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सैफई का सफर और कुछ यादगार लम्हें

इस महीने 9 तारीख को मैं कांशीरामजी के परिनिर्वाण दिवस पर एक कार्यक्रम में गाजीपुर गया हुआ था। वहीं मुझे 10 अक्तूबर को मालूम पड़ा कि नेताजी का आज अंंतकाल हो गया। अंतिम दर्शन के लिए मेरी भी इच्छा हुई, लेकिन साधन न होने या किसी का साथ नहीं मिलने के कारण, मैं नहीं जा […]

इस महीने 9 तारीख को मैं कांशीरामजी के परिनिर्वाण दिवस पर एक कार्यक्रम में गाजीपुर गया हुआ था। वहीं मुझे 10 अक्तूबर को मालूम पड़ा कि नेताजी का आज अंंतकाल हो गया। अंतिम दर्शन के लिए मेरी भी इच्छा हुई, लेकिन साधन न होने या किसी का साथ नहीं मिलने के कारण, मैं नहीं जा सका। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मैं 11 अक्टूबर की शाम को जौनपुर में विजय कुमार मौर्य के यहां पहुंच गया। सभी प्रमुख नेताओं या कार्यकर्ताओं के सैफई चले जाने से कोई प्रोग्राम नहीं हो पाया लेकिन दोपहर बाद जौनपुर के बसपा सांसद श्यामजी यादव से उनके आवास पर सामाजिक विषयों एवं शूद्र मिशन पर भी विस्तार से चर्चा हुई। वहां पर उपस्थित सभी लोगों से उन्होंने शूद्र मिशन पर काम करने का आग्रह भी किया।

शाम को समाजवादी नेत्री पूनम मौर्या से भी काफी कुछ सामाजिक विषयों पर चर्चा हुई। उन्होंने ही हमें बताया कि 14 अक्तूबर को नेताजी को अंतिम श्रद्धांजलि और उनके पूरे परिवार से सहानुभूति स्नेह मिलन का कार्यक्रम रखा गया है। इस प्रोग्राम में जाने और नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का मैंने भी मन बना लिया।

कांशीराम और मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)

यहां मैं बता देना उचित समझता हूं कि, मैं 1982 से कांशीरामजी के बामसेफ में काम करने के कारण नेताजी से मेरा कोई सामाजिक या राजनीतिक लगाव नहीं था। लेकिन जब नेताजी और मान्यवर कांशीराम की संयुक्त सरकार बनी, उसी समय मैंने बहुजन चेतना पुस्तक लिखी थी, जो उस समय काफी चर्चित हुई थी और हमारी यह पुस्तक नेताजी तक पहुंच भी चुकी थी। नेताजी के मुख्यमंत्री रहते समय, पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य रहे यादवजी (जिनका नाम मैं भूल रहा हूँ) ने हमें आफर भी दिया था कि आप नोयडा प्राधिकरण में मुख्यमंत्री कोटा से साहित्य और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में एक प्लाट ले लीजिए। उस समय बहुत से लोगों को दिया भी जा रहा था। अंबेडकरवादी सनक होने और मुम्बई में नौकरी करने के कारण मैंने उस समय इस पर ज्यादा तवज्जो नहीं दिया। आज मैं उसे अपनी भूल मानता हूं। इसलिए नेताजी के प्रति मेरे दिल में सद्भावना बनी हुई है।

मैंने अखिलेश यादव के मामा लाखन सिंह यादव से बातचीत की और कहा कि मैं 14 अक्टूबर को 6 बजे सुबह मरूधर मेल से इटावा पहुंच जाऊंगा। उन्होंने कहा कि ‘बहुत ही अच्छा, मैं इटावा में हूं और मैं भी कल सैफई प्रोग्राम में जाने वाला हूं। सुबह आइए हमारे घर, फिर यही से साथ में चलेंगे।’

तेरह तारीख को रिजर्वेशन के समय मालूम पड़ा कि आज रात को मरूधर मेल जौनपुर से नहीं जाएगी और शाम को कोई भी ट्रेन सीधे जौनपुर से इटावा के लिए नहीं है। एडवांस रिजर्व टिकट नहीं मिल सकता। मैं वापस लौट आया। मन तो अब बना लिया था, जाना है तो जरूर जाना है। अगर लाखनजी का साथ भी नहीं मिला, तब भी प्राइवेट साधन से इटावा से सैफई पहुंच ही जाउंगा।

पिता मुलायम सिंह यादव के साथ अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

उसी रात नौ बजे के आसपास जौनपुर से ट्रेन से लखनऊ पहुंच गया। लखनऊ में रात बिताने के बाद, सुबह गोमती एक्सप्रेस से दस बजे के आसपास इटावा पहुंच गया। इटावा पहुंचने के बाद लाखनजी को मोबाइल लगाया, तो उनका जवाब था ‘कि मैंने सुबह चलने से पहले आपको फोन लगाया तो आपका मोबाइल स्विच ऑफ मिल रहा था। मैं तो सैफई पहुंच आया हूं।’ लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ‘वहीं थोड़ा इंतजार कीजिए, अभी एक और कार हमारे यहां से आने वाली है, पता लगाकर बताता हूं।’ थोड़ी देर में संतरतन सिंह यादवजी का कॉल आ गया और उन्होंने सुझाव दिया कि ‘स्टेशन के बाहर घोड़ा चाय की दुकान के पास इंतजार कीजिए, हम आपको लेने आ रहे हैं।’ वे भी सैफई के लिए चार पांच किलोमीटर दूर तक जा चुके थे, लेकिन फिर लौटकर मुझे लेने आ गये। ड्राइवर और हम चार लोग सीधे सैफई के लिए चल दिए। मैंने बीच रास्ते में ऐसे माहौल के मौके पर अपने सफर वाले कपड़े बदलने की इच्छा जाहिर की तो संतरतनजी का कहना था कि ‘आप जैसे व्यक्तित्व के लिए कपड़ा कोई मायने नहीं रखता है, सब ठीक है।’

उनका कहना था कि ‘आजतक आपको किसी ने देखा नहीं है, लेकिन सैफई यादव परिवार आपके विचारों से चिरपरिचित है और आपके वैचारिक लेखों, भाषणों और इंटरव्यू पर परिवार में कभी-कभी चर्चाएँ भी हो जाया करती हैं।

मुझे यह जानकर और सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। वहां पहुंचने पर कुछ लोगों से परिचय हुआ। पता चला कि बहुत से लोग मेरे विचारों से मुझे जानते हैं।

अखिलेश यादव से बातचीत के दौरान

नेताजी को श्रद्धांजलि देने के लिए बड़ी लम्बी लाइन लगी हुई थी। संतरतनजी ने मुझे साथ ले जाकर वीआईपी की तरह श्रद्धांजलि दिलवाई और फोटो भी खिंचवाई। फिर परिवार के लोगों से, जो एक लाइन में कुर्सी पर बैठे हुए थे, बारी-बारी सभी से मेरा परिचय भी करवाया। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ और अखिलेशजी से मिलते समय तो मैं थोड़ी देर के लिए भूल ही गया कि मैं नेताजी को श्रद्धांजलि देने आया हूं। हुआ ऐसा कि संतरतनजी ने परिचय कराते हुए कहा कि शिवशंकर सिंह यादवजी है। बैठे हुए अखिलेशजी पर स्वाभाविक रूप से कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं हुई। फिर संतरतनजी ने कहा आप मुम्बई से शूद्र शिवशंकर सिंह यादवजी हैं। यह सुनकर अखिलेशजी तुरंत खड़े होकर मिले और कुछ बातें करते हुए हालचाल पूछा। यही नहीं, दो-तीन फोटो भी साथ में खिंचवाई। वास्तव में कुछ क्षणों के लिए मैं भूल ही गया कि मैं श्रद्धांजलि सभा में हूं।

कुछ समय वहां बिताने और कुछ और लोगों से मिलने के बाद संतरतनजी सैफई से थोड़ी दूर अपने पुश्तैनी मकान पर ले लाए। वहां शाम तक रहते हुए एक अनुभव मिला कि सैफई के यादव परिवारों में कमाने और समृद्धि-संपन्नता में आगे बढ़ने के लिए एक कम्पिटीशन है। कीमती चार पहिया गाड़ी के साथ खेती-बाड़ी करने के लिए सभी मशीनरी मौजूद हैं। सभी के द्वार पर दो-चार अच्छी नस्ल की भैंसें और गाएँ भी शोभा बढ़ा रही हैं। खेती-बाड़ी में उन्नति के लिए वे नए-नए उपाय अपना रहे हैं।

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मनुवादी मीडिया प्रचार के प्रभाव से मेरे अंदर भी इस परिवार के प्रति एक निगेटिव धारणा बनी हुई थी कि नेताजी ने सिर्फ अपने गांव और अपने परिवार पर ही ज्यादा ध्यान दिया है। यहां आने और जमीनी हकीकत मालूम होने के बाद यह भ्रम दूर हो गया। नेताजी की मां ने अपने चार लड़कों और दो लड़कियों को जिस गरीबी में पाला-पोसा और खुद नेताजी बचपन में अपनी मां का सहयोग करते थे। यह जानकार बड़ी  हैरानी भी हुई की शून्य से शुरू करके आज इस मुकाम तक पूरे परिवार को लाने में कितना संघर्ष किया होगा। इतने विलक्षण प्रतिभा के धनी थे कि युवावस्था में ही जाति-पाति और ब्राह्मणवादी पाखंड के धुर विरोधी हो गये थे। यहां आने पर यह भी मालूम पड़ा कि वे एक बार किसी जाटव दोस्त के यहां खाना खा आए थे, तो घर-परिवार वालों ने उन्हें बहुत ही बुरा-भला कहा था, जिसका उन्होंने मुंहतोड़ जवाब भी दिया था।

परिवार को आगे बढ़ाने और उसे गरीबी से निकालने की इच्छाशक्ति सभी को होनी चाहिए। यह भी देखने को मिलता है कि यदि परिवार में खुद ही आगे बढ़ने की इच्छा-शक्ति नहीं है तो आपकी सारी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं। रही बात सैफई जैसे एक अति पिछड़े गांव को सभी सुख-सुविधाओं से संपन्न बनाने की तो मैं देख रहा हूं और अनुभव भी करता रहा हूं कि बहुत से शूद्रों की मानसिकता होती है कि ज्योंहि थोड़ी संपन्नता आई या बहुत बड़े पद पर पहुंच गए तो अपना गांव और परिवार भूलकर गांव से दूर शहर में आशियाना बना लेते हैं। लेकिन नेताजी ताउम्र अपनी जमीन से जुड़े रहे।

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सैफई से अनुभव लेने के बाद मेरे दिमाग में यह प्रश्न उठाना लाजिमी है कि इस भाजपा सरकार ने जो 100 शहरों को सैफई जैसा बनाने का संकल्प लिया था उसका हश्र क्या हुआ है? हां, उसने जरूर देश भर के सभी जिलों और राज्यों में अपने लिए फाइव स्टार आफिस जरूर बना लिया है।

यही नहीं, यह सरकार जितना अडानी और अंबानी पर पैसे लुटा रही है, यदि वही पैसा अपने गरीब देशभक्तों के लिए रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य पर खर्च करती तो देश की स्थिति कुछ और होती।

वहां जाने पर, पूर्वांचल से हटकर एक अलग विचित्र ब्राह्मणवादी परंपरा देखने को मिली। मैंने देखा कि बुजुर्ग लाखन सिंह यादव ने, अपने से कम उम्र के संतरतनजी का विदाई के समय पैर छुआ। पूछताछ से पता चला कि शादी की विदाई के समय बाप-बेटी और दामाद का अभिवादन के रूप में पैर छूते हैं।

इस पर मैंने विस्तार से चर्चा भी की। किसी बेटे या बेटी की शादी के पहले या शादी के बाद, पैदा करने वाला मां-बाप उच्च और पूज्यनीय ही रहेगा। वह बदल नहीं सकता। इसलिए हर हाल में बेटे-बेटी को मां-बाप की इज्जत और प्रतिष्ठा कायम रखनी चाहिए। इसी तरह लड़की के मां-बाप का भी दामाद के लिए भी अपने मां-बाप जैसा ही स्थान होना चाहिए।

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रिश्ते पर चर्चा हो चुकी है तो बता देना उचित होगा कि, लाखन सिंह यादवजी, अखिलेशजी के सगे मामा हैं और संतरतनजी अखिलेशजी के जीजाजी हैं।

हमारे पूर्वांचल में शादी के समय बुजुर्ग बाप को अपने दामाद के पैर पखारने पड़ते हैं। शादी के बाद वही दामाद अपने सास और ससुरजी को भी मां-बाप की तरह ही सम्मान देता है। दामाद का पैर पखारना भी लड़की के बाप को दहेज के साथ-साथ नींचा दिखाने और अपमानित करने का एक तरीका बनाया गया है। इसका भी हम लोग अब विरोध कर रहे हैं और यह भी प्रचार कर रहे हैं कि अमानवीय वैदिक रीति से ब्राह्मणों से शादी करवाना बन्द होना चाहिए। ब्राह्मणवादी व्यवस्था में छ: साल का ब्राह्मण का बच्चा, साठ साल के बुजुर्ग क्षत्रिय से उच्च है- षष्ठ ब्राह्मण: उच्चतम शष्ठ क्षत्रिया:

इसीलिए सभी लोग पंडितजी पांव लागी बोलते हैं। इस परम्परा को कायम रखने के लिए तथा समाज के शिक्षित होने पर भी, इस पर कोई अंगुली न उठाए, इसलिए समाज में कुछ रिश्तों में अमर्यादित परंपराएं ब्राह्मणों ने ठूँस दिया है। अन्यथा रिश्तों से और उम्र से छोटे-बड़े का लिहाज और इबादत पूरे विश्व में एक समान है। इसलिए हिन्दू धर्म की जितनी भी अमर्यादित परंपराएं हैं, उस पर चिंतन-मनन कर उन्हें बदलने की जरूरत है। धन्यवाद।

 गूगल@शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

शूद्र शिवशंकर सिंह यादव विचारक और वक्ता हैं।

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