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बिलकीस बानो प्रकरण पर एक टिप्पणी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में महिलाओं का सम्मान करने की अपील की थी। उसके बाद देश में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे क्रूर से क्रूर व्यक्ति का दिल भी दहल गया होगा। इनमें से एक घटना है उन लोगों का रिहा होना जिन्होंने न केवल दुष्कृत्य किया वरन् अनेक हत्याएं […]

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में महिलाओं का सम्मान करने की अपील की थी। उसके बाद देश में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे क्रूर से क्रूर व्यक्ति का दिल भी दहल गया होगा। इनमें से एक घटना है उन लोगों का रिहा होना जिन्होंने न केवल दुष्कृत्य किया वरन् अनेक हत्याएं भी कीं। जिनकी हत्या की गई उनमें एक तीन साल की बच्ची भी थी। जिस महिला के साथ दुष्कृत्य किया गया वह गर्भवती थी। उसके गर्भ में जो बच्चा था उसकी भ्रूण हत्या हुई।

पूरा घटनाक्रम इतना अमानवीय था कि उसमें सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। केस चलने के दौरान भी बिलकीस बानो को तरह-तरह से तंग किया गया। उसे धमकियां दी गईं, जिससे परेशान होकर उसने मामले को गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर करवाया। अंततः सभी अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सच पूछा जाए तो इन्हें फांसी की सजा होनी थी।

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हमारे देश में ऐसा कानून है जिसके अनुसार यदि आजीवन कारवास की सजा भुगत रहा कोई अपराधी 14 साल जेल में बिता चुकता है तो वह सजा में रिमीशन का अधिकारी हो जाता है। परंतु साथ ही केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार दुष्कर्म एवं हत्या की सजा भुगत रहे अपराधी इस रिमीशन के पात्र नहीं होंगे। परंतु  गुजरात सरकार ने इन प्रावधानों में ढील देकर इन अपराधियों को रिमीशन का लाभ दिया। यह भी पता लगा है कि जिस रिमीशन बोर्ड ने इन्हें 14 साल की सजा भुगतने के बाद रिहा करने का आदेश दिया, उसके 10 सदस्यों में से 5 भाजपा से जुड़े हुए हैं और दो सदस्य तो भाजपा के विधायक हैं।

इसी तरह भाजपा के एक नेता ने कहा कि जो छोड़े गए वे संस्कारवान व्यक्ति थे और ब्राम्हण थे। भाजपा के इस नेता से मैं जानना चाहूंगा कि क्या दुष्कृत्य एवं हत्या करने वाला व्यक्ति संस्कारवान माना जा सकता है?

टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस सहित कई अखबारों ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह गुजरात सरकार के इस फैसले को रद्द करें। इस संदर्भ में कुछ हिन्दी अखबारों की भूमिका निंदनीय रही है। उन्होंने या तो इस समाचार को प्रकाशित ही नहीं किया या उसे उतना महत्व नहीं दिया जितना देना चाहिए था।

इस दरम्यान एक और दिल दहलाने वाली घटना घटी है। एक महिला को सांप ने काटा था। उसकी मृत्यु इसलिए हो गई क्योंकि उसे तीन अस्पतालों से दवाई नहीं मिली। हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। महिलाओं समेत इस देश की बहुसंख्यक जनता खेतों में काम करती है। इस बात की पूरी संभावना होती है कि उसे सांप काट ले। इसलिए सांप के जहर के इलाज के लिए आवश्यक दवाईयां सभी अस्पतालों में उपलब्ध रहनी चाहिए। भोपाल जैसे बड़े शहर के तीन अस्पतालों में सांप के जहर की दवाईयों का उपलब्ध न होना एक ऐसी गलती है जिसे माफ नहीं किया जा सकता।

वरिष्ठ पत्रकार एलएस हरदेनिया भोपाल में रहते हैं।

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