, कृषि लॉजिस्टिक्स और एग्री-बिजनेस में जुड़ रहे हैं, जबकि अन्य जगहों पर अभी भी भागीदारी सीमित है। इससे स्पष्ट है कि ‘रुचि’ और ‘व्यवहारिक वापसी’ में अंतर है और नीति, प्रशिक्षण व बाजार पहुँच इसे कम कर सकते हैं। वास्तव में, युवा जब खेती की तरफ आते हैं तो पहले और सबसे बड़ा असर परिवार और समुदाय पर होता है। आज कई परिवारों के बुजुर्ग किसान हैं, पर युवा यदि खेत, आधुनिक तकनीक और कृषि-व्यवसाय सीखकर वापस लौटते हैं, तो बुजुर्गों के अनुभव और युवाओं के नए तकनीक का मेल होगा जिसका असर खेती में नजर आएगा। इससे पलायन की लहर भी धीमी पड़ेगी।

अगर बीकानेर-क्षेत्र के किसी गाँव का युवा खेती में कृषि-प्रौद्योगिकी (सोलर-पम्प, ड्रिप इरिगेशन, कीट-मॉनिटरिंग ऐप) लाकर छोटे-छोटे लॉन और उन्नत फसलों को अपनाता है, तो खेतों की उपज और बाजार मूल्य दोनों बढ़ सकते हैं और परिवार की आर्थिक सुरक्षा में स्पष्ट वृद्धि होगी। ऐसे परिवर्तन का सबसे बड़ा मानव लाभ यह है कि काम का संतोष और सामाजिक पहचान दोनों लौटते हैं। युवा को सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि एक उद्देश्य मिलता है। राजस्थान जैसे राज्य में, जहाँ सूखा-जोखिम और भौगोलिक असमानताएँ हैं, वहां नवाचार युवा कृषि का दूसरा बड़ा लाभ बनेगा। 

 

युवा नई तकनीकें, सामाजिक मीडिया के माध्यम से डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर चैनल, वैल्यू-एडिशन (जैसे फलीय प्रसंस्करण, पेय बनाना) और अन्य मॉडलों को अपना सकते हैं। राज्य सरकार और केंद्र सरकार की हालिया नीतियाँ और स्कीमें भी तकनीक तथा स्किलिंग पर जोर दे रही हैं। इससे युवा प्रशिक्षण और उद्यमिता के अवसर बढ़ते हैं, जिससे खेती ‘कठिन पड़ाव’ से निकलकर ‘आकर्षक व्यवसाय’ बन सकती है। उदाहरण के तौर पर राजस्थान में कृषि-तकनीक और सौर ऊर्जा से जुड़े प्रोजेक्ट्स और युवा कौशल केंद्रों की घोषणा हुई है जो युवा-केंद्रित पहल का समर्थन करते हैं।

कई ग्रामीण युवा जब रोजगार के लिए शहरों में झूठे वादों के पीछे भागते हैं तो न केवल आर्थिक असफलता होती है बल्कि अलगाव और मानसिक दबाव भी बढ़ता है। खेती में लौटने का मतलब है रिश्तों की मरम्मत, सामाजिक सहारे का पुनर्निर्माण और यह अहसास कि उनकी मेहनत गाँव के अस्तित्व और पोषण सुरक्षा से जुड़ी है। इससे आत्म-सम्मान बढ़ता है और डिप्रेशन/अलगाव जैसी समस्याओं से लड़ने में मदद मिलती है। हालाँकि इस क्षेत्र में चुनौती भी कम नहीं है। खासकर जब राजस्थान जैसे रेगीस्तानी इलाके की बात करते हैं तो भौगोलिक रूप से यह चुनौती और भी बढ़ जाती है।

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 भूमि की सीमाएँ, पानी की कमी, संकटकाल में बाजार पहुँच और प्रारंभिक पूँजी की कमी युवा किसानों के मनोबल को तोड़ सकती है। इसलिए अगर वास्तविक बदलाव चाहिए तो नीति-निर्माताओं, वित्त संस्थाओं और स्थानीय पंचायतों को मिलकर ऐसे मॉडल तैयार करने होंगे जो लीज्ड-लैंड, साझा उपकरण, माइक्रो-फाइनेंस, और मार्केट लिंकिंग उपलब्ध कराएँ। साथ ही विज्ञान-आधारित प्रशिक्षण और विपणन शिक्षा देना जरूरी है ताकि युवा इसे केवल खेती का काम न समझें बल्कि इसे ‘एग्री-बिज़नेस’ के रूप में देखें।

राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में युवा अगर खेती की तरफ आते हैं तो यह सिर्फ एक आर्थिक विकास ही नहीं होगा बल्कि गाँवों का सांस्कृतिक और सामाजिक पुनर्जीवन भी होगा। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि बहुत से युवा खेती में रुचि रखते हैं, पर उसे व्यवहारिक रूप देने के लिए टेक्नोलॉजी, प्रशिक्षण, वित्त और बाजार की गारंटी चाहिए। ऐसे में अगर सरकार और समाज मिलकर युवाओं की ऊर्जा शक्ति, परम्परागत ज्ञान और आधुनिक तकनीक को जोड़ दे और स्थानीय बाज़ारों तक पहुँच सुनिश्चित करें तो राजस्थान की मिट्टी में युवा न केवल फसल उगाएँगे बल्कि अपने और अपने समुदाय का स्थायी, सम्मानजनक और खुशहाल भविष्य भी उगाने में सफल हो सकते हैं। जरूरत है कृषि के क्षेत्र में सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से युवाओं को जोड़ने और उनका मार्गदर्शन करने की।
(यह लेखिका के निजी विचार हैं)

किशन कंवर
किशन कंवर
लेखिका राजस्थान में रहती हैं।
1 COMMENT
  1. बहुत सरल मायने सारे! खेती वापस आना बड़ी चीज है, खासकर ट्रै�्टर चलाते हुए! लेकिन कौन साहब टेक्नोलॉजी सीखेगा, सोलर पम्प लगाएगा? जब तक कोई नया ऐप खोलकर डायरेक्ट टू कंज्यूमर नहीं करेगा, तब ये युवा खेती में नहीं लगेगा। सरकार योजनाएं बना रही है, लेकिन माइक्रो-फाइनेंस और मार्केट लिंकिंग क्या हैं? धीमी धीमी पढ़ें, तो बदलाव देखेंगे! 😉baseball bros unblocked

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