इस संबंध में जिले के मोतीपुर प्रखंड के किसान 55 वर्षीय सुरेन्द्र पटेल बताते हैं कि दो दशक पहले तक मोटे अनाज की खेती होती थी। लोग खेतों में मरुआ, चना, कौनी, ज्वार, बाजरा, सावा, कोदो, मक्का, ललदेइया, बासमती, मंसूरी आदि परंपरागत मोटे अनाज की खेती करते थे। यह सेहत के लिए भी अच्छा होता है। लेकिन कम लागत में अधिक मुनाफा के नाम पर हाइब्रिड खेती का चलन बढ़ गया और मोटे अनाज की खेती धीरे-धीरे समाप्त होने लगी। पारु प्रखंड स्थित चांदकेवारी गांव के किसान भरत भगत कहते हैं कि कुछ साल पहले तक हम मोटे अनाज जिसमें मरुआ, सावा कोदो आदि की खेती किया करते थे, लेकिन इसे खरीदने वाला कोई नहीं होने के कारण हमने इसकी खेती छोड़ दिया। वहीं साहेबगंज प्रखंड स्थित हुस्सेपुर रत्ती पंचायत के 47 वर्षीय किसान राम वल्लभ पटेल बताते हैं कि पहले हमारे पिता और चाचा लोग दियारा क्षेत्र की खेतों में मोटे अनाज की ही खेती किया करते थे। पहले के लोग धान की खेती को अधिक महत्व नहीं देते थे। इसे केवल चौर (नदी के किनारे वाला क्षेत्र) की फसल माना जाता था और वहीं इसकी खेती होती थी। लेकिन बाजार की मांग को देखते हुए किसान मोटे अनाज की पैदावार से दूर होते चले गए।
इसी प्रखंड के हुस्सेपुर जोड़ाकांहीं गांव के किसान 52 वर्षीय योगेन्द्र राय अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं कि ‘मैं पिछले दो साल पहले तक मोटे अनाज के रूप में मरुआ रागी की खेती किया करता था। इसे नर्सरी तैयार करके रोपाई की जाती है। एक कठ्ठा में 40 से 50 किलो तक अनाज का उत्पादन हो जाता था। लेकिन समस्या यह थी कि कोई इसे खरीदने वाला नहीं था। मजबूरीवश मैंने इसकी खेती छोड़ दी। लेकिन अब जिस प्रकार से केंद्र और राज्य सरकार इसकी खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और जिला एवं प्रखंड के कृषि विभाग मदद कर रहे हैं, इससे मुझे एक बार फिर से इसकी खेती शुरू करने का हौसला मिला है।’
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किसान मित्र फूलदेव पटेल बताते हैं कि हाइब्रिड बीज के माध्यम से अधिक पैदावार के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने परंपरागत खेती को प्रभावित किया है। परिणामतः किसानों को खेती करने के लिए बाजार पर निर्भरता बढ़ गई। वह मोटे अनाज की खेती छोड़ नकदी फसलों के उत्पादन पर जोर देने लगे। इससे न केवल कृषि बल्कि लोगों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ने लगा। वह बताते हैं कि पहले मोटे अनाज (मिलेट) को मानव भोजन के साथ औषधि के रूप में माना जाता था। वहीं किसानों को भी कम मेहनत करनी होती थी। खेतों की जुताई कम, पानी कम, सोहनी (निकौनी) की कम आवश्यकता होती थी। लेकिन अब एक बार फिर लोगों का ध्यान मोटे अनाज की तरफ बढ़ने लगा है। वर्तमान में आर्थिक रूप से सशक्त लोग मोटे अनाज को महंगी कीमत पर भी खरीदने लगे हैं। फूलदेव पटेल के अनुसार मिलेट के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में अग्रणी है। इसके अतिरिक्त चीन, नाइजीरिया, सूडान, इथियोपिया, पाकिस्तान, नेपाल, रुस, युक्रेन, युगांडा, म्यांमार और घाना में भी प्रमुखता से इसकी खेती होती है। भारत में राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तामिलनाडु, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और बिहार में जौ, बाजरा, कौनी, मरुआ (रागी), सावा, कोदो और मक्का आदि की प्रमुखता से खेती की जा रही है। इसके लिए किसानों को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इस संबंध में पारू प्रखंड के कृषि पदाधिकारी विक्की कुमार बताते हैं कि केंद्र और बिहार सरकार के द्वारा राष्ट्रीय खाद सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के माध्यम से मोटे अनाज मिलेट की खेती के लिए किसानों को कोदो का बीज अनुदानित दर पर छह किलो और फसल तैयारी करने के लिए प्रोत्साहन राशि के रूप में 2000 हजार रुपये दिए जाते हैं। बाजरा, ज्वार को क्लस्टर के आधार पर 25 किसानों का समूह बनाकर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा वर्तमान में बिहार सरकार एनएफएसएम योजना के तहत ही मोटे अनाज (मिलेट) की एक एकड खेती के लिए दो बार में 2-2 हजार अनुदान स्वरूप दे रही है। साथ ही ज्वार, बाजरा, सावा, कोदो, चीना, मरुआ (रागी) की खेती करने के लिए बीज एवं कीटनाशक भी किसानों को निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है। पिछले वर्ष जून माह में भारत सरकार एवं बिहार सरकार के द्वारा संयुक्त रूप से मोटे अनाज मिलेट की खेती के लिए राजधानी पटना में लगभग एक हजार किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया है।
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विक्की कुमार के अनुसार पिछले कुछ महीनों में सावा कोदो के लिए पारु प्रखंड स्थित आनंदपुर खरौनी, मोहजामा, मगुरहिया, कोईरिया निजामत, रामपुर केशो उर्फ मलाही, खुटाही, चांदकेवारी, पारु दक्षिणी, जयमल डूमरी, सरैया, चक्की सोहागपुर, देवरिया पूर्वी, देवरिया पश्चिम बाजीतपुर, धरफरी, जगदीशपुर बाया, नेकनामपुर, जाफ्फरपुर, चिंतावनपुर, बैजलपुर, फतेहाबाद, रघुनाथपुर, उस्ती, मुहब्बतपुर, पारु उत्तरी, खुटाही, कटारु, चोचाही छापडा, सरैया, ग्यासपुर, देवरिया पूर्वी, देवरिया पश्चिम इत्यादि पंचायतों में बड़े पैमाने पर अभियान चला कर किसानों को मोटे अनाज की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें कृषि विभाग की ओर से सभी प्रकार की सहायता मुहैया कराई जा रही है। जिसका सुखद परिणाम देखने को मिल रहा है। बड़े पैमाने पर किसान एक बार फिर से मोटे अनाज के उत्पादन की ओर बढ़ने लगे हैं।
मोटे अनाज न केवल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि यह टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी। ऐसे में इसे खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए वरदान कहा जा सकता है। बदलते समय में किसानों को पारंपरिक और टिकाऊ खेती की ओर लौटने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकारों के सामूहिक प्रयास से मोटे अनाज की खेती को पुनः कृषि के मुख्यधारा में लाना संभव है। सरकारी प्रोत्साहन और सामाजिक जागरूकता के साथ यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि मोटे अनाज का महत्व फिर से स्थापित हो। यह कृषि और मानव स्वास्थ्य, दोनों ही दृष्टिकोण से लाभदायक है। (चरखा फीचर्स)