Saturday, July 27, 2024
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योगी सरकार में बुनकरों पर बिजली बिल की मार

वाराणसी। बेनीपुर नियाज़पुरा गाँव में शशिकांत गुप्ता के पॉवरलूम कारखाने में से लूम की खट-खट की अनवरत आवाज़ जब बीच में थोड़ी धीमी होती है तो अस्सी के दशक के फिल्मी गाने बजते हुए सुनाई पड़ते हैं। लगता है यहाँ रोजगार और समृद्धि के साथ-साथ जीवन में उल्लास भी है लेकिन जब उनसे बात हुई […]

वाराणसी। बेनीपुर नियाज़पुरा गाँव में शशिकांत गुप्ता के पॉवरलूम कारखाने में से लूम की खट-खट की अनवरत आवाज़ जब बीच में थोड़ी धीमी होती है तो अस्सी के दशक के फिल्मी गाने बजते हुए सुनाई पड़ते हैं। लगता है यहाँ रोजगार और समृद्धि के साथ-साथ जीवन में उल्लास भी है लेकिन जब उनसे बात हुई तब मानो उनका दुःख उभरकर सामने आ गया। इस गाँव के अमूमन बुनकरों के दुःख एक जैसे हैं। बिजली का बकाया, काम में मंदी और महंगाई के बीच बिजली विभाग का दबाव गोया कभी न खत्म होने वाली समस्या बन गया है। अधिकांश लोग इस बात से परेशान हैं कि उनके ऊपर बिजली का जो बिल बकाया है उसके कारण उनके कनेक्शन न कट जाएँ। कुछ लोग तो यह भी बताते हैं कि उनका कनेक्शन बिजली विभाग वालों ने काट भी दिया था और पैसा लेने के बाद ही फिर से जोड़ा।

उत्तर प्रदेश सरकार का बिजली विभाग बनारस के बुनकरों से महाजनी व्यवहार कर रहा है। लगता है भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस आप्त वाक्य ‘व्यापार मेरे खून में है’ को बिजली विभाग ने अपना बुनियादी उसूल बना लिया है। बुनकरों में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश है और आगामी 19 मार्च को वे एक महापंचायत का आयोजन कर रहे हैं।

लोगों से बातचीत करके ऐसा प्रतीत होता है कि बुनकरों और बिजली विभाग में अनवरत रस्साकशी चल रही हैं। इन दोनों के बीच सरकार है जिसकी ताकत का धौंस दिखाकर बिजली विभाग वाले वसूली करने की फिराक में हैं लेकिन बुनकरों के पास कोई मजबूत ताकत या नेतृत्व नहीं है और कन्फ़्यूजन का आलम यह है कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कैसे इस समस्या का स्थायी निदान होगा।

2006 में मुलायम सिंह यादव ने किसानों और बुनकरों को एक राहत देते हुए शासनादेश लागू करके एक कानून बनाया कि बुनकरों को फ्लैट रेट से बिजली का बिल देना पड़ेगा। उन्होंने शहर के लिए डेढ़ सौ रुपए और गांव के लिए प्रति पावरलूम 75 की दर से बिजली का बिल तय किया।

“मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में एक शासनादेश आया कि ग्रामीण क्षेत्र में एक लूम के लिए 75 रुपये तथा शहरी क्षेत्र में एक लूम के लिए 150 रुपए बिजली का फ्लैट रेट देना होगा। इस तरह दो किलोवाट पर चार लूम चलते हैं जिसके लिए पहले उनको 300 रुपए महीने देना पड़ता था, लेकिन योगी सरकार में नियम बदल दिया गया। अब बिजली बिल का भुगतान मीटर से करना है जिसके कारण चार मशीन चलाने के लिए मीटर की दर से 4000-5000 महीने तक का भुगतान करना होगा।”

एक बुनकर के लिए 2 किलोवाट तक की सीमा थी। इससे वह चार मशीन चला सकता था। इस प्रकार 300 रुपए में चार मशीनें चलती थीं। उस रेट पर ही लगातार चलता रहा। यह मामला अखिलेश सरकार तक चलता रहा, लेकिन इधर 2017 के बाद से चीजें जिस तरह से बदल रही है  उससे जहां जनता की स्थिति लगातार दयनीय होती गई, वहीं सरकार लगातार निरंकुश होती गई और उसने संवेदनहीन तरीके से फैसले लिए।  उन फैसलों का असर इन गरीब बुनकरों के ऊपर लगातार दिख रहा है। वे लगातार परेशान है।

जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और लोकचेतना समिति के कर्ताधर्ता नंदलाल मास्टर कहते हैं कि ‘मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में एक शासनादेश आया कि ग्रामीण क्षेत्र में एक लूम के लिए 75 रुपये तथा शहरी क्षेत्र में एक लूम के लिए 150 रुपए बिजली का फ्लैट रेट देना होगा। इस तरह दो किलोवाट पर चार लूम चलते हैं जिसके लिए पहले उनको 300 रुपए महीने देना पड़ता था, लेकिन योगी सरकार में नियम बदल दिया गया। अब बिजली बिल का भुगतान मीटर से करना है जिसके कारण चार मशीन चलाने के लिए मीटर की दर से 4000-5000 महीने तक का भुगतान करना होगा। यह सबसे बड़ी दिक्कत है। 2019 में  सारे बुनकरों ने मुर्रीबंदी की घोषणा की लेकिन उस वर्ष इलेक्शन था तो इस कारण से इस शासनादेश को स्थगित कर दिया गया और कहा गया कि यह लागू नहीं है। उनको डर था कि बनारस में बड़ी तादाद में बुनकर हैं और इससे वे हमारे खिलाफ हो जाएंगे। इस इस कारण से उन्होंने इसे स्थगित कर दिया। लेकिन अब वे इसे फिर वापस लाये हैं। और यह भी नहीं कहा कि जो पुराना पुराना रेट है, उस पर हम बिजली देंगे।’

पहचान पत्र जरूर बनवाया गया लेकिन इसका कोई मतलब नहीं रह गया

नंदलाल मास्टर का कहना है कि ‘सरकार ने बिजली बिल को चुनाव में मतदाताओं को लुभाने का एक औज़ार बना लिया। 2019 में लोकसभा चुनाव हुये और वे जीत गए। तब तक बुनकर भी शांत बैठे थे। बीच में कोविड-19 आया तो इस कारण से बुनकरों ने इस बात की कोई ज्यादा  परवाह नहीं की। लेकिन सरकार की तरफ से यह बात आई कि आप थोड़ा-थोड़ा बिल जमा कराते रहिए। अब सरकार बुनकरों को परेशान कर रही है। लेकिन सीधे-सीधे नहीं परेशान कर रही, बल्कि बिजली विभाग के जरिए से परेशान कर रही है। बिजली विभाग लगातार लोगों को नोटिस दे रहा है। लोगों को धमका रहा है। अगर आप बिजली का बिल जमा नहीं करेंगे तो हम बिजली काट देंगे। बुनकर यह कह रहे हैं कि आप बताइए हम क्या करें? हम किस रेट पर हमें हम बिजली का बिल जमा करें? लेकिन बिजली विभाग के लोग कह रहे हैं कि हमारे पास ऐसा कोई आदेश नहीं आया है।

बेनीपुर नियाज़पुरा के बुनकर विनोद कहते हैं कि ‘इस मामले में बहुत घालमेल है। बिजली विभाग वाले कहीं कह रहे हैं कि 1000 रुपए महीना के हिसाब से जमा कीजिए। जो आएगा उसको बाद में एडजस्ट कर लिया जाएगा। अगर फ्लैट रेट पर रहेगा तो पैसा जमा रहेगा। अगर यूनिट की दर से आएगा तो आपका जितना  बनेगा उतना देना होगा। कहीं-कहीं बिजली विभाग यह कह रहा है कि हम नहीं मानेंगे, हम पूरा पैसा लेंगे। आपके यहां जो मीटर लगा है हमको उसके हिसाब से पैसा लेना है। उस हिसाब से किसी-किसी बुनकर पर 60000 तो किसी पर 70000 और किसी पर डेढ़ लाख बकाया है और इस बकाए को वसूलने के लिए बिजली विभाग बार-बार उनको परेशान कर रहा है।’

नंदलाल मास्टर,सामाजिक कार्यकर्ता

नंदलाल मास्टर कहते हैं कि ‘कहीं-कहीं पर एसडीओ कह रहा है कि आप कुछ-कुछ जमा करते रहिए। बाद में जैसा होगा देखा जाएगा। उनके पास न तो ठोस आधार है न उनके पास कोई तरीका है। वे लगातार लोगों को खासतौर से बुनकरों को परेशान कर रहे हैं। बुनकर यह कह रहा है कि हमसे फ्लैट रेट पर लेते रहिए। उनकी दो मांगें हैं। सबको पता है कि 2 साल कोरोना के कारण लॉकडाउन चलता रहा। इस दौरान सारे कारखाने बंद थे तो उस समय का सारा बिल माफ किया जाना चाहिए।’

विनोद,रमेश पटेल और राजनाथ अपनी समस्या बताते हुए

बुनकर कहते हैं कि ‘सरकार ने सभी लोगों को कुछ न कुछ दिया।  किसी को राशन दिया किसी को कुछ दिया लेकिन बुनकरों को क्या दिया?  कुछ नहीं दिया। इसलिए कम से कम इतना हो कि आज की स्थिति में जो बिजली का बिल आया था, उसको यह सरकार माफ करें।’

यह कोई गलत बात नहीं है बल्कि यह एक जायज मांग है और इस जायज मांग के लिए वे आने वाले 19 मार्च को एक महापंचायत का आयोजन कर रहे हैं। जहां वे यह मांग रखेंगे। ऐसा नहीं है कि यह कुछ गांवों का मसला है बल्कि बनारस के शहरी और ग्रामीण इलाकों के सभी बुनकरों का यह मामला है। लोग जिस तरह की समस्याओं में जूझ रहे हैं, उसमें महंगाई ऐसी चीज है जिसका सामना उनको लगातार करना पड़ रहा है और सबके सामने बड़ा सवाल यह है कि घर का खर्चा कैसे चलाएंगे। कैसे बच्चे पढ़ेंगे। कैसे बीमारी का इलाज कराएंगे और उनका भविष्य क्या होगा।

नंदलाल मास्टर कहते हैं कि ‘ये तमाम सारे सवाल उनके सामने बहुत बड़ी विकराल रूप में है। मेरा यह मानना है कि बुनकरों की प्रति सरकार का जो संवेदनहीन रवैया है उसका फायदा उठाकर बिजली विभाग जिस तरीके से उन्हें प्रताड़ित कर रहा है वह बंद हो।’

वह स्वयं सवाल करते हैं ‘कोरोना के समय 2 साल तो कोई काम हुआ ही नहीं। सब कुछ पूरी तरह बंद था और जब सब कुछ बंद था तो खाने के  लाले थे। फिर कहां से कोई बिजली का बिल जमा करेगा?’

बेनीपुर नियाजपुरा निवासी दूधनाथ पटेल कहते हैं कि ‘आज तक हम लोग पुराने रेट पर बिल जमा करते आ रहे हैं, लेकिन बिजली विभाग वाले कह रहे हैं कि अब वह मीटर से बिजली का रेट लेंगे। ऐसे में तो हम काफी गच्चे में पड़ जाएंगे और अचानक हमारे ऊपर इतना वजन आ जाएगा जिसे उठाना बहुत मुश्किल होगा। इसके खिलाफ़ हम लोग 19 मार्च को एक मोर्चा निकाल रहे हैं।’

जटाशंकर गुप्ता

यह सोचने की जरूरत है कि पिछले 15 साल पहले 2006 में जब साड़ी का रेट अधिक था और मजदूरी भी पर्याप्त मिलती थी तो फ्लैट रेट हुआ करता था लेकिन अब 15 साल के बाद स्थितियाँ उल्टी हो गई हैं। साड़ी का रेट घट गया लेकिन इसलिए मजदूरी भी बहुत घट गई है तब यूनिट की दर से बिल जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। आज यह अनुपात निकालने की जरूरत है कि उस समय की तुलना में महंगाई घटी है या बढ़ी है? मजदूरी घटी है या बढ़ी है? लागत और मुनाफा बढ़ा है या घटा है? उसके बीच में क्या रेशियो रह गया है। इन तमाम सारी चीजों को  जानने की जरूरत है। अगर इसको जाने बगैर इनके ऊपर दबाव डाला जाएगा तो बुनकरों के सामने करो या मरो की स्थिति होगी। तब या तो वे लड़ने के लिए महापंचायत और दूसरी गतिविधियाँ करेंगे और किसान आंदोलन की तरह एक बड़ा आंदोलन खड़ा करेंगे या फिर वे छिटपुट और परेशान होकर बीमारी और आत्महत्या की तरफ अग्रसर होंगे क्योंकि लगातार का दबाव किसी भी मनुष्य को स्वस्थ जीवन के लायक नहीं छोड़ता है।

इस पहचान पत्र के आधार पर बुनकरों को किफायती दर पर धागा उपलब्ध होना था लेकिन एक बार भी इन्हें धागा नहीं मिला

लोगों की मांग है कि सरकार इसको संशोधित करें । पहले देहात के लिए 75 रुपए था तो अब 100 हो जाए, सवा सौ या दो डेढ़ सौ हो जाए, लेकिन यहाँ तो सीधे-सीधे 1000 या 2000 वसूलने कि तैयारी है। पहले जो साड़ियां हजार रुपए की थीं आज 600 की बिक रही हैं तो महंगाई की दर से इसका भी आकलन करना जरूरी है।

इस इलाके में बड़े किसान नहीं हैं। बहुत छोटी-छोटी जोतें हैं और उन जोतों के सहारे अपने को वे लगातार बचाए हुए हैं। वे लगातार अपनी-अपनी समस्याओं से लड़ रहे हैं। अपनी आजीविका को खींचतान कर चला रहे हैं।

इसी गाँव के एक अन्य बुनकर बताते हैं कि ‘पहले बिल का तो कोई सवाल ही नहीं था, फ्लैट रेट था। चुका देते थे। लेकिन जब हमने 2006 के बाद पावरलूम शुरू किया उसके बाद बिजली एक बड़ा सवाल बनकर सामने आया। हालांकि 2006 में मुलायम सिंह यादव ने नोटिफिकेशन जारी किया कि देहातों में प्रति लूम 75 और शहर में डेढ़ सौ रुपए बिजली का बिल रहेगा। यह अखिलेश यादव के समय तक चलता रहा लेकिन बाद में जैसे ही भाजपा सरकार आई, उसने हम लोगों को मीटर से भुगतान करने के लिए बाध्य कर दिया। यदि वे भुगतान नहीं करते हैं तो बिजली काटने की धमकी देते हैं और धमकी देते हैं कि आपको जेल की हवा खानी पड़ेगी। अब बताइए कि हम क्या करें?

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि हम कितना कमाएंगे कि बिजली का बिल मनमाना भरेंगे और परिवार भी चलाएंगे? लागत इतनी बढ़ी है कि उसका असर हमारी मजदूरी पर पड़ा है। मजदूरी कम हो गई है। ऐसे में बिजली की का बिल भी यदि हमारे ऊपर एक भार की तरह है तो हम अपने आपको कैसे संभाल पाएंगे।

सुनीता देवी, जो नरी भरने का काम करती हैं

विनोद कहते हैं कि ‘हम लोग इस बात को लेकर एक आंदोलन भी करने जा रहे हैं। यदि सरकार ने हमारी बात नहीं सुनी तो हम किसान आंदोलन की राह पर जाएंगे क्योंकि अब कहने-सुनने का बहुत मतलब नहीं रह गया है। जब तक कि हम सीधे-सीधे आंदोलन नहीं करेंगे तब तक कोई हल नहीं निकलनेवाला है। लोग तो यहां तक समझौता करने पर उतर आए हैं कि उनको केवल मजदूरी मिल जाए तो भी काम करते रहे। लेकिन क्या मजदूरी भी मिलना आसान रह गया है। विनोद बताते हैं कि ‘अभी हम लोगों ने छोटी-छोटी जगहों पर बुनकरों की सभाएं की है और उनको इस मसले पर एकमत किया है। सभी लोग चाहते हैं कि या तो इस समस्या का निदान हो या फिर हम लोग काम बदल दें। हालाँकि काम बदलना आसान नहीं है। ऐसी सूरते-हाल में आंदोलन की राह पर जाना हमारी मजबूरी है।’

जटाशंकर गुप्ता के पास सात पावरलूम है। वह कहते हैं कि ‘मेरे यहां साड़ी का काम पुश्तैनी होता था। मेरे पिता, उनके पिता और उनके पिता भी इस काम से जुड़े हुए थे। मैं भी आया। जब अटल जी प्रधानमंत्री बने उस समय हाथ के काम समाप्त हो गए और और फिर उसके बाद मैंने पावरलूम लगाया। लेकिन इस समय हालत यह है कि साड़ी पीछे 10 रुपया बहुत मुश्किल से बच पाता है।

घर के परिवार के लोग इसमें लगे रहते हैं। दिन भर काम करते हैं। बिजली का हम लोग जोड़ते ही नहीं हैं। बिजली का जोड़ दें तो घर से जाने लगे। हम लोग पुराने रेट पर ही अभी बिजली का बिल जमा कर रहे हैं। लेकिन अब बिजली विभाग वाले कह रहे हैं कि मीटर रीडिंग कराइए और उसके हिसाब से बिल जमा कीजिए।फ्लैट रेट पाँच सौ रुपए पड़ रहा है। अखिलेश के दौर में यह था। लेकिन कोरोना के बाद से सिस्टम बदल गया है।

साल भर से बिजली विभाग इस तरह से परेशान कर रहा है। कह रहा है कि बिजली का बिल मीटर के हिसाब से लीजिए। हम लोग जब बात करने गए तब उन्होंने कहा कि आप लोग फ्लैट रेट में 1000 जमा कराइए। अगर सरकार ने मान लिया कि इसी तरीके से जमा करना है तब आपका बकाया पैसा वापस कर दिया जाएगा और अगर सरकार ने कहा कि मीटर से लेना पड़ेगा तो जो बनेगा वह आपको देना पड़ेगा। जब मैंने एक्सईएन से बात की तब उन्होंने कहा कि ‘अरे सुनिए, आपके ऊपर तो 157000 रुपए बाकी है। अखिलेश सरकार के ही दौर से बीस-तीस हज़ार बढ़ रहा था। एक बार जब मेरे ऊपर 80-90 हजार रुपए का बकाया हो गया तब अखिलेश सरकार ने वह बिल माफ कर दिया। फिर 20000 बढ़ गया उसके बाद सरकारी चली गई। तब से छूट नहीं मिली। बिजली विभाग के लोग आते हैं लेकिन कनेक्शन नहीं काटते। वे कहते हैं कि बिजली का बिल जमा कीजिए। लेकिन हमको कनेक्शन काटने का अधिकार नहीं है। हमारी मांग है कि यदि मीटर रीडिंग के हिसाब से बिजली का बिल लेते हैं तो हमको सब्सिडी पर बिजली का बिल भेजें और पहले का बकाया जीरो बैलेंस करें।’

जटाशंकर के भतीजे शशिकांत गुप्ता कहते हैं की बिजली विभाग मीटर रीडिंग कराए और जितना छूट जरूरी है उतना हमको दे। अगर एक मशीन का 200 भी होगा तब भी हम लोग चलाने के लिए तैयार हैं, लेकिन इससे ज्यादा हमारे लिए संभव नहीं है। लोहता के लोग अभी 500 प्रति लूम जमा कर रहे हैं।’ किसी ने संशोधित करते हुए कहा कि मशीन पीछे 500 नहीं बल्कि 500 प्रति किलो वाट के हिसाब से। एक किलोवाट में दो पावरलूम चलता है।’

शशिकांत,जिनके आठ में से केवल दो पॉवरलूम ही काम कर रहे हैं और बाकी छ: बिजली के ज्यादा बिल के कारण बंद पड़े हैं

लोगों का कहना है कि बिजली विभाग वाले कुछ का कुछ बोल रहे हैं। अभी तक कोई शासनादेश आ नहीं रहा है। जटाशंकर के पास 7 मशीनें हैं। वह कहते हैं कि अभी हम लोग पहले के ही रेट पर जमा कर रहे हैं लेकिन एसडीओ पर किलोवाट 500 रुपए जमा करने की बात कर रहे हैं, जो कि हम लोग जमा नहीं कर रहे हैं। अभी जो हिसाब-किताब हम लोगों को बताया जा रहा है उसके हिसाब से बहुत ज्यादा बिल आ रहा है।

कुछ बुनकरों ने बताया कि नागेपुर में दो-तीन लोगों की बिजली का कट गई। लेकिन जटाशंकर बताते हैं कि एक शासनादेश आया है कि किसी भी बुनकर का कनेक्शन काटना नहीं है। तब से किसी का नहीं कट रहा है, बिजली विभाग अपने तरीके से चीजों को डील कर रहा है।

सारा मामला इतना जटिल हो गया है कि समझ में नहीं आ रहा है कि किस तरह से इनकी समस्याओं का हल होगा इसको लेकर एक तनाव चारों तरफ फैला हुआ है, वह बुनकरों को काफी परेशान कर रहा है। उनको यह लगता है कि हम लोगों को अगर बाद में बहुत ज्यादा बिजली का बिल थमा दिया गया तो हम क्या करेंगे? तब हमारे सामने काम बंद करने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहेगा और दूसरी चीज एक ही बात की आशंका में लंबे समय तक जीना काम पर प्रभाव डालता है। कहीं न कहीं हमको लगता है कि इतनी परेशानी से अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं, लेकिन यदि सरकार हमारी कोई सुनवाई नहीं कर रही है तो फिर हम कैसे जी सकते हैं?

बुनकरों का कहना है कि ‘हम लोग बाजार की मार झेल रहे हैं। पहले जो साड़ी 800 की जाती थी, अब वह 500 की जाती है। तो इस तरीके से देखिए तो दाम में कमी आई है लेकिन खर्च बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। ऐसे में अगर बिजली का बिल भी बढ़ जाएगा तो हम कहां से उसे वहन करेंगे क्योंकि बहुत सारे खर्चे तो हम पूरा ही नहीं कर पाते। उसमें कटौती करते रहते हैं। बिजली हमारे लिए जरूरी है। नहीं रहेगी तो हम काम ही नहीं कर पाएंगे। काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या?’

बिजली की दर बढ़ जाने पर दो लूम पर ही काम हो रहा है

चार-पाँच पावरलूम वाले कई बुनकरों ने बताया कि ‘पहले लोग कारीगर रखते थे लेकिन अब कारीगरों को हटा दिया और खुद ही चला रहे हैं। इससे खर्चा बचता है या कहिए कि वे अपने खर्च में कटौती कर लिए हैं, लेकिन इससे काम प्रभावित भी  बहुत हुआ है। लेकिन गिरस्ता लोगों ने मजदूरी कम कर दिया है। ऊपर से उन्होंने हर तरफ से कटौती शुरू की है। हम कितना भी अपने आप को बचाने की कोशिश करें, लेकिन हम उनकी तरह से मजबूत संगठन के रूप में नहीं हैं कि हम कटौती रुकवा सकें और अपना काम चला सकें। हमारे पास चार या पांच पावर लूम हैं। अगर हम उनको लगातार चलाए रखना चाहते हैं तो कम से कम हमको मजदूरों को पूरी मजदूरी देनी पड़ेगी। अगर नहीं देते हैं तो वह हमारे यहां काम नहीं करेगा। हमारे पास इतनी पूँजी नहीं है कि इसके मटेरियल और दूसरी लागत को हम होल्ड कर सकें। हमको इधर से लेना उधर देना ही होता है। बीच में हम हैं जो किसी तरीके से अपना जीवन को चला रहे हैं। पहले हम लोगों को गिरस्ता और गद्दीदार अपने यहां से माल देते थे। अगर उसकी मजदूरी तीन सौ रुपए मिलती थी तो हम डेढ़ सो रुपए कारीगर को देते थे और डेढ़ सो रुपए खुद रखते थे। लेकिन अभी स्थिति यह है कि कारीगर को देने की स्थिति नहीं है। इसलिए खुद काम करना पड़ रहा है।’

राजेंद्र प्रसाद गुप्ता

लेकिन हम साड़ी कम दाम पर बेचने के लिए अभिशप्त हैं क्योंकि अगर हम  नहीं देंगे तो कहाँ जाएंगे। हमारा काम फंस जाएगा। हमारी मजबूरी है कि दो-तीन दिन के बाद हमको साड़ी काटकर बेचना ही है। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो हमारा पावरलूम बंद हो जाएगा। इसलिए अनिवार्यतः हमको देना ही है क्योंकि जब माल आगे जाएगा तब आगे से पैसा आएगा। फिर हम लागत निकाल कर आगे यूज करेंगे और मजदूरों को पैसा देंगे और खुद अपने जीवन को चलाएंगे। हम लोग कैश पर बेचने के लिए कुछ कुछ कटौती भी कराते हैं। कुछ उधारी मिल जाती है लेकिन उस उधारी की वापसी बहुत महंगी है। इस तरीके से अगर देखा जाए तो हम बाजार, व्यवस्था और सत्ता तीनों ही के जरिए प्रताड़ित किए जा रहे हैं और हमारी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।’

“इस गांव के रघुराज पटेल बताते हैं कि बिजली की समस्या लगातार बढ़ी है और एसडीओ ऑफिस से लोग आते हैं। धमकी देते हैं और कई बार तार काट देते हैं। हालांकि इस बात का उनको अधिकार नहीं है, लेकिन फिर भी वे सरकारी आदमी हैं। उनके पास सरकार का बल है। लॉकडाउन के बाद से ही हम लोग बहुत सारी समस्याओं का सामना करना कर रहे हैं, लेकिन उसका कोई उपाय नहीं मिल रहा है। कोई निजात नहीं है।”

प्रधानमंत्री ने जिस गाँव को गोद लिया है वहाँ भी बुनकर बेहाल है

बेनीपुर से सटा हुआ नागेपुर गांव है। गाँव में घुसने पर डॉ अंबेडकर एक बड़ी मूर्ति दिखती है और यहाँ पानी की एक टंकी भी है जो आम गाँवों में नहीं मिलती, हालाँकि कुछ ग्रामीणों ने बताया कि यहाँ जो सार्वजनिक शौचालय बनवाया गया था उसकी छतरी उड़कर दूसरे गाँव में चली गई थी। यह प्रधानमंत्री का गोद लिया हुआ गांव है। हम जैसे ही रुके एक बूढ़ी महिला मिलीं। वे जानना चाहती थीं कि हम क्या जानने आए हैं। अपने बारे में उन्होंने बताया कि पेंशन नहीं मील रही है लेकिन राशन मील रहा है। हमने पूछा कि आप इतनी तंदुरुस्त हैं। आपको मुफ्त राशन की क्या जरूरत है? उन्होंने कहा कि जब सब लोग ले रहे हैं तो मैं क्यों न लूँ। फिर गोया रहस्योद्घाटन के लहजे में बोलीं- वोटवा तो हम मोदी को देंगे तो राशन काहे न लेंगे?

प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए नागेपुर गाँव के बुनकर अपनी परेशानी साझा करते हुए

नागेपुर गांव में लगभग 50 से ज्यादा बुनकर परिवार रहते हैं और सबकी समस्याएं लगभग एक जैसी ही हैं। सभी लोग काम में मंदी के शिकार हैं और किसी तरीके से परिवार चलाने की जुगत में लगे हैं। इस गांव के रघुराज पटेल बताते हैं कि बिजली की समस्या लगातार बढ़ी है और एसडीओ ऑफिस से लोग आते हैं। धमकी देते हैं और कई बार तार काट देते हैं। हालांकि इस बात का उनको अधिकार नहीं है, लेकिन फिर भी वे सरकारी आदमी हैं। उनके पास सरकार का बल है। लॉकडाउन के बाद से ही हम लोग बहुत सारी समस्याओं का सामना करना कर रहे हैं, लेकिन उसका कोई उपाय नहीं मिल रहा है। कोई निजात नहीं है। इतना जरूर है कि लॉकडाउन के समय और उसके पहले फिक्स रेट पर जो बिजली का बिल आता था, उसे हम लोग आसानी से जमा कर देते थे। लेकिन अब बहुत कठिन है। अगर हम उसको नहीं जमा करते हैं तो बिजली कटेगी और जमा करते हैं तो भूखों मरना पड़ेगा।

इसी गाँव के एक और बुनकर ही रामअवतार मौर्य कहते हैं कि ‘हम रोज डेढ़ सौ रुपए कमाते हैं। 50 रुपए बिजली के बिल के लिए चला जाता है और 100 में परिवार चलाते हैं। अब बताइए हम किस तरीके से जिएंगे?

वह कहते हैं कि यही सबसे बड़ी समस्या है जब हम इसके लिए ऑफिस में जाते हैं तो कहते हैं कि आप हजार रुपए जमा कराइए, बाद में एडजस्ट जाएगा। अब बताइए हम हजार रुपए भी कहां से करें क्योंकि हम 4000-5000 रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाते। उसमें 6 लोगों का पेट पालना है। कैसे पाल पाएंगे और कैसे जमा कराएंगे?’

नागेपुर के निवासी बाबूलाल पटेल कहते हैं कि ‘हम लोगों का काम टोटल बंद हो चुका है। किसी तरीके से रो-धोकर चलाते हैं तो वही 25-50 रुपए का काम हो पाता है। सरकार अगर हमारा बिजली का बिल माफ कर दे तो हम काम बेहतर तरीके से कर सकते हैं। बिजली का बिल पुराने फ्लैट रेट से आए तो हमको कोई दिक्कत नहीं है लेकिन जो बिजली का बिल हम लोग 200 भरते थे आज वह अट्ठारह सौ,  उन्नीस सौ, दो हज़ार तक आ रहा है। हम लोग कैसे दे पाएंगे? काम चल नहीं रही है। सरकार कोई मदद देती नहीं है। यहां तक कि परिवार चलाने के लिए मैं सट्टी में जाकर बोरा भी उठाता हूं। आखिर क्या करें? बच्चों को तो पालना ही है। सरकार हमारी समस्या को समझ ही नहीं रही है। बुनकर अपना संगठन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन अभी इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली है। अगर हमारी बात नहीं सुनी जाएगी तो वही किसान आंदोलन जैसा हाल होगा। हम लोग सड़क पर उतरेंगे।  हम लोग यह गरदान लिए हैं कि हम बिना आंदोलन किए अब नहीं मानेंगे।’

नागेपुर के विजय कुमार मौर्या ने बताया कि ‘धंधा बहुत मुश्किल से चल पा रहा है। कभी-कभी तो हम लोग समझ भी नहीं पाते कि क्या करें लेकिन फिर भी यही एक रास्ता है इसलिए हम इसको चला रहे हैं। काम इतना मंदा हो गया है कि खर्चा निकल ही नहीं पा रहा है। ऊपर से इधर बीच बिजली का बिल मनमाने तरीके से आ रहा है। अब उसका एक दबाव है कि अगर नहीं जमा करेंगे तो बिजली कट जाएगी। बिजली कटने पर हम कैसे काम कर पाएंगे। कई बार तो बिजली काट दी गई और पैसा लेकर जोड़ा गया, लेकिन बार-बार ऐसा होगा तो बहुत मुश्किल होगी।’

खाली कार्ड जहाँ कम दर से उपलब्ध धागे की एंट्री की जानी थी ,लेकिन एक भी एंट्री नहीं हुई क्योंकि कभी कम दर पर धागा ही नहीं मिला

ये लोग कह रहे हैं कि बुनकरों के लिए कोई सरकारी सहूलियत नहीं बनी हुई है। हमको एक ऐसी पासबुक दिखाई गई जिसमें इंट्री सामग्री के आधार पर की जाती जाती है, लेकिन मजे की बात यह है कि एक बार भी उस पर कोई ऐसी इंट्री नहीं हुई कि सामान दिया गया है। इस तरह से हाथी के दांत की तरह यह पासबुक उनके घर में रखा हुआ है। यही हाल स्वास्थ्य बीमा और आयुष्मान कार्ड का है। इस गांव के अनेक लोगों का अनुभव है कि स्वास्थ्य बीमा और आयुष्मान कार्ड सिर्फ कुछ अस्पतालों के ही काम आता है। अस्पताल उसमें से मनमाना पैसा लेते हैं। छोटा-मोटा कोई रोग हो तो भी उसको बड़ा बनाकर वह लंबा चौड़ा बिल बनाते हैं और हम उस पर उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। कुछ लोगों ने अपने कार्ड दिखाएं और उन्होंने यह बताया कि इस कार्ड का अभी तक कोई उपयोग नहीं हुआ है। इस तरीके से हम देखते हैं कि बनारस के आसपास के इलाकों में रहने वाले ग्रामीण बुनकरों की समस्याओं का कोई अंत नहीं है। वे लगातार अपना काम कर रहे हैं। इसलिए कि बिना काम किए उनका गुजारा नहीं है। लेकिन अब वे अपने भविष्य को लेकर चौकन्ने हो गए हैं और इसका एक ही रास्ता दिखाई पड़ता है कि वे संगठित होकर अपनी मांगों को उठाएं। जहां तक लग रहा है कि आगामी 19 मार्च को इस बात की एक परीक्षा होगी कि बुनकर अपनी बात मनवा पाते हैं या सरकार की निरंकुशता को झेलने को अभिशप्त रहते हैं।

गाँव के लोग
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