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मैंगलोर पुलिस को डॉ. नरेंद्र नायक की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए

पिछले सप्ताह जैसे ही कर्नाटक में विधानसभा चुनावों की घोषणा की गई थी, मैंगलोर में पुलिस प्रशासन ने प्रख्यात तर्कवादी और फेडरेशन ऑफ इंडियन रेशनलिस्ट एसोसिएशन (FIRA) के अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र नायक को 2016 से प्रदान की गई सुरक्षा को तुरंत वापस ले लिया। डॉ. नायक न केवल सक्रिय रूप से पूरे देश में तर्कवाद […]

पिछले सप्ताह जैसे ही कर्नाटक में विधानसभा चुनावों की घोषणा की गई थी, मैंगलोर में पुलिस प्रशासन ने प्रख्यात तर्कवादी और फेडरेशन ऑफ इंडियन रेशनलिस्ट एसोसिएशन (FIRA) के अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र नायक को 2016 से प्रदान की गई सुरक्षा को तुरंत वापस ले लिया। डॉ. नायक न केवल सक्रिय रूप से पूरे देश में तर्कवाद को बढ़ावा दे रहे हैं अपितु वैज्ञानिक सोच को भी बढ़ा रहे हैं। वह पिछले पांच दशकों से उपभोक्ता आंदोलन से भी जुड़े हुए हैं। नरेंद्र दाभोलकर, गौरी लंकेश, गोविंद पानसरे और डॉ. कलबुर्गी जैसे कई अन्य तर्कवादियों की तरह लगातार खतरे में रहने वाले डॉ. नायक हमारे देश के तर्क और वैज्ञानिक सोच के लिए अत्यंत आवश्यक हैं और इसलिए मैंगलोर पुलिस द्वारा उनके सुरक्षा हटाने के फैसले से सही दिशा में सोचने वाले सभी लोगों को गहरा झटका लगा है।

यदि हमारी स्मृतियाँ धूमिल नहीं हुई हैं तो हम समझ सकते हैं कि मानवतावादी-तर्कवादी विचार ही घृणा और अंधविश्वास के लिए कैसे ‘खतरा’ बन गए। वे सभी नफरतवादियों के निशाने पर आ गए जिन्होंने महसूस किया कि तर्क और समन्वयवादी का अधिकांश काम हिंदुत्व के खिलाफ है जबकि तथ्य यह था कि वे सभी तर्क और तर्कसंगतता के प्रति समर्पित थे इसलिए अंधविश्वास, जातिवाद और छुआछूत के विरुद्ध अपनी आवाज भी उठा रहे थे और तर्क व प्रयोग के दम पर इन सभी ‘चमत्कारों’ का भंडाफोड़ भी कर रहे थे। पहले डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे में हत्या कि गई थी जो अंधविश्वास के खिलाफ काम कर रहे थे और महाराष्ट्र में अंधविश्वास विरोधी कानून चाहते थे।कतार में अगला व्यक्ति कॉमरेड गोविंद पानसरे था, जिसकी 20 फरवरी, 2015 को हत्या कर दी गई थी। एमएम कलबुर्गी की हत्या 30 अगस्त, 2015 को धारवाड़ (कर्नाटक) में की गई थी। गौरी लंकेश की हत्या बेंगलुरु में 5 सितंबर, 2017 को कर दी गई। इन सभी की जांच शायद ही कभी दिन के उजाले में देखी गई हो। हां, हमें पता चलेगा कि किसी दिन इन सभी के हत्यारे भी किसी ‘सबूत’ के अभाव में रिहा हो जाते हैं। चूंकि कर्नाटक दक्षिण की प्रयोगशाला है, हमने उसी समूह द्वारा जाने-माने कन्नड़ लेखक केएस भगवान को धमकी देते देखा। डॉ. नरेंद्र नायक का कहना है कि वह नफरत और डराने-धमकाने का शिकार रहे हैं और इसीलिए उन्हें 2016 से पुलिस सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है। उनका कहना है, ‘जून, 2016 से मुझे पुलिस ने जो गनमैन मुहैया कराया था, उसे आज से हटा दिया गया है। मैंने कभी भी इस सुरक्षा की मांग नहीं की थी, लेकिन कहा जाता है कि यह सुरक्षा हम प्रमुख बुद्धिजीवियों की जान को खतरा होने के कारण दी गई थी। नरेंद्र दाबोलकर की 2013 में हत्या कर दी गई और उसके बाद पानसरे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई। लगभग एक महीने पहले मेरे पास मैंगलोर पुलिस के डीसीपी का एक पत्र आया था कि अब से मुझे प्रदान की गई सुरक्षा के लिए भुगतान करना होगा। जबकि मैंने इसके लिए नहीं कहा था और जैसा कि उस पत्र में उल्लेख किया गया है। मैं अपनी सुरक्षा के लिए भुगतान करने के लिए एक धनी व्यक्ति नहीं हूं। मैंने संबंधित व्यक्ति से मिलने के बाद सभी तथ्यों को बताते हुए इसका लिखित जवाब दिया था।

[bs-quote quote=”मुझे एक तर्कवादी और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को मानव और लोकतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखने के लिए किए गए मेरे काम के विरुद्ध कई चरमपंथी तत्व हैं। अभी आरटीआई कार्यकर्ता विनायक बलिगा का मुकदमा चल रहा है और गवाहों ने अदालत में शिकायत की है कि उन्हें धमकी दी जा रही है। यह वह मामला है, जिसमें मैंने उचित जांच कराने और वास्तविक दोषियों पर मुकदमा चलाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।.” style=”style-2″ align=”center” color=”#1e73be” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

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मार्च के पहले सप्ताह में उन्हें डीसीपी मैंगलोर अंशु कुमार का एक पत्र मिला जिसमें उन्होंने इसकी जानकारी दी और बताया कि यदि सुरक्षा चाहिए तो उन्हें इसके लिए अग्रिम भुगतान करना पड़ेगा। ऐसा लगता है कि पुलिस प्रशासन चाहता है कि वह उसकी सुरक्षा के लिए भुगतान करे जो उनके लिए मुश्किल है। एक व्यक्ति जो पेंशनभोगी है। वह ऐसी स्थिति में नहीं है कि अपनी सुरक्षा के लिए कोई भुगतान कर सके। उन्हें ये भी नहीं सूचित किया गया है कि खतरे की आशंका कमजोर हुई है या नहीं या मौजूद नहीं है। वैसे भी उन्हें इस लक्ष्य के प्रति आश्वस्त करना प्रशासन का कर्त्तव्य है। सुरक्षा के लिए अग्रिम भुगतान की मांग करना केवल यह साबित करता है कि उन पर खतरा कम नहीं हुआ है लेकिन प्रशासन उन्हें सुरक्षा प्रदान करने हेतु भुगतान करने के लिए कह रहा है।

सच तो यह है कि डॉ. नरेंद्र नायक पर खतरा केवल उनके काम यानी अंधविश्वास और तर्कवाद के खिलाफ होना नहीं है। बल्कि आरटीआई कार्यकर्ता विनायक बालिगा की हत्या के मामले के पीछे की ताकतों को उजागर करने में डॉ. नरेंद्र की सक्रिय भागीदारी होना भी एक कारण है। वे कहते हैं- मुझे एक तर्कवादी और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को मानव और लोकतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखने के लिए किए गए मेरे काम के विरुद्ध कई चरमपंथी तत्व हैं। अभी आरटीआई कार्यकर्ता विनायक बलिगा का मुकदमा चल रहा है और गवाहों ने अदालत में शिकायत की है कि उन्हें धमकी दी जा रही है। यह वह मामला है, जिसमें मैंने उचित जांच कराने और वास्तविक दोषियों पर मुकदमा चलाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इसके पीछे जो लोग हैं वे राजनीतिक रूप से बहुत शक्तिशाली हैं और कथित तौर पर गवाहों को धमका रहे हैं।

अपराधी को बेनकाब करने में डॉक्टर नायक ने अहम भूमिका निभाई। मार्च 2016 में विनायक बालिगा की हत्या कर दी गई थी। जून 2016 में मुकदमा शुरू होने के बाद, नायक कहते हैं, ‘मुझे मैंगलोर के पुलिस आयुक्त श्रीचंद्रशेखर ने बुलाया और उन्होंने मुझे सूचित किया कि मुझे पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाएगी। मैंने कारण पूछा और उन्होंने कुछ खास नहीं बताया। हालांकि, मामलों की स्थिति और पंसारे व कलबुर्गी की हत्या को ध्यान में रखते हुए मैंने वही स्वीकार किया। विनायक बालिगा मामले के खुलासे में मेरी संलिप्तता के कारण, मुझे काशी मठ के भक्तों से भी धमकी भरे संदेश मिले हैं, जिनमें से एक ने मुझे खत्म करने की धमकी दी है। उरवा पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी लेकिन बाद में इसे किशोर न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया क्योंकि इसका पहला भाग अभियुक्त के व्यस्क होने से कुछ दिन पहले बनाया गया था। बाद में मार्च, 2017 में जब मैं सुबह-सुबह स्विमिंग पूल जा रहा था तो मेरी जान लेने की कोशिश की गई और मैं भाग निकला क्योंकि मैं तेज था और रुका नहीं। उसके बाद दो बंदूकधारियों के साथ सुरक्षा को बढ़ाकर 24 घंटे कर दिया गया और तब से यह जारी है। फिर से, एसआईटी द्वारा गौरी लंकेश हत्याकांड की जांच के दौरान, समाचार पत्रों ने एक लेख छापा कि कैसे प्रत्येक को खत्म करने के कार्य को करने वास्ते सौंपे गए व्यक्ति के साथ चार नामों वाली एक चिट का पता चला। मेरा नाम उन चारों में से एक था और जिसने गौरी को गोली मारी थी, उसे ही मेरी जिंदगी खत्म करने का जिम्मा सौंपा गया था।’

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अंशु कुमार को लिखे अपने पत्र में इन सभी बातों का उल्लेख किया है, जिन्होंने उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए भुगतान करने के लिए कहा था। वह अपनी सुरक्षा के लिए कोई भुगतान करने की स्थिति में नहीं है लेकिन तथ्य यह है कि उन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है जैसा कि पुलिस द्वारा प्रदान किया गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस मुद्दे को देखने और मैंगलोर पुलिस से स्पष्टीकरण मांगने की आवश्यकता है।

यह बेहद दुखद है कि खतरे की आशंका को जानने के बावजूद उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए भुगतान करने या वापस लेने के लिए कहा जा रहा है। डॉ. नायक किसी भी समाज के लिए एक संपत्ति हैं जो मानववाद में विश्वास करते हैं और वैज्ञानिक सोच पर आधारित हैं। वह लाखों लोगों के जीवन को खतरे में डालने वाले मिथकों और अतार्किक प्रथाओं को उजागर करने के लिए लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम, व्याख्यान, कार्यशालाएं, सेमिनार आयोजित करते रहे हैं। हमने देखा है कि कैसे लोग गांवों में उनके चमत्कार का भंडाफोड़ कार्यक्रमों को देखना पसंद करते हैं।

मुक्त विचारक, मानवतावादी और तर्कवादी समाज के लिए खतरा नहीं हैं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और सभ्य व्यवहार को जीवंतता प्रदान करते हैं। वे किसी भी चर्चा में तर्कसंगतता लाते हैं और वे केवल धर्मविरोधी नहीं हैं जैसा कि पेश किया जा रहा है। अधिकांश मानववादियों ने हमेशा धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव और अस्पृश्यता के खिलाफ बात की है। आज की दुनिया में जब धर्म का इस्तेमाल लोगों को दंडित करने और बहुसंख्यक भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण बनाने के लिए किया जा रहा है, तो यह मानवतावाद और तर्कसंगतता ही है जो दुनिया को बचाएगी।

हमें उम्मीद है कि मैंगलोर पुलिस के साथ-साथ कर्नाटक सरकार डॉ. नरेंद्र नायक को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करेगी ताकि वे बिना किसी डर के घूम सकें और वही कर सकें जो वह वर्षों से करते आ रहे हैं। अगर पुलिस को लगता है कि खतरे की आशंका समाप्त हो गई है तो उसे समझाना चाहिए और डॉ. नायक को कुछ भी होने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए लेकिन प्रशासन उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए भुगतान करने के लिए नहीं कह सकता है और न ही उन्हें ऐसा करना चाहिए। उम्मीद है कि सद्बुद्धि आएगी और प्रशासन अपने फैसले की समीक्षा करेगा और उसे पहले दी गई सुरक्षा वापस प्रदान करेगा।

vidhya vhushan

विद्या भूषण रावत जाने-माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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