देश का हदय कहे जाने वाले सागर जिले को हरिसिंह गौर की नगरी भी कहते हैं। जिला व्यापक होने से कई वार्डों में बंटा है। यहाँ अंबेडकर वार्ड में करीब 400 परिवारों (दलित) सालों से बसे हैं। लेकिन इनकी जमीन पटवारी रिकॉर्ड में नहीं दर्ज है। जबकि, अपने-अपने जमीन की रजिस्ट्रियां लोगों के पास हैं। ऐसे में निवासी जमीन पर अपना अधिकार जताने में असमर्थ हैं।
पिछले 50 वर्षों से न जाने कितने छात्रों ने इस छात्रावास में पढ़कर अपने सपने पूरे किए, इसी हॉस्टल से पढ़कर डॉक्टर-मास्टर-इंजीनियर-पीसीएस बने। आज यह छात्रावास अपनी जर्जर अवस्था पर आंसू बहा रहा है।
बिना आधार कार्ड के सरकारी अस्पतालों के ओपीडी जांच और गंभीर स्थिति में भर्ती करने जैसी ज़रुरी प्रक्रिया से इन्कार कर दिया जाता है। देश में ऐसे कई केस सामने आये हैं जब गर्भवती महिला का आधारकार्ड न होने की स्थिति में भर्ती करने से मना कर दिया गया और महिला ने अस्पताल के बाहर खुले में बच्चे को जन्म दिया। आखिर ऐसी आधार(UIDAI ) व्यवस्था किस काम की जो ग़रीब बच्चे को शिक्षा और किसी मरीज को इलाज देने में बाधक बने।
जिसे हम खराब कहकर अपदस्थ कर देते हैं, वह कचरा नहीं है। फेंकी जाने वाली हर चीज का मूल्य होता है। फलों और सब्जियों के छिलके जो हम फेंक देते हैं, उन्हें पेड़-पौधों के उपयोग में आने वाली बेशकीमती खाद के रूप में बदला जा सकता है। इन छिलकों को अगर हम घर के एक गमले में मिट्टी की तहों से दबाकर रखें तो तीन से चार सप्ताह के अंदर यह तथाकथित कचरा बेशकीमती खाद बन जाता है जो पूरी तरह ऑर्गेनिक और पेड़ पौधों के लिए प्राणदायक है।