सात चरणों में सम्पन्न होने वाले अठारहवीं लोकसभा चुनाव का चौथा चरण पूरा हो चुका है, जिसके बाद चुनावी तस्वीर काफी हद तक साफ हो गई है। वैसे तो तीसरे चरण का चुनाव पूरा होने के बाद ही अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक भाजपा की विदाई का संकेत देने लगे थे पर, चौथे चरण की समाप्ति के बाद तीसरे चरण का संकेत दावे में बदल गया है। अधिकांश विश्लेषकों के मुताबिक भाजपा चुनाव से बाहर हो चुकी है। बहरहाल, जो भाजपा चुनाव की घोषणा के पहले 400 पार जाती दिख रही थी, वह देखते ही देखते कैसे हारने की स्थिति में पहुँचती जा रही है, इसके पीछे राहुल फैक्टर बताया जा रहा है। हर कोई एक स्वर में मान रहा है कि यह राहुल गांधी हैं, जिन्होनें अपने प्रयासों से चुनावी परिदृश्य बदल कर रख दिया है। इसमे कोई शक नहीं कि अठारहवीं लोकसभा चुनाव में पिछले डेढ़ महीने से राहुल गांधी की आंधी चल रही है। अपराजेय से दिखने वाले प्रधानमंत्री मोदी जहां अपने उलजुलूल चुनावी बयानों के कारण करुणा के पात्र बन गए हैं, वहीं राहुल गांधी लोकप्रियता के नए-नए कीर्तिमान स्थापित करते जा रहे हैं। जननायक के रूप में उभरे राहुल गांधी की चुनावी सभाओं में जबरदस्त धूप और गर्मी की उपेक्षा कर अपार भीड़ जुट रही है। इससे पूरा चुनाव उनपर केंद्रित होता दिख रहा है। इस चुनाव में उन्होंने अबतक कैसा प्रभाव छोड़ा है, इसका अनुमान देश के दो वरिष्ठ नेताओं, भाजपा के लालकृष्ण अड़वाणीं और एनसीपी के शरद पवार के उनके विषय में की गई टिप्पणी से लगाया जा सकता है।
हाल ही में देश के पूर्व गृहमंत्री, भारतरत्न लाल कृष्ण आडवाणी का सोशल मीडिया पर एक बयान काफी वायरल हुआ हुआ, जिसमें उन्होंने कहा है कि भले ही मैं भाजपा से हूँ, लेकिन मैं आज भारत देश के समाज सेवक के रूप में भारतीय जनता से यह कहना चाहता हूँ कि राहुल गांधी ही एक ऐसे इंसान हैं जो भारत देश को एक अच्छा राष्ट्र बना सकते हैं, क्योंकि उनमें निर्णय लेने की क्षमता है जो भारत देश को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं। मैंने भी गृहमंत्री के रूप में देश की सेवा की है, मगर मैंने कभी भी राजनीति में राहुल गांधी जैसा प्रभावशाली नेता नहीं देखा। उनका वह बयान ऐसे समय में आया था, जब तीसरे चरण का चुनाव हो रहा था। उन्होनें यह बयान जारी कर भाजपा और विरोधी नेताओं को खामोश कर दिया था। हालांकि भाजपा की ओर से उनके बयान की सत्यता पर सवाल जरूर उठाया, पर जनता ने उन के बयान को गंभीरता से लिया, क्योंकि राहुल के कार्यों में देशवासियों को आडवाणी के बयान की झलक पहले से ही दिख रही थी।
राहुल गांधी की लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा की गई तारीफों के मायने
आडवाणी ने जब राहुल गांधी के विषय में तारीफ भरा बयान जारी किया, लगभग उसी समय चौथे चरण की वोटिंग के पहले शरद पवार का एक साक्षात्कार सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा है कि अगले कुछ वर्षों में क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ ज्यादा करीबी तौर पर जुड़ेंगे या उसके साथ विलय भी कर सकते हैं, यदि उन्हें लगेगा कि यह उनकी पार्टी के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी अपनी पार्टी भी ऐसा कर सकती है? पवार ने कहा था, उन्हें कांग्रेस और उनकी पार्टी में कोई अंतर नजर नहीं दिखता, क्योंकि दोनों गांधी, नेहरू की विचारधारा से संबंधित हैं। पवार ने स्पष्ट किया था कि रणनीति या अगले कदम पर कोई भी फैसला सामूहिक रूप से लिया जाएगा। उन्होनें यह भी कहा था कि उनकी पार्टी वैचारिक रूप से कांग्रेस के करीब है उद्धव ठाकरे समान विचारधारा वाले दलों के साथ मिलकर काम करने को लेकर सकारात्मक हैं। शरद पवार की टिप्पणी पर बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी ने तंज कसा था, जबकि कांग्रेस, उद्धव ठाकरे गुट और सुप्रिया सुले ने उनका बचाव किया था।
हो सकता है, कुछ लोगों को शरद पवार के बयान से असहमति हो, किन्तु सच्चाई यह है कि पवार नें भविष्य की दीवार पर लिखी इबारत पढ़ ली है। वास्तव में कांग्रेस ने पाँच न्याय, 25 गारंटी और 300 वादों से युक्त जो घोषणापत्र जारी किया है उससे उसकी स्थिति उस समुद्र जैसी हो गई है, जिसमें तमाम नदियां विलीन हो जाती हैं। उसका घोषणापत्र सिर्फ आज का नहीं, समतामूलक भारत निर्माण के सुदूर प्रसारी योजना का अंग है, जिसमें समय के साथ जनआकांक्षा के अनुरूप नई-नई चीजें जुड़ती जाएंगी। जैसे पांचवें चरण के चुनाव के पूर्व 16 मई को कांग्रेस की ओर से भाजपा के पाँच किलो मुफ़्त अनाज की जगह दस किलो अनाज देने की घोषणा कर दी गई। कांग्रेस के घोषणापत्र के सुदूर प्रसारी प्रभाव का आकलन करने के लिए यह वैश्विक सच्चाई ध्यान में रखना जरूरी है कि शक्ति के स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक- का विविध समाजों के मध्य असमान बंटवारा ही मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या रही है। यहां यह ध्यान में रखना भी जरूरी है कि दुनिया का कोई भी समाज सिर्फ अमीर-गरीब की दो श्रेणियों में विभाजित न रह कर जाति, नस्ल, लिंग, धर्म, भाषा इत्यादि के आधार पर विविध समूहों में विभाजित रहा। जैसे प्राचीन भारत में यह विभाजन ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्रातिशूद्र के रूप में रहा तो वर्तमान में एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और सवर्ण के रूप में नजर आ रहा है।
सारी दुनिया के शासक ही अपने नापसंद के सामाजिक समूहों को शक्ति के स्रोतों से वंचित व बहिष्कृत करके ही मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या, आर्थिक और सामाजिक असमानता को जन्म देते रहे, जैसे भारत में वर्ण-व्यवस्था के प्रावधानों के तहत दलित, आदिवासी, पिछड़ों और आधी आबादी से युक्त महिलाओं को बहिष्कृत किया गया। शक्ति के स्रोतों के असमान बंटवारे के खिलाफ संग्राम चलाने के लिए ही सारी दुनिया में गौतम बुद्ध, मजड़क, रूसो, वालटेयर, प्रूधों, मार्क्स, लेनिन, माओ, फुले, पेरियार, आंबेडकर, लोहिया, कांशीराम जैसे ढेरों महामानवों का उदय और भूरि-भूरि साहित्य का सृजन होता रहा। शक्ति के स्रोतों के वाजिब बंटवारे के लिए दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगों ने प्राण-बलिदान किया। इस असमानता से पार पाने के लिए भारत में आरक्षण का सिद्धांत विकसित हुआ। इस असमानता से निजात दिलाने के लिए ही लोकतान्त्रिक रूप से परिपक्व अमेरिका, फ्रांस, न्यूजीलँड, आस्ट्रेलिया, नॉरडिक देशों ने शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता लागू करने का सिद्धांत विकसित किया और असमान बंटवारे से पार पाया। इसका उज्ज्वल दृष्टांत अमेरिका में स्थापित हुआ जहां नस्ल के आधार पर वंचना के शिकार रेड इंडियंस, हिस्पानिक्स, कालों इत्यादि के स्त्री-पुरुषों को सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, शैक्षणिक संस्थानों, फिल्म-मीडिया इत्यादि समस्त क्षेत्रों में संख्यानुपात में अवसर सुनिश्चित कर वंचना और बहिष्कार से निजात दिलाया गया।
लेकिन अमेरिका सहित तमाम अग्रसर देशों में विविध समाजों के स्त्री-पुरुषों के मध्य शक्ति के स्रोतों के बंटवारे का जो कार्य अंजाम देकर असमानता के खात्मे का काम हुआ, वह भारत में आजतक नहीं हुआ। यहां की सरकारें वंचित जातियों को नौकरियों, शिक्षण संस्थानों के प्रवेश इत्यादि में थोड़ा-थोड़ा हिस्सेदारी(आरक्षण) देने का काम किया, पर वह भी ईमानदारी से नहीं किया। कई सरकारें तो आरक्षण को महज कागजों की शोभा बनाने का षड्यन्त्र करती रहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि शक्ति के स्रोतों का औसतन 80-90 प्रतिशत हिस्सा महज 7-8 प्रतिशत संख्या के स्वामी जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हाथों में चला गया। यहां तक की इस वर्ग की महिलाओं को भी नहीं के बराबर हिस्सा मिला। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत विश्व के सबसे असमान देशों के शीर्ष में शामिल हो गया। वैसे तो देश को इस असमानता से निजात दिलाने का छिट-फुट प्रयास कइयों द्वारा हुआ, पर इस मामले में आजाद भारत के सबसे बड़े नायक के राहुल गांधी गांधी उभरे हैं। वह 2023 के फरवरी में रायपुर में आयोजित कांग्रेस के 85 वें अधिवेशन से शक्ति के स्रोतों के असमान वितरण से पार पाने का समय-समय पर जो नक्शा पेश करते रहे, उसी का चरम प्रतिबिंबन लोकसभा चुनाव में न्याय पत्र के रूप में जारी कांग्रेस के घोषणापत्र में हुआ है।
कांग्रेस का घोषणापत्र सामाजिक असमानता के दलदल से भारत को निकालने का मुकम्मल दस्तावेज है
मानवता को शर्मसार करने की हद तक आर्थिक और सामाजिक असमानता के दलदल से भारत को निकालने का मुकम्मल दस्तावेज है कांग्रेस का घोषणापत्र। इसमें असमानता के खिलाफ अपने दृढ़ इरादे का उद्घोष करते हुए पेज 6 पर जो कहा गया है वह बेहद खास है। इसमें कहा गया है, ‘कांग्रेस पार्टी पिछले सात दशकों से समाज के पिछड़े, वंचित, पीड़ित और शोषित वर्गों एवं जातियों के हक और अधिकार के लिए सबसे अधिक मुखरता के साथ आवाज उठाती रही है। कांग्रेस लगातार उनकी प्रगति के लिए प्रयास करती रही है। लेकिन जाति के आधार पर होने वाला भेदभाव आज भी हमारे समाज की हकीकत है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग देश की आबादी के लगभग 70 प्रतिशत हैं, लेकिन अच्छी नौकरियों, अच्छे व्यवसायों और ऊंचे पदों पर उनकी भागीदारी काफी कम है। किसी भी आधुनिक समाज में जन्म के आधार पर इस तरह की असमानता, भेदभाव और अवसर की कमी बर्दाश्त नहीं होनी चाहिए।
कांग्रेस पार्टी ऐतिहासिक असमानताओं की इस खाई को निम्न कार्यक्रमों के माध्यम से पाटेगी।’ असमानता की खाई को पाटने का ही अभूतपूर्व डिजायान पाँच न्याय और 25 गारंटियों से युक्त उसके घोषणापत्र में उभरा है। देश के विविध समाजों के मध्य शक्ति के स्रोतों के वाजिब बंटवारे के लिए ही जाति जनगणना और आर्थिक सर्वे की पुरजोर हिमायत उसके घोषणापत्र में हुई है। यह कितनी महत्वपूर्ण घोषणा है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि घोषणापत्र के शिल्पी राहुल गांधी पिछले कई महीनों से बहुत ही दृढ़ता से कहते रहे हैं और आज भी कह रहे हैं कि जाति जनगणना उनके जीवन का खास मिशन है, जिससे वह किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे। कांग्रेस के न्याय पत्र में किसानों, युवाओं और मजदूरों को न्याय दिलाने का ऐतिहासिक एलान तो है ही, पर इसका सबसे क्रांतिकारी स्वरूप हिस्सेदारी और नारी न्याय में सामने आया है, जिसमें आरक्षण का 50 प्रतिशत दायरा खत्म करने के साथ आधी आबादी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई है।
कांग्रेस के घोषणापत्र ने विविध सामाजिक समूहों को सर्वव्यापी आरक्षण सुलभ कराने की जमीन तैयार कर दी है
यहां ध्यान देना जरूरी है कि आरक्षण दया-खैरात नहीं, बल्कि शक्ति के स्रोतों से जबरन दूर धकेले गए मानव समूहों को कानूनन उनकी हिस्सेदारी दिलाने का औजार है। भारत में विकसित इसी औजार को अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका इत्यादि ने सर्वव्यापी आरक्षण का रूप देकर नस्ल के आधार पर वंचना के शिकार बने लोगों को शक्ति के स्रोतों में वाजिब हिस्सेदारी सुलभ कराया। कांग्रेस के घोषणापत्र ने विविध सामाजिक समूहों को सर्वव्यापी आरक्षण सुलभ कराने की जमीन तैयार कर दी है। इसके दायरे में दलित, आदिवासी,पिछड़े, अल्पसंख्यक और आधी आबादी से युक्त 90 प्रतिशत आबादी ही शामिल होने जा रही है। भारत के तमाम वंचित सामाजिक समूहों को उनका प्राप्य दिलाने का जो नक्शा कांग्रेस के घोषणापत्र मे आया है, उसको अतिक्रम करने की कूवत किसी भी पार्टी में नहीं दिख रही है। चूंकि भारत के सभी वंचित समूहों को शक्ति के समस्त स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाने का परफेक्ट नक्शा कांग्रेस ने जाहिर कर दिया है, इसलिए तय है कि भविष्य में भारतीय राजनीति में उसका प्रभुत्व उसी तरह स्थापित होने जा रहा है, जैसा आजादी के बाद के पचास सालों तक रहा। ऐसे में आने वाले दिनों में कांग्रेस के समक्ष सामाजिक न्यायवादी, साम्यवादी, राष्ट्रवादी इत्यादि दल बुरी तरह असहाय बनने जा रहे हैं। बचेंगे वही दल जो कांग्रेस में खुद को विलीन कर लेंगे या यूपीए की भांति उसके साथ सत्ता में भागीदारी का मन बनाएंगे। जो ऐसा नहीं करेंगे वे हाशिये पर चले जाएंगे। एनसीपी प्रमुख शरद पवार नें संभवतः इस बात को दृष्टिगत रखते हुए ही दूसरे दलों के कांग्रेस में विलीन होने की बात कही है। लेकिन कांग्रेस को अपने क्रांतिकारी घोषणापत्र को लेकर कुछ चिंतित होने की भी जरूरत है।
चूंकि कांग्रेस स्वाधीन भारत के इतिहास में सबसे क्रांतिकारी योजना के साथ सामने आ चुकी है, इसलिए उसे प्रतिक्रयावादी दलों से सावधान रहना होगा। इतिहास गवाह है, जब भी दुनिया में क्रांति लायक हालात बनते हैं, प्रतिक्रियावादी ताकतें उसके खिलाफ संगठित हो जाती हैं। इस विषय में क्रांतिकारी आंदोलनों पर गहन चिंतन करने वाले समाज विज्ञानियों का कहना है कि क्रांतिकारी आंदोलनों के साथ प्रतिक्रियावादी आंदोलन शुरू होते हैं। क्रांतिकारी और प्रतिक्रियावादी आन्दोलन एक दूसरे के विपरीत हैं। प्रतिक्रियावादी सामाजिक परिवर्तन/ क्रांति पर रोक लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं। राहुल गांधी ने कांग्रेस के घोषणापत्र के जरिए भारत में क्रांतिकारी परिवर्तन का जो नक्शा पेश किया है, उससे और तो और खुद उनकी पार्टी के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के नेता तक प्रतिक्रियावादी तत्व के रूप में उभर सकते हैं। इसका कुछ-कुछ दृष्टांत विगत कुछ महीनों में स्थापित भी हो चुका है।
इन्हीं प्रतिक्रियावादी तत्वों के कारण मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी के प्रयासों पर पानी फिर गया। कांग्रेस के घोषणापत्र का क्रांतिकारी स्वरूप ही उसके प्रदेश नेतृत्व को इस घोषणापत्र को जन-जन तक पहुचाने से रोक रहा है। यही नहीं आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति में कांग्रेस का जो वर्चस्व स्थापित होने जा रहा है, उससे इंडिया गठबंधन दल में शामिल सवर्णवादी दलों में भारी असुरक्षाबोध पनप सकता है। उन्हें इस बात का इल्म हो चुका है कि इंडिया गठबंधन जब सत्ता में आएगा तो कांग्रेस का घोषणापत्र लागू होगा। इससे न सिर्फ उनका स्व-वर्णीय हित बाधित हो सकता है, बल्कि भविष्य में उनका दल भी कमजोर हो सकता है। इस असुरक्षा भाव के कारण वे अंतिम क्षणों में पाला बदलकर एनडीए खेमे में भी जा सकते हैं। ऐसे में अभी-अभी ममता बनर्जी ने जो यह घोषणा की है कि वे इंडिया गठबंधन में शामिल न होकर, बाहर से समर्थन देंगी, इस पर काग्रेस नेतृत्व को पैनी नजर रखनी होगी।