ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में हरिशंकर परसाई और शंकर शैलेंद्र की जन्मशती पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि, परसाई एक ऐसी शख्शियत थे जिन्होंने शब्दों से क्रांति की आग जलाई थी। उनके हर शब्द में व्यंग्य है। ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र की ताली’ हो या ‘भोलाराम का जीव’ के संवाद उनके व्यंग्य इतने मारक हैं कि वे समाज के हर तबके को विचार करने के लिए मजबूर करते हैं। उन्होंने कहा था कि घोड़े से जाते हुए हरिजन को उतार कर पीटना अश्वमेध यज्ञ है और हरिजन की बस्ती को जला देना राजसूय यज्ञ है। परसाई ने कभी भी मुँह देखी बड़ाई नहीं की, उन्हें जो दिखा उस पर उन्होंने बेबाक कलम चलाई। गीतकार शैलेन्द्र को याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार नामवर जी ने शैलेन्द्र के विषय में कहा था कि वे रैदास की परंपरा के कवि हैं।
मुख्य अतिथि शंकर प्रलामी ने इस अवसर पर कहा कि भले ही मैं स्नातकोत्तर की डिग्री नहीं ले सका लेकिन मेरी पुस्तक पर एम०फिल और पीएचडी हुई है, और मैं इतने से ही संतुष्ट हूँ। इस अवसर पर उन्होंने कई संस्मरण सुनाए और कहा कि आज सभी पत्रकार चैनलों से निकाल दिए गए हैं सिर्फ तथाकथित पत्रकार ही चैनलों पर काम कर रहे हैं। परसाई न होते तो व्यंग्य को साहित्य में यह मान्यता न मिलती। जैसे रिपोर्ताज को रेणु ने मान्यता दिलाई वैसे ही परसाई ने व्यंग्य को साहित्यिक समाज में स्थान दिलाया। परसाई और शरद जोशी ने गद्य को पढ़कर सुनाने की कला से दुनिया को रूबरू कराया। जब हॉल में दोनों व्यंग्य का पाठ करते थे तो हॉल में सन्नाटा हो जाता था। साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ वे हमेशा सक्रिय रहे। उन्होंने कहा कि, विलक्षण व्यक्तियों की उम्र प्रायः कम ही होती है। शंकर शैलेन्द्र बिहार के निवासी थे, यह बात दीगर है कि वे बिहार में रहे नहीं। महत्त्वपूर्ण यह है कि वे बिकाऊ नहीं थे और उन्होंने कभी बिकने के लिए कोई गीत नहीं लिखा। उनके 400 गीत तो लगभग ऐसे हैं जो हिंदी की श्रेष्ठतम कविताओं के साथ रखे जा सकते हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि चाहे आंदोलन कोई भी चला करता हो उनके नारों के केंद्र में ‘हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है’ निश्चित रूप से रहता है।
मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो.ए.के.बच्चन ने इस अवसर पर कहा कि हिंदी विभाग हमेशा ही गतिशील रहता है। उन्होंने कहा कि परसाई की रचनाओं में समाज-सुधार मुख्य लक्ष्य है। परसाई की रचनाएं हमें सोचने को मजबूर करती हैं। वसुधा नामक पत्रिका का उन्होंने सफल सम्पादन किया। व्यंग्य ने उन्हें कुछ इस कदर पकड़ा कि उन्होंने अध्यापन कार्य छोड़ कर व्यंग्य को ही पूरा समय दिया। शैलेन्द्र को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के दौर से ही उनके गीत प्रसिद्ध रहे हैं।
एक अभिनेता और एक कवि जो गहरे दोस्त भी थे और जन मन के चितेरे भी
डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने इस अवसर पर कहा कि गीतों के जादूगर शंकर शैलेन्द्र ने करीब 800 गीतों की रचना की। वे दलित वर्ग से ताल्लुक रखते थे और दलित होने का दंश उन्होंने झेला था। हॉकी खेलते हुए उन्होंने जातिसूचक गाली सुनी थी और तभी उनके मन ने विद्रोह कर के उन्हें मुम्बई जाने को प्रेरित किया। उनके गीतों के बोल भी इतने क्रांतिकारी हुआ करते थे कि उनके गीतों को सुन कर कोई भी स्वाभाविक रूप से आज भी आंदोलित हो जाता है। व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई को उन्होंने आधुनिक कबीर की संज्ञा से नवाजा और कहा कि प्राचीन काल में कबीर के व्यंग्य और आधुनिक काल में परसाई जी की रचनाएं सीधे चोट करती हैं। व्यंग्य की पैनी धार जो परसाई जी की रचनाओं में मिलती है वह अन्यत्र दुर्लभ है। आजादी के बाद देश की स्थिति से क्षुब्ध परसाई जी का पूरा रचना संसार देश की स्थिति पर ही केंद्रित रहा। अपना प्रतिरोध जताने के लिए उन्होंने व्यंग्य का सहारा लिया।
हिंदी विभाग, एलकेवीडी कॉलेज, ताजपुर की विभागाध्यक्ष डॉ.विनीता कुमारी ने कहा कि हिंदी साहित्य में व्यंग्य को स्थापित करने का श्रेय हरिशंकर परसाई को जाता है।
इस अवसर पर कृष्णा अनुराग और दर्शन सुधाकर ने भी अपने विचार रखे। राजनीति विज्ञान की छात्रा अंजू ने शैलेन्द्र के गीतों का गायन कर संगोष्ठी को ऊंचाई बख्शी।