मिर्जापुर के ग्राम सभा गड़ौली के वर्तमान वार्ड सदस्य पंडित बिन्द मिर्जापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल से काफी नाराज़ हैं वो कहते हैं कि, पिछले साल इनकी पार्टी के कुछ लोगों ने यहाँ आकर संदेश दिया कि सांसद ने आपको लखनऊ मिलने बुलाया है। मैं अपने गांव के 50-60 लोगों को लेकर लखनऊ में उनके आवास पर मिलने पहुंचा तो पता चला कि सांसद के पिता की पुण्यतिथि थी, हम लोगों से मिलने का कोई कार्यक्रम नहीं था। यह बात पूरे गाँव वालों को बहुत नागवार गुजरी।
पंडित बिंद ने कहा कि अपना दल(एस) के विधानसभा अध्यक्ष रमाशंकर पटेल ने हम लोगों के साथ धोखा किया। हम लोगों को यह बोल कर गुमराह किया गया था कि आप लोगों की सड़क की मांग को लेकर बातचीत करने आना है। उन्होने खुद पूछा था कि आप लोगों के लिए अंडरपास ठीक रहेगा या ओवरब्रिज? वर्षों से इस मांग को लेकर आवाज उठा रहे हैं। मिलने के लिए सभी लोग उत्साह से सांसद मोहदया के निवास पर यह सोचकर पहुंचे, कि चलो अब काम पूरा हो जाएगा लेकिन वहाँ पहुँचकर तो कुछ और ही पता लगा।
मिर्जापुर के मझवा ब्लाक अंतर्गत आने वाले ग्राम सभा गड़ौली की भौगोलिक स्थिति
मिर्जापुर के दक्षिणी छोर पर, मझवा ब्लाक अंतर्गत आने वाले ग्राम सभा गड़ौली के ग्रामीण आज भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहें हैं। उन्हें आजादी के 75 साल बाद भी शासन, सत्ता की उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है। गांव की आबादी लगभग 15 से 18 हजार की होगी। इस गाँव में 85 फीसदी लोग पिछड़े और दलित समुदाय से आते हैं।
14 मौजों में फैला गांव में दक्षिण की तरफ गंगा नदी का किनारा हैं दूसरी तरफ उत्तर में एक रेलवे लाइन है, जो बनारस से रामबाग प्रयागराज को जाती है। रेलवे लाइन से लगभग 200 मीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 19 है। गांव के लोग खेती कर, पशुपालन करते हैं।
इस छोटे से गाँव की सड़क रेलवे लाइन पर जाकर समाप्त होती है। जबकि गाँव यहाँ समाप्त नहीं होता बाली पटरी के दूसरी तरफ भी गाँव और वहाँ जाने के लिए पटरी को पार करना होता है।
जब रेलवे लाइन का चौड़ीकरण नहीं हुआ था तब लोग रेलवे स्टेशन का फाटक पार कर जाना-आना करते थे लेकिन जब 2018 में रेलवे लाइन का दोहरीकरण और विद्युतीकरण के बाद कटका रेलवे स्टेशन का पूर्वी फाटक हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। इसके पहले लोग इसी रास्ते से बाजार, अस्पताल, स्कूल जाते थे लेकिन फाटक बंद होने 8 किलोमीटर की दूरी तय करना पड़ता है। जिसके विरोध में लोगों ने आवाज उठाना शुरू कर दिया।
रास्ते का इस्तेमाल गांव वालों के अलावा अन्य लोग भी करते हैं
ऐसा नहीं कि सिर्फ गड़ौली ग्रामसभा के लोग ही इस रास्ते का इस्तेमाल करते हैं, बल्कि ग्राम सभा से सटे हुए भदोही जिले के ग्राम द्वारिकापुर, मेदनीपुर गांव के लोग भी जरूरत का सामान लेने के यहीं से आते-जाते थे। यह मार्ग द्वारिकापुर गांव से होते हुए गंगा नदी किनारे बना श्मशान घाट तक जाता है। इस श्मशान घाट पर भदोही जनपद के लगभग 25 गांवों के लोग शवों के दाह संस्कार के लिए आते हैं। गंगा के किनारे बगल में दक्षिण भारतीय शैली में बना एक विशाल मंदिर भी है, जहां प्रतिदिन लोग पूजा पाठ करने के लिए आते हैं।
करहर गांव के मस्तराम दूबे ने बताया कि, सामने गंगा घाट पर बने श्मशानघाट पर दाह संस्कार के लिए हर रोज 4-5 मुर्दे इस रास्ते से गुजरते है। गर्मी के दिनों में तो लाश को खेत से होते हुए गंगा तट तक तो पहुंच जाती है लेकिन बरसात में रेलवे लाइन पार वाहन खड़ा कर, कंधे पर आगे ले जाना पड़ता है जो कि काफी कष्टकारी होता है।
किसी सरकार इस मांग पर आज तक नहीं ध्यान दिया
रेलवे लाइन को पार करते हुए बुजुर्ग कतरन ने बात करते हुए बताया कि, ‘मै जबसे समझ आई है, तब से हमारे गाँव में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ है।’ आपकी आंखे ठीक नहीं है क्या रेलवे लाइन पार करते हुए डर नहीं लगता? पूछने पर भावुक होते हुए कहा कि, ‘अभी तीन महीने पहले इसी जगह पर लाइन पार करते हुए मेरे बड़े भाई की ट्रेन से कटकर जान चली गई, उनके शरीर के कई टुकड़े हो गए थे। मेरी आंखें भी कमजोर है। लाइन पार करते हुए कई बार गिरा और कई बार रेलगाड़ी से कटने से बचा हूं। लेकिन कब तक बचूंगा? भावुक हो जाने के बाद भी इतना कहते हुए उनके चेहरे में व्यवस्था के प्रति विरोध दिखाई दिया। चुनाव में वोट के सवाल पर कहा कि, ‘रास्ता नहीं तो वोट नहीं।’
जान जोखिम में डाल बच्चे, बूढ़े, विकलांग, बीमार रेलवे लाइन करते हैं पार
रास्ते से गुजर रहे एक ग्रामीण सुरेश कुमार ने अपनी बात रखते हुए कहा कि, भैया! हमारे गांव के बच्चे, बूढ़े, विकलांग, बीमार हो, उन्हें किसी न किसी काम से बाजार, स्कूल या अस्पताल जाना पड़ता है तो यही सबसे आसान रास्ता है। दूसरा रास्ता 8 किलोमीटर का है। सुरेश कहते हैं कि, ‘मेरी जानकारी में इस रास्ते को पार करतें हुए 15 से ज्यादा लोग अपनी जानें गंवा चुके हैं।‘ हम लोगों ने गाँव के ही एक साथी पंडित बिंद के साथ बहुत बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन शासन ने आज तक हमारी इस मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया।
यह रास्ता सबके लिए जरूरी है। जब मैंने कहा कि, सरकार ने गाँव-गाँव तक रास्ते बनवा दिये हैं। इस बात पर सुरेश ने नाराजगी भरे लहजे में कहा कि, ‘देश में क्या बन रहा है उससे हमको कोई लेना देना नहीं है। हमारे गांव में जो बनेगा, वही हम जानते हैं।
मीरजापुर की वर्तमान सांसद अनुप्रिया पटेल के प्रति अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहते हैं कि, ‘पिछले 10 सालों में मात्र एक बार हमारे गांव में आई थीं, जब गांव के लोगों ने उनसे सवाल करना चाहा तो वे तिलमिला उठी और चली गई। भाई हम बोलेंगे भी नहीं? आप चुनाव में हमारा वोट लिया। हम तो सवाल करेंगे ही।
एंबुलेंस न पहुँच पाने पर गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के समय जान को खतरा
गंगा के किनारे बसे गांव द्वारिकापुर के बुजुर्ग निठूरी राम भोजपुरी में अपनी बात कहते हैं कि, ‘का करी! आपन मजबूरी बा, सरकार सुनत नही बा, इहां कोई नेता आई नाही रहा बा, इहां चार-पांच गांव एतना बझान में बझा बा कि बहिन-बिटिया के डिलीवरी, में एतना दिक्कत होत है कि पूछा मत।’
प्रजापति कहते हैं कि किसी भी इमरजेंसी में कोई भी गाड़ी वाला जल्दी आने को तैयार नहीं होता है, कहता है कि रास्ता नहीं है, इस स्थिति में कितनी महिलाओं की डिलीवरी के समय जान जा चुकी है। सरकारी एंबुलेंस की बात पर वे कहते हैं कि उनके यहां से स्वास्थ्य केन्द्र की दूरी 8-10 किलोमीटर होगी, जब तक एंबुलेंस का इंतजार करेंगे तब तक किसी प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हो जाएंगे। वे उदास मन से कहते हैं कि, हम लोग बड़े बुरे फंसे हुए हैं और न जाने कितने दिन यह जीवन जीना पड़ेगा?
रास्ता नहीं तो वोट नहीं
अपनी छोटी बच्ची के साथ रेलवे लाइन पार कर रही एक स्थानीय महिला सीता देवी से जब मैंने पूछा कि, ‘आप बच्चों को लेकर रेलवे लाइन पार कर रही है, दोनों ही तरफ से तेज गति की ट्रेनें आती हैं, क्या आपकों डर नहीं लगता? मेरे प्रश्नों को सुनकर बोलीं! तो क्या करें 10 किलोमीटर दूर से घूम कर आयें? अपनी जान का डर किसे नहीं लगता? एक छोटे-से छोटा जानवर भी अपनी जान से डरता है हम तो फिर भी इंसान हैं। मजबूरी नहीं होती तो जान जोखिम में डालने का शौक थोड़ी है।
इस बार के चुनाव में वोट किस मुद्दे पर देंगी? तो वे बिना समय लिए, तुरंत बोल पड़ी कि, ‘इस बार हम लोग वोट डालने ही नहीं जाएंगे। जब हमारे लिए कुछ हो ही नहीं रहा है तो वोट देने का क्या फायदा? ‘ सीता देवी की यह बात सुनकर आस-पास के लोगों ने ज़ोर-ज़ोर से चुनाव का बहिष्कार करते हुए नारा लगाया कि, ‘रास्ता नहीं तो वोट नहीं।‘
10 दिन भूख हड़ताल, सैकड़ों धरना-प्रदर्शन और ज्ञापन, नतीजा सिफर
पंडित बिंद रास्ते की लड़ाई के अगुआ है। वे कहते हैं कि हमारी सरकार है और हमारी सांसद हैं लेकिन आज तक गाँव में कोई काम नहीं हुआ।
सड़क बनवाने के लिए वर्ष 2021 में हमारे साथ 8 और लोग 10 दिन तक भूख हड़ताल पर बैठे थे। उस समय यह मुद्दा सांसद अनुप्रिया पटेल ने संसद में उठाया था लेकिन तीन साल बीत चुके हैं कोई जवाब नहीं आया न ही कभी सड़क बनने की बात ही हुई।
हमारे गाँव के लोग सामूहिक रूप से रेलवे के जितने भी बड़े अधिकारी हैं, सबसे मिलकर ज्ञापन दिये हैं लेकिन आवाज महज कागजों में सिमट कर रह गई।