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ऑस्कर पुरस्कार की दौड़ में डाक्यूमेंट्री ‘टू किल अ टाइगर’

झारखंड में 13 वर्षीय एक बच्ची के साथ हुए गैंगरेप की घटना पर बनी डॉक्यूमेंट्री 'टू किल अ टाइगर' को ऑस्कर पुरस्कार के बेस्ट डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी लिए चुना गया है

झारखंड में 13 वर्षीय एक बच्ची के साथ हुए गैंगरेप की घटना पर बनी डॉक्यूमेंट्री ‘टू किल अ टाइगर’ को ऑस्कर पुरस्कार के बेस्ट डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी के लिए मजबूत दावेदार बनी हुई है। निशा पाहुजा निर्देशित इस फिल्म में एक साधारण व्यक्ति के असाधारण संघर्ष और उसकी उम्मीदों को दिखाया गया है।

इस फिल्म का निर्माण नोटिस पिक्चर्स की कॉर्नेलिया प्रिंसिपे और निशा पाहुजा तथा एनएफबी के डेविड ओपेनहेम ने किया है। फिल्म के कार्यकारी निर्माता एंडी कोहेन, अनीता ली. (एनएफबी), अतुल गावंडे, एंड्रयू ड्रैगौमिस, देव पटेल, मिंडी कलिंग, शिवानी रावत, रूपी कौर, अनीता भाटिया, नीरज भाटिया, दीपा मेहता, समर्थ साहनी, एस. मोना सिन्हा, प्रिया दोरास्वामी, जेसन लॉफ्टस, गीता सोंधी, कॉर्नेलिया प्रिंसिपे हैं।

यह डाक्यूमेंट्री में रंजीत अपनी बेटी के बलात्कारियों को न्याय के कटघरे तक पहुंचाने के लिए जो संघर्ष करता है। गाँव में एक पारिवारिक शादी की रात, रंजीत की 13 वर्षीय बेटी को तीन लोग उठा ले जाते हैं और जंगल में उसका गैंगरेप करते हैं। रंजीत इस गैंगरेप के खिलाफ जिस तरह से संघर्ष करता है, वह पूरी यात्रा एक आम आदमी के हौसले को बहुत ही मार्मिक तरीके से सामने लाती है। यह फिल्म उस घिनौने पक्ष को भी सामने लाती है, जिसके अनुसार भारत में हर 20 मिनट में एक बलात्कार की सूचना मिलती है। यहाँ सजा की दर 30 प्रतिशत से कम है।

भारतीय विषय पर बनी इस कनाडाई फिल्म की कनाडा में एटीसीए और एनएफबी ऐप के माध्यम से निःशुल्क स्ट्रीमिंग की जा रही है, ताकि स्मार्ट टीवी, लैपटॉप और मोबाइल पर इसे देखा जा सके।

इस फिल्म को अब तक कई समारोहों में विभिन्न श्रेणियों में सम्मान मिल चुका है। फिल्म की निर्देशक निशा पाहुजा टोरंटो में स्थित एक एमी-नामांकित फिल्म निर्माता हैं। उनकी नवीनतम फिल्म ‘टू किल अ टाइगर’ का विश्व प्रीमियर टोरोन्टो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (टीआईएफएफ) में हुआ, जहां इसने सर्वश्रेष्ठ कनाडाई फीचर फिल्म के लिए ‘एम्प्लीफाई वॉयस’ अवार्ड जीता। तब से इसने 20 से अधिक पुरस्कार जीते हैं, जिनमें पाम स्प्रिंग्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र फीचर और तीन कनाडाई स्क्रीन पुरस्कार शामिल हैं। यह फिल्म विभिन्न मानवाधिकार मुद्दों, विशेष रूप से भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सामने लाती है। 2015 में ग्लोबल न्यूज़ के लिए दिल्ली बस सामूहिक बलात्कार के बारे में एक लघु फिल्म बनाने के बाद पाहुजा ने कनाडाई पत्रकारिता के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल मीडिया अवार्ड जीता था।

फिल्म की लेखिका और निर्देशिका निशा पाहुजा

निशा पाहुजा अपनी इस फिल्म को लेकर कहती हैं कि भारत में यौन हिंसा पितृसत्ता से जुड़ी हुई है। वह कहती हैं कि 2012 में दिल्ली में एक हाई-प्रोफाइल सामूहिक बलात्कार के बाद भारत में यौन हिंसा ने बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। तब से यौन उत्पीड़न की खबरें भारत में लगातार सामने आ रही हैं।

निशा पाहुजा कहती हैं कि दिल्ली सामूहिक बलात्कार के बाद निश्चित रूप से इस पर ध्यान गया है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यौन उत्पीड़न की घटनाओं में कोई कमी आई है। वह इसका श्रेय देश में ‘स्त्री-द्वेष, अधिकार और पुरुष श्रेष्ठता की संस्कृति’ को देती हैं। उनके अनुसार, यह भारतीय समाज में गहराई तक व्याप्त है, क्योंकि लड़कों ने पारंपरिक रूप से परिवार की निरंतरता और आर्थिक अस्तित्व की गारंटी दी है, जबकी लड़कियां आज भी पराई के रूप में देखी जाती हैं।

पाहुजा कहती हैं कि भारतीय फिल्म उद्योग भी उनकी इस्स धारणा को पुष्ट करता है, यहाँ सब कुछ पुरुष अभिनेता पर ही केन्द्रित दिखता है। वह कहती हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि यह स्थिति वास्तव में तब तक नहीं सुलझेगी, जब तक भारतीय पुरुष, पुरुष होने का कोई नया तरीका नहीं खोज लेते। जब तक कि पुरुष होने का क्या मतलब है, इसकी एक नई परिभाषा नहीं आ जाती, तब तक भारत में यौन अपराध के आंकड़े कम नहीं हो सकते हैं।

2 घंटे, 5 मिनट अवधि की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म की निर्देशक होने के साथ लेखन भी निशा पाहुजा द्वारा किया गया है।

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