Saturday, December 14, 2024
Saturday, December 14, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराजनीतिEVM के खिलाफ मतपत्र (बैलेट पेपर) से मतदान के पक्ष में एक...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

EVM के खिलाफ मतपत्र (बैलेट पेपर) से मतदान के पक्ष में एक सत्याग्रह

चण्डीगढ़ के महापौर चुनाव में मतपत्र में की जा रही हेरा-फेरी पकड़ी गई। अगर यही हेराफेरी मशीन के अंदर हो रही होती तो कैमरे से न पकड़ी जाती, शायद वहां मौजूद चुनाव अधिकारी भी न जान पाते कि मशीन के अंदर हेरा-फेरी हो रही है।

चुनाव का पारा चढ़ रहा है और राजनीतिक दल प्रचार में जोर-शोर से लग गए हैं लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद भी एक मुद्दा जो ठण्डा होने का नाम नहीं ले रहा है वह है इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन व उसके साथ लगा हुआ वोटर वेरीफायेबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वी.वी.पी.ए.टी.)।

सरकार में बैठे हुए व भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए लोगों के अलावा आम जनता के मन में बड़े पैमाने पर ई.वी.एम. व वी.वी.पी.ए.टी. के प्रति संदेह घर कर गया है। हरदोई, उन्नाव व सीतापुर के आम अनपढ़ ग्रामीण आपको बताएंगे कि ई.वी.एम. में जो मत वे डालते हैं उन्हें नहीं मालूम वह कहां चला जाता है? सीतापुर की महमूदाबाद तहसील के चांदपुर-फरीदपुर गांव के बनारसी बताते हैं कि पिछले चुनाव में उन्होंने ई. वी. एम. पर हाथी का बटन दबाया था किंतु वी.वी.पी.ए.टी. के शीशे में कमल का चिन्ह दिखाई पड़ा इसलिए उन्हें ई.वी.एम. पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। 

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली व अमरीका में न्सू जर्सी से स्नातकोत्तर अध्ययन करने वाले अभियंता राहुल मेहता, जो राइट टू रिकॉल पार्टी से भी जुड़े हुए हैं, ने एक ऐसी मशीन इज़ाद की है जो 2017 से वी.वी.पी.ए.टी. में लगाए गए काले शीशे की मदद से ई.वी.एम. व वी.वी.पी.ए.टी. द्वारा मतों की चोरी कैसे की जा सकती है दिखाती है। मतदाता जब अपना मत डालेगा तो उसे वी.वी.पी.ए.टी. में वही पर्ची दिखाई देगी जिस पर उसने बटन दबाया।

मशीन को जिस दल को जिताने के लिए प्रोग्राम किया गया है उस दल का बटन दबने पर तो एक पर्ची छपेगी ही किंतु इसके अलावा किसी भी अन्य दल को वोट करने पर (उसके चिन्ह का बटन दबाने पर) पहले मत पर तो विपक्षी दल या स्वतंत्र उम्मीदवार के चिन्ह की पर्ची छपेगी और हरेक अगले मतदाता को वी.वी.पी.ए.टी. पहले बटन पर छपी पर्ची ही 7 सेकेण्ड तक बत्ती जलाकर दिखा देगी किंतु जब बटन दबाने का क्रम बदलेगा तो वी.वी.पी.ए.टी. विपक्षी दल के पहले मत को छोड़ शेष सभी पर्चियां जिस दल को जिताने का प्रोग्राम बन कर डाला गया है उसी के चिन्ह की पर्चियां छाप देगी।

मशीन को प्रोग्राम ही इस तरह से किया गया है कि एक खास दल को शेष दलों के चिन्ह और मत चोरी कर के जिताना है।

अब राहुल मेहता यह नहीं कह रहे कि चुनाव आयोग की मशीनों में इसी तरह हेरा-फेरी होती है। वे सिर्फ यह कह रहे हैं कि यदि ई.वी.एम.-वी.वी.पी.ए.टी. में कोई हेरा-फेरी करना चाहे तो इस तरह से कर सकता है। न तो वे यह कह रहे हैं कि ऐसा हरेक जगह होता है। वे सिर्फ यह कह रहे हैं कि यदि शासक दल चाहे तो उसके हितैषी कम्प्यूटर प्रोग्रामर, सिस्टम्स प्रबंधक व अधिकारियों की मदद से कुछ चुनाव क्षेत्रों में जहां उसे कम मतों से हारने का खतरा है, ऐसा करा सकता है।

ई.वी.एम. के खिलाफ व उसके विकल्प हेतु तमाम आवाजें हैं। वर्तमान में एक विधानसभा क्षेत्र के लगभग 300 मतदान केन्द्रों में से पांच पर चुनाव उपरांत ई.वी.एम. व वी.वी.पी.ए.टी. के आंकड़ों का मिलान किया जाता है। कुछ लोगों की मांग है कि यह मिलान 100 प्रतिशत पर्चियों का होना चाहिए। किंतु राहुल मेहता की मशीन दिखाती है कि यदि मत की चोरी दोनों ई.वी.एम. व वी.वी.पी.ए.टी. में हो रही है तो 100 प्रतिशत पर्चियों का मिलान हो जाएगा और मतों की चोरी पकड़ी भी न जा सकेगी।

कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि वी.वी.पी.ए.टी. से छपी पर्ची मतदाता के हाथ में दी जाए और मतदाता उसे ऐसे साधारण बक्से में डाले जिसमें कोई इलेक्ट्रॉनिक चिप न लगी हो और फिर इन पर्चियों की गिनती मतों के रूप में की जाए। अब यदि वी.वी.पी.ए.टी. की पर्चियों को ही सादे बक्से में डालकर गिनना है तो इससे अच्छा मतपत्र पर ही मतदाता मुहर लगाकर मतपेटी में डाले और मतपत्र ही गिने जाएं। मतदाता और मतपेटी के बीच में ई.वी.एम.-वी.वी.पी.ए.टी. रखने की जरूरत ही क्या है? जिन वजहों से ई.वी.एम. लाया गया था यानी चुनाव प्रक्रिया में कुशलता और शीघ्रता अब वह मकसद ही हल न होगा। अब हम सिर्फ दिखावे या यह महसूस करने के लिए कि हम आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहे हैं ही ई.वी.एम.-वी.वी.पी.ए.टी. का इस्तेमाल करेंगे।

यहां महात्मा गांधी का मोटर-कार पर दृष्टिकोण प्रासंगिक है। गांधी ने कहा था कि यातायात हमारी जरूरत है, उसका वेग नहीं। इसी तरह चुनाव कराना हमारी जरूरत है, ई .वी.एम. और वी.वी.पी.ए.टी. नहीं। यदि मतपत्रों के इस्तेमाल में लोगों का ज्यादा भरोसा है तो हमें थोड़ा समय और श्रम लगा कर भी निष्पक्ष चुनाव हेतु मतपत्र का चयन ही करना चाहिए।

अतः ऐसा प्रतीत होता है कि विधानसभा व संसद के चुनाव के लिए मतपत्र वापस लाना ही सबसे समझदारी वाला समाधान है। स्थानीय निकाय के चुनाव तो मतपत्र से होते ही हैं। जिसका मतलब हुआ कि मतपत्र से चुनाव कराने की पूरी व्यवस्था मौजूद है। विधान सभा व संसद चुनाव में भी हम मतपत्र तो छापते ही हैं उन सरकारी कर्मचारियों के लिए जो अपना मत डाक से देते हैं और 85 वर्ष की उम्र से अधिक वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिए जो घर बैठे मतदान कर सकते हैं। अतः हमें सिर्फ अधिक संख्या में मतपत्र छपवाने की जरूरत है। कई विकसित देश ई.वी.एम. छोड़कर मतपत्र पर वापस चले गए हैं। यह तर्क कि मतपत्र में भी चोरी हो सकती है का वजन अब कम हो गया है क्योंकि अब कैमरों का युग है। जैसे चण्डीगढ़ के महापौर चुनाव में मतपत्र में की जा रही हेरा-फेरी पकड़ी गई। अगर यही हेराफेरी मशीन के अंदर हो रही होती तो कैमरे से न पकड़ी जाती, शायद वहां मौजूद चुनाव अधिकारी भी न जान पाते कि मशीन के अंदर हेरा-फेरी हो रही है।

मैंने इस चुनाव में एक भूमिका ली है कि मैं 20 मई को मतदान के दिन अपने मतदान केन्द्र स्प्रिंगडेल स्कूल, इंदिरा नगर में मतपत्र की मांग करूंगा और यदि मतपत्र न उपलब्ध कराया गया तो बिना मतदान किए मतदान केन्द्र से बाहर आ जाउंगा। इस आशय का ई-मेल मैंने चुनाव आयोग को भेज दिया है और लखनऊ जिलाधिकारी जो मेरे निर्वाचन अधिकारी भी हैं को पत्र देकर सूचित कर दिया है। यह चुनाव का बहिष्कार नहीं है। यदि मुझे मतपत्र दिया जाएगा तो मैं निश्चित रूप से इण्डिया गठबंधन के उम्मीदवार को अपना मत दूंगा।

मेरे कुछ मित्र मेरी इस बात के लिए आलोचना कर रहे हैं कि इससे इण्डिया गठबंधन को नुकसान होगा। मेरा मानना है कि मेरे जैसे सत्याग्रह करने वालों की संख्या मत पाने वाले पहले और दूसरे क्रम पर उम्मीदवारों के मतों के अंतर से कम ही रहेगी। अतः हमारी कार्यवाही से हमारे चुनाव क्षेत्र के अंतिम परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

हां, हमारे कदम से यह जरूर हो सकता है कि चुनाव आयोग यदि ई.वी.एम.-वी.वी.पी.ए.टी. को पूरी तरह से हटाने का निर्णय न भी ले तो अगले चुनाव में हमारे जैसे मतदाताओं के लिए जिनका ई.वी.एम.-वी.वी.पी.ए.टी. पर भरोसा नहीं है के लिए मतपत्र का विकल्प उपलब्ध करा दे।

मेरे कई हितैषी मुझे यह सत्याग्रह न करने की सलाह दे रहे हैं लेकिन मुझे संवेदनहीन चुनाव आयोग पर मतपत्र के पक्ष में कोई निर्णय लेने के लिए दबाव बनाने का इससे बढ़िया कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। यदि कोई मुझे मतपत्र वापस लाने का इसस बेहतर कार्यक्रम सुझा सके तो मैं अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हूं। 

हां, सर्वोच्च न्यायालय से एक उम्मीद है। यदि वह चुनावी बांड की तरह इस मुद्दे पर भी स्पष्ट भूमिका लेते हुए चुनाव आयोग को यह निर्देश दे कि चुनाव मतपत्र से कराए जाएं या कम से कम हमारे जैसे लोगों को जो चुनाव आयोग को पूर्व सूचना दे चुके हैं उनको मतपत्र का विकल्प उपलब्ध कराया जाए तो हमारी समस्या का समाधान हो जाएगा।

लेखक संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव हैं।

संदीप पांडेय
संदीप पांडेय
संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here