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ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार : ‘हर घर शौचालय’ योजना में मिलने वाले बारह हजार से क्या कोई सामान्य सा शौचालय भी बन सकता है

पूरे देश स्वच्छता अभियान के तहत हर घर शौचालय बनवाने के लिए सरकार की तरफ से बारह हजार दिए गए हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या बारह हजार में किसी शौचालय का निर्माण हो सकता है?सभी को पता है यह असंभव है, दीवार खड़ी हो जाती है लेकिन जाने लायक शौचालय नहीं बन पाता है। याने सरकारी कागजातों में गाँव के गाँव ओडीएफ घोषित हो रहे हैं लेकिन जमीनी सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। बिहार में भी ओडीएफ की स्थिति जटिल बनी हुई है। आखिर सरकार किसी भी काम के लिए उचित पैसा क्यों नहीं देती है, जिससे लाभार्थी उसका फायदा उठा सकें।

इसी वर्ष सितंबर माह में केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की ओर से बताया गया कि 24 सितंबर 2024 तक देश के पांच लाख 54 हज़ार 150 गांवों को ओडीएफ प्लस (खुले में शौच से मुक्त) का दर्जा दिया जा चुका है। वहीं 3,00,368 गांवों को ओडीएफ प्लस मॉडल गाँव के रूप में मान्यता मिल गई है जबकि 1,30,238 गांवों को ओडीएफ प्लस मॉडल गांव के रूप में प्रमाणित किया गया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि वे स्थायी स्वच्छता के तौर तरीकों के लिए कड़े मानदंडों पर खरा उतरते हैं और जल्द ही उन्हें ओडीएफ प्लस मॉडल गाँव के रूप में मान्यता मिल जाएगी।  इस सूची में बिहार के ग्रामीण क्षेत्र भी शामिल हैं।  लेकिन यहां के कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां अभी भी शत प्रतिशत घरों में शौचालय का निर्माण नहीं हुआ है।  जिससे सबसे अधिक महिलाएं और किशोरियां प्रभावित हो रही हैं।

ऐसा ही एक गांव गया का कैशापी पुरानी डिह है।  जिला मुख्यालय से 23 किमी और डोभी प्रखंड से करीब 5 किमी दूर इस गांव के सभी घरों में आज भी शौचालय का निर्माण नहीं हुआ है।  इसके पीछे सबसे अधिक आर्थिक कारण बताया जा रहा है।  इस संबंध में गांव की 35 वर्षीय महिला रीता देवी कहती हैं कि उनके घर में अभी भी अस्थाई शौचालय ही बना हुआ है क्योंकि पक्का शौचालय बनाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। वह कहती हैं कि इसके लिए पंचायत में आवेदन भी दिया हुआ है लेकिन अभी तक राशि प्राप्त नहीं हुई है।  वहीं 45 वर्षीय शांति पासवान बताती हैं कि घर में शौचालय निर्माण के लिए सरकार की ओर से बारह हज़ार रूपए दिए जाते हैं जबकि एक पक्के शौचालय के निर्माण में न्यूनतम 30 हज़ार रूपए खर्च होते हैं। जिसमें सेप्टिक टैंक और पानी की टंकी सहित दरवाजा और अन्य आवश्यक चीजें शामिल हैं। वह कहती हैं कि पैसे की इसी कमी के कारण बहुत से परिवार शौचालय निर्माण कराने में असमर्थ हैं।  जिन परिवारों को बारह हज़ार मिले हैं उन्होंने किसी प्रकार अस्थाई शौचालय का निर्माण कराया है।

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पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जाति बहुल कैशापी पुरानी डिह गांव में 633 परिवार आबाद हैं। जिनकी कुल आबादी लगभग 3900 है।  इनमें करीब 1600 अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग परिवार रहता है।  गांव में पासवान और महतो समुदायों की संख्या अधिक है।  ज़्यादातर परिवार के पुरुष बड़े शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में दैनिक मज़दूर के रूप में काम करने जाते हैं।  गांव के लगभग सभी परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर हैं।  उनकी मासिक आय इतनी कम है कि इसमें उनके परिवार का मुश्किल से गुज़ारा चल पाता है. गांव की नीतू कहती हैं कि शौचालय नहीं होने से महिलाओं और किशोरियों को सबसे अधिक समस्याओं का सामना रहता है।  वह बताती है कि पुरुष कभी भी खुले में शौच को चले जाते हैं। लेकिन महिलाएं और किशोरियां सुबह होने से पहले शौच को जाती हैं और फिर रात होने के बाद ही जाती हैं।  पूरे दिन शौच जाने से बचने के लिए वह बहुत कम खाती हैं।  इससे उनके स्वास्थ्य पर बहुत अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।  इसके कारण बहुत महिलाएं और किशोरियां कुपोषण का शिकार हैं। जिन घरों में शौचालय का निर्माण हो चुका है वहां की महिलाएं और किशोरियां अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ हैं।

कैशापी पुरानी डिह गांव के लोगों को सरकार द्वारा चलाये जा रहे स्वच्छ भारत अभियान और इसमें मिलने वाली राशि की पूरी जानकारी है। इसीलिए सभी परिवार घर में शौचालय निर्माण के लिए पंचायत में आवेदन कर चुके हैं।  अधिकतर परिवारों को शौचालय निर्माण के लिए राशि मिल गई है लेकिन कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिन्हें अभी भी पैसे मिलने का इंतज़ार है।  इस संबंध में दिनेश पासवान कहते हैं कि उन्होंने दो वर्ष पूर्व ही पंचायत में शौचालय निर्माण के लिए आवेदन दिया था, लेकिन अभी तक उन्हें पैसे नहीं मिले है।  फिलहाल उन्होंने किसी प्रकार कच्चे शौचालय घर का निर्माण किया है।  वह कहते हैं कि हर घर शौचालय बनाने का सरकार का लक्ष्य सराहनीय है।  इससे गांव में खुले में शौच और इससे फैलने वाली गंदगी पर रोक लगी है। लोगों का स्वास्थ्य स्तर बेहतर हुआ है।  ऐसे में जिन घरों को शौचालय निर्माण के लिए अभी तक राशि नहीं मिली है, पंचायत को चाहिए कि वह जल्द इस ओर ध्यान दे ताकि हर घर को इज़्ज़त घर मिल सके।

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बिहार में खुले में शौच से मुक्ति (ओडीएफ) के मामले में स्थिति जटिल बनी हुई है।  हालांकि राज्य सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत खुले में शौच से मुक्ति के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए हैं।  केंद्र के अतिरिक्त राज्य सरकार ने अपने स्तर पर लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान भी चला रखा है। इस अभियान की गतिविधियों से विभिन्न भागीदारों जैसे पंचायती राज संस्थान के प्रतिनिधियों, संकुल स्तरीय संघों, ग्राम संगठनों, स्वयं सहायता समूहों, नि:शक्‍त स्वयं सहायता समूह विभिन्न सरकारी विभागों एवं गैर सरकारी संगठनों को सम्मिलित किया गया है।  वहीं सामूहिक व्यवहार परिवर्तन तथा स्‍वच्‍छता विषयक सुरक्षित आचार सुनिश्चित करने के लिए समुदाय आधारित सम्पूर्ण स्वच्छता की रणनीति को अपनाया गया है जो समुदाय को स्वच्छता के प्रति जागरूक करता है।  इसके अतिरिक्त समुदाय आधारित सम्पूर्ण स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए ठोस एवं तरल अपशिष्ट के प्रबंधन का क्रियान्वयन भी सुनिश्चित किया जाता है।  केंद्र और राज्य सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद स्थिति में सुधार के लिए और अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है ताकि हर घर शौचालय का हकीकत में पूरा हो सके। (चरखा फीचर्स)

अजमेरी खानम
अजमेरी खानम
लेखिका गया, बिहार में रहती हैं।

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