दलित लेखक संघ ने दिनांक 19 फरवरी, 2023 को हिंदी अकादमी से सन 1995-96 में बाल गीतों की पुस्तक खेल खेल में के लिए बाल साहित्य पुरस्कार तथा सन 2006-07 के लिए साहित्यकार सम्मान प्राप्त वयोवृद्ध गीत व गजलकार मान्यवर तेजपाल सिंह ‘तेज’ का अभिनंदन और सम्मान समारोह, वाइट हाउस, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली में आयोजित किया।
दलित लेखक संघ के सदस्यों ने दुशाला पहनाकर तथा अध्यक्ष महेंद्र सिंह बेनीवाल और महासचिव शीलबोधि ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में दिल्ली और दिल्ली के आसपास के अनेक साहित्यकार मौजूद रहे। तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने कार्यक्रम में अपने जीवन संघर्ष से कई दिलचस्प और प्रेरणादायक किस्से बयान किए। उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता और उससे जुड़ी प्रयोगात्मक शैली के उदाहरण प्रस्तुत करने के साथ-साथ शब्द और उसके प्रभाव के विषय में उपस्थित श्रोताओं को जानकारी दी। इस अवसर पर वे अपने सभी साथियों का स्मरण करना नहीं भूले।
दलित लेखक संघ के अध्यक्ष डा. महेन्द्र सिंह बेनीवाल का इस अवसर पर वक्तव्य विशेष रहा उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि समकालीन लेखन के समक्ष गुणवत्ता में कम ना होने की चुनौती को तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने स्वीकार किया और तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने सामाजिक सद्भावना से अपने साहित्य को मांझा है। उनकी कविता-ग़ज़ल की भाषा और विषय इतने सरल और ग्राही हैं कि समझने के लिए दिमाग पर जोर नहीं देना पड़ता। पढ़ते ही प्रभावित कर जाती हैं। तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने अपना लेखन सभी सीमाओं से ऊपर उठकर किया है। कार्यक्रम में नीम का थाना (राजस्थान) से आए, मुख्य वक्ता डा. देवी प्रसाद वर्मा ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ का राजस्थानी पगड़ी पहनाकर सम्मान किया और अपने संबोधन में कहा कि तेजपाल सिंह ‘तेज’ का लेखन समसामयिक परिवेश का सशक्त दस्तावेज है। तेजपाल सिंह ‘तेज’ ऐसे साहित्यकार हैं, जो अपनी बात बहुत बेबाक़ी से रखते हैं। आधुनिक परिवेश को समझने के लिए इनके साहित्य का अनुशीलन करना चाहिए। इन्होंने सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, साहित्यिक ओर सांस्कृतिक परिवेश में आ रहे बदलाव को अपने लेखन का विषय बनाया है। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिस पर इन्होंने नहीं लिखा हो। यहाँ तक कि पति-पत्नी, पिता-पुत्र में साथ ही नयी पीढ़ी में आ रहे परिवर्तन को चित्रित किया है। इनकी ग़ज़लें आम आदमी की व्यथा को व्यक्त करने के साथ-साथ उनकी समस्याओं का सामना करने का हौसला देती हैं। तेजपाल सिंह ‘तेज’ की रचनाओं का मुख्य उद्देश्य जन-जागरण है, जिसमें वे पूरी तरह सफल हैं और यही साहित्य का उद्देश्य भी है।
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जाने माने आलोचक, कथाकार व कवि ईश कुमार गंगानिया ने भी तेजपाल सिंह ‘तेज’ से अपनी नज़दीकियों को जाहिर करते हुए बताया कि बहुत से स्थापित लेखकों में इतना असुरक्षा का भाव है कि वे अपने साथियों व नवांकुरों के साथ खड़े होने में खुद को असहज महसूस करते हैं। लेकिन तेजपाल सिंह ‘तेज’ इस मामले में अपवाद हैं। वे अपना खुद का काम छोड़कर भी दूसरे लेखकों के सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं। उनकी यह आदत उन्हें अन्य लेखकों से अलग ही नहीं करती बल्कि ऐसी सहयोग की भावना समय की मांग भी है। मैं टीपी सिंह ‘तेज’ के इस जज्बे को सलाम करता हूं। स्थापित नव गीतकार जगदीश ‘पंकज’ ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ के साहित्य में शब्द के कुशल प्रयोग पर अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा कि जब मैं तेजपाल सिंह ‘तेज’ की रचनाओं को पढ़ रहा था तब मुझे लगा कि उन्होंने एक-एक शब्द का मूल्य और उसकी शक्ति को समझा है और फिर अपनी रचनाओं में प्रयोग किया है। शब्द कभी-कभी ऐसी मार कर देता है जो बड़ी से बड़ी मिसाइल भी नहीं कर पाती।
दलित लेखक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक कवि व नाटककार कर्मशील भारतीय ने भी तेजपाल सिंह ‘तेज’ के साथ बिताए क्षणों को याद करते हुए कहा कि 1990 के दशक में हमारे लेखकों के लेखन में गुणवत्ता वैसी नहीं थी, जैसी होनी चाहिए थी। इसलिए तेजपाल सिंह ‘तेज’ और हम लोगों ने मिलकर दलित लेखक संघ की स्थापना की, उसके बाद लेखन में काफी सुधार देखा गया। आलोचना में दखल रखने वाले वेद प्रकाश ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ के काव्य में प्रयुक्त भाषा पर टिप्पणी करते हुए अपनी राय रखी कि उनकी भाषा पानीदार है, कलकल बहती हुई। शब्दों का उपयुक्त चयन, उनके वजन की सटीक पहचान और शब्दों की लय का उपयुक्त ज्ञान। मैं चाहता हूं कि नई पीढ़ी के लेखक उनसे ये बात सीखें। इस अवसर पर तेजपाल सिंह के सम्मान में कार्यक्रम के दूसरे भाग के रूप में काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता संतराम आर्य ने तथा काव्यपाठ कर्मशील भारती, जगदीश पंकज, ईश कुमार गंगानिया ,महेंद्र सिंह बेनीवाल, सतीश खनगवाल, हरिराम मीणा, पूजा ‘सादगी’ आदि ने किया। सम्मान समारोह में पुष्पा विवेक, संतोष पटेल व भीष्मपाल सिंह व ऋत्विक भारतीय जैसे व्यक्तियों की उपस्थिति विशेष थी। कार्यक्रम में शोधार्थी और सामाजिक कार्यकर्ताओं की अच्छी खासी उपस्थिति रही।
शीलबोधि युवा कथाकार हैं।
Very well doing.