सरकार की भूमिका क्या होनी चाहिए
आए दिन कहीं न कहीं कोई बड़ी दुर्घटना और हादसे होते रहते हैं। इन हादसों में मरने या घायल होने वाले लोगों के लिए मात्र मुआवजा की घोषणा कर सरकार इतिश्री कर लेती है। जबकि सरकार को अपने राहतकोष से राहत और बचाव कार्य के लिए उच्च तकनीक के औजार और मशीनें अपने पास तैयार रखनी चाहिए ताकि दुर्घटनाग्रस्त इलाकों में बचाव कार्य के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़े। अक्सर यह देखा गया है कि कोई भी कारखाना खोलना होता है, तो उसे पिछड़े इलाकों में लगाया जाता है जिससे पर्यावरण प्रदूषित होने पर कोई विरोध न हो तथा आसानी से सस्ते मज़दूर मिल जाएँ। अपशिष्ट फेंके जाने पर वे विरोध दर्ज नहीं कर पाते हैं। एक परोक्ष उद्देश्य यह भी होता है कि यदि आवश्यकता हो तो उन्हें आसानी से हटाकर उनकी जमीनों पर आधिपत्य किया जा सके। पूरे देश में यह खेल चल रहा है। जब भी इस तरह की दुर्घटनाएं होती हैं, तब खुद को विश्व गुरु मानने वाला यह देश इधर-उधर मदद के लिए देखता है।
इस दुर्घटना में आगे क्या होगा
सिलक्यारा सुरंग परियोजना में आज 14 दिन बाद भी सुरंग में फबसे मजदूरों को बचाने का ऑपरेशन सफल नहीं हुआ और रोज दिन में दो बार उन्हें निकालने के लिए योजनाएं बन रही हैं। समाचार एजेंसी भाषा के हवाले से मिली खबर के मुताबिक आज आपदा स्थल पर आस्ट्रेलियाई विशेषज्ञ डिक्स ने पत्रकारों से कहा, ‘ऑगर मशीन का ब्लेड टूटकर क्षतिग्रस्त हो गया है। श्रमिकों के सुरक्षित होने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ऑगर मशीन को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए हम अपने काम करने के तरीके पर पुनर्विचार कर रहे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि सभी 41 लोग लौटेंगे। जब डिक्स से इस संबंध में समयसीमा बताने के लिए कहा गया, तो उन्होंने कहा, ‘मैंने हमेशा वादा किया है कि वे क्रिसमस तक घर आ जाएंगे।’ मतलब एक महीने वे 41 मजदूर और उनके परिवार के लोग इस द्वन्द्व मे रहेंगे कि वे जिंदा आ भी पाएंगे या नहीं। किसी के लिए भी यह स्थिति रोज मरने जैसी है।
दरअसल, बहुएजेंसियों के बचाव अभियान के 14वें दिन अधिकारियों ने दो विकल्पों पर ध्यान केंद्रित किया – मलबे के शेष 10 या 12 मीटर हिस्से में हाथ से ‘ड्रिलिंग’ या ऊपर की ओर से 86 मीटर नीचे ‘ड्रिलिंग’। वहीं, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हसनैन ने नयी दिल्ली में पत्रकारों से कहा, ‘इस अभियान में लंबा समय लग सकता है।’
हाथ से ‘ड्रिलिंग’ (मैनुअल ड्रिलिंग) के तहत श्रमिक बचाव मार्ग के अब तक खोदे गए 47-मीटर हिस्से में प्रवेश कर एक सीमित स्थान पर अल्प अवधि के लिए ‘ड्रिलिंग’ करेगा और उसके बाहर आने पर दूसरा इस काम में जुटेगा।
#WATCH | Uttarakhand Chief Minister Pushkar Singh Dhami reaches the house of Tanakpur worker Pushkar Singh Airi to meet his family.
Airi is one of the 41 workers trapped in the Silkyara Tunnel. pic.twitter.com/W8lxPMPX2G
— ANI (@ANI) November 26, 2023
भाषा से प्राप्त अन्य समाचार में कहा गया है कि ‘उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अनुसार, निर्धारित निकासी मार्ग में फंसे उपकरण को बाहर लाते ही यह (कार्य) शुरू हो सकता है। लंबवत ‘ड्रिलिंग’ के लिए भारी उपकरणों को शनिवार को 1.5 किलोमीटर की पहाड़ी सड़क पर ले जाया गया। इस मार्ग को सीमा सड़क संगठन द्वारा कुछ ही दिनों में तैयार किया गया है।
हसनैन ने कहा यह प्रक्रिया ‘अगले 24 से 36 घंटे’ में शुरू हो सकती है। उन्होंने संकेत दिया कि अब जिन दो मुख्य विकल्पों पर विचार किया जा रहा है उनमें से यह सबसे तेज विकल्प है। अब तक मलबे में 46.9 मीटर का क्षैतिज मार्ग बनाया गया है। सुरंग के ढहे हिस्से की लंबाई करीब 60 मीटर है।
धामी ने संवाददाताओं को बताया कि ब्लेड के लगभग 20 हिस्से को काट दिया गया है और शेष काम पूरा करने के लिए हैदराबाद से एक प्लाज्मा कटर हवाई मार्ग से लाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर मैन्युअल ड्रिलिंग शुरू हो जाएगी। धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक निर्माणाधीन सुरंग के अंदर फंसे 41 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए राज्य में शुरू किए गए बचाव अभियान के बारे में हर रोज अद्यतन जानकारी ले रहे हैं।
ऑगर मशीन से काम बाधित होने के इस घटनाक्रम ने फंसे हुए श्रमिकों के परिजनों की चिंता बढ़ा दी है। आपदा स्थल के आस-पास ठहरे हुए परिजन बचाव कार्यकर्ताओं द्वारा स्थापित की गई संचार प्रणाली के जरिये अकसर श्रमिकों से बात करते करते हैं। श्रमिकों को छह इंच चौड़े पाइप के जरिए खाना, दवाइयां और अन्य जरूरी चीजें भेजी जा रही हैं। पाइप का उपयोग करके एक संचार प्रणाली स्थापित की गई है और श्रमिकों के रिश्तेदारों ने उनसे बात की है। इस पाइप के माध्यम से एक एंडोस्कोपिक कैमरा भी सुरंग में डाला गया है, जिससे बचावकर्मी अंदर की स्थिति देख पा रहे हैं।
चार योजनाओं पर किया जा रहा विचार
अपरान्ह चार बजे मिले भाषा के अपडेट के मुताबिक अधिकारियों ने रविवार को बताया कि फंसे मजदूरों को सुरंग से बाहर निकालने की पहली योजना में ऑगर मशीन के फंसे हिस्से को काटकर निकाला जाएगा, जिसके बाद मजदूर छोटे उपकरणों के जरिए हाथों से खुदाई कर मलबा निकालेंगे।
दूसरी योजना में सुरंग के ऊपरी क्षेत्र में 82 मीटर की लंबवत खुदाई की जाएगी और इसके लिए मशीन का प्लेटफॉर्म तैयार कर लिया गया है तथा मशीन के एक हिस्से को वहां पहुंचा भी दिया गया है। उनके मुताबिक, इस योजना पर रविवार को काम शुरू हो सकता है।
तीसरी योजना के तहत सुरंग के बड़कोट छोर की ओर से खुदाई का काम युद्धस्तर पर चल रहा है और यह करीब 500 मीटर का हिस्सा है और इस अभियान में भी 12 से 13 दिन लगने का अनुमान है।
चौथी योजना में सुरंग के दोनों किनारों पर समानांतर (क्षैतिज) ड्रिलिंग की जाएगी और इसका सर्वेक्षण हो चुका है तथा रविवार को इस योजना पर भी काम शुरू किया जा सकता है।
इन योजनाओं को करने के बाद क्या परिणाम मिलते हैं, यह तो आने वाले समय में दिखाई देगा।
VIDEO | Uttarkashi tunnel collapse UPDATE: Vertical drilling begins at Silkyara tunnel.#UttarakhandTunnelRescue pic.twitter.com/c96xeU0u7B
— Press Trust of India (@PTI_News) November 26, 2023
क्या कहते हैं सुरंग में फंसे परिवार के लोग
बिहार के बांका निवासी देवेंद्र किस्कू का भाई वीरेंद्र किस्कू सुरंग में फंसे श्रमिकों में शामिल है। देवेंद्र ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा, ‘अधिकारी पिछले दो दिन से हमें भरोसा दिला रहे हैं कि उन्हें (फंसे हुए श्रमिकों को) जल्द ही बाहर निकाल लिया जाएगा, लेकिन कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता है, जिससे प्रक्रिया में देर हो जाती है।’
चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था, जिससे उसमें काम कर रहे 41 श्रमिक फंस गए थे। तब से विभिन्न एजेंसियां उन्हें बाहर निकालने के लिए युद्धस्तर पर बचाव अभियान चला रही हैं।
उत्तरकाशी/वाराणसी। दीवाली के दिन 12 नवम्बर के दिन सुरंग धसकने की दुर्घटना हुई। दुर्घटना के बाद उन मजदूरों को निकालने की कवायद शुरू हुई लेकिन आज 14 दिनों बाद भी उसमें कोई सफलता नहीं मिली। रोज ही नए प्रयास की खबर अखबारों में आ रही है लेकिन उन प्रयासों में आज तक कोई सफलता नहीं मिली बल्कि रोज नए वादे के साथ स्थितियां सुलझने की बजाय उलझती जा रहीं हैं और फंसे हुए मजदूरों और उनके परिवार के लोगों की स्थिति बिगड़ती जा रही है।
आज एक खबर आई कि सिलक्यारा में धंसी निर्माणाधीन सुरंग में ‘ड्रिल’ करने में प्रयुक्त ऑगर मशीन का ब्लेड मलबे में फंस गया है जिसके कारण काम रुक गया है और शनिवार को अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ ने दूसरे विकल्पों पर विचार किए जाने के बीच ने उम्मीद जताई, जो बहुत ही चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि पिछले 14 दिनों से फंसे 41 श्रमिक अगले महीने क्रिसमस तक बाहर आ जाएंगे। यानी आज से ठीक 30 दिन बाद, यह सोचने वाली बात है कि जिस जगह श्रमिक फंसे हुए हैं वहाँ जिंदा रहना कितना मुश्किल है।
शुक्रवार को लगभग पूरे दिन ‘ड्रिलिंग’ का काम बाधित रहा, हालांकि समस्या की गंभीरता का पता शनिवार को चला जब सुरंग मामलों के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स ने संवाददाताओं को बताया कि ऑगर मशीन ‘‘खराब’’ हो गई है।
विश्व गुरु होने का खोखला दावा करने वाले देश के प्रधानमंत्री इस आपदा की घड़ी में क्रिकेट विश्व कप देखा और दुर्घटना पर किसी तरह की बात करने की बजाय तेजस पर उड़ते हुए फोटो शूट करवा रहे हैं और अपने में मगन हैं क्योंकि सुरंग में फंसे मजदूर श्रमजीवी समाज से आते हैं। जिनका उत्पादन समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन समाज में उन्हें सम्माजनक नजरिए से नहीं देखा जाता।
क्या है सिलक्यारा परियोजना
सिलक्यारा परियोजना सन 2018 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी। इस परियोजना में 4.531 किलोमीटर की दो लेन वाली सुरंग के निर्माण की प्रक्रिया शुरू है। इसे बनाने का एकमात्र उद्देश्य उत्तराखंड में चारधाम महामार्ग परियोजना में राड़ी पास क्षेत्र के अंतर्गत यमुनोत्री और गंगोत्री को जोड़ना है, जिससे NH 134 की 25.6 किमी की दूरी घटकर 4.5 किमी हो जाए और 50 मिनट की दूरी मात्र पाँच मिनट में पूरी हो जाए। तीर्थयात्रियों की सुविधा और आसान कनेक्टिविटी के लिए इस सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। इस सुरंग का निर्माण उत्तराखंड में चारधाम महामार्ग परियोजना के रोप में किया जा रहा है।
हमारे देश में धर्म के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं और लगातार मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है। इस चारधाम महामार्ग परियोजना भी तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए है, जिसे पर्यावरण को होने वाले नुकसान की अनदेखी कर शुरू किया गया।
कितना जरूरी है इस सुरंग निर्माण
वर्ष 2018 से 1383 करोड़ का इस प्रोजेक्ट का निर्माण हो रहा है। इसके विपरीत देखें तो देश के सैकड़ों अंदरूनी इलाकों में आवागमन के लिए सड़कें नहीं हैं, अस्पताल के अभाव में मरीज अपने गाँव में या अस्पताल पहुंचते हुए दम तोड़ दे रहा है। यदि कहीं प्राथमिक विद्यालय हैं तो आगे की पढ़ाई के लिए विद्यालय नहीं है। विकास के नाम पर आधारभूत जरूरतों को दरकिनार कर एक विशेष वर्ग के लिए निर्माण करवाना कहाँ तक उचित है?
अक्सर यह देखा गया है कि उत्पादन और निर्माण कार्य मे संलग्न मजदूर श्रमजीवी समाज से आते हैं। सुरंग निर्माण के काम में 2018 से लगभग 400 मजदूर इस परियोजना से लगे हुए इलाके में अस्थायी घर बनाकर रह रहे हैं। और इनकी सुविधा और सुरक्षा के लिए कोई प्रावधान न तो सरकार की तरफ से है और न ही परियोजना की तरफ से। अपनी जान जोखिल में डालकर परिवार से दूर इन मजदूरों की मासिक आय मात्र 17000 रुपये है। इस परियोजना में कार्यरत मजदूर झारखंड, बिहार ऑडिशा से आए हुए हैं, जहां पर उन्हें रोज मजदूरी भी नहीं मिल सकती। क्या केंद्र और राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं है कि मजदूरों के पलायन रोक उन्हें अपने राज्य में ही काम की व्यवस्था कराए।
पर्यावरण क्या कहता है
इस वर्ष हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में पहाड़ के कटाव के कारण बारिश ने जिस तरह से तबाही मचाई, इससे हम सब वाकिफ हैं। आए दिन भू-स्खलन, मिट्टी का धंसना, बारिश के दिनों में पक्के घरों का नदियों में समा जाना जैसी दुर्घटनाएँ देख रहे हैं। पिछले महीनों में जोशीमठ जैसे शहरों के मकानों में आई दरारों के कारण लोग विस्थापित होकर दूसरी जगह बसने को मजबूर हुए। ऐसे में एक लंबा रास्ता होने के बाद भी सुरंग काटकर अनावश्यक रूप से दूसरे रास्ते का निर्माण एक बड़ी मानवीय भूल है। जिसका एक दुष्परिणाम में सुरंग के ध्वस्त होने पर 41 मजदूर फंसे हुए हैं। आने वाले दिनों में सुरंग बन जाने के बाद भी कोई बाद हादसा पर्यावरण नुकसान के कारण न हो ऐसा नहीं कहा जा सकता। यदि हम इंसान पर्यावरण को सुरक्षित नहीं रखेंगे तो आए दिन ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार होते रहेंगे।