Saturday, July 27, 2024
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जब लखनऊ की रैली में मुलायम सिंह ने कहा- आज निषाद जो मांगेंगे, हमें देना ही होगा

श्रद्धांजलि-लेख नेताजी हम सबको छोड़कर चले गए। हमारे जैसे करोड़ों लोग जब पैदा हुए तो नेताजी उस समय आम-अवाम के लिए संघर्ष कर रहे थे। इसलिए ज्यों-ज्यों होश आता गया, नेताजी का पराक्रम सड़क से सदन तक दिखता रहा। हमने अपने जन्म के बाद होश संभालने के साथ नेताजी को संघर्ष करते और फिर उस […]

श्रद्धांजलि-लेख

नेताजी हम सबको छोड़कर चले गए। हमारे जैसे करोड़ों लोग जब पैदा हुए तो नेताजी उस समय आम-अवाम के लिए संघर्ष कर रहे थे। इसलिए ज्यों-ज्यों होश आता गया, नेताजी का पराक्रम सड़क से सदन तक दिखता रहा। हमने अपने जन्म के बाद होश संभालने के साथ नेताजी को संघर्ष करते और फिर उस संघर्ष में खुद को शामिल करते पाया है।

नेताजी को उनके अड़ियल व लड़ाकूपन के कारण ही शेरे-हिन्द और धरतीपुत्र कहा जाता रहा है। जब हमलोग नारा लगाते थे कि शेरेहिन्द मुलायम सिंह-जिन्दाबाद जिन्दाबाद तो नेताजी कई बार हंसते हुये कहते थे कि ‘तुमलोग हमारी तुलना शेर जैसे जानवर से कर रहे हो।’ लेकिन कार्यकर्ता तो शेर की बहादुरी के गुण से अपने नेता को शेरेहिन्द बोलता था, वह कहां रुकने वाला होता था?

नेताजी ने उत्तर प्रदेश को ऐसे नापा था जैसे कोई इंजीनियर अपने साइट को चहुंदिश नाप डालता है। यूपी का कोई कोना न होगा जिसको नेताजी ने देखा न हो। अपनी कार, रथ या हेलीकाप्टर से उसे छुआ न हो। नेताजी को हर जिले में अपने साथियों का नाम याद था। वे उन्हें पहचानते थे। ऐसा गुण देश के किसी नेता में न होगा कि वह अपने सुख-दुख के साथियों के सुख-दुख में उसी भाव से शामिल होते थे जिस भाव से वे उनके साथ रहे हों।

नेताजी ने सफलता-असफलता का स्वाद समान भाव से चखा। वे कभी निराश नहीं हुए और अपनी सभाओं में अपने साथियों को, जो हार आदि से निराश हो जाते थे, अक्सर डॉ. राममनोहर लोहिया की किताब निराशा के कर्तव्य पढ़ने को कहा करते थे।

नेताजी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे आम कार्यकर्ताओ से राय लेने से लेकर उनके परामर्श को इम्प्लीमेंट करने तक का काम करते थे।उन्होंने हर अच्छी धारणा को बेहिचक अपनाया, चाहे वह जिससे व जहां से मिले। नेताजी ने भारत रत्न जैसा अलंकरण यश भारती शुरू कर ऐसे कितनों को नेम-फेम दे दिया जो गर्दो-गुबार में ढंक दिए गए थे।

[bs-quote quote=”नेताजी उसूल व वचन के पक्के नेता थे। वे जो कहते थे उसे कर दिखाते थे। उनकी कथनी व करनी में कोई अंतर नही था। नेताजी जिस गंवई परिवेश व पृष्ठभूमि से निकलकर राजनीति में आये थे, उसकी समस्या से वाकिफ थे। वे पिछड़ों, दलितों, वंचितों, छात्र-नौजवानों, किसानों, मजदूरों की समस्या से भलीभांति परिचित थे।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

राजनीति के हिमालय व समाजवादी चट्टान थे नेताजी

नेताजी राजनीति के हिमालय व मजबूत समाजवादी चट्टान थे। वे निर्णय लेने में बेझिझक व निर्भीक थे। वे कहते थे कि किसी के साथ अत्याचार हो तो प्रतिकार करने से पीछे मत हटना, भले ही अत्याचारी तुम्हारा भाई व सगा सम्बन्धी हो। अत्याचार का प्रतिकार समाजवाद का मूल अंश है। वे कहते थे, जो सबको साथ लेकर चलने की भावना रखे, समता समानता व सबके सुख-समृद्धि व सम्पन्नता की चिन्ता करे, वही समाजवादी होता है। समाजवादी कभी जातिवादी नहीं होता, जो जातिवादी है वह समाजवादी नहीं हो सकता। नेताजी का व्यक्तित्व बहुत ऊँचा था, जिसकी ऊंचाई, लंबाई, चौड़ाई, गहराई, चढ़ाई पर लिखना कठिन है। वर्तमान दौर में जो भी लोग राजनीति में हैं उनमें नेताजी का कद निःसन्देह ऐसा था जिसकी तुलना किसी और से नहीं की जा सकती है, क्योंकि उनका एक लंबा समय लोकतंत्र बचाने व जनसरोकारों को लेकर जेल जाने, जनसमस्याओं को लेकर सड़क पर लड़ने व विधानसभा एवं लोकसभा में संसदीय जीवन व्यतीत करने का रहा है।

नेताजी आज हम लोगों के बीच नहीं है, लेकिन उनकी याद स्मृति पटल पर अंकित है। उनके जाने के बाद तो हम यह सोचकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि एक व्यक्ति के रूप में क्या कोई आगे भविष्य में दूसरा मुलायम बन पाएगा, जो झोपड़ी से निकल झोपड़ी वालों को मुठ्ठी बांध लड़ना सिखाएगा। लोकतंत्र बचाने हेतु जेल जाएगा, किसान व किसानी के सवाल को सदन से सड़क तक उठाएगा। मुख्यमंत्री बनने पर किसानों के हितार्थ कलम चलाएगा। रक्षामंत्री बन जवानों के हितार्थ नीतियां बनाएगा। देश की सीमाओं को अभेद्य बनाएगा। बेटियों को पढ़ने हेतु उद्दत करने का कार्यक्रम चलाएगा?

वर्तमान दौर में राजनीतिज्ञ बनना तो बहुत आसान है लेकिन मुलायम बनना नितांत कठिन है, क्योकि पैसे से एमपी-एमएलए तो बन जाएंगे, पर वह तेवर, वह जज्बा किस पैसे से खरीद पाएंगे जो नेताजी में थे। इसलिए आज जब नेताजी का शारीरिक अवसान हो गया है तो यही कहा जा सकता है कि अब कोई दूसरा मुलायम नहीं पैदा होगा।

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नेताजी सिर्फ़ सुनाना नहीं, कार्यकर्ताओं को सुनना भी काफी पसंद करते थे। जब वे समाजवादी पार्टी कार्यालय आते थे, तो मैदान में कुर्सी डालकर बैठ जाते थे। वे कहते थे, जिसे बोलना हो वह अपना नाम, जिला व मोबाइल लिखकर पर्ची दे दे। वे बारी-बारी सबको बोलवाते थे।1992 और 2009 के बाद हमें उनके समक्ष 2019 में बोलने का मौका मिला। जब मेरा 38 मिनट का भाषण खत्म हुआ तो पास बुलाकर पीठ थपथपाते हुए कहा कि ‘बहुत अच्छा बोलते हो।’ इसके बाद जब भी कार्यालय आते तो हमें ज़रूर बोलने को कहते थे।

इक बूंद भर चीज थी, सागर तुम्ही ने की।

होती नहीं जो  बात उजागर तुम्ही ने की।।

मिट ही चुके थे हम कि हमें जिंदगी वापस,

अपने गले  सलीब  लगाकर तुम्ही ने की।।

मुलायम सिंह यादवजी का आज दुनिया को अलविदा कह चले जाना करोड़ो-करोड़ भारतीयों, समाजवादियों, धर्मनिरपेक्ष सोच के लोगों के लिए दुःखद है।

मण्डल कमीशन के तहत पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण नेताजी ने सबसे पहले लागू किया

सामाजिक न्याय के संघर्ष में मुलायम सिंह यादव के साथ कई सारी यादें जुड़ी हुई हैं।आज के भारत में उनकी सोच व जज़्बे की बहुत ज़रूरत थी। काम अभी अधूरा है। सांप्रदायिकता, सामाजिक असमानता के ख़िलाफ़ आंदोलन को हम सबको आगे बढ़ाना है। नेताजी ने ही सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश में मण्डल कमीशन के तहत अन्य पिछड़ी जातियों को सरकारी सेवाओं व शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु 27 प्रतिशत कोटा की अधिसूचना जारी की। वे सामाजिक न्याय के मजबूत स्तम्भ व मजबूत आवाज़ थे। आज अतिपिछड़े, दलित, वंचित, पसमांदा समाज व महिलाएं प्रधान, ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत अध्यक्ष, पार्षद, चेयरमैन, मेयर आदि बन रहे हैं। यह नेताजी की ही देन है। उन्होंने पंचायतीराज अधिनियम-1994 व नगरीय निकाय अधिनियम-1995 के द्वारा पंचायतों व नगर निकायों में प्रतिनिधित्व के लिए ओबीसी को 27 प्रतिशत, एससी को 21 प्रतिशत व महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण कोटे की व्यवस्था की। मुफ्त पढ़ाई-मुफ्त सिंचाई-मुफ्त दवाई की योजना लागू की और निजी मेडिकल, डेंटल, इंजीनियरिंग कॉलेजों में ओबीसी को 27, एससी को 21 व एसटी को 2 प्रतिशत आरक्षण कोटा दिया, जिसे योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनते ही 13 अप्रैल 2017 को खत्म कर दिया।

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नेताजी निर्णय लेने में अत्यंत साहसी व वचन के पक्के राजनेता थे। उन्होंने 11 वर्ष से बिना मुकदमा चलाये ग्वालियर कारागार में यातना झेल रहीं फूलन देवी के सभी मुकदमे वापस कर जेल से बाहर ही नहीं निकाला बल्कि देश की सर्वोच्च पंचायत में पहुँचाने का सराहनीय व साहसिक काम भी किया। निषाद-मछुआरों के आर्थिक विकास व रोजगार के लिए 1994 में बालू-मोरम खनन व मत्स्य पालन हेतु तालाबों, झीलों, पोखरों, जलाशयों का 10 वर्षीय पट्टा सिर्फ निषाद-मछुआ समुदाय की जातियों को ही देने का शासनादेश जारी किया। सैनिकों के सम्मान में भी रक्षामंत्री रहते कई सुधार किए और शहीद सैनिकों के पार्थिव शरीर को सम्मान सहित उनके घर पहुँचाने व शहीद के परिवार को 10 लाख की सहायता का नियम लागू किया। लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं का हिन्दी माध्यम व अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करना उनका अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय था।

पिछड़े वर्गों के राजनीतिक व शैक्षणिक सशक्तीकरण और सांप्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष को मुख्य रूप से उनका राजनीतिक योगदान माना जाता है। उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में तथाकथित ऊंची जातियों का ही वर्चस्व था, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक तोड़ दिया।

समाजवादी वटवृक्ष सपा संरक्षक पूज्यवर मुलायम सिंह यादव का निधन अत्यंत मर्माहत करने वाला है। देश की राजनीति में एवं वंचितों को अग्रिम पंक्ति में लाने में उनका अतुलनीय योगदान रहा। अनेक कार्यों में उनकी यादें जुड़ी रहेंगी।

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मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग समाज का सामाजिक स्तर को ऊपर करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। सामाजिक चेतना के कारण उत्तर प्रदेश प्रदेश में पिछड़ी जातियों की मजबूत उपस्थिति नेताजी के प्रयासों से ही सम्भव हुई है। उत्तर प्रदेश में सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में नेताजी ने साहसिक योगदान दिया। नेताजी की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष व सामाजिक न्याय के पक्षकार नेता की थी। देश के सबसे बड़े सूबे यानी उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक कार्यकाल साढ़े पांच दशक लंबा रहा। वे कांग्रेस विरोधी राजनीति की सोच के साथ सियासी अखाड़े में कूदे और राम मनोहर लोहिया के साथ समाजवाद की राह पकड़ ली। मुलायम सिंह यादव ने चौधरी चरण सिंह के सहारे सियासी बुलंदी हासिल की। पहलवानी से राजनीति में आए मुलायम अपने दौर की राजनीति के मजबूत ‘पहलवान’ रहे।

भारत की राजनीति के अखाड़े में हर कोई मुलायम सिंह यादव नहीं हो सकता। समाजवाद की राह पर चलकर पहलवानी से राजनीति में आए मुलायम सिंह यादव को उन राजनेताओं में शुमार किया जाता है, जिनके सियासी दांव-पेंच ने अपने दौर में कई धुरंधरों को पटखनी दी। वे आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और अब उनके खून-पसीने से सींची समाजवादी पार्टी को उनके बेटे अखिलेश यादव संभाल रहे हैं।

यूपी का मुख्यमंत्री रहने के बाद अखिलेश यादव अब अन्य विपक्षी दलों को पीछे छोड़कर राज्य की राजनीति में मुख्य विपक्षी नेता की भूमिका में हैं। मुलायम सिंह ने केंद्र की सत्ता में रक्षामंत्री का पद भी संभाला लेकिन सत्ता के शीर्ष पद यानी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक कभी नहीं पहुंच पाए। प्रधानमंत्री बनने ही वाले थे कि अपनों ने ही पैर खींच दिया।

राजनीति में नेताजी को दिया गया 3 नाम

मुलायम स‍िंंह यादव को राजनीत‍ि में द‍िए गए तीन नाम के पीछे की कहानी बहुत रोचक है। समाजवादी पार्टी के संस्‍थापक और मौजूदा अध्‍यक्ष अख‍िलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव को व‍िरोधी भी नेताजी कहा करते थे, लेक‍िन राम मंद‍िर के दौरान उनके व‍िरोध‍ियों ने उन्‍हें ‘मुल्‍ला मुलायम’ की उपाध‍ि दे डाली थी। वह राजनीत‍ि में नेताजी के नाम से मशहूर थे। समर्थक उन्‍हें धरतीपुत्र भी कहते थे और उनके राजनीत‍िक व‍िरोध‍ि‍यों ने उन्‍हें ‘मुल्‍ला मुलायम’ भी पुकारा था। जान‍िए ये उपनाम उन्‍हें कब और कैसे म‍िले-

मुलायम स‍िंंह यादव 3 बार मुख्यमंत्री, 8 बार विधायक, 7 बार सांसद और केंद्रीय रक्षा मंत्री रहे थे। वह एकदम गंवई पृष्‍ठभूम‍ि से न‍िकल कर राजनीत‍ि में बुलंद‍ियों तक पहुंचे थे। मुलायम सिंह यादव का जन्म किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता सुघर सिंह यादव जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर थे। राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर 14 साल की उम्र में नहर रेट आंदोलन में कूदने वाले मुलायम सिंह यादव राजनीति में आने से पहले अखाड़े के पहलवान थे। बताया जाता है कि उनका चर्खा दांव आज भी सैफईवासियों की स्मृति में बसा है। वह अपने से लंबे-तगड़े पहलवानों को भी चारों खाने चित करने के लिए मशहूर थे। पारंपरिक कुश्ती के अखाड़े मिट्टी के हुआ करते थे।

मुलायम सिंह यादव जब राजनीति में आए तो खुद को सामाजिक न्याय के अगुआ की तरह पेश किया। शुरुआत उन्होंने पिछड़ी जातियों को जोड़ने से किया। जब सत्ता मिली तो एससी/ एसटी/ ओबीसी छात्रों के लिए कोचिंग योजना की शुरुआत की। कुल मिलाकर समाजवादी विचारधारा और कमजोर वर्गों की अगुवाई करने की वजह से उन्हें धरतीपुत्र कहा गया।

अपने अलग अंदाज में स्वतंत्रता आंदोलन की अगुवाई करने वाले सुभाष चंद्र बोस को नेताजी कहा गया। आजाद भारत के नेताजी के रूप में मुलायम सिंह यादव चर्चित हुए। एक वक्त पर उन्हें सिर्फ मुसलमानों और यादवों का नेता बताने की कोशिश हुई, लेकिन उन्होंने इस प्रयास को कई मौकों पर धता बताया। उन्होंने लगातार अपने सामाजिक आधार को विस्तार दिया। इस प्रयास में उन्होंने उच्च-जाति के कुछ समुदायों, विशेषकर ठाकुरों को अपने वोट बैंक में शामिल किया।

पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र और बेनी प्रसाद वर्मा, पूर्व सांसद मोहन सिंह, पूर्व मंत्री भगवती सिंह, ब्रजभूषण तिवारी, रेवतीरमण सिंह और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामशरण दास उनके सबसे करीबी लोगों में शुमार रहे। अमर सिंह के साथ उनका घनिष्ठ संबंध जगजाहिर है। मुलायम के चारों ओर विभिन्न जातियों और वर्गों के नेता थे, जिनसे उन्हें व्यापक समर्थन मिला। सामाजिक न्याय की बात करते हुए भी उन्होंने कभी किसी जाति के खिलाफ सार्वजनिक रूप से विद्वेष की भावना व्यक्त नहीं की। सामूहिकता की उनकी इसी खूबी ने उन्हें नेताजी बनाया।

मुलायम के नाम में किसने जोड़ा मुल्ला

साल 1990 की बात है। हिंदू दक्षिणपंथी गुटों के सामूहिक प्रयास से बाबरी मस्जिद विवाद अपने चरम पर था। मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। 30 अक्टूबर, 1990 को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने बाबरी मस्जिद को गिराने के इरादे से कारसेवा शुरू की। राज्य सरकार ने एहतियातन पूरे अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया। लेकिन भीड़ मानने को तैयार नहीं थी। वह बैरिकेडिंग तोड़ आगे बढ़ने लगी। फिर लखनऊ के आदेश पर पुलिस ने पहले लाठीचार्ज किया और जब मामला हाथ से निकलने लगा तो गोली भी चलाई। कई लोगों की मौत हुई। लेकिन मौत का कारण सिर्फ गोली नहीं, भगदड़ भी थी। मामला यहां थमा नहीं, क्योंकि गोली कांड का दूसरा अध्याय अभी बाकी था। 2 नवंबर, 1990 को उमा भारती और अशोक सिंघल जैसे नेताओं के नेतृत्व में प्रतिरोध मार्च निकला। कर्फ्यू जारी था, इसलिए मस्जिद की तरफ अब भी जाने की मनाही थी। लेकिन प्रतिरोध मार्च रुका नहीं। वह हनुमानगढ़ी के पास लाल कोठी तक पहुंच गया। इस रोज एक बार फिर पुलिस ने फायरिंग की।

48 घंटों के भीतर अयोध्या में दूसरी बार गोली चली। कोठारी बंधुओं समेत कई की मौत हुई, कई घायल हुए। इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव पर मुस्लिमपरस्त होने का आरोप लगा और हिंदू दक्षिणपंथी उन्हें मुल्ला मुलायम कहने लगे।

नेताजी के सम्बंध में चर्चित नारे

  1. जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है।
  2. मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जै श्रीराम।
  3. समाजवाद की क्या पहचान,लाल टोपी साइकिल निशान।

देखन में छोटे लगे, घाव करे गम्भीर

नेताजी भले ही छोटे कद-काठी के थे, परन्तु उनका व्यक्तित्व-कृतित्व अत्यंत उच्च कोटि का था। वह निर्णय लेने में तनिक भी हिचकते नहीं थे। जो कह दिया वह कर दिखाया। नेताजी ने राजनीति में जो बेमिसाल काम किये उससे इन्होंने देखन में छोटन लगे घाव करे गम्भीर… की कहावत को चरितार्थ कर दिखाए।

एपीजे कलाम के साथ

नेताजी के महत्वपूर्ण निर्णय

  1. महान वैज्ञानिक मिसाइलमैन भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलामजी को राष्ट्रपति बनवाना।
  2. बसपा संस्थापक मान्यवर कांशीरामजी को इटावा से चुनाव लड़वाकर लोकसभा सांसद बनवाना।
  3. फूलन देवी के मुकदमे वापस कर जेल से रिहा करवाना और मीरजापुर-भदोही से सांसद बनवाना।

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फूलन देवी को जेल से बाहर निकाल संसद तक पहुंचाना

बेहमई कांड के बाद फरार चल रहीं फूलन देवी ने 1983 में ग्वालियर में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष आत्‍मसर्पण किया था। उन पर डकैती, अपहरण और हत्‍या समेत कुल 38 आरोप थे। वह 11 साल जेल में रहीं, लेकिन 1994 में जब मुलायम सिंह यादव उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री थे तो उन्‍होंने एक बड़ा फैसला लेते हुए फूलन देवी पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए और बिना मुकदमा चलाए उन्‍हें जेल से रिहा कर दिया। इस फैसले का काफी विरोध भी हुआ। यह सार्वजनिक बहस और विवाद का विषय बन गया था। अखबारों में इस तरह के संपादकीय लिखे गए कि एक मास मर्डर के आरोपी को रिहा करने से समाज में अपराध को बढ़ावा मिलेगा। एक खास जाति समूह के लोगों में भी आक्रोश रहा। लेकिन मुलायम सिंह यादव का यह फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हुआ। तकरीबन दो दशक बाद फूलन देवी की कहानी लिखते हुए न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स ने एक लेख में मुलायम सिंह यादव के उस फैसले को बहुत गरिमा और आदर के साथ पेश किया। मार्च, 2014 में टाइम मैगजीन ने फूलन देवी को सदी की 17 सबसे विद्रोही स्त्रियों की सूची में शुमार किया। जुलाई, 2001 में जब एक क्रोधित ठाकुर शेर सिंह राणा ने गोली मारकर उनकी हत्‍या की तो टाइम मैगजीन ने फिर एक लंबा लेख छापा, जिसकी हेडलाइन थी- “1994 में जेल से रिहाई के बाद मुलायम सिंह यादव फूलन देवी को राजनीति में लेकर आए। समाजवादी पार्टी के टिकट से उन्‍होंने मीरजापुर सीट से चुनाव लड़ा और दो बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची। 2001 में शेरसिंह राणा ने फूलन देवी के दिल्‍ली स्थित आवास के गेटपर गोली मारकर उनकी हत्‍या कर दी थी। शेरसिंह राणा का एक रिश्‍तेदार बेहमई में मारे गए 22 ठाकुरों में से एक था। एक गरीब, वंचित अतिपिछड़े परिवार में जन्‍मी, 10 साल की उम्र में ब्‍याह दी गई, आजीवन वीभत्‍स हिंसा, अपराध और अन्‍याय का शिकार हुई एक स्‍त्री को मुलायम सिंह यादव ने जेल की अंधेरी-नाउम्‍मीद दुनिया से निकालकर ढेरों वंचित, सताई हुई औरतों की आंखों की रौशनी बना दिया था। इस देश का पूर्वाग्रही, जातिवादी मीडिया और समाज जिस स्‍त्री को एक हत्‍यारी से ज्‍यादा देखने और समझने को तैयार नहीं था, उस स्‍त्री को मुलायम सिंह यादव ने विद्रोही का खिताब दिया। जिसका नाम भारत की महान विद्रोही, क्रांतिकारी स्त्रियों की सूची में कभी शामिल न किया गया, उस औरत को टाइम मैगजीन ने दुनिया की सबसे बहादुर स्‍त्री बताया। आज जब मुलायम सिंह यादव नहीं रहे, लोग उनके जीवन और राजनीतिक कॅरियर से जुड़ी तमाम बातों को याद कर रहे हैं। लेकिन इस अध्‍याय को शायद ही कोई याद करे। जबकि सच तो यह है कि जब भी मुलायम सिंह यादव का जिक्र होगा, फूलन देवी का जिक्र भी जरूर होगा।

अचानक उठी फूलन देवी की रिहाई की माँग, नेताजी ने कहा-सारे मुकदमे वापस

दिन था 20 जनवरी, 1994 की कड़कड़ाती ठंड का, स्थान था लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क। राष्ट्रीय निषाद संघ के बैनर तले तत्कालीन पशुधन एवं मत्स्यमंत्री बाबू मनोहरलाल की अगुआई में विशाल निषाद रैली का आयोजन किया गया था। लखनऊ की धरती पर यह किसी जाति की पहली ऐसी रैली थी। उस समय हम राष्ट्रीय निषाद संघ ग़ाज़ीपुर शाखा के अध्यक्ष थे। रैली का संचालन प्रो.बाबूराम निषाद कर रहे थे। हम दोनों लोगों ने पहले से भूमिका बना लिया था कि आज फूलन देवी की रिहाई के मुद्दा उठाया जाएगा। जब नेताजी मंच पर आए तो अपार भीड़ देख गदगद हो गए। उन्होंने कहा कि आज निषाद जो मांगेंगे, हमें देना ही होगा। एक बात उन्होंने और कही कि निषाद, मल्लाह, केवट, कश्यप, बिन्द, माँझी आदि की संख्या यादवों से अधिक है, लेकिन देख रहे हैं कि विभिन्न जाति के अलग-अलग बैनर दिख रहे हैं। आप लोग यादव की तरह एक नाम के साथ इकट्ठा हो जाओ तो मजबूत ताक़त बनेगी और आपकी समस्याओं को हल करने में आसानी होगी। अपनी भूमिका के अनुसार फूलनदेवी को रिहा करो, रिहा करो… का नारा से रैली स्थल गूँज उठा। नेताजी ने तुरंत कहा-फूलनदेवी के सारे मुकदमे वापस कराकर रिहा करूंगा। वचन के पक्के मुलायम सिंहजी ने एक महीना बाद 20 फरवरी 1994 को फूलन देवी को रिहा करा दिए।

उस दिन जो माँग पत्र दिया जाना था, उसमें फूलनदेवी की रिहाई का मुद्दा था ही नहीं। 1 जुलाई, 1992 को सहकारिता भवन लखनऊ में निषाद प्रतिनिधि सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि नेताजी शामिल हुए। उस समय उन्हें जो ज्ञापन दिया गया, उसमें तीसरे नम्बर पर फूलन देवी की रिहाई का मुद्दा रखा गया था। नेताजी ने अपने सम्बोधन में कहा कि शायद मैं इन मुद्दों को भूल जाऊँ, इसलिए जब मुख्यमंत्री बनूँ तो मेरे संज्ञान में बेझिझक डाल देना, हम एक-एक माँगों को स्वीकार करेंगे।

किसी ज़माने में संसद में ऐसी तख्तियां आम बात थी,आज ये मुद्दे गायब हो रहे हैं .( फोटो में बाएं से लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और बूटा सिंह

नेताजी जो कहते थे, उसे कर दिखाते थे

नेताजी उसूल व वचन के पक्के नेता थे। वे जो कहते थे उसे कर दिखाते थे। उनकी कथनी व करनी में कोई अंतर नही था। नेताजी जिस गंवई परिवेश व पृष्ठभूमि से निकलकर राजनीति में आये थे, उसकी समस्या से वाकिफ थे। वे पिछड़ों, दलितों, वंचितों, छात्र-नौजवानों, किसानों, मजदूरों की समस्या से भलीभांति परिचित थे। मुफ़्त दवाई-मुफ्त पढ़ाई-मुफ्त सिंचाई योजना, किसान दुर्घटना बीमा योजना, फसल बीमा योजना, मछुआ दुर्घटना बीमा योजना, कन्या विद्याधन योजना, शादी अनुदान योजना उनके अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य थे। लोकसेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षा में माध्यम हिन्दी करना व अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करना व ओबीसी, एससी, एसटी प्रतियोगियों के लिए फ्री कोचिंग की व्यवस्था सकारात्मक पहल थी।

जब पंचायत ने लगाया मुलायम सिंह यादव पर जुर्माना

बात 1957 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की है। तब समाज में जातिगत भेदभाव और छुआछूत अधिक था। मुलायम सिंह यादव लोहियाजी की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे। इसी दौरान वे सैफई से सटे एक गांव में गए। यह गाँव जाटव (चमार) यानि अनुसूचित जाति बाहुल्य था। उस समय गन्ना-गुड़ का सीजन था तो लोगों ने प्रेम से गुड़ और पानी दिया, जो उस समय किसी के आने पर आमतौर पर दिया जाता है। मुलायम सिंह को पहले ही बोला गया था कि अछूतों के यहां पानी नहीं पीना, लेकिन मुलायम सिंह ने गुड़ भी खाया और पानी भी पिया बल्कि अपने साथ गए लोगों को भी बोला कि- ‘खा-पी लो।’

जब यह बात गांव के लोगों को पता चली तो मुलायम सिंह के खिलाफ पंचायत बैठ गयी। मुलायम सिंह को कहा गया कि या तो वे ऐसे काम के लिए माफ़ी मांगें या फिर जुर्माना भरें। मुलायम सिंह के पिताजी स्वर्गीय सुघर सिंहजी ने कहा मांफी मांग लो लेकिन मुलायम सिंह ने कहा कि मैंने कोई गलत काम नहीं किया। हम सब लोग एक तरफ तो लोहियाजी के जाति तोड़ो आंदोलन का झंडा उठा रहे और दूसरी तरफ खुद जातिवादी भेदभाव भी करें  फिर हम कैसे लोहियाजी के अनुयायी हैं।

मुलायम सिंह ने कहा कि मैं जुर्माना भरने को तैयार हूँ, लेकिन माफ़ी नहीं मांगूंगा क्योंकि मुझे नहीं लगता मैंने कुछ गलत किया। उस दिन तो पंचायत में जुर्माना भर दिया। लेकिन पंचायत ने उनके पिता को कहा कि बेटे को काबू में करिए। इसके तेवर बगावती है।

चौ. लौटनराम निषाद सामाजिक न्याय चिन्तक व समाजवादी पार्टी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं।

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