Friday, July 5, 2024
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जंगलों-पहाड़ों, गांव-गिरांव से होते हुए नगरों की ओर बुलंद होती आवाज- वन अधिकार कानून 2006 जुबान पर नहीं धरातल पर हो लागू

संथाली भाषा हूल का हिंदी अर्थ क्रांति होता है। 1854 और 1855 में झारखंड के जंगलों एवं खनिज संपदाओं की लूट के खिलाफ सिद्धू, कानु, भैरव, चांद के नेतृत्व में संथाल परगना के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत और विद्रोह का ऐलान कर दिया था। आदिवासियों ने अंग्रेजों से जंगलों को मुक्त करने की ठानी थी।

जौनपुर। तेजी से समाप्त होते जंगलों, पहाड़ों के बचाव व संरक्षण को लेकर छिड़े आंदोलन की कुंद हो चुकी धार को एक बार पुनः खेत-मजदूर किसान संग्राम समिति (जौनपुर), शहीद भगत सिंह छात्र नौजवान महासभा (उत्तर प्रदेश), सोशल एक्शन फोरम (जौनपुर) यानी सेफ एवं नागरिक समाज जौनपुर के युवा कार्यकर्ताओं ने इसे गांवों, जंगलों-पहाड़ों से होते हुए नगर, शहर की घनी आबादियों के बीच बुलंद कर व्यापक पैमाने पर जनसमर्थन जुटाने का अभियान छेड़ दिया है। उत्तराखंड की तरह हरा-भरा रहने वाले उत्तर प्रदेश के चंदौली, सोनभद्र, मीरजापुर, गाजीपुर, बलिया, बांदा, चित्रकूट (विंध्य, कैमूर क्षेत्र) इत्यादि जिलों के जंगलों-पहाड़ों के नष्ट होते समूल रकबे को देखकर इनकी चिंता भी लाजमी है।

उक्त संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में बीते 30 जून को हूल दिवस के अवसर पर इस आंदोलन को धार देते हुए जिलाधिकारी अनुज कुमार झा के माध्यम से पत्र भेजकर अपने छह सूत्रीय मांगों की तरफ राष्ट्रपति एवं संयुक्त संसदीय कार्य समिति (नई दिल्ली) का ध्यानाकर्षण कराते हुए प्रस्तावित वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023 को लाने के बजाय वन अधिकार कानून 2006 को ही धरातल पर सख्ती से लागू किए जाने की मांग की गई है। किसान संग्राम समिति से जुड़े कॉमरेड बचाऊ राम कहते हैं- ‘जौनपुर से शुरू हुई यह मुहिम वृहद आंदोलन का रूप लेगी, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करते हुए वन अधिकार 2006 को धरातल पर लागू करवाने और जंगलों-पहाड़ों-गांवों में पुरखों के जमाने से रहते चले आए आदिवासी वनवासी समाज को उनका अधिकार दिलाया जा सके। वह कहते हैं कि यह जनआंदोलन सिर्फ जौनपुर तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूर्वांचल के विभिन्न जनपदों में भी चलेगा, जहां आदिवासी वनवासी समाज के लोग रहते आ रहे हैं।’

आदिवासी क्रांति का प्रतीक पर्व है हूल दिवस

संथाली भाषा हूल का हिंदी अर्थ क्रांति होता है। 1854 और 1855 में झारखंड के जंगलों एवं खनिज संपदाओं की लूट के खिलाफ सिद्धू, कानु, भैरव, चांद के नेतृत्व में संथाल परगना के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत और विद्रोह का ऐलान कर दिया था। आदिवासियों ने अंग्रेजों से जंगलों को मुक्त करने की ठानी थी। आदिवासी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के बहुत से सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया था, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने भी 20 हजार आदिवासी विद्रोहियों पर गोलियां बरसा दी, उन्हें पेड़ों पर लटकाकर फांसी देकर मार डाला। इसी दिन को याद करते हुए हर साल देश के हजारों संगठन, जल-जंगल-जमीन और आदिवासियों के खिलाफ काम करने वाली सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं। इस दौरान वह जल-जंगल-जमीन और आदिवासियों के अस्तित्व के संरक्षण व सुरक्षा की लडाई लड़ते हैं। तभी से आदिवासी क्रांति के पर्व के रूप में ‘हूल दिवस’ को मनाया जाता है। बेशक इसमें कोई दो राय नहीं कि आदिवासी, वनवासी समाज के लोग ही हैं, जो वनों-जंगलों और पहाड़ों के बीच जीवन-यापन करते हुए इनके संरक्षण के लिए जीते और मरते भी आएं हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता सीमा

सामाजिक कार्यकर्ता सीमा बताती हैं कि ‘हूल दिवस’ कोई मामूली दिन नहीं है। यह आदिवासी समाज के त्याग, समर्पण और बलिदान से जुड़ा हुआ पर्व है, लेकिन दुःखद यह है कि ऐसे क्रांतिकारी पर्व को पूरी तरह से विसरा दिया गया है।’

आदिवासी समाज के लिए काम करने वाले रामजनम कुशवाहा (सोनभद्र) कहते हैं- ‘देश की आजादी से लेकर यहाँ की प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण की दिशा में आदिवासी, वनवासी समाज के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। दुर्भाग्य कि बात है कि इस समाज को देश की आजादी के बाद जो मुकाम और सम्मान मिलना चाहिए, उससे वह आज भी दूर हैं। इनती बदहाली और तंगहाली भरी जिंदगी, इनकी उपेक्षा और पिछड़ेपन के दर्द को दर्शाती है।’

क्या है वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023

बीते 29 अप्रैल को वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को लोकसभा में पेश किया गया था। संयुक्त संसदीय समिति द्वारा 3 मई को 15 दिन के भीतर कुछ टिप्पणी और सुझावों के लिए आमजनों के लिए भी इस विधेयक को रखा गया था। गौर करें तो प्रस्तावित संशोधन वन संरक्षण अधिनियम 1980 को न केवल यह कमजोर करता है, बल्कि वन अधिकार कानून एवं पेसा कानून को अपूर्ण क्षति पहुंचाते हुए इसके क्रियान्वयन को नगण्य करता है। यह संशोधन विधेयक वनवासी समुदाय के अधिकारों पर कुठाराघात तथा प्रहार भी करता है।

लाल प्रकाश ‘राही’

शहीद भगत सिंह छात्र नौजवान महासभा (उत्तर प्रदेश) के सचिव एवं खेत-मजदूर-किसान संग्राम समिति (जौनपुर) से जुड़े लाल प्रकाश ‘राही’ कहते हैं- ‘वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023, वन संरक्षण अधिनियम 1980 को कमजोर करने के साथ ही साथ जंगलों में जीवन-यापन करते हुए कई पीढ़ी बिता देने वाले बनवासी, आदिवासी समाज के अधिकारों का हनन भी है। प्रस्तावित यह विधेयक पूरी तरह से पूंजीपतियों के पक्ष में है, जो पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा देने वाला है।’

क्या है प्रस्तावित वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023

प्रस्तावित संशोधन विधेयक 2023 सीधे तौर पर वन अधिकार कानून 2006 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को नजरअंदाज करता है। ग्रामसभा, स्थानीय समुदाय, प्राणियों एवं वन संरक्षण के साथ-साथ संवर्धन के अधिकारों की भी अवहेलना करता है।

यह विधेयक केंद्र सरकार को पूर्णरूपेण सक्षम प्राधिकारी बनाता है, जो यह तय कर सकेगा कि वनों एवं वन भूमि को किस हद तक, किस रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। परिणामत: वनों को गैर वन उपयोग के लिए भी परिवर्तित कर सकेगा। इसका दुष्परिणाम यह होगा कि वनों की अंधाधुंध कटाई होगी एवं उन्हें निजी कंपनियों के हाथों में आसानी से दे दिया जाएगा। इसके लिए स्थानीय समुदायों की सहमति की कोई आवश्यकता नहीं लेनी होगी। वहीं, वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा 2 में स्थानीय समुदायों की सहमति अनिवार्य करता है।

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इसी प्रकार प्रस्तावित यह विधेयक केंद्र सरकार को व्यापक रुप से शक्तियां भी प्रदान करता है। इन शक्तियों का उपयोग करते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पेसा कानून, स्थानीय समुदायों एवं ग्राम सभा की शक्तियों को नकारता है और अधिसूचना या घोषणा के माध्यम से वनों को किसी भी व्यक्ति एवं निजी संस्थानों को हस्तांतरित कर सकता है। ऐसे अचिन्हित, अवर्गीकृत और अन्य वन क्षेत्रों को, जिसे 1996 में उच्चतम न्यायालय को गोदावार्मन केस के फैसले में वन का दर्जा दिया था, उसे प्रस्तावित विधेयक में इस विशाल वन भूमि की परिभाषा से बाहर करता है। अतः ग्राम सभा इसका स्वशासन, संरक्षण एवं संवर्धन नहीं कर सकेगी और वन भूमि का हस्तांतरण बिना किसी सहमति से आसानी से किया जाएगा।

यह प्रस्तावित संशोधन विधेयक वन भूमि को संरक्षण के दायरे से बाहर कर देता है। साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग, रेलवे, सड़क निर्माण, अंतरराष्ट्रीय सीमा के 100 किलोमीटर के दायरे, राष्ट्रीय उद्यान, प्रकृति पर्यटन स्थल, राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधित परियोजना, राष्ट्रीय रक्षा एवं पैरामिलिट्री फोर्स तथा सार्वजनिक हित के लिए निर्माण कार्यों हेतु वन भूमि के उपयोग की छूट देता है। इसका सीधा-सीधा यह अर्थ निकलता है कि उपरोक्त परियोजनाओं से वन्य जीवों, पर्यावरण एवं समुदाय के परिवेश को न केवल हानि पहुंचाएगा, बल्कि उसको ख़त्म भी करेगा।

यह विधेयक गैर वन गतिविधियों को भी बढ़ावा देता है, जो कि उनके असंतुलित व्यवसायीकरण को छूट देता है और खनिजों के खनन के लिए अन्य मानको जैसे भूकंप को नजर अंदाज करता है।

क्या है मांगें

  • वन अधिकार कानून 2006 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को नजरअंदाज ना किया जाए और ग्राम सभा एवं स्थानीय समुदायों के अधिकार को बरकरार रखा जाए।
  • मूल वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के धारा 2 में स्थानीय समुदायों की सहमति को अनिवार्य करते हुए प्रस्तावित संशोधन विधेयक के धारा 4 के तहत भी अनिवार्य किया जाए।
  • अचिन्हित, अवर्गीकृत और अन्य वन क्षेत्रों को, जिसे 1998 में उच्चतम न्यायालय में गोदावर्मन केस के फैसले में वन को परिभाषित किया गया, इसे प्रस्तावित संशोधन विधेयक में भी लाया जाए।
  • देखा जाए तो प्रस्तावित वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को लाने के बजाय वन अधिकार कानून 2006 को धरातल पर सख्ती से कैसे लागू किया जाए।

जनसमर्थन के बल पर धरातल पर होगा अधिकार

सोशल एक्शन फोरम उत्तर प्रदेश (सेफ) की सह-संयोजक शोभना स्मृति

सोशल एक्शन फोरम उत्तर प्रदेश (सेफ) की सह-संयोजक शोभना स्मृति बताती हैं- ‘व्यापक जनसमर्थन की बदौलत आदिवासी वनवासी समाज उनका अधिकार दिलाने के साथ-साथ प्रस्तावित वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को वापस लेने व वन अधिकार कानून 2006 को धरातल पर सख्ती से लागू किए जाने की मुहीम को परवान चढ़ा कर ही हम दम लेंगे।’ वह सवाल करती हैं कि ‘आखिरकार सरकारें वन अधिकार कानून 2006 को धरातल पर लागू करने से क्यों कतरा रही हैं? इस कानून के लागू होने से सरकार को क्या खतरा है?’

शहीद भगत सिंह छात्र नौजवान महासभा के जिला सचिव विवेक शर्मा

शहीद भगत सिंह छात्र नौजवान महासभा के जिला सचिव विवेक शर्मा कहते हैं- वन अधिकार कानून 2006 को धरातल पर लागू करने से सरकार की घबराहट भरी मंशा आम-आवाम के समझ से भले ही परे हो, लेकिन इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार और पूंजीपतियों, खासकर कॉर्पोरेट घरानों का जो तालमेल है, वह इस विधेयक के धरातल पर लागू होने से गड़बड़ा सकता है।

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