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क्रूगर पार्क को नापने की कोशिश और शेर को मानव-गंध

दक्षिण अफ्रीका की यात्रा : तीसरी किस्त मण्डेला कैप्चर साइट डरबन से जोहान्सबर्ग लौटते समय हम डरबन से लगभग 100 किमी दूर मण्डेला कैप्चर साइट देखने पहुंचे। यहां पर मण्डेला को गोरी सरकार ने काफी लम्बी अवधि तक कैद में रखा था। अब इस जगह को म्युजियम मे बदलने का कार्य चल रहा है। म्यूजिम […]

दक्षिण अफ्रीका की यात्रा : तीसरी किस्त

मण्डेला कैप्चर साइट

डरबन से जोहान्सबर्ग लौटते समय हम डरबन से लगभग 100 किमी दूर मण्डेला कैप्चर साइट देखने पहुंचे। यहां पर मण्डेला को गोरी सरकार ने काफी लम्बी अवधि तक कैद में रखा था। अब इस जगह को म्युजियम मे बदलने का कार्य चल रहा है। म्यूजिम का मुख्य भवन निर्माणाधीन है, अभी एक अस्थाई भवन मे रंगभेद कालीन अफ्रीका मे अश्वेतों के संघर्ष की चित्र प्रर्दशनी, फिल्में दिखाई जाती हैं। यह जेल काफी वीराने में  बनायी गयी है, जिसके दूर-दूर तक मानव बस्ती नहीं दिखी। यहां पर सबसे आकर्षक नेल्सन मण्डेला की अनेक लोहे की छड़ों से बनायी गयी विशाल मुखाकृति है, जो एक खास दूरी से देखने पर धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगती है। दूर-दूर तक निर्जन पहाड़ियों के बीच बने इस म्यूजियम में नेल्सन मण्डेला की यह विशाल लौह मूर्ति इन निर्जन पहाड़ियों को निहारती हुई इस महादेश की निगहबानी करती प्रतीत होती है। मण्डेला को इसी जगह पर 5 अगस्त,1962 को रंगभेदी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था, जहां से उनके  27 वर्षो लम्बी कैद की शुरुआत हुई। इस जगह पर गिरफ्तारी की  50वीं वर्षगांठ पर  स्टील के 50 खम्भों से यह मूर्तिशिल्प बनाया गया है।

पीटर मेरित्सबर्ग रेलवे स्टेशन

पीटर मेरित्सबर्ग रेलवे स्टेशन

बैरिस्टर गांधी को राजनेता गांधी की दीक्षा इसी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर मिली थी। भारतवंशियों के दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार होने में  इस रेलवे स्टेशन का इतना महत्वपूर्ण स्थान है कि भारत से आने वाले अधिकांश अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों  ने प्रायः इस प्लेटफार्म पर खड़े होकर उस क्षण को महसूस करने की कोशिश की है। वर्तमान भारतीय प्रधान मंत्री ने भी दक्षिण अफ्रीका के प्रवास मे इस स्टेशन का भ्रमण किया। इस रेलवे स्टेशन का प्लेटफार्म नं. 1 तथा वह बेन्च सुरक्षित रखी गई है, जिस पर बैठकर गांधी ने रात बिताई थी। रेलवे स्टेशन अभी भी प्रयुक्त होता है और स्टेशन पर कुछ यात्री भी प्रतीक्षारत मिले। डरबन से जोहान्सबर्ग तक रेल से लगभग 12 घण्टे का रास्ता बताया गया। यह एक छोटा-सा कस्बा है, जो तमाम अफ्रीकी कस्बों की तरह चौड़ी सड़कों और उनकी दोनों तरफ दुकानों से सजा हुआ है। इस कस्बे मे एक गांधी चैक भी है, जिस पर लाठी लिए गांधी की काले पत्थर की खूबसूरत प्रतिमा है।

हजारों साल पुराना वृक्ष

बाओबाब वृक्ष

जोहान्सवर्ग से 400 किमी दूर लिम्पोपो प्रान्त मे बाओबाब वृक्ष के बारे में बताया गया कि 10,000 वर्ष पुराना वृक्ष है। कार्बन डेटिंग के अनुसार यह वृक्ष 1700 वर्ष पुराना पाया गया, इसकी उंचाई 22 मी एवं फैलाव कहीं-कहीं पर 47 मी है। वृक्ष का तना इतना चैड़ा था कि उसके भीतर एक टेबुल रखी हुई थी और खाली जगह में पांच-छ लोग खड़े हो सकते हैं। उसके तने को खोखला करके बनाए बार को देखकर आश्चर्य लगा लेकिन दुख हुआ कि हमारी कौतुक-पसन्दी ने इस बुर्जुग बृक्ष को कितना घायल कर दिया है। इस बुर्जुग बृक्ष की शुरुआती तीन डालियां तीन दिशाओं में जमीन की टेक लेकर उपर उठी हुई थीं, मानो यह महाबृक्ष अपने भारी शरीर को जमीन की टेक लगाकर खड़ा होने की कोशिश कर रहा है। वृक्ष आम के शानदार बागों के बीच घिरा हुआ था। पके सिन्दूरी आमों को देखकर खरीदनें का मन हुआ, देखभाल करने वाली अफ्रीकी महिला, जिसे बोलचाल में  ममा कहते हैं, से अनुरोध करने पर ममा ने मालिक से फोन पर बात करनी चाही लेकिन छुट्टी होने के कारण मालिक द्वारा फोन नहीं उठाया गया और ममा ने अपने स्तर से आम देने में असमर्थता व्यक्त की। दक्षिण अफ्रीका मे साप्ताहिक छुट्टी शनिवार और रविवार को होती है और इन दोनों दिनों में प्रायः लोग अपने व्यावसायिक काम नहीं करके पार्टी आदि का आनन्द लेते हैं। यदि आप इन दो दिनों के बीच गम्भीर बीमार पड़ गए तो आपका दुर्भाग्य है, आपको बेहतर चिकित्सा सेवा शायद ही मिले। दक्षिण अफ्रीका को चिकित्सा और सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में काफी काम करने की जरूरत है।

क्रूगर नेशनल पार्क

क्रूगर नेशनल पार्क का क्षेत्रफल 19485 वर्ग किमी का अभयारण्य है। इसको अंग्रेज साम्राज्यवादियों द्वारा 1899 से 1926 के मध्य टोंगा जाति के मूल निवासियों को जबरन विस्थापित करके बनाया गया है। इसमें  प्रवेश करने एवं निकलने के लिए 09 गेट बने हैं। हमलोगों ने पुण्डा मारिया गेट से प्रवेश करने और फेबियन गेट से बाहर निकलने की योजना बनाई थी, जिसकी दूरी लगभग 400 किमी है, इस प्रकार हम इस जंगल के दो तिहाई हिस्से लम्बाई को पार करने वाले थे।

हम लिम्पोपो प्रान्त के बाओबाब वृक्ष से लगभग 2.30 बजे क्रूगर पार्क मे प्रवेश के लिए पुन्डा मारिया गेट। के लिए निकले। पुन्डा मारिया गेट तक पहुंचते पहुंचते अंधेरा हो गया क्योंकि जीपीएस की महिमा से हमारी गाड़ी कुछ मुख्य रास्तों से अलग रास्तो को पकड़ कर चली । इसका फायदा यह हुआ कि हम अफ्रीका के भीतरी हिस्सो का दर्शन कर पाए जो प्रायः पर्यटक निगाहों से ओझल होता है। रास्ते में अश्वेत समुदाय के लिए निर्माणाधीन और निर्मित हो चुकी कालोनियां दिखीं। प्रत्येक मकान के इर्द-गिर्द शाक सब्जी उगाने के लिए पर्याप्त भूमि छोड़ी गयी थी और कालोनी के चारों तरफ तारों की बाड़ बनायी गयी थी। कालोनियां यद्यपि की निर्माणाधीन थी परन्तु बहुत ही साफ-सुथरी थी। दक्षिण अफ्रीका मे घूमते हुए आप पाएंगे कि यहां पर ईटें भी पालीथिन में लपेट कर ही रखी मिलेगी न कि खुली इधर-उधर बिखरी हुई।

थोड़ा रास्तों के भटकाव के कारण और अपने ठहरने के ठिकाने के सम्बन्ध में हुए कन्फ्यूजन के कारण पुण्डा मारिया गेट तक पहुंचने में रात हो गयी, इस सूनसान गेट तक पहुंचने मे पहली बार हमे बीच सड़क पर खड़ा एक गधा और कुछ दूरी पर खड़ी गाय मिली, जिससे टकराने से हम बाल-बाल बचे। अन्धेरे में गेट के सामने जो चौकीदार मिले उनके द्वारा बताया गया कि सुबह 5.00 बजे से अन्दर प्रवेश मिलेगा। रुकने के ठिकाने के बारे में  उनके द्वारा बताया गया कि लगभग 15 किमी दूरी पर कोपाकोपा गेस्ट हाउस में रुका जा सकता है। हमें अन्दाजा था कि पुण्डा मारिया गेट के आसपास कोई कस्बेनुमा जगह होगी लेकिन रात के अन्धेरे में 15 किमी दूरी बहुत लम्बी लग रही थी, क्योंकि रात में प्रायः मिलने वाले अफ्रीकी नशे में होंगे और अन्जान भिन्न नस्ल के लोगों के साथ तो लूटपाट होने की सम्भावना से यहां के गैर अफ्रीकी समुदाय के लोग काफी डरते हैं। डरने का कारण लूटपाट नहीं, बल्कि लूट के साथ-साथ हत्या कर देना नशे में  चूर यहां के अपराधियों के लिए असामान्य नहीं होता है ।

[bs-quote quote=”मुझको अपनी हठधर्मिता समझ में आ गयी और भाग कर कार में घुसकर दरवाजा बन्द करके हम नौ-दो ग्यारह हो लिए। कुछ देर बाद समझ में आया कि सम्भवतः कार से बाहर निकल कर खुले में  आ जाने के कारण दूसरी तरफ मुंह करके काफी दूरी पर लेटे शेर-परिवार को हमारी गंध मिल गयी थी इसीलिए पार्क में खुले में निकलना प्रतिबन्धित होता है परन्तु हमने सुनसान होने पर नियम की परवाह न करने की अपनी आदत के अनुसार व्यवहार किया था, जिसमें खतरा हो सकता था।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

रात मे कोपा-कोपा गेस्ट हाउस पहुंचने पर वह गेस्ट हाउस भी जंगल का ही एक हिस्सा लग रहा था क्योंकि एक तो गेस्ट हाउस कई एकड़ तक बाग-बगीचों में फैला था दूसरे बिजली में कुछ समस्या होने के कारण कहीं-कहीं पर ही रोशनी दिख रही थी। रिसेप्शन पर खड़े अश्वेत सज्जन यद्यपि कुछ नशे में थे लेकिन उनके द्वारा बहुत सहृदयता से कुछ सस्ती दर पर एक सूट उपलव्ध कराया गया। सूट में हम कुछ व्यवस्थित हुए ही थे कि बिजली पूर्णतया चली गयी लेकिन रिसेप्शनिस्ट सज्जन ने, यद्यपि कि हमारा सूट मुख्य भवन से दूरी पर था, बैटरी वाली लालटेन खुद लाकर दी और असुविधा के लिए बार-बार क्षमा मांगी। बिजली की आपूर्ति की समस्या रात 11 बजे तक ठीक हुई लेकिन हम लोग तबतक सो गए।

अगली सुबह सात बजे तक हम पासपोर्ट वगैरह चेक कराकर परमिट लेकर पुण्डा मारिया गेट से क्रूगर पार्क में प्रवेश कर गए। पुण्डा मारिया गेट से फेबियन गेट की लगभग 400 किमी दूरी को अधिकतम 60 किमी प्रति घण्टे की गति से ही तय करना था, जो कि यहां के लिए असहज गति है। गति पर प्रतिबन्ध का कारण आगे चलते ही स्पष्ट होने लगा। सुबह बादलों से भरी थी और कहीं-कहीं पर बारिश भी हुई। पार्क के भीतर की सड़क भी डबल लेन की थी। सड़क पर कहीं-कहीं हाथियों के गोबर पड़े हुए थे जिससे लग रहा था कि उन्होंने कुछ देर पहले रास्ता पार किया है। क्रूगर पार्क का दर्शन बिग 5 से पूर्ण माना जाता है। बिग 5 मतलब शेर,चीता,हाथी, भैंसा, गैण्डा। यह आपके भाग्य पर है कि इन पांचों के दर्शन हो पाते हैं कि नही । जंगल में घुसने के दसियों किलोमीटर पर हमें जिराफों का समूह दिखाई दिया। उसके बाद जेब्रा, हिरन की तमाम प्रजातियों के अलग-अलग झुण्ड और विशालकाय अफ्रीकी हाथियों के कई झुण्ड रास्ते में मिलते चले गए। कई बार ये झुण्ड हमारे आने के कुछ पहले ही सड़क को पार कर दूसरी तरफ जंगल में उतरे होते थे तो कई बार हमें गाड़ी खड़ी करके इन झुण्डों को सड़क पार करने का इन्तजार करना पड़ता था। एक बार हाथियों का झुण्ड सड़क पार करने के लिए लगभग किनारे पर था कि हमारी कार पहुंच गयी। झुण्ड मे हाथी का बच्चा भी था। हाथी अपने बच्चों के प्रति बहुत ही संवेदनशील होते हैं। उस पर दुर्योग यह कि हमारी कार का रंग भी गाढ़ा लाल था। एक हथिनी चिघ्घाड़ते हुए काफी आक्रामक अंदाज में आगे ब़ढ़ी। गनीमत था कि हमारी कार कुछ आगे निकल चुकी थी लेकिन झुरझुरी के लिए इतना ही काफी था।

सबसे बड़ी उत्कन्ठा जंगल के राजा से मुलाकात की होती है। दोपहर की धूप कड़ी हो गयी थी और सड़क एक नदी के किनारे किनारे चल रही थी। कभी सड़क नदी के पास पहुंच जाती तो कभी नदी कुछ दूर हो जाती। दोपहर बीतने के कुछ बाद एक जगह सड़क के किनारे दो तीन कारें और पर्यटकों को घुमाने वाली गाड़ियाँ खड़ी थीं। पर्यटक खिड़कियों मे से बड़े-बड़े लेंसों वाले कैमरे आदि लगाकर शूट करने की कोशिश कर रहे थे। जहां पर लोगों ने कार और पर्यटकों की गाड़ियां सड़क के किनारे खड़ी थीं। वहां पर नदी सड़क से काफी नजदीक और गहराई में थी। उचक-उचक कर देखने पर नदी के दूसरी तरफ घने वृक्षों की छाया में एक शेर-परिवार नदी की रेत पर लेटा मिला। घनी छाया में करीब 5 शेर लेटे हुए थे लेकिन हम जहां पर खड़े थे वहां से एक झलक ही मिल पा रही थी। धीरे धीरे गाड़ियां जब आगे निकलीं तो हमें भी देखने का मौका मिला। शेरों का परिवार काफी गहराई मे सोया हुआ था तो मुझे लगा कि मैं सड़क पर निकल कर कुछ अच्छी जगह लेकर फोटो ले सकता हूं। वहां पर अन्य गाड़ियां नही थीं इसलिए मैं गेट खोलकर सड़क की पटरी की ढलान पर उगी झाड़ियों के पास पहुंचा ही था कि झुण्ड में हलचल हो गयी। एक दो तो वापस नदी की दूसरी तरफ जाने लगे लेकिन एक महाशय को मेरा बर्ताव पसन्द नहीं आया और वे अपनी पूरी आक्रामकता से नदी की दूसरी तरफ खड़े हो गए। नदी की धारा इतनी पतली थी कि वो उनके एक छलांग के भी काबिल नहीं थी यानी दूसरी छलांग में हम और वह आमने सामने होते। मुझको अपनी हठधर्मिता समझ में आ गयी और भाग कर कार में घुसकर दरवाजा बन्द करके हम नौ-दो ग्यारह हो लिए। कुछ देर बाद समझ में आया कि सम्भवतः कार से बाहर निकल कर खुले में  आ जाने के कारण दूसरी तरफ मुंह करके काफी दूरी पर लेटे शेर-परिवार को हमारी गंध मिल गयी थी इसीलिए पार्क में खुले में निकलना प्रतिबन्धित होता है परन्तु हमने सुनसान होने पर नियम की परवाह न करने की अपनी आदत के अनुसार व्यवहार किया था, जिसमें खतरा हो सकता था।

इसी तरह दूर-दराज एक पेड़ पर बैठे दो चीतों के भी दर्शन हो गए । पार्क की मुख्य सड़क से जुड़ी बहुत सी सड़कें अर्द्ध चन्द्राकार पथ में बनाई गयी हैं जो कई किलोमीटर लम्बी होती है और इनको लूप कहते हैं। लूप में जाकर आप जंगल की गहराई का दृश्यावलोकन कर सकते हैं। करीब 70-80 किलोमीटर के अन्तराल पर पार्क में एक ही कैम्पस में पेट्रौल पम्प मनोरम रेस्टोरेंट वगैरह रहते हैं जहां पर आप रिफ्रेश होकर अपनी यात्रा जारी रख सकते हैं। हमको अपनी मंजिल पूरी करते-करते पाँच बज गए और बिग-5 में से एक गेंडा महाराज के दर्शन नही हो सके।

कुल मिलाकर क्रूगर पार्क हमें उस दुनिया से मुखातिब करता है, जिसको हमने सदियों पहले अपने आधुनिक विकास की जरूरतों के मद्देनजर रौंद डाला है।

ग्रासकोप

क्रूगर पार्क के फेबेनी गेट से निकलकर हम लगभग 100 किमी दूर 1400 मी समुद्रतल की उंचाई पर ड्रेकनबर्ग पर्वत श्रृंखला के सुरम्य पहाड़ों मे स्थित ग्रासकोप कस्बे में हमें रात्रि विश्राम करना था। रास्ते के दोनों तरफ ऊँचे पहाड़ों पर देवदार के वृक्षों की शृंखला के बीच से होते हुए हम अंधेरा होते-होते ग्रासकोप में मैडम शेरी के गेस्ट हाउस पर पहुंचे। ग्रासकोप के आस पास गाड्स विन्डो, बर्लिन फाल, लिस्बन फाल, ब्लाइड रीवर फाल, पाट्सहोल दर्शनीय प्राकृतिक स्थल हैं। प्रतीत होता है कि इन दर्शनीय स्थलों के नाम उपनिवेशवादियों ने अपने पितृभूमि की स्मृतियों को चिरंजीवी रखने के लिए रखे हैं। पार्ट्स होल दरअसल पहाड़ों पर से उतरती नदी के पानी द्वारा चट्टानों को काटकर बनाए गए विशाल गढ्ढों को कहा जाता है। इन बड़े-बड़े गढ्ढों में नदी की फेनिल जलधारा को विभिन्न कुंडों में उतरते-निकलते देखने में कब घण्टों गुजर जाएंगे आपको पता भी नहीं चलेगा। दोपहर के बाद ग्रासकोप से करीब 250 किमी दूर पिलग्रिम्स रेस्ट नामक अठारहवीं सदी के अन्त या उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में स्थापित किए गए कस्बे को देखते हुए हम वापस जोहान्सबर्ग पहुंचे।

ब्लोम फाण्टेन

यह शहर जोहान्सबर्ग से करीब 425 किमी दूर है। पोर्ट एलिजाबेथ जाते समय हम कार से सुबह 6.30 बजे चलकर करीब 9.30 बजे पहुंचे। इसशहर मे सर्वोच्च न्यायालय स्थित है तथा इसको दक्षिण अफ्रीका की न्यायिक राजधानी कहा जाता है। इसको 1846 मे एक ब्रिटिश मेजर ने सीमा चौकी के रूप मे स्थापित किया था। आज इसकी आबादी 6 लाख बताई जाती है और यह समुद्र तल से 1395 मी की ऊँचाई पर स्थित है। इसी शहर में 1912 में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई थी। जैसा कि दक्षिण अफ्रीकी शहरों की विशेषता है यहां के शहरों को यूरोपीय लोगों ने सुब्यवस्थित तरीके से बसाया है और जब आप कई शहरों से गुजरेंगे तो उनममें एक पैटर्न पाने लगेंगे। इस शहर ने दक्षिण अफ्रीका को कई नामी लेखक, चित्रकार भी दिए हैं । शहर में एक ऊँची पहाड़ी, जिसको नेवल हिल कहते हैं, पर मण्डेला की काले पत्थरों की विशाल प्रतिमा खड़ी है। इस पहाड़ी पर खड़े होकर यह खूबसूरत शहर दूर-दूर तक दिखाई देता है। लाल रंग के टाइल्स की झोंपड़ीनुमा आकार की एक मंजिला मकानों की छतों, बहुमंजिली इमारतों और हरे-भरे बाग-बगीचों से भरा यह शहर इस देश के अन्य शहरों की तरह ही साफ-सुथरा और खूबसूरत दिखाई देता है।

संतोष कुमार जाने-माने कथाकार हैं

गाँव के लोग
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