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स्मृति दिवस पर याद किए गए जनकवि बाबा नागार्जुन

दरभंगा। ‘नागार्जुन को याद करने का मतलब है भारतीय क्रांति का जो साहित्यिक–सांस्कृतिक अक्स है, उसको याद करना। नागार्जुन सर्वहारा वर्ग की मुक्ति के अंतरराष्ट्रीय कवि हैं। उन्होंने केवल साहित्यकार कहलाने के लिए साहित्य नहीं लिखा, बल्कि भारतीय क्रांति का मार्ग प्रशस्त करना ही हमेशा उनका लेखकीय उद्देश्य रहा। मातृशोक ने उनको स्त्री मुक्ति के […]

दरभंगा।नागार्जुन को याद करने का मतलब है भारतीय क्रांति का जो साहित्यिक–सांस्कृतिक अक्स है, उसको याद करना। नागार्जुन सर्वहारा वर्ग की मुक्ति के अंतरराष्ट्रीय कवि हैं। उन्होंने केवल साहित्यकार कहलाने के लिए साहित्य नहीं लिखा, बल्कि भारतीय क्रांति का मार्ग प्रशस्त करना ही हमेशा उनका लेखकीय उद्देश्य रहा। मातृशोक ने उनको स्त्री मुक्ति के वृहत्तर सवालों से जोड़ा। मिथिलांचल में जमीनदारी व्यवस्था के कारण गरीब, दलित–वंचित जनता का जो शोषण–दमन हो रहा था, उसके विरुद्ध बाबा नागार्जुन में गहरा विक्षोभ था। इसलिए नागार्जुन मुक्ति के आंदोलन को ढूंढते रहते थे। जहां–जहां आंदोलन था, वहां–वहां उनकी दमदार उपस्थिति रहती थी। वास्तव में नागार्जुन अगर कहीं मिलेंगे तो भारत के मजदूर–किसान आन्दोलन में मिलेंगे।
 भारत का सर्वहारा कौन है जिसके नेतृत्व में क्रांति सफल होगी? नागार्जुन उसे भलीभांति जानते और पहचानते थे। ‘हरिजन गाथा’ का ‘कलुआ’ उनका सर्वहारा नायक है, जिसकी तदबीरों से शोषण की बुनियाद हिलेगी। उनकी आंखों में क्या नहीं है? तमाम दमित अस्मिताएं, उनकी मुक्ति का स्वप्न उनकी आंखों में है। बेशक नागार्जुन सम्पूर्ण मनुष्यता के कवि हैं।’
उक्त बातें जन संस्कृति मंच के तत्वावधान में आयोजित विचार गोष्ठी में जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. सुरेंद्र सुमन ने कहीं।
वहीं, शिक्षाविद डॉ. संजय कुमार ने कहा ‘बाबा भारतीय समाज के प्रत्येक संघर्ष में क्रांतिकारिता देख रहे थे। उनकी रचनाएं सीधे–सीधे समाज को संबोधित हैं। स्मरण रहे कि ‘पारो’ उपन्यास के प्रकाशन के बाद मिथिला का समाज उनके खिलाफ उतर आया था। क्योंकि उन्होंने इस कृति में समाज की ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक पाश्विकता को समाने लाया था। आज राजनीति और कॉरपोरेट का जो भयानक गठजोड़ हम देख रहे हैं बाबा ने उसकी आशंका दशकों पहले प्रकट की थी। नागार्जुन का साहित्य रक्तपायी वर्ग के दुष्चक्रों को डीकोड और डीफिट करता है।’
गोष्ठी को संबोधित करते हुए जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने कहा ‘महान विचारक ग्राम्सी के अनुसार अगर बराबरी का समाज बनाना है तो आपको ऑर्गेनिक बुद्धिजीवी चाहिए। जो आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर सके। आंदोलन को वैचारिकी और दर्शन दे सके और खुद आंदोलन में भी उतर सके। वास्तव में कबीर, नागार्जुन, रेणु भारत के जनबुद्धिजीवी रहे। जिन्होंने समाज को दिशा भी दिखाई और उसके आंदोलन में सड़क पर भी उतरे।बाबा नागार्जुन की रचनाएं सामाजिक–आर्थिक परिवर्तन की लड़ाई का जीवंत दस्तावेज है। समाज के सारे परिवर्तन उनके साहित्य में दृष्टिगोचर होते हैं।उनको ठीक ही मानव मुक्ति का उदगाता कवि माना जाता है।’
युवा  चिंतक विनय शंकर ने नागार्जुन को ‘समाज में विद्यमान  उपयोगितावादी प्रवृत्तियों का एंटी थीसिस’ कहा। उन्होंने आगे कहा कि ‘कविता में यह शक्ति है कि समाज के दीर्घकालीन बदलावों को प्रभावित कर सके। नागार्जुन की कविताएं जनमुक्ति की दीर्घकालीन लड़ाई को धार देती रहेगी।’प्रो. अभिमन्यु बलराज ने कहा  ‘नागार्जुन को आचरण में उतारने की जरूरत है।’ मौके पर डॉ. सूरज, पवन कुमार शर्मा,  डॉ. दुर्गानंद यादव, जितेंद्रनाथ ललन, बबीता कुमारी आदि ने भी अपनी बातें रखीं। वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी कॉ. भोला जी ने इस अवसर पर जनवादी गीतों की प्रस्तुति की । कार्यक्रम का संचालन जिला सचिव समीर ने किया।
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