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लक्ष्मीजी वर दो, बेघर पीएम को घर दो!

लक्ष्मीजी बेचैन थीं। साल का अकेला दिन था ऑफीशियली पूजे जाने का। वैसे दूसरे देवी-देवता तो जब देखो, तब इसके ताने मारते थे कि अब तो साल के सारे दिन उन्हीं की पूजा के हैं। पर ऑफीशियली तो एक ही दिन था उनके पुजने-पुजाने का। उस इकलौते दिन भी सुबह से दांयी आंख फडक़ रही […]

लक्ष्मीजी बेचैन थीं। साल का अकेला दिन था ऑफीशियली पूजे जाने का। वैसे दूसरे देवी-देवता तो जब देखो, तब इसके ताने मारते थे कि अब तो साल के सारे दिन उन्हीं की पूजा के हैं। पर ऑफीशियली तो एक ही दिन था उनके पुजने-पुजाने का। उस इकलौते दिन भी सुबह से दांयी आंख फडक़ रही थी और मन को आशंकाओं से भर रही थी। दोपहर तक जब महाशय उलूक के भी दर्शन नहीं हुए, तो देवी को सचमुच चिंता होने लगी। साल का इकलौता दिन तो उनका ही नहीं, उलूक का भी था। उनकी पूजा में उलूक का भी तो हिस्सा था। तब भी जनाब सुबह से गायब हैं। साल का अकेला दिन भी कोई भूल सकता है क्या? पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ। दोपहर जब निकल चली, तो लक्ष्मी का पारा चढ़ने लगा। ये उलूकवा क्या इस बार दीवाली खोटी ही कराएगा; भुनभुनाते हुए लक्ष्मी जी ने अपने दुमहले की ड्योढ़ी पार की और सर्वेंट्स क्वार्टर की ओर बढ़ चलीं उलूकवा की खोज-खबर लेने।

उलूक महाशय के दरवाजे चढ़ते-चढ़ते लक्ष्मी जी ने हांक लगायी- तबीयत तो ठीक है? अपना तो साल में एक ही दिन है, इसमें गड़बड़ मत होने देना। और हां, जल्दी से तैयार होकर आओ और तैयार होने में मेरा कुछ हाथ बंटाओ। आज देर नहीं होनी चाहिए। झुटपुटा होते-होते निकल पड़ेेंगे, तभी तो आधी रात तक पिछली बार से कुछ फालतू दूरी तय कर पाएंगे और ज्यादा घरों पर धनवर्षा कर पाएंगे। उलूक ने देवी के बैठने के लिए आसन बढ़ाते हुए कहा, देवी नाराज न हों तो कुछ पूछूं? फिर देवी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना कहने लगा। हर साल ही हम यही करते हैं। पर क्या हमने यह जानने की भी कभी कोशिश की है कि हम दीवाली को जो धनवर्षा का टोटका करते हैं, उससे किसी का कुछ भला हो भी रहा है या नहीं?

लक्ष्मीजी को टोटका शब्द बिल्कुल पसंद नहीं आया। और कोई दिन होता, तो वह उलूक की इस उद्दंडता के लिए अच्छी खबर लेतीं। पर आज के दिन पर नहीं। समझाने की मुद्रा में बोलीं – हम जो करते हैं, धन वर्षा का टोटका है या वाकई लोगों का कल्याण हो रहा है, इसमें हमें जाने की जरूरत ही क्या है? हम अपना काम कर रहे हैं। हमें अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए। काम का क्या फल होता है, उसकी चिंता करना हमारा काम थोड़े ही है। पर उलूक समझते हुए भी नासमझ बना रहा और फल की चिंता नहीं करने के लिए तैयार नहीं हुआ। कहने लगा कि भारत वाले आप की हर साल खूब पूजा करते हैं। आप भी अपने हिसाब से दीवाली की रात रौशनी से देख-देखकर, खूब धनवर्षा करती हो। फिर भी भूख सूचकांक में भारत दुनिया भर में रसातल में पहुंचा हुआ है और उसके बाद भी नीचे से नीचे चलता चला जा रहा है। क्यों? लक्ष्मी जी ने जरा सख्ती से उसकी बात काट दी – भूख सूचकांक का आंकड़ा तो पढ़/ सुन लिया, पर क्या सरकार का यह एलान नहीं सुना कि यह आंकड़ा भारत-विरोधी विदेशी षडयंत्र है। यहां कोई भूख-गरीबी वगैरह नहीं है। और अगर है भी, तो तेजी से गायब हो रही है। आखिरकार, भारत में अमृतकाल चल रहा है।

लक्ष्मीजी ने बात समेटने की कोशिश की, पर उलूक तो किसी और ही मूड में था। कहने लगा कि जरूर आपकी बात ही सही होगी। पर अगर कोई भूख-गरीबी वगैरह है ही नहीं, तो फिर आप जो साल में सिर्फ एक रात को छोटी-छोटी धन वर्षा करती फिरती हो, उसका फायदा ही क्या है? भूखे गरीब तो हैं ही नहीं कि, थोड़ा-बहुत जो कुछ भी हाथ लग जाए, उनका कुछ न कुछ तो भला ही होगा। कुछ नहीं से तो कुछ भी भला! पर जब सबके पास बहुत कुछ है, तब रेजगारी के आपके सालाना छींटे किस काम के! लक्ष्मीजी को यह जरा भी पसंद नहीं आया कि उलूक घुमा-फिराकर बार-बार, उनके दीवाली की रात के धन-बरसाने को महत्वहीन दिखाने पर आ जा रहा था। उन्होंने जरा रुखाई से कहा – गरीब-भूखे हैं ही नहीं, ये मैंने कब कहा? सरकार ने भी माना है कि घट रहे हैं, पर हैं! और जो घटने के बाद भी हैं, उनकी तरफ से हम कैसे आंखें मूंद सकते हैं? उनकी मदद करने से हम कैसे हाथ खींच सकते हैं? इसलिए तो कहा – हमें अपना कर्म करने पर ध्यान देना चाहिए; फल की चिंता हम क्यों करें?

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पर उलूक भी अड़ गया। कर्म करने से कौन मना कर रहा है, पर लकीर का फकीर बने रहना भी तो ठीक नहीं है। जो साल दर साल करते आए हैं, वही आगे भी करते जाएं, यह क्या बात हुई? मैं कन्विंस्ड नहीं हूं कि हमें सिर्फ इतना सोचना चाहिए कि पिछले साल जो किया था, उसे इस साल फिर करें। लक्ष्मीजी झल्लाकर बोलीं – आखिर तू चाहता क्या है? या सिर्फ मेरी दीवाली खोटी करानी है? उलूक ने लपक कर लक्ष्मीजी के पांव पकड़ लिए। आपने ऐसा सोच भी कैसे लिया? आपकी दीवाली खोटी होगी, तो क्या मेरी भी दीवाली खोटी नहीं होगी? मैं तो सिर्फ इतना चाहता हूं कि इस दीवाली पर कुछ सार्थक हो, कुछ ऐसा हो, जिसका वाकई कुछ असर हो। इस बार आप कुछ ऐसा करें, जो कोई और नहीं कर रहा हो। आप तो वैसे भी धन की देवी हैं, गरीबों के चक्कर में कब तक पड़ी रहेंगी? फिर उनके लिए मोदीजी ने पांच किलो मुफ्त राशन का और पांच साल के लिए विस्तार कर तो दिया है। सुना है कि चार करोड़ पक्के घर भी बना दिए हैं। और क्या गरीबों को सब कुछ लुटा दें!

लक्ष्मी जी ने हथियार डाल दिए – तो तू क्या कहता है? उलूक ने कहा – आम पब्लिक के लिए धन वर्षा का चक्कर छोड़ते हैं। इस साल जो भी धनवर्षा फंड है, एक जो असली गरीब बचा है, उसके कल्याण की ओर मोड़ते हैं। लक्ष्मीजी ने उत्सुकता से पूछा – वो कौन है? उलूक ने कहा, वही गरीब जिसने चार करोड़ गरीबों के घर बनवाए और अपना एक घर नहीं बनवा सका! चलिए, इस दीवाली पर कम से कम उस एक गरीब, बेघर का घर बनवाते हैं। लक्ष्मीजी ने पूछा और दीवाली की रात हम क्या करेेंगे? उलूक ने कहा, हम अयोध्या चलते हैं, योगीजी के 24 लाख दीयों के वर्ल्ड रिकार्ड का तमाशा देखने। लक्ष्मी जी ने झपटकर उलूक का कान पकड़ लिया और कान उमेंठते हुए धमकाया – लगाऊं एक! उलूक ने हाथ जोड़ते हुए कहा आपका दिन है, जो चाहो करो। मैंने तो सिर्फ आपको पब्लिसिटी पाने का रास्ता सुझाया था। पसंद नहीं आए तो करती रहो गरीब-गरीब। पर मेरे हिसाब से तो अब आपको भी अपना तौर बदलना चाहिए – लक्ष्मीजी वर दो, बेघर पीएम को घर दो!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक लोक लहर के संपादक हैं।

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