लंबे अंतराल के बाद गैर गांधी परिवार का सदस्य कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना है। राहुल गांधी ने जो कहा था उसे करके दिखाया और आखिरकार कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष गैर गांधी परिवार का सदस्य बन गया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को लेकर लंबे समय से जद्दोजहद चल रही थी। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से ही कांग्रेस के भीतर आंतरिक चुनाव होने की चर्चा चल रही थी, मगर बार-बार कांग्रेस सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाकर काम चला रही थी। इस बीच कांग्रेस के भीतर अंतरिम चुनाव को लेकर नेताओं के बीच मनमुटाव और विवाद भी होता देखा गया और अंत में कांग्रेस ने आंतरिक चुनावों की घोषणा कर दी। 17 अक्टूबर को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के वोट पड़े और 19 अक्टूबर को मतगणना हुई जिसमें मलिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए।
लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष का सफर आसान नहीं, बल्कि चुनौतियों से भरा है। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान कांग्रेस के भीतर चल रहे सियासी घमासान की है। राजस्थान का घमासान स्वयं खड़गे ने अपनी आंखों से देखा है। जब वह राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं थे तब वही राजस्थान के सियासी घमासान को सुलझाने के लिए पर्यवेक्षक बनकर आए थे। वहाँ क्या-क्या हुआ यह सब उन्होंने साक्षात देखा था।
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अगर कहा जाए कि 25 सितंबर की घटना ने खड़गे को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के मुकाम पर पहुंचाया तो यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 25 सितंबर को कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान के सियासी घमासान को सुलझाने के लिए राजस्थान प्रभारी अजय माकन के साथ उन्हें राजस्थान भेजा था मगर मसला सुलझने की जगह और उलझ गया। खड़गे के सामने ही अशोक गहलोत समर्थक विधायकों ने सामूहिक रूप से विधानसभा अध्यक्ष को अपने इस्तीफे सौंप दिए। खड़गे को समस्या का समाधान किए बगैर ही दिल्ली लौटना पड़ा लेकिन 25 सितंबर की घटना ने खड़के का भाग्य बदल दिया। 19 अक्टूबर को खडके कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए जबकि हाईकमान चाहता था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बनें। अशोक गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया। इसके बाद पार्टी के भीतर बगावत होने की संभावना को देखते हुए हाईकमान ने अशोक गहलोत की जगह खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का अघोषित रूप से निर्देश दिया और अंततः 19 अक्टूबर को वे राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित हो गए!
अब सवाल उठता है कि राजस्थान की जिस सियासी उठापटक के चलते खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं, उस राजस्थान कांग्रेस का अब क्या होगा? सभी की नजर मल्लिकार्जुन खड़गे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर थी। नवनिर्वाचित अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी और पहली चुनौती राजस्थान कांग्रेस की सियासत को लेकर है। इस चुनौती का सामना खडगे ने अध्यक्ष बनने से पहले किया भी है। अब वे इस चुनौती का कैसे सामना करेंगे शायद सबकी जिज्ञासा अब इसमें है। राजस्थान कांग्रेस पर नजर तो भारतीय जनता पार्टी की भी थी।
क्या राजस्थान में बदलाव होगा ?
क्या अशोक गहलोत को बदलकर कोई अन्य नेता मुख्यमंत्री बनेगा? यह सवाल हर किसी के जेहन में उठ रहा है। सवाल तो यह भी उठ रहा है कि क्या अब राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी अपना असली रंग दिखाएगी? क्योंकि गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग ने अभी नहीं की है जबकि हिमाचल प्रदेश चुनाव की घोषणा कर दी है। भारतीय जनता पार्टी के नेता कांग्रेस के 92 विधायकों के इस्तीफे की बात राजस्थान के विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी से करने लगे हैं। ऐसे में यदि अशोक गहलोत को हटाकर किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री बनाया तो राजस्थान में क्या होगा?
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लोगों के मन में सवाल उठने लगा है क्या गुजरात के साथ राजस्थान में भी विधानसभा के चुनाव होंगे? अशोक गहलोत समर्थक विधायक उनके समर्थन में विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप कर बैठे हुए हैं?
यदि अशोक गहलोत को हटाया गया तो क्या ये विधायक स्पीकर से अपने इस्तीफे को स्वीकार करने की मांग करेंगे? या भारतीय जनता पार्टी के नेता कांग्रेसी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करने की मांग करेंगे?
कुल मिलाकर कांग्रेस के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी और पहली चुनौती राजस्थान की सियासत को लेकर है? दूसरी चुनौती राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश करने की है। यदि राजस्थान के सियासी संकट पर कड़ाई से एक्शन हुआ तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर भी इसका असर पड़ेगा।
देवेंद्र यादव कोटा राजस्थान स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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