देश में रोजगार का बड़ा संकट शिक्षित लोगों के लिए तो है ही लेकिन जो अशिक्षित हैं, उन्हें भी रोजगार के लिए रास्ते तलाशने पड़ते हैं। उनमें से बहुत से लोग सड़क किनारे या घूम घूम कर सामान बेचने का काम करते हैं लेकिन उससे इतनी कमाई नहीं हो पाती है कि रोजमर्रा की जरूरत पूरी हो पाए। बहुत से परेशानियों के बाद भी ए संघर्ष कर जीवन चलाते हैं।
रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। चाहे वह छोटी-सी चाय की दुकान हो, कपड़े प्रेस करने का काम हो, साप्ताहिक बाजार में कपड़े और घरेलू सामान बेचना हो या फिर बागवानी करना - हर जगह महिलाएं न केवल काम कर रही हैं, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रही हैं। लेकिन उनका यह सफर आसान नहीं है। इन महिलाओं को हर दिन कई समस्यायों का सामना करना पड़ता है।
देश भले 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की बात करता हो लेकिन आज भी ऐसे अनेक समुदाय हैं, जहां लोग बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन गुजारने को मजबूर हैं। ऐसा ही राजस्थान का लोहार समुदाय है, जिनके पास हुनर तो है लेकिन आज अत्याधुनिक तकनीकें आ जाने से उनका काम नहीं चल रहा है। जिसकी वजह से ये अच्छे और सुरक्षित भविष्य के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं जबकि सरकार विकास की अनेक योजनाएं लागू है। प्रश्न यह उठता है कि क्यों इन तक सरकारी योजनाएं नहीं पहुँच पा रही हैं।
गांव में हर किसी की अपनी अलग अलग कहानियां होती हैं, जो उनके संघर्ष को दर्शाती है लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब हर व्यक्ति को उसकी मेहनत का सही फल मिले और उनके सपनों को पूरा करने का अवसर मिले ग्रामीण इलाकों में विकास की कहानी केवल योजनाओं और नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन लोगों की भावनाओं, संघर्षों और सपनों का प्रतिबिंब है जो दिन-रात मेहनत करके अपने जीवन को सुधारने की कोशिश करते हैं। लेकिन हर बार सफल नहीं होते।
किसानों के हितों में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर देखा जाये तो सूरतेहाल कुछ और ही नज़र आता है। देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां अलग अलग भौगोलिक परिस्थितियों के कारण किसानों को कृषि कार्य में अलग तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक ऐसा ही एक उदाहरण है। अपनी विशिष्ट भौगोलिक विशेषताओं और सीमित प्राकृतिक संसाधनों के कारण यहां कृषि संबंधी कार्यों में किसानों के लिए कई प्रकार की चुनौतियां हैं।
अभी कुछ दिन पहले दुर्गा विसर्जन के दौरान बहराइच में साम्प्रदायिक हिंसा में जो हुआ सभी जानते हैं। डेढ़ महीने बाद संभल में जामा मस्जिद के सर्वे के समय यह हिंसा फ़ैली। समय-समय पर इस तरह की हिंसा फैलने का मतलब है कि सरकार और पुलिस-प्रशासन इसे रोकने में असमर्थ है। रिहाई मंच ने संभल हिंसा और मौतों के लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार, घटना की हो उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
ज़िन्दगी जीने के लिए बहुत नहीं तो कुछ बुनियादी सुविधाओं की जरूरत हर किसी को होती है, जिनमें रहने वाली जगहों के आसपास साफ़ पानी, सड़क, विद्यालय और स्वास्थ्य केंद्र होना जरूरी होता है लेकिन हर शहर की समस्या है कि झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे लोगों को बाकी का क्या कहें साफ़ पानी तक उपलब्ध नहीं हो पाता। ऐसे में वहां रहने वालों का जीवन किसी नरक से कम नहीं होता। जबकि सरकार द्वारा झुग्गी पुनर्वास परियोजना चलाई जा रही है, ऐसे में उन तक सुविधा क्यों नहीं पहुँच पाती, प्रश्न यह उठता है।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सेवानिवृति के पूर्व की गई स्वीकोरोक्तियाँ तथा उनके कार्यकाल का आकलन लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिये चेतावनी है कि किस तरह उच्चतम स्तर पर न्यायिक घोषणाओं में संवैधानिक प्रावधानों, विधि और न्याय की स्थापित परंपराओं से हटकर बहुसंख्यकवादी भावनाएं प्रतिबिम्बित हो रही हैं। लोकतंत्र के वर्त्तमान भारतीय स्वरूप में विश्वास करने वालों को मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रचूड़ जी को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने न केवल न्याय की देवी की आँखों पर बंधी पट्टी हटाई है, हमारी आँखों पर पड़ा परदा भी हटाया है और कुल मिलाकर जाते जाते यह स्पष्ट कर दिया है कि मोदी सरकार ने उच्च न्यायपालिका में घुसपैठ करने में आरएसएस की कितनी मदद की है।
पूरे देश स्वच्छता अभियान के तहत हर घर शौचालय बनवाने के लिए सरकार की तरफ से बारह हजार दिए गए हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या बारह हजार में किसी शौचालय का निर्माण हो सकता है?सभी को पता है यह असंभव है, दीवार खड़ी हो जाती है लेकिन जाने लायक शौचालय नहीं बन पाता है। याने सरकारी कागजातों में गाँव के गाँव ओडीएफ घोषित हो रहे हैं लेकिन जमीनी सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। बिहार में भी ओडीएफ की स्थिति जटिल बनी हुई है। आखिर सरकार किसी भी काम के लिए उचित पैसा क्यों नहीं देती है, जिससे लाभार्थी उसका फायदा उठा सकें।
आज लड़कियां भी खेल में अपना करियर बना रही हैं लेकिन इसका अनुपात लड़कों की तुलना में फिर भी कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में लडकियों में खेल का जूनून और जज्बा दोनों है लेकिन माहौल के साथ सुविधा के अभाव के चलते बहुत सी लड़कियां खेल में आगे नहीं आ पाती हैं। सरकार को चाहिए कि लड़कियों को आगे लाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में खेल के लिए विशेष ध्यान देते हुए उन्हें आगे लाने की योजना लानी चाहिए।
पत्रकारिता के क्षेत्र में देश के नामी-गिरमी लोगों के नाम पर पत्रकारों को पुरस्कार दिए जाते हैं। लेकिन ग्रामीण पत्रकारिता में बहुत कम ही पुरस्कार हैं, जो ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों को दिए जाएं। लेकिन सुजॉय घोष ग्रासरूट्स लीडरशिप अवार्ड्स हर वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों में वंचित समुदाय के बीच जमीनी स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों को प्रदान किया जाता है। वर्ष 2024 के लिए इस पुरस्कार की घोषणा की गई है।