Wednesday, January 15, 2025
Wednesday, January 15, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराजनीतिबंगलादेश की आड़ में महाराष्ट्र चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

बंगलादेश की आड़ में महाराष्ट्र चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू कर चुके हैं सांप्रदायिक दल  

भाजपा का यह रिकॉर्ड रहा है कि जब-जब केंद्र या राज्यों में चुनाव होना होते हैं, वे ऐसी परिस्थिति पैदा कर देते हैं ताकि धार्मिक ध्रुविकारण का पूरा लाभ मिल सके। अभी हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद जिस तरह की स्थितियाँ पैदा हुई हैं, उसके लिए वे चिंतित कम नजर आ रहे हैं बल्कि महाराष्ट्र चुनाव में वहाँ के हिंदुओं को लेकर धार्मिक ध्रुवीकरण का खेल शुरू कर चुके हैं।  

पिछले दो हफ्तों से पड़ोसी देश बंगलादेश में जो भी घटनाएं घट रही हैं, उससे भारत के हिंदुत्ववादी संगठनों की बांछे खिल गई हैं और इस नाम पर भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए बंगलादेश की घटना को आड़ में रखकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। जो हमारे देश के संविधान और  परंपरा के खिलाफ है। इस तरह की हरकतों से जाने-अनजाने में भारत भी बंगलादेश की राह पर घसीटा गया, तो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पुनः आज से 78 साल पहले की स्थिति बन सकती है।

भाजपा को बांगलादेश की अस्थिरता का फायदा महाराष्ट्र के विधानसभा में 

अभी इस वक्त महाराष्ट्र में ‘सकल हिंदू’ के बैनर तले नासिक में बंद का ऐलान किया गया था। अब मालेगांव में बंद करने का एकमात्र उद्देश्य धार्मिक ध्रुवीकरण है। इसी क्रम में अहमदनगर जिले के श्रीरामपुर तहसील के सराला नाम के जगह पर, नाथसंप्रदाय के मठ में रामगिरी नाम के महाराज ने मुहम्मद साहब के बारे में बहुत ही गैरजिम्मेदाराना बयान दिया, जिसकी एफआईआर की कॉपी के साथ लेख में लिंक के रूप में दे रहा हूँ। जिसे भी और अधिक जानकारी चहिए वह उस लिंक को खोलकर देख सकते हैं।

साथियों, मैं राष्ट्र सेवा दल का एक सिपाही होने के नाते बांग्लादेश के प्रति उतना ही चिंतत हूँ, जितना ‘सकल हिंदू’ संगठन के लोग लेकिन दोनों की चिंता में मौलिक फर्क यह है कि मेरी चिंता आज भी बंगलादेश में रह रहे, एक करोड़ एकतीस लाख चौवालिस हजार दो सौ चार हिंदूओं के जान माल की सुरक्षा की है। लेकिन सकल हिंदू संगठन शुद्ध रूप से महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा के चुनाव में हिंदू-मुस्लिम धार्मिक ध्रुवीकरण कर राजनीतिक पैंतरेबाजी कार रही है क्योंकि वर्तमान महाराष्ट्र सरकार के खाते में ऐसा कोई भी मुद्दा नहीं है, जिसे लेकर वह जनता के सामने वोट मांग सके क्योंकि रामगिरी महाराज के विवादास्पद बयान पर कार्रवाई करने की बजाए मुख्यमंत्री खुद उनसे उनके मठ में जाकर मिले। इसके साथ एक बयान में कहा कि ‘महाराष्ट्र संतों की भूमि है और हम संतों के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। उनका बाल बांका  करने वालए से हम सख्ती से निपटेंगे।‘ मतलब रामगीरी अन्य धर्मों के संस्थापक के बारे में कुछ भी आपत्तिजनक टिप्पणी करें और राज्य के मुख्यमंत्री महोदय उनके पास स्वयं जाकर उनका बचाव करे। इस तरह की हारकर का क्या मतलब निकाला जाए?

यह पहली घटना नहीं है। आज से छह साल पहले भीमा-कोरेगांव की घटना को लेकर असली गुनाहगारों को छोड़ दिया गया और उँ लोगों को गिरफ्तार किया जो निर्दोष थे। भीमा कोरेगाँव की घटना की जांच मैंने खुद राष्ट्र सेवा दल के तरफ से की थी। भारतीय पत्रकारों के भीष्म पितामह निखिल चक्रवर्ती ने मेनस्ट्रीम की मीडिया में हमारी रिपोर्ट को छापी थी। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड जो सर्वोच्च न्यायालय के जज हैं को जिन्हें भीमा-कोरेगाँव केस में बनाई गई पीठ में एक एक जज बनाया गया तो उन्होंने अपने डिसेंट जजमेंट में हमारी रिपोर्ट को शब्दशः कोट भी किया।

बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर नजर

बंगलादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार के सदस्यों को आरक्षण देने की घोषणा के पहले से ही, बंगलादेश में चल रही कुछ घटनाक्रम पर मेरी पूरी नजर थी।

महाराष्ट्र में अचानक ‘सकल हिंदू’ ‘के बैनर तले जो हरकतें की जा रही हैं, मैं उनसे चिंतित होकर यह पोस्ट लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। भारत में बंगलादेश के हिंदूओं को लेकर जो भी प्रतिक्रिया व्यक्त की जायेगी, उसका खामियाजा बंगलादेश में रह रहे हिंदुओं को ही भुगतना पड़ सकता है। भले ही महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव में वर्तमान सत्ताधारी दल बंगलादेश के हिंदूओं के बारे में सही-गलत जानकारी फैला कर चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी क्यों न कर लें।

मुझे  वर्ष 2011 में 17 नवंबर से 24 नवंबर को एक सप्ताह के लिए, एशियन सोशल फोरम के सम्मेलन में भाग लेने के लिए बंगलादेश जाने का मौका मिला था। सम्मेलन खत्म होने के बाद मैं बंगलादेश में और दो दिन रहा था। उस दौरान मेरी मुलाकात अनेक लोगों से हुई। 

 बंगलादेश में 1946-47 में हुए बंटवारे और 1971 के बंगलादेश के पाकिस्तान से अलग होने के बाद भी रह रहे हिंदू धर्म की जनसंख्या आज भी 13,144,204 है, जो बंगलादेश की कुल जनसंख्या का 7.96% है (Source : Bangla Desh Population and Housing Census 2022)। जिसमें अकेले ढाका शहर में 27.68 लाख,  दूसरे नंबर पर रंगपुर 22.90 लाख, तीसरे नंबर पर चट्टग्राम जहां 21.96 लाख, चौथे नंबर पर खुलना 20.07 लाख, पांचवें स्थान पर सिल्हेट 14.91 लाख, छठे स्थान पर राजशाही 11.59 लाख, सातवें स्थान पर बारीशाल 7.50 लाख और आठवें स्थान पर मेमनसिंह 4,81 लाख लोग रह रहे हैं। इस तरह बंगलादेश में 1947 तथा 1971 की घटनाओं के बाद हिंदुओं के भारत विस्थापन के बावजूद 1,31,44,204  मतलब आठ प्रतिशत हिंदू आज भी रह रहे हैं। मुझे हमेशा ही यह चिंता सताए रहती है कि अब बंगलादेश के हिंदुओं के साथ क्या हो रहा होगा?

और जब 2011  में ढाका के धनमंडी नाम के इलाके में ढाकेश्वरी मंदिर में बंगलादेश के हिन्दू संगठन का कार्यालय पहुंचा। उस समय कार्यालय खुलने में  दो घंटे का समय था। मंदिर के पुजारी चट्टोपाध्याय महाशय ने मुझसे कहा कि ‘आप मंदिर देखिए और देखने के बाद में मेरे आवास पर बैठिए।’ वे सबसे पहले  मुझे ढाकेश्वरी मंदिर लेकर गए, तब मैं खड़े होकर मूर्ति को निहार ही रहा था, उसी समय पुजारी ने बंगला में कहा कि ‘आपनी कि मॉं के प्रणाम कोरबेन ना?’ (क्या आप मां को प्रणाम नहीं करेंगे?) आज पहली बार लिखित रूप से मैं कह रहा हूँ कि मैंने तुरंत ढाकेश्वरी मंदिर के फर्श पर माथा टेकते हुए, मन-ही-मन कहा कि ‘हे माते समस्त विश्व के सभी प्रकार के जीव-जंतुओं की रक्षा करो, यही मेरी एकमात्र प्रर्थना है।’ और यह क्रिया इतनी सहजता से हुई थी कि आज भी मै उसे याद करते हुए अचंभित होता हूँ।

 पुजारी के आवास पर जाकर मैंने इस चार सौ साल पुराने मंदिर के इतिहास के बारे में बातचीत की। बातचीत के बीच में ही मैंने उनसे पूछा कि आप यहां रहते हुए कैसा महसूस करते हैं?’  उन्होंने कहा कि वैसे तो हम लोग ठीक ही हैं  लेकिन जब भी भारत में कोई विशेष घटना होती है, जैसे 6 दिसंबर, 1992 को  बाबरी मस्जिद के विध्वंस हुआ, उसके बाद, बंगलादेश में तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी। इसके बाद उसने कहा कि आपसे मेरा नम्र निवेदन है कि आपको अगर कभी मौका मिले तो भारत के हिंदुत्ववादी संगठन के लोगों को बताइए कि भारत में जब-जब आप लोग मुसलमानों को सताते हो तब-तब उसकी कीमत हमें ही चुकानी पड़ती है।

 नागपुर आरएसएस द्वारा  हेडगेवार विचार मंच के बैनर तले हर शनिवार को भाषण का कार्यक्रम होता है। वहाँ से नागपुर वापस आने के कुछ समय बाद अचानक आयोजन समिति के एक सदस्य ने पूछा कि आप अभी-अभी बंगलादेश की यात्रा से लौटे हैं, तो क्या आप इस मंच पर आकर उन अनुभवों को हमसे साझा करेंगे?  मुझे ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर के पुजारी के साथ हुई बातचीत याद आई और मैंने  हेडगेवार मंच से अपने अनुभव साझा करने की सहमति स्वीकार कर ली। मंच से मैंने बंगलादेश में रह रहे हिंदुओं और उनकी स्थिति के बारे अवगत कराया। उसी के इर्द-गिर्द मेरा पूरा भाषण हुआ। उसके बाद पूरे हॉल में शांति छा गई। न ही कोई सवाल न जवाब और न  ही किसी की तरफ से कोई टिप्पणी हुई।

आज से दो हफ्ते पहले से बंगलादेश में जो राजनैतिक अस्थितरता और तख्तापलट के बाद जो उथल-पुथल चल रही है, उसका असर यह हुआ है कि वहाँ के हिंदुओं के जानमाल की चिंता की जगह,  भारत के हिंदूत्ववादी संगठन जिस तरह से वहाँ की घटनाओं को लेकर उसे तोड़-मरोड़कर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं, जिसके चलते बंगलादेश की आड़ में वर्तमान सत्ताधारी दल के लोगों द्वारा गैरजिम्मेदाराना हरकत की जा रही है। जिसमें नासिक में बंद की घोषणा के साथ वैजापूर, येवला, श्रीरामपुर मतलब अहमदनगर, औरंगाबाद जिले में बंद हुआ। इसके साथ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने खुद उन जगहों पर जाकर आग में घी का डालने का काम किया।

 यह सब आने वाले दिनों में होने वाले विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद तैयारी को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। चुनाव प्रचार के समय बंगलादेश के हिंदुओं की आड़ में धार्मिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश होगी। वैसे भी भाजपा के पास  अपने दस साल के शासनकाल में कोई भी मुद्दा नहीं है, जिसे केंद्र में रख कर चुनाव कराए जाएँ। इस वजह से वे केवल धार्मिक ध्रुवीकरण की आड़ में ही  चुनाव कराएंगे। लोकसभा चुनाव में खुद प्रधानमंत्री ने अपना पूरा चुनाव प्रचार सिर्फ धार्मिक ध्रुवीकरण को केंद्र में रखते हुए किया। संविधान की शपथ लेने के बाद भी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री इसी हथकंडे को अपनाते हुए चुनावी नैया को पार कराने की कसरत में लगे हुए हैं।

महाराष्ट्र में इसकी शुरुआत हो चुकी है। भाजपा विभिन्न राज्यों में सत्तारूढ़ दल बन जाए लेकिन भारत की एकता और अखंडता जैसी बड़ी कीमत देश को चुकानी होगी।

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here