Friday, July 5, 2024
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INDIA के समक्ष बहुजन बुद्धिजीवियों ने जारी किया अपील पत्र, सामाजिक न्याय की लड़ाई मजबूत करने की मांग

बीडीएम द्वारा आयोजित डाइवर्सिटी डे पर हुआ एच एल दुसाध की  7 किताबों का विमोचन  देश में जब-जब चुनाव का समय आता है, विभिन्न सामाजिक संगठन राजनीतिक दलों के एजेंडे में अपनी बात शामिल करवाने में जुट जाते हैं। इस मामले में 2007 में बना लेखकों का संगठन बीडीएम कुछ ज्यादा ही सक्रिय रहा है। […]

बीडीएम द्वारा आयोजित डाइवर्सिटी डे पर हुआ एच एल दुसाध की  7 किताबों का विमोचन 

देश में जब-जब चुनाव का समय आता है, विभिन्न सामाजिक संगठन राजनीतिक दलों के एजेंडे में अपनी बात शामिल करवाने में जुट जाते हैं। इस मामले में 2007 में बना लेखकों का संगठन बीडीएम कुछ ज्यादा ही सक्रिय रहा है। लोकसभा चुनाव- 2009 से ही बीडीएम हर महत्वपूर्ण चुनाव से पहले भव्य आयोजन के जरिये अपना एजेंडा राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों में शामिल करवाने का प्रयास करता रहा है। इसी मकसद से संगठन की ओर से हर साल 27 अगस्त को मनाये जाने वाले डाइवर्सिटी डे का आयोजन इस बार दिल्ली के कांस्टटीट्यूशन क्लब में हुआ। जिसमें लोकसभा चुनाव–2024  को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करना क्यों जरुरी है? परिचर्चा का मुख्य विषय रहा। लोकसभा चुनाव 2024 को दृष्टिगत रखकर बहुजन डाइवर्सिटी मिशन और संविधान बचाओं संघर्ष समिति द्वारा आयोजित 17वें डाइवर्सिटी डे को इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस) के समक्ष एक अपील जारी करने का माध्यम बनाया गया।इसलिए आमंत्रित अतिथियों में लेखक-पत्रकारों के बजाय इंडिया से जुड़े नेताओं को प्रधानता दी गयी। इसमें मुख्य अतिथि केसी त्यागी(पूर्व सांसद,मुख्य प्रवक्ता एवं सलाहकार जदयू), उद्घाटनकर्ता कैप्टेन अजय सिंह यादव (राष्ट्रीय अध्यक्ष, एआईसीसी, ओबीसी डिपार्टमेंट) थे, अध्यक्षता आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री व वर्तमान में विधायक मान्यवर राजेन्द्र पाल गौतम ने की।

इस अवसर पर  एच एल दुसाध की लिखित/सम्पादित 7 किताबों का विमोचन भी किया गया। इसके साथ  इंडिया के समक्ष हमारी अपील शीर्षक से एक अपील भी मुख्य अतिथि केसी त्यागी द्वारा अनावृत्त की गई। बीडीएम और संविधान बचाओं संघर्ष समिति की ओर ‘इंडिया’ के समक्ष दस अपील की गयी है। देश के वर्तमान आर्थिक-राजनीतिक हालात को भयावह बताते हुए  अपील पत्र में कहा गया है कि  स्वाधीन भारत के इस भयावह दौर में इंडिया का वजूद में आना इस देश लिए सबसे सुखद घटनाओं में से एक हैं और हम विश्वास करते हैं कि इससे हमारा लोकतंत्र सबकी भागीदारी वाला लोकतंत्र बनेगा तथा सामाजिक अन्याय मुक्त, समतापूर्ण भारत आकार लेगा। जिसका सपना हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने देखा था। ऐसे में हम दलित, आदिवासी, पिछड़ों एवं इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यकों तथा आधी आबादी की आशा और आकांक्षा का प्रतीक बन चुके इंडिया के लिए अपना सर्वस्व देने की घोषणा करते हैं।सामाजिक अन्याय तथा साप्रदायिक नफरत का सैलाब बहाने वाली भाजपा को सत्ता से हटाना आज  की सबसे बड़ी मांग है।

[bs-quote quote=”कर्णाटक विधानसभा चुनाव में सामाजिक न्याय की राजनीति का अभूतपूर्व दृष्टांत स्थापित किया तथा इस क्रम में राहुल गाँधी सामाजिक न्याय की राजनीति के नए आइकॉन के रूप में उभरे। साथ में  हम यह भी मानते हैं कि इतिहास ने साबित कर दिया है कि भाजपा हम वंचित बहुजनों की वर्ग-शत्रु है तो कांग्रेस वर्ग-मित्र।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

अपील में उन विषयों की ओर भी इशारा किया गया है जिससे एनडीए को पराजित किया जा सके।  लिखा गया है कि भाजपा को हराने के लिए सबसे जरुरी है कि इंडिया उसे सामाजिक न्याय की पिच पर खेलने के लिए बाध्य करे। क्योंकि नई सदी का इतिहास इस बात का साक्षी है कि चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करने पर भाजपा हारने के सिवा कुछ नहीं कर सकती। भाजपा दलित, आदिवासी, पिछड़ों को अपने नफरती राजनीति के नशे में इस कदर मतवाला बना दी है कि वे आरक्षण सहित अपने अपने ढेरों अधिकार खोने तथा गुलामों की स्थिति में पहुँचने के बाद भी सचेत नहीं हो रहे हैं।

अपील में राहुल गांधी की उस बात का भी समर्थन किया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा को हराने के लिए सिर्फ विपक्षी एकजुटता ही काफी नहीं है, जरुरत वैकल्पिक विजन की है। चूँकि भाजपा का विजन विशुद्ध सामाजिक न्याय विरोधी विजन है, इसलिए इंडिया भाजपा की हार सुनिश्चित करने के लिए उसके वैकल्पिक विजन:‘सामाजिक न्यायवादी पांचवीं अपील में  कहा गया है कि महंगाई, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता,  आवारा पशु, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था जैसे रूटीन मुद्दे तथा  किसान और  भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर भाजपा का कुछ भी नहीं बिगाड़ा जा सकता। 2019 के लोकसभा चुनाव में किसानों का आन्दोलन  तथा रफायल जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दे खूब उछाले गए पर विपक्ष भाजपा को रिकॉर्ड सीटें जीतने से नहीं रोक पाया। परीक्षित सच्चाई यही है कि भाजपा सिर्फ सामाजिक न्याय के मुद्दों के समक्ष लाचार हो सकती है, जिसका ताजा दृष्टांत इस वर्ष कर्णाटक विधानसभा चुनाव में स्थापित हुआ है!’

छठवें अपील में कहा गया है,’ मंडल के खिलाफ उभरे मंदिर आन्दोलन के जरिये नफरत की राजनीति को ऊंचाई पर पहुंचा कर अप्रतिरोध्य बनी भाजपा के नरेंद्र मोदी ने जिस तरह वर्ग संघर्ष का इकतरफा खेल खेलते हुए राजसत्ता का इस्तेमाल हजारों साल के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हित में किया है, उससे यह मानकर चलना चाहिए कि भारत के  जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के लोग आगामी 25 वर्षों तक अपना वोट भाजपा को छोड़कर अन्य किसी भी दल को ,किसी भी सूरत में नहीं देने जा रहे हैं। ऐसे में इंडिया जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के वोटों से मोहमुक्त  होने की  मानसिकता विकसित करते हुए सारा जोर उन दलित, आदिवासी, पिछड़े और इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यक समुदाय के वोटरों पर लगाये जिनका मोदी-राज में सर्वनाश हुआ है।

इंडिया के समक्ष रखी अपील में कहा गया है कि अगर इंडिया की ओर से सामाजिक न्याय का मुकम्मल एजेंडा घोषित होता है तो भाजपा बंगाल की खाड़ी  में विलीन हो जाएगी और नफरत के नशे में मतवाले अज्ञानी बहुजन इंडिया के पीछे लामबंद हो जायेंगे, ऐसा मानने में हमें कोई द्विधा नहीं!

आठवें में कहा गया है,’ हम मानते है कि भारत में सामाजिक अन्याय की सर्वाधिक शिकार देश की आधी आबादी है, जिसे आर्थिक-सामाजिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगने के कयास लगाये जा रहे हैं।आधी आबादी को शक्ति के स्रोतों में उसका प्राप्य दिलाने बिना सामाजिक न्याय और समतामूलक भारत का सपना, सपना ही बना रहेगा। आधी आबादी को  सामाजिक अन्याय के दलदल से निकालने के लिए जरुरी है कि विभिन्न समुदायों के आरक्षण में पहले 50% हिस्सा उसके महिलाओं को और शेष 50 उस समुदाय के पुरुषों को मिले। अगर सामाजिक अन्याय की सर्वाधिक शिकार आधी आबादी है तो सर्वाधिक अन्यायकारी वर्ग जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग का पुरुष समुदाय है, जिसकी आबादी  तो बमुश्किल साढ़े सात- आठ प्रतिशत है,परन्तु शक्ति के स्रोतों पर कब्ज़ा उसकी आबादी से प्रायः दस गुना ज्यादा है। यदि इंडिया इस वर्ग को उसके संख्यानुपात  रोकने का प्रावधान कर दे तो उसके हिस्से का 60 -70% अवसर अतिरिक्त  अर्थात सरप्लस  हो जायेंगे। फिर यदि इस अतिरिक्त अवसर को सामाजिक अन्याय के शिकार वर्गों  के मध्य वितरित कर दिया जाय तो आसानी से वैसा भारत निर्माण किया जा सकता है, जिसका सपना हमारे राष्ट्र- निर्माताओं ने देखा था!’ अपील नंबर 9 में कहा गया है,’ हम मानते हैं कि नई सदी में कांग्रेस सबसे बड़ी सामाजिक न्यायवादी दल के रूप में उभरी है, जिसने रायपुर के अपने 85वें अधिवेश से लेकर 2023 के कर्णाटक विधानसभा चुनाव में सामाजिक न्याय की राजनीति का अभूतपूर्व दृष्टांत स्थापित किया तथा इस क्रम में राहुल गाँधी सामाजिक न्याय की राजनीति के नए आइकॉन के रूप में उभरे। साथ में  हम यह भी मानते हैं कि इतिहास ने साबित कर दिया है कि भाजपा हम वंचित बहुजनों की वर्ग-शत्रु है तो कांग्रेस वर्ग-मित्र। भाजपा ने जहां राजसत्ता का इस्तेमाल बहुजनों को बर्बाद करने में किया है तो कांग्रेस ने उसका इस्तेमाल इनकी समृद्धि और उन्नति के लिए किया है। आज वंचित बहुजनों, विशेषकर दलित और आदिवासियों मे कुछ लोग आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक क्षेत्र में विशेष उपलब्धि अर्जित किये हैं तथा इनमें समाज को नेतृत्व देने लायक एक मध्यम वर्ग तैयार हुआ है तो उसका अधिकतम श्रेय आजाद भारत के कांग्रेस सरकारों को जाता है।

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अंतिम और 10 वीं अपील में कहा गया है कि हम मानते हैं केवल कार्यपालिका में भागीदारी अर्थात नौकरियों में आरक्षण से ही हमारे राष्ट्र निर्माताओं का समतामूलक भारत निर्माण का सपना पूरा नहीं हो सकता । बात तब बनेगी जब वंचित बहुजनों को देश की धन-दौलत, जमीन-जायदाद, उद्योग-व्यापार,  कल-कारखानों, बाजार का 85% हिस्सा प्राप्त हो। आज के इस पूंजीवाद के दौर में अगर अदानी-अंबानी बिना बैंक कर्ज के कारोबार नहीं कर सकते तो गरीब बहुजन कैसे व्यापार कर लेंगे? गरीब बहुजनों को तो इन धन्नासेठों से कई गुना बैंक कर्ज मिलना चाहिए। हमारी मांग है कि भारत के तमाम बैंकों से दिए जाने वाले कुल बैंक कर्ज का 85% हिस्सा बहुजन समाज के सदस्यों को खुद का व्यवसाय खड़ा करने के लिए मिले  या फिर प्रत्येक बहुजन जब 18 वर्ष की आयु का हो तो उसे अपना व्यापार शुरू करने के लिए कम ब्याज दर पर न्यूनतम एक करोड़ रुपए का बैंक कर्ज मिले। इसके साथ-साथ संविधान को जड़ से उखाड़ फेंकने की जो साजिश प्रधानमंत्री के आर्थिक मामलों के परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबराय को ढाल बनाकर की जा रही है, उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए।

अपील पत्र के माध्यम से यह भी वचन दिया गया है कि संविधान बचाने की यह लड़ाई हम आखिरी सांस तक लड़ेंगे। डाइवर्सिटी डे के रूप में आयोजित यह कार्यक्रम सामाजिक न्याय के मसविदे और जरूरत को जिस तरह से राजनीतिक पृष्ठ पर स्थापित कर रहा है वह एक बड़े सामाजिक बदलाव का प्रस्थान विंदु बन सकती है।

गाँव के लोग
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