Tuesday, October 14, 2025
Tuesday, October 14, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराष्ट्रीयकिसानों ने फिर से आंदोलन और बंद का ऐलान क्यों किया है

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

किसानों ने फिर से आंदोलन और बंद का ऐलान क्यों किया है

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा को चुनौती देने के लिए किसान, मज़दूर, सरकारी कर्मचारी, महिलाएं और छात्र आदि एकजुट हो रहे हैं। इस जुटान में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), फ़ीस बढ़ोतरी, निजीकरण, पुरानी पेंशन बहाली (ओपीएस) और महिला सुरक्षा आदि मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, […]

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा को चुनौती देने के लिए किसान, मज़दूर, सरकारी कर्मचारी, महिलाएं और छात्र आदि एकजुट हो रहे हैं। इस जुटान में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), फ़ीस बढ़ोतरी, निजीकरण, पुरानी पेंशन बहाली (ओपीएस) और महिला सुरक्षा आदि मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया जाएगा।

संयुक्त किसान मोर्चा, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, फैक्ट्री मजदूरों, खेत मजदूरों, ट्रेड यूनियनों, महिला-छात्र संगठनों और सामाजिक आंदोलनों से जुड़े संगठनों ने 16 फरवरी की देशव्यापी ‘औद्योगिक व सेक्टोरल हड़ताल’ और ‘ग्रामीण भारत बंद’ का फैसला लिया है।

इस हड़ताल के दौरान एमएसपी@सी-2+50% पर सुनिश्चित खरीदी न करने, खेती-किसानी की बढ़ती लागत, कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक विकास योजनाओं में कटौती, सार्वजनिक उद्योगों को बेचने, निजीकरण, ठेकेदारीकरण तथा श्रम कानूनों खत्म कर 4 श्रम संहिताएं बनाने के ख़िलाफ़ भी मोर्चाबंदी की जाएगी।

इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर रोक तथा नई शिक्षा नीति (2020) को रद्द करने और पुरानी पेंशन योजना बहाली तथा खुदरा व्यापार में ‘कॉर्पोरेट’ के प्रवेश पर रोक लगाने का मुद्दा भी हड़ताल शामिल किया गया है।

इस दौरान महिलाओं, आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ जन प्रतिरोध विकसित करने का भी प्रयास किया जाएगा। इसके साम्प्रदायिकता की आग को बुझाने, दमन-उत्पीड़न के विरोध, बुनियादी नागरिक अधिकारों की रक्षा, जनवादी अधिकारों पर हमले का विरोध तथा भारतीय संघ के जनवादी और धर्मनिरपेक्ष चरित्र की रक्षा जैसे मुद्दों को भी शामिल किया गया है।

संयुक्त किसान मोर्चा की समन्वय समिति के डॉ. आशीष मित्तल ने बताया कि खेती की लागत सामग्री जैसे खाद, बीज, कीटनाशक, दवा, डीजल, बिजली, कृषि उपकरण आदि सभी कुछ मनमाने रेट पर कम्पनियां बेचती हैं। इसके विपरीत किसान का दुर्भाग्य है कि उपज की निश्चित कीमत की कोई गारंटी नही है।

मित्तल जो अखिल भारतीय किसान मज़दूर सभा के राष्ट्रिय महासचिव भी हैं, उनका कहना है कि खेती की जमीनें भी सरकार द्वारा किसानों से सस्ती कीमत पर छीनकर कॉर्पोरेट तथा बिल्डरों को दी जा रही हैं।

उन्होंने कहा कि बीजेपी ने हर हाथ को काम देने का वादा किया था, ‘लेकिन उसने थोक में सरकारी रोजगार को ठेका कार्यों में बदल दिया। आशा, आंगनबाड़ी, मध्यान्ह भोजन मजदूरों, शिक्षा मित्रों आदि योजनाकर्मियों को केवल 2000 रुपये से 6,000 रुपये तक का मानदेय मिलता है।

वह सवाल करते हैं कि क्या गरीबों के लिए कोई अच्छा रोजगार है? कोरोना महामारी में लॉक डाउन के समय छोटे नियोक्ता और उत्पादक बहुत बुरी तरह प्रभावित हुए। आज उनका स्थान कॉर्पोरेट घरानों ने ले लिया। आम आदमी की आजीविका ही छीन ली गई है।

कॉर्पोरेट कम्पनियाँ बना रहीं जनता को गुलाम 

किसान नेता मित्तल कहते हैं, ‘झूठ का आलम यह है कि देश की जीडीपी बढ़ने तथा इसके 5 ट्रिलियन डालर पर पहुंच जाने का ढिंढोरा जोरों पर है, लेकिन 9 साल में सरकार का अंदरुनी कर्ज 55 लाख करोड़ रुपये (2014) से बढ़कर 161 लाख करोड़ (2023) हो गया है। वहीं, 54 लाख करोड़ रुपये (635 बिलियन डालर) का विदेशी कर्ज अलग से है। यह सारा पैसा जीएसटी के ज़रिए गरीबों से ही वसूला जा रहा है।

अपनी माँगों के बारे में बात करते हुए मित्तल कहते हैं कि किसानों को सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सकल सी-2 लागत का डेढ़ गुना सुनिश्चित किया जाए। इस रेट पर सरकारी खरीद की कानूनी गारंटी की जाए।

वह आरोप लगाते हुए कहते हैं कि सरकारी खरीद में किसानों से 100 रुपये प्रति क्विंटल की रिश्वत और 40 रुपये तौल खर्च की वसूली बंद हो। मित्तल ने बताया कि हड़ताल की एक मांग यह भी है कि लखीमपुरखीरी कांड के आरोपी केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता अजय मिश्र ‘टेनी’ पर केस दर्ज कर जेल भेजा जाए।

वहीं, किसान नेताओं का कहना है कि देश के सामने सबसे बड़ा संकट कृषि क्षेत्र और ग्रामीण जीवन से जुड़ा हुआ है। अखिल भारतीय किसान सभा के वित्त सचिव पी. कृष्णप्रसाद कहते हैं, ‘हमारा विरोध इसलिए है कि कृषि आधारित उद्योग कॉर्पोरेट को सौंप दिए गए हैं और आज ग्रामीण-किसान एवं खेत-मजदूर, दोनों अपने ही देश में सस्ते प्रवासी मजदूर बनने के लिए मजबूर हैं।’

पी. कृष्णप्रसाद के अनुसार, ग्रामीण विकास रूक गया है और सभी प्रकार के ‘विकास’ को राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेट कम्पनियों ने कोने में धकेल दिया है। बीजेपी की ‘संकल्प यात्रा’ का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री व भाजपा नेता घोषणा कर रहे हैं कि सभी सरकारी योजनाओं का लाभ बिना किसी भेदभाव व भ्रष्टाचार के गरीबों तक पहुँच रहा है। वास्तविकता यह है कि हर बड़ी संख्या में गरीबों के नाम राशन कार्ड, मनरेगा और आवास योजना से कटे हैं।

पी. कृष्णप्रसाद के अनुसार, ‘जब संयुक्त किसान मोर्चे ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ अपना ऐतिहासिक आंदोलन वापस लिया था, तो पीएम मोदी ने किसानों से कई वादे किए थे, जिसमें एक भी पूरा नहीं किया गया। आंदोलन के दौरान किसानों के मंसूबों के बारे में बीजेपी- आरएसएस द्वारा अफवाह और नफरत भरी बातें फैलाई गई।’

सरकार की नीतियों पर बात करते हुए पी. कृष्णप्रसाद कहते हैं, ‘सरकार ने व्यावहारिक रूप से देश की संपत्ति कॉर्पोरेट और अति-अमीरों को सौंप दिया है। मनरेगा में 200 दिन का काम और मजदूरी दर 600 रुपये प्रतिदिन किया जाना चाहिए। गाँव में कृषि सम्बंधित, खाद्यान्न प्रसंस्करण तथा अन्य उद्योगों का विकास हो, जो कॉर्पोरेट पूंजी से मुक्त हो।’

अखिल भातीय किसान सभा ने इस बात पर रोष व्यक्त किया है कि भाजपा सरकार ने बिजली क्षेत्र पर हमला कर जनता से वसूली जाने वाली दरें बढ़ा दी है। किसान नेता मुकुट सिंह कहते हैं कि अधिक दरों के कारण गरीबों को अपना बिजली कनेक्शन खोना पड़ रहा है या प्री-पेड मीटर लगाने पड़ रहे हैं। बिजली उत्पादन घरेलू और विदेशी निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है, भले ही उत्पादन सुविधाएं राष्ट्रीय स्वामित्व में हैं और राष्ट्रीय कोयला संसाधनों पर चलती हैं।

किसान नेता मुकुट सिंह मांग करते हैं कि सभी को 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाए, कनेक्शन काटना बंद हो, पुराने बिल माफ किए जाएं और प्री-पेड मीटर योजना रद्द की जाए। घाटे की वसूली अमीरों से की जाए।

मोदी सरकार पर हमला करते हुए मुकुट सिंह ने कहा कि जिस तरह रियासतें गरीब किसानों से ‘लगान’ वसूल कर अंग्रेजों को सौंप देती थीं, उसी तरह बीजेपी भी आम जनता से प्रीमियम वसूल कर कॉर्पोरेट को सौंप रही है। अस्पतालों और विश्वविद्यालयों भी यही लोग चला रहे हैं।

अखिल भारतीय किसान सभा की मांग है कि ट्रैक्टर व खेती की मशीनों व उपकरणों से जीएसटी हटाया जाए। आवारा पशुओं की समस्या हल की जाए साथ ही किसानों के नुकसान की भरपाई हो।

मुफ्त सिलेंडर के वादे भूल गई भाजपा 

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की वरिष्ठ नेता मधु गर्ग कहती हैं कि 5 साल फ्री राशन का वादा ‘चूहेदानी में रोटी फंसाने’ की तरह है। एक और मोदी गारंटी के रूप में गरीबों को मुफ्त रसोई गैस सिलंडर भी मिलने थे, लेकिन वर्ष 2014 में 410 रुपये में बिकने वाला सिलेंडर आज 1167 रुपये में बिक रहा है। वह आगे कहती हैं कि अब चुनाव के चलते इसके दाम को कुछ घटाया गया है, लेकिन वे मुफ्त सिलेंडर के वादे को भूल गए हैं। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में भी कुछ ही लोगों को राहत मिल रही है।

मधु गर्ग कहती हैं आज महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों व हाशिए पर पड़े अन्य समुदायों के आरक्षण के अधिकार पर हमले बढ़ रहे हैं। मोदी सरकार अपने उन लोगों की रक्षा करने में लगी है, जो विशेष रूप से कुख्यात हैं और जो महिलाओ से बदसलूकी करने या बलात्कार के आरोपी हैं। उनके अनुसार, लोग विरोध न कर पाएं, इसके लिए पुलिस यथासंभव विरोध-प्रदर्शनों की इजाजत नहीं देती है।

मधु गर्ग ने वृद्धा व विधवा पेंशन 10,000 रुपये मासिक करने की मांग की। साथ ही आशा, आंगनबाड़ी, रसोईया, ग्राम सहायक और सभी सरकारी व गैर सरकारी रोजगार एवं नौकरियों में न्यूनतम मजदूरी 26,000 रुपये प्रतिमाह करने की भी मांग की।

वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ का कहना है कि सरकार ने 4 श्रम संहिताओं को भी पारित किया है, जिसके कारण सरकारी कर्मचारियों के बीच भी रोजगार असुरक्षा की भावना फैल गई है। महासंघ के सदस्य अफीफ सिद्दीकी कहते हैं कि सरकार ने अब यूनियन बनाने का अधिकार भी कमजोर कर दिया गया है। हाल ही में आए हिट एंड रन कानून पर उन्होंने कहा कि, यह छोटे ड्राईवरों और मालिकों को अनुपातहीन तरीके से दंडित करने का प्रावधान करता है। वह कहते हैं कि हिट एण्ड रन मामलों में पारित नए कानून की धारा 106 (1) व (2) रद्द किया जाए और पुरानी पेंशन स्कीम पुनः बहाल की जाए।

हड़ताल में नहीं शामिल होंगे आरएसएस से जुड़े संगठन

इन सभी लोगों में विपक्षी नेताओं और वैकल्पिक मीडिया पर झूठे केसों की भरमार से भी नाराज़गी है। वह सयुंक्त रूप से कहते हैं, ‘सच्चाई पर लगाम लगाने के लिए मुख्यधारा की मीडिया जो कॉर्पोरेट घरानों के स्वामित्व में हैं, यह एकतरफा खबरें छापते हैं। आम जनता के असली मुद्दों और सच को सामने लाने की बजाय ये पत्रकार, धर्म के नाम पर नफरत फैला रहे हैं। बड़े कॉर्पोरेट उनकी मीडिया इस देश में सांप्रदायिक सद्भाव नहीं चाहते हैं।’

किसान नेता मुकुट कहते हैं कि इसमें आश्चर्य की कोई बात नही है कि मनुवादी ताकतें संप्रदाय और जाति के आधार पर नफरत को बढ़ावा दे रही हैं, ताकि शोषित लोगों का और दमन किया जा सके।

उलेखनीय है कि 24 अगस्त, 2023 को ‘एसकेएम’ और सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने ऊपर उल्लेखित ऐसे सभी मुद्दों के खिलाफ एकजुट संघर्ष की नींव रखी थी। जिसके बाद 26 से 28 नवंबर, 2023 को सभी राज्यों की राजधानियों में ‘महापड़ाव’ भी आयोजित किए गए। इस साल 26 जनवरी को देश के लगभग 500 जिलों में विशाल ट्रैक्टर-वाहन रैलियां आयोजित की गईं।

किसान नेताओं का दावा है, ‘आरएसएस से जुड़े संगठनों को छोड़कर, संपूर्ण ट्रेड यूनियनों, महिलाओं, छात्र संगठनों, अन्य सामाजिक आंदोलनों और बौद्धिक समूहों ने मजदूर-किसान आंदोलन को मजबूत करने के लिए एवं बीजेपी सरकार को उसकी कॉर्पोरेट-सांप्रदायिक नीतियों के लिए दंडित करने के लिए हमारे ‘जन आंदोलन’ ने साथ हाथ मिला लिया है।’

इस आंदोलन में यह भी मांग की जाएगी कि फिलिस्तीन पर अमेरिका-इस्राइल के हमलों को रोका जाए और फिलिस्तीन में जनसंहार एवं युद्ध अपराधों के लिए इस्राइल को दंडित किया जाए अथवा इस्राइल में रोजगार के लिए गरीब भारतीयों की भर्ती पर रोक लगाई जाए।’

यह भी पढ़ें…

दिल्ली की सरहदों पर जुटेंगे देशभर के किसान, इस बार एमएसपी की गारंटी कानून बनवाने के लिए करेंगे संघर्ष

संयुक्त किसान मोर्चा ने ग्रामीण बंद और औद्योगिक हड़ताल में आम जनता से एकजुटता की अपील की

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment