मौर्यकालीन सभागार के अवशेष पटना के कुम्हरार क्षेत्र में स्थित हैं और इसकी पहली बार जानकारी 1912-13 की खुदाई में मिली। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकारियों ने 2004 में कथित तौर पर बार-बार जल जमाव और पानी के रिसाव के चलते इस स्थल को मिट्टी से भर दिया था।
पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों द्वारा मौर्यकालीन सभागार का पुनरुद्धार करने की मांग ऐसे समय आई है जब इस स्थल के संरक्षण और उसके आसपास के इलाकों के विकास के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) ने विरासत उपनियमों का मसौदा जारी किया है।
बिहार हेरिटेज डेवलपमेंट सोसाइटी (बीएचडीएस) के कार्यकारी निदेशक बिजॉय कुमार चौधरी ने कहा, ‘एएसआई कुम्हरार स्थित 80 स्तंभों वाले सभागार सहित अशोक/मौर्यकालीन महल के सरंक्षण के लिए जिम्मेदार है। उस इस प्राचीन स्थल की फिर से खुदाई करनी चाहिए और इसे सतह पर वापस लाना चाहिए।’
उन्होंने ‘भाषा’ से कहा, ‘यह सभागार पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में मौर्य सम्राटों की स्थापत्य गतिविधियों का एकमात्र साक्ष्य माना जाता है। संबंधित प्राधिकरण ने सालभर जलभराव का हवाला देते हुए 2004 में 80 स्तंभों वाली इस संरचना को रेत और मिट्टी से भर दिया था। तब से, यह पूरी तरह से जमीन के अंदर दबा हुआ है और इसे सतह पर वापस लाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए।’
एएसआई (पटना परिक्षेत्र) के अधिकारियों से मामले पर प्रतिक्रिया के लिए संपर्क नहीं किया जा सका।
पटना विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग के पूर्व प्रोफेसर ओ.पी. जायसवाल ने कहा, ‘पटना का कुम्हरार क्षेत्र में प्रचीन पाटलिपुत्र के अवशेषों का उत्खनन किया गया था।’ उन्होंने बताया कि 322 से 185 ईसा पूर्व के मौर्यकालीन अवशेष कुम्हरार से मिले हैं, जिनमें 80 खंभों वाले सभागार के अवशेष भी शामिल हैं। हम जारी किए गए उपनियमों के मसौदे के बारे में चिंतित नहीं हैं… हम बस एएसआई द्वारा सभागार का पुनरुद्धार चाहते हैं। 2004 में मिट्टी में दबाने से पहले मैंने व्यक्तिगत रूप से इस संरचना को देखा था। उसी सभागार में सम्राट अशोक दरबार लगाते थे।’
पटना(भाषा)। पुरातत्ववेत्ताओं ने पटना स्थित 80 खंभों पर बने प्राचीन सभागार के अवशेषों की स्थिति को लेकर गहरी चिंता जताई है। माना जाता है कि करीब दो हजार साल पहले सम्राट अशोक उसमें अपना दरबार लगाते थे। उन्होंने पुरातत्वस्थल की जमीन की 20 फुट की गहराई से नीचे तत्काल दोबारा खुदाई की मांग की। जो जगह पिछले दो दशक से मिट्टी में दबी है।