संतराम बी.ए वास्तव मे भारतीय समाज की संरचना और उसकी व्यवस्थाओं को लेकर बहुत उद्विग्न और बेचैन थे और इसी बेचैनी मे वे अपने उद्देश्यों की राह तलाश रहे थे। उन्होंने तमाम पाखंडवादों सिद्धांतों की बखिया उधड़ते हुए अपनी वैचारिकी का निर्माण जारी रखा और युवावस्था मे जब उन्होंने देखा कि आर्य समाज हिन्दू समाज व्यवस्था और विषमता को खत्म करके समाज को आगे ले जाना चाहता है, तब उन्होंने बड़ी आस्था के साथ आर्य समाज से जुड़कर काम करना शुरू किया। उस समय उनके समकालीन महात्मा हंसराज और परमानंद सरीखे लोग थे। संतराम बीए अत्यंत मेधावी और प्रखर विचारक थे । उनका एक बड़ा कद था । लेकिन हम देखते हैं कि वे उस सम्मान से सर्वथा वंचित रहे जिसके कि वे वास्तविक हकदार थे। आज की बातचीत में शामिल हैं लेखक और चिन्तक डॉ सिद्धार्थ , शिक्षक और लेखक डॉ महेश प्रजापति संचालन रामजी यादव