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एक मिनट का मौन

एमानुएल ओर्तीज़ (17 मई 1974) मेक्सिको-पुएर्तो रीको मूल के युवा अमरीकी कवि हैं। वह एक कवि-संगठनकर्ता हैं और आदि-अमरीकी बाशिन्दों, विभिन्न प्रवासी समुदायों और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए सक्रिय कई प्रगतिशील संगठनों से जुड़े हैं। मौन का क्षण (2002), शब्द एक मैकेह है (2003), किस बण्डेरा के तहत? (2007), मैं युद्ध-विरोधी कविता लिखना चाहता था, […]

एमानुएल ओर्तीज़ (17 मई 1974) मेक्सिको-पुएर्तो रीको मूल के युवा अमरीकी कवि हैं। वह एक कवि-संगठनकर्ता हैं और आदि-अमरीकी बाशिन्दों, विभिन्न प्रवासी समुदायों और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए सक्रिय कई प्रगतिशील संगठनों से जुड़े हैं। मौन का क्षण (2002), शब्द एक मैकेह है (2003), किस बण्डेरा के तहत? (2007), मैं युद्ध-विरोधी कविता लिखना चाहता था, लेकिन … (2004), ब्राउन मुझे पसन्द नहीं करता : हमारी त्वचा की दूसरी परत की कविताएँ (2009)एक मिनट का मौन कविता ओरटिज़ ने 2001 में लिखी थी। बस, अपनी इसी कविता से वे विश्व-प्रसिद्ध कवि बन गए। इस कविता में उन्होंने साम्राज्यवादी कत्लेआम और अनवरत हत्याओं और हत्याकांडों का बेधक वर्णन ही नहीं किया है बल्कि उपभोक्तावादी संस्कृति में फंसी मानवीय संवेदनाओं को झकझोरकर जगाने का आह्वान भी किया है ।यह कविता हृदय में उठने वाली हूक है जो बहुत देर तक विचलित और बेचैन करती है ।  इसका अनुवाद हिंदी के प्रख्यात कवि असद जैदी ने किया है। उनके काव्य संग्रहों में सामान की तलाश और बहनें तथा अन्य कविताएं महत्वपूर्ण हैं।

एमानुएल ऑर्टिज़

मेरी गुज़ारिश है कि हम सब एक मिनट का मौन रखें 

इससे पहले कि मैं यह कविता पढ़ना शुरू करूँ

मेरी गुज़ारिश है कि हम सब एक मिनट का मौन रखें

ग्यारह सितम्बर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन में मरे लोगों की याद में

और फिर एक मिनट का मौन उन सब के लिए जिन्हें प्रतिशोध में

सताया गया, क़ैद किया गया

जो लापता हो गए जिन्हें यातनाएं दी गईं

जिनके साथ बलात्कार हुए एक मिनट का मौन

अफ़गानिस्तान के मज़लूमों और अमरीकी मज़लूमों के लिए

 

और अगर आप इज़ाजत दें तो

 

एक पूरे दिन का मौन

हज़ारों फिलस्तीनियों के लिए जिन्हें उनके वतन पर दशकों से काबिज़

इस्त्राइली फ़ौजों ने अमरीकी सरपरस्ती में मार डाला

छह महीने का मौन उन पन्द्रह लाख इराकियों के लिए, उन इराकी बच्चों के लिए,

जिन्हें मार डाला ग्यारह साल लम्बी घेराबन्दी, भूख और अमरीकी बमबारी ने

 

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ

 

दो महीने का मौन दक्षिण अफ़्रीका के अश्वेतों के लिए जिन्हें नस्लवादी शासन ने

अपने ही मुल्क में अजनबी बना दिया। नौ महीने का मौन

हिरोशिमा और नागासाकी के मृतकों के लिए, जहाँ मौत बरसी

चमड़ी, ज़मीन, फ़ौलाद और कंक्रीट की हर पर्त को उधेड़ती हुई,

जहाँ बचे रह गए लोग इस तरह चलते फिरते रहे जैसे कि जिंदा हों।

एक साल का मौन विएतनाम के लाखों मुर्दों के लिए —

कि विएतनाम किसी जंग का नहीं, एक मुल्क का नाम है —

एक साल का मौन कम्बोडिया और लाओस के मृतकों के लिए जो

एक गुप्त युद्ध का शिकार थे — और ज़रा धीरे बोलिए,

हम नहीं चाहते कि उन्हें यह पता चले कि वे मर चुके हैं। दो महीने का मौन

कोलम्बिया के दीर्घकालीन मृतकों के लिए जिनके नाम

उनकी लाशों की तरह जमा होते रहे

फिर गुम हो गए और ज़बान से उतर गए।

 

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ।

 

एक घंटे का मौन एल सल्वादोर के लिए

एक दोपहर भर का मौन निकारागुआ के लिए

दो दिन का मौन ग्वातेमालावासिओं के लिए

जिन्हें अपनी ज़िन्दगी में चैन की एक घड़ी नसीब नहीं हुई।

45 सेकिंड का मौन आकतिआल, चिआपास में मरे 45 लोगों के लिए,

और पच्चीस साल का मौन उन करोड़ों गुलाम अफ्रीकियों के लिए

जिनकी क़ब्रें समुन्दर में हैं इतनी गहरी कि जितनी ऊंची कोई गगनचुम्बी इमारत भी न होगी।

उनकी पहचान के लिए कोई डीएनए टेस्ट नहीं होगा, दंत चिकित्सा के रिकॉर्ड नहीं खोले जाएंगे।

उन अश्वेतों के लिए जिनकी लाशें गूलर के पेड़ों से झूलती थीं

दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम

 

एक सदी का मौन

 

यहीं इसी अमरीका महाद्वीप के करोड़ों मूल बाशिन्दों के लिए

जिनकी ज़मीनें और ज़िन्दगियाँ उनसे छीन ली गईं

पिक्चर पोस्ट्कार्ड से मनोरम खित्तों में —

जैसे पाइन रिज वूंडेड नी, सैंड क्रीक, फ़ालन टिम्बर्स, या ट्रेल ऑफ टियर्स।

अब ये नाम हमारी चेतना के फ्रिजों पर चिपकी चुम्बकीय काव्य-पंक्तियाँ भर हैं।

 

तो आप को चाहिए खामोशी का एक लम्हा ?

जबकि हम बेआवाज़ हैं

हमारे मुँहों से खींच ली गई हैं ज़बानें

हमारी आखें सी दी गई हैं

खामोशी का एक लम्हा

जबकि सारे कवि दफनाए जा चुके हैं

मिट्टी हो चुके हैं सारे ढोल।

 

इससे पहले कि मैं यह कविता शुरू करूँ

आप चाहते हैं एक लम्हे का मौन

आपको ग़म है कि यह दुनिया अब शायद पहले जैसी नहीं रही रह जाएगी

इधर हम सब चाहते हैं कि यह पहले जैसी हर्गिज़ न रहे।

कम से कम वैसी जैसी यह अब तक चली आई है।

 

क्योंकि यह कविता 9/11 के बारे में नहीं है

यह 9/10 के बारे में है

यह 9/9 के बारे में है

9/8 और 9/7 के बारे में है

यह कविता 1492 के बारे में है।[1]

यह कविता उन चीज़ों के बारे में है जो ऐसी कविता का कारण बनती हैं।

और अगर यह कविता 9/11 के बारे में है, तो फिर :

यह सितम्बर 9, 1971 के चीले देश के बारे में है,

यह सितम्बर 12, 1977 दक्षिण अफ़्रीका और स्टीवेन बीको के बारे में है

यह 13 सितम्बर 1971 और एटिका जेल, न्यू यॉर्क में बंद हमारे भाइयों के बारे में है।

यह कविता सोमालिया, सितम्बर 14, 1992 के बारे में है।

यह कविता हर उस तारीख के बारे में है जो धुल-पुँछ रही है कर मिट जाया करती है।

यह कविता उन 110 कहानियों के बारे में है जो कभी कही नहीं गईं, 110 कहानियाँ

इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में जिनका कोई ज़िक्र नहीं पाया जाता,

जिनके लिए सीएनएन, बीबीसी, न्यू यॉर्क टाइम्स और न्यूज़वीक में कोई गुंजाइश नहीं निकलती।

यह कविता इसी कार्यक्रम में रुकावट डालने के लिए है।

 

आपको फिर भी अपने मृतकों की याद में एक लम्हे का मौन चाहिए ?

हम आपको दे सकते हैं जीवन भर का खालीपन :

बिना निशान की क़ब्रें

हमेशा के लिए खो चुकी भाषाएँ

जड़ों से उखड़े हुए दरख्त, जड़ों से उखड़े हुए इतिहास

अनाम बच्चों के चेहरों से झांकती मुर्दा टकटकी

इस कविता को शुरू करने से पहले हम हमेशा के लिए ख़ामोश हो सकते हैं

या इतना कि हम धूल से ढँक जाएँ

फिर भी आप चाहेंगे कि

हमारी ओर से कुछ और मौन।

 

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन

तो रोक दो तेल के पम्प

बन्द कर दो इंजन और टेलिविज़न

डुबा दो समुद्री सैर वाले जहाज़

फोड़ दो अपने स्टॉक मार्केट

बुझा दो ये तमाम रंगीन बत्तियां

डिलीट कर दो सरे इंस्टेंट मैसेज

उतार दो पटरियों से अपनी रेलें और लाइट रेल ट्रांजिट।

 

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन, तो टैको बैल [2]की खिड़की पर ईंट मारो,

और वहां के मज़दूरोंका खोया हुआ वेतन वापस दो। ध्वस्त कर दो तमाम शराब की दुकानें,

सारे के सारे टाउन हाउस, व्हाइट हाउस, जेल हाउस, पेंटहाउस और प्लेबॉय।

 

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन

तो रहो मौन ”सुपर बॉल” इतवार के दिन[3]

फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई के रोज़[4]

डेटन की विराट 13-घंटे वाली सेल के दिन[5]

या अगली दफ़े जब कमरे में हमारे हसीं लोग जमा हों

और आपका गोरा अपराधबोध आपको सताने लगे।

 

अगर आपको चाहिए एक लम्हा मौन

तो अभी है वह लम्हा

इस कविता के शुरू होने से पहले।

( 11 सितम्बर, 2002 )

फ़ुटनोट :

  1. 1492 के साल कोलम्बस अमरीकी महाद्वीप पर उतरा था।
  2. टैको बैल : अमरीका की एक बड़ी फास्ट फ़ूड चेन है।
  3. ”सुपर बॉल” सन्डे : अमरीकी फुटबॉल की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के फाइनल का दिन। इस दिन अमरीका में गैर-सरकारी तौर पर राष्ट्रीय छुट्टी हो जाती है।
  4. फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई : अमरीका का ”स्वतंत्रता दिवस” और राष्ट्रीय छुट्टी का दिन। 4 जुलाई 1776 को अमरीका में ,”डिक्लरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस” पारित किया गया था।
  5. डेटन : मिनिओपोलिस नामक अमरीकी शहर का मशहूर डिपार्टमेंटल स्टोर।
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