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पर्यावरण
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पर्यावरण के लिए समर्पित राजस्थान का नाथवाना गांव
नाथवाना गांव के लोग केवल पेड़ लगाते ही नहीं, बल्कि उनकी रक्षा भी करते हैं। अक्सर देखने को मिलता है कि गांव के बच्चे स्कूल जाते समय रास्ते में लगे पौधों को पानी देते हैं। खेतों से लौटती महिलाएं पौधों को अपने मटके से दो-चार लोटा पानी जरूर डालती हैं। यहां तक कि शादी-ब्याह और धार्मिक आयोजनों में भी पौधे लगाने की परंपरा बन चुकी है। यह मानवीय पहलू इस गांव की सबसे बड़ी ताकत है, जिसने वृक्षों और इंसानों के बीच एक आत्मीय रिश्ता बना दिया
माया -
स्वास्थ्य और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए मोटे अनाज की खेती और मांग फिर बढ़ गई
अमृत राज -
आज से 45-48 वर्ष पहले तक मोटे अनाज की पर्याप्त खेती होती थी और भोजन में इसका भरपूर उपयोगकिया जाता था। लेकिन हरित क्रांति के बाद खेतों में गेंहूँ, धान की बुवाई ज्यादा की जाने लगी और हाइब्रिड बीज के माध्यम से अधिक पैदावार के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने परंपरागत खेती को प्रभावित किया है। परिणामतः किसानों को खेती करने के लिए बाजार पर निर्भरता बढ़ गई। वह मोटे अनाज की खेती छोड़ नकदी फसलों के उत्पादन पर जोर देने लगे। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित करने के बाद से किसान एक बार फिर से इसकी खेती की ओर प्रोत्साहित हो रहे हैं।
जयपुर : शहर से बाहर स्लम बस्तियों में रहने वालों को कब मिलेगा पीने का साफ पानी
देश में 76 प्रतिशत लोग पहले ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं। जिसकी वजह से स्लम बस्तियों में रहने वाले लोग साफ पानी के अभाव में जीवन गुजारने को मजबूर हैं। आने वाले वर्षों में यह समस्या और बढ़ सकती है , इस बात को देखते हुए ऐसी योजनाओं पर काम करने की जरूरत है , जिससे सभी को साफ पानी उपलब्ध कराया जा सके।
बिहार : देश में स्वच्छता अभियान का असर स्लम बस्तियों पर दिखाई नहीं देता
देश के प्रधानमंत्री ने देश को साफ-सुथरा रखने के लिए स्वच्छ भारत अभियान चलाया। इस अभियान के तहत घर-घर कूड़ा इकट्ठा करने के लिए गाडियाँ जाने लगीं। लेकिन इसके बाद भी हर शहर के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां न कूड़ा लेने वाली गाड़ियां जाती हैं न ही साफ-सफाई वाले आते हैं। ऐसे में वहाँ रहने वाले गंदगी में रहने को मजबूर हैं। इससे एक बात सामने आती है कि केवल कुछ इलाकों को साफ किया जाता है बाकी को नहीं।
अरुणाचल में मेगा बांध परियोजनाओं में प्रस्तावित और तैयार बांध प्रकृति के लिए खतरा – सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)
इधर लगातार बारिश से पहाड़ी इलाकों में तबाही की स्थिति बढ़ती ही जा रही है। इसके बावजूद अरुणाचल प्रदेश में 169 से ज़्यादा प्रस्तावित बांध हैं, जो प्रकृति का दोहन करेंगे और लोगों के लिए ख़तरा बनेंगे। सरकार को वहाँ के नागरिकों की सुरक्षा को लेकर सतर्क होना जरूरी है।
बीज वितरण और ऑक्सीजन उत्सर्जन के लिए हुआ फलदार वृक्षों का वृक्षारोपण
वाराणसी | पारुल शर्मा एवं 200 स्वीडिश डोनर्स इंटरनेशनल रिसर्च काउंसिल फॉर टॉर्चर विक्टिम के आर्थिक सहयोग से जनमित्र न्यास/मानवाधिकार जननिगरानी समिति, चाइल्ड राइट्स...
जंगल और पर्यावरण को बचाते आदिवासी
आज भारत में करीब 12 करोड़ से अधिक आदिवासी हैं जो गरीबी और तबाही के दल-दल में धकेल दिये गये हैं। सबकी नजर इनके परम्परागत रिहायश में पाये जाने वाले प्रचुर संसाधनों पर है। कॉरपोरेट से लेकर सरकार तक हर किसी की गिद्ध नजर इसी खजाने पर है।
वाराणसी : गंगा के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ खड़ा होना होगा
बनारस को निडर होकर गंगा के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ खड़ा होना होगा और इस अभियान को रोजाना गतिविधियों और नयी सूझ के साथ जोड़ना होगा। बनारस सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों की ही नहीं, हमारी अंतर्राष्ट्रीयता की भी राजधानी है। साफ नदी जल और खोई हुई पहचान को वापस पाने के लिए हमें संघर्ष करना होगा।