बलिया और देवरिया के बीच स्थित सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र अनेक क्लासिक समस्याओं से जूझ रहा है। किसान महँगाई को लेकर बहुत मुखर हैं और कह रहे हैं कि एमएसपी लागू न होने से हम अपनी फसल औने-पौने दाम पर बेचने को विवश हैं जबकि अपनी जरूरत के लिए चीजें महंगे दाम पर खरीदने के लिए मजबूर हैं। खाद की किल्लत तो है ही पहले की तुलना में कम वजन के बावजूद ज्यादा दाम लिया जा रहा है। किसानों का कहना है कि मोदी सरकारी नीतियों के कारण ही ऐसा हो रहा है।
2014 और 2019 के चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों से जो वादे किए वे पूरे ही नहीं हुये। आय दुगुनी नहीं हुई। ऊपर से तीन कृषि कानून लाकर उन्होंने खेती को कॉर्पोरेट के हवाले करने का मंसूबा बांधा था लेकिन साल भर तक चले किसान आंदोलन के कारण कानून वापस करना पड़ा। इस आंदोलन ने किसानों को कई सीख दी। वे समझ गए कि देश के हर हिस्से से संगठित आंदोलन किया जाय तो किसी भी सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सकता है। दूसरी यह कि उनके चारों तरफ पूंजी का शिकंजा कसा जा चुका है। तीसरी बात यह कि चुनाव में किसान नेताओं के सीधे उतरने से कोई खास फायदा नहीं होने वाला है इसलिए अनुकूल राजनीतिक ताकतों को समर्थन देना तो चाहिए ही उनकी नकेल भी पकड़े रखने की कोशिश करनी चाहिए। सलेमपुर लोकसभा के किसानों से बात करते हुये यह बात स्पष्ट है कि किसानों के मुद्दे बहुत दिनों से उपेक्षित किए जा रहे हैं। साथ ही बेरोजगारी का असर भी उनके ऊपर स्पष्ट दिखने लगा है क्योंकि उनके घरों के युवा न केवल निराशा और हताशा के दौर में हैं बल्कि परिवार पर बोझ भी बनते जा रहे हैं।
मनियार इलाके के किसान बसंत कुमार सिंह स्थानीय किसानों की समस्याओं के सवाल पर बोले, ‘यहां के किसानों की जो समस्याएं है वे सिर्फ यहां की स्थानीय समस्याएँ नहीं बल्कि पूरे देश के किसानों की समस्याएं हैं। सरकार से हम किसान दिल्ली में न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग करते रह गए। इस दौरान 750 के लगभग किसानों की मौत हो गई लेकिन आज तक वह मांग पेंडिग में पड़ा हुआ है।’
फिर एमएसपी का सवाल कैसे हल होगा? इस सवाल के जवाब में बसंत कुमार सिंह आगे बोले, ‘हम ऐसी सरकार चाहते हैं जो किसानों के फसलों की खरीद की गारंटी दे। हमारी फसलों का एक निश्चित मूल्य निर्धारित करे।’ वह कहते हैं कि ‘राहुल गांधी ने कहा है कि उनकी सरकार बनने पर एमएसपी पर कानून बनाएंगे।’
आपको क्या लगता राहुल कानून बनाएंगे? बसंत कुमार सिंह कहते हैं ‘राहुल गांधी का तो नहीं पता कि वे क्या करेंगे, लेकिन वर्तमान सरकार ने जो भी वादा किया था उनमें से एक भी पूरा नहीं किया। हर साल दो करोड़ नौकरी और महंगाई को कम करने का वादा किया लेकिन दोनों ही मामले में सरकार फेल रही। लड़के पुलिस में भर्ती के लिए दौड़ लगा रहे थे, लेकिन अब तो उन्होंने भी दौड़ना बंद कर दिया। वे इस सरकार से निराश हैं। बेरोजगारी से युवाओं में निराशा है। निराशा की स्थिति में वे नशे के आदी होते जा रहे हैं। मेरे भी दो बेटे हैं और दोनों ही बेरोजगार हैं। यह चुनाव जो चल रहा है वह अब सरकार बनाम जनता के मध्य हो गया। जनता इस बार बदलाव चाहती है।’
जिस स्थान पर हम लोगों से बातचीत कर रहे थे वहां से घाघरा नदी की दूरी ज्यादा नहीं है। घाघरा नदी में हर साल कई गांव समाते जा रहे हैं। हमने पूछा कि ऐसे में आप लोग इन गांवों को बचाने के लिए किस प्रकार की लड़ाई लड़ रहे हैं? सवाल पर विक्रमपुर पश्चिम के पूर्व प्रधान कंचन कुमार यादव बोले, ‘घाघरा नदी से गांवों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।’
हमने कहा कि इस तरह की भी बातें सुनने में आईं कि गांवों को बचाने के लिए हर गांव को 10-10 करोड़ रूपए दिए गए ताकि किनारों पर पत्थर डालकर कटान को रोका जा सके। क्या यह सही है? इस सवाल पर कंचन कुमार यादव बोले, ‘यह सब फर्जी बात है। हां, बोरी में पत्थर की जगह बालू भरकर डाला गया और पेमेंट पत्थर का कराया गया। किसी से भी इस बात की जानकारी ले सकते हैं आप लोग। पिछली सरकार ने जरूर पत्थर का काम करवाया था लेकिन इस सरकार ने पत्थर का कोई काम नहीं करवाया। अब ये गांव भगवान भरोसे हैं। सिकंदरपुर विधानसभा में दरौली पुल पड़ता है। समाजवादी पार्टी के शासनकाल में इस पर बड़ी तेजी से काम हुआ। पुल के पिलर तक काम हुआ था कि सरकार बदल गई। उसके बाद सरकार बदली और पैसा न मिलने की वजह से ठेकेदार अपना सामन वगैरह लेकर सब चला गया। अब तक वो पुल बनकर तैयार हो गया होता। उसी समय का जनेश्वर पुल बलिया में बनकर तैयार हो गया। जैसे ही वह पुल बना उसकी वजह से घाघरा नदी ने अपनी दिशा बदल दी। इसके बाद से कटान शुरू हो गया। पिछली बार वहां से संजय यादव एमएलए थे। घाघरा के किनारे के लोग कटान की समस्या को लेकर उनसे मिले, लेकिन संजय यादव इस समस्या के निस्तारण के लिए सरकार से पैसा नहीं ला पाए। इसके बाद सरकार तो वही रही लेकिन एमएलए बदल गए। इस बात को रिजवी साहब ने कई बार सदन में उठाया भी लेकिन उनकी बातों पर सरकार ने अभी तक कोई पहल नहीं की। आज जोत वाली उपजाऊ भूमि घाघरा में चली जा रही है और लाचार जनता अपनी जमीन को नदी में समाते हुए देखने के सिवा कुछ भी नहीं कर पा रही है। सांसद रवीन्द्र कुशवाहा और भाजपा के जिलाध्यक्ष संजय यादव से घाघरा के किनारे के लोग कई बार मिले, लेकिन वे लोग एक बार भी घाघरा के किनारे के लोगों का हाल जानने के लिए नहीं गए।’
मोबाइल के व्यापारी अर्जुन गुप्ता अपने कारोबार के सवाल पर बोले, ‘मेरा ही नहीं, यहां जितने भी दुकानदार हैं उनका कारोबार बंद होने की कगार पर है।’ इसके पीछे के कारण को बातते हुए अर्जुन गुप्ता आगे बोले, ‘इसके लिए सरकार का नियम कानून जिम्मदार है। पहले क्या था कि सरकार की ओर से 25 प्रतिशत सामान ऑनलाइन 75 प्रतिशत ऑफ़लाइन खरीद की सुविधा दी गई थी लेकिन इस सरकार ने सौ प्रतिशत ऑनलाइन की सुविधा दे दी। ऑनलाइन सुविधा होने के कारण लोग डायरेक्ट कंपनी से ही मॉल खरीद ले रहे हैं। कंपनी को भी फायदा है और ग्राहक को भीं लेकिन व्यापारियों के कमाने-खाने के रास्ते बंद होते जा रहे हैं। स्थिति यही रही तो आने वाले कुछ ही समय में हमारा सब कुछ खत्म हो जाएगा। आज हम लोगों से सिर्फ वही 10 प्रतिशत लोग सामान खरीद रहे हैं जो ऑनलाइन के विषय में नहीं जानते हैं।’
अर्जुन अपनी बात को समझाते हुए बोले, ‘जब हम कोई माल कंपनी से खरीद कर लाते हैं तो वह हमें महंगा पड़ता है। जैसे दिल्ली से चला माल वाराणसी होते हुए बलिया आया तो भाड़ा जोड़कर वह महंगा पड़ेगा। जैसे कोई माल हम मार्केट में 105 में बेच रहे हैं तो कंपनी ऑनलाइन उसे 90-95 में बेच दे रही है। इसलिए ग्राहक को ऑनलाइन ज्यादा फायदा हो रहा है और वह ऑनलाइन की ओर भाग रहा है।’
यह पूछने पर कि ‘मोदी सरकार ने मुद्रा लोन का बहुत प्रचार किया है। क्या मुद्रा लोन का लाभ आप नहीं ले रहे हैं?’ अर्जुन गुप्ता बोले ‘मुद्रा लोन के तहत जिन लोगों ने पैसा लिया है उसका ब्याज भी आज लोग नहीं भर पा रहे हैं। खाने भर का तो कमा ही नहीं पा रहे हैं लोग ब्याज कहां से भरेंगे। मोदी जी कहते हैं हम व्यापारी हैं लेकिन मैं मोदी से ही पूछता हूं कि आप कैसे व्यापारी हैं कि दूसरे सारे व्यापारियों को खत्म करते जा रहे हैं? यहां तो बड़े व्यापारी और बड़े होते जा रहे रहे हैं और छोटे व्यापारी खत्म होते जा रहे हैं। इसलिए इस बार हम अपने को बचाने के लिए इस सरकार को हटाएंगे।’
मनियर के रहने वाले उपेन्द्र पटेल यह पूछने पर कि ‘यहां का चुनावी माहौल क्या है?’ कहते हैं, ‘यहां से समाजवादी पार्टी जीत रही है।’ किस आधार पर आप जीत का दावा कर रहे हैं? इस सवाल पर उपेन्द्र पटेल बोले, ‘दस साल यहां बीजेपी की सरकार रही लेकिन एक भी काम जनता के हित में नहीं हुआ। यहां पर जितने भी काम हुए हैं वह समाजवादी पार्टी के कार्यकाल के काम हैं। समाजवादी पार्टी ने बलिया जिले को तीन पुल दिया। बलिया हास्पिटल समाजवादी पार्टी का दिया हुआ है। बलिया का विश्वविद्यालय भी समाजवादी पार्टी की ही देन है। भाजपा ने दस साल में क्या दिया? बलिया में ट्रामा सेंटर है। वह चल रहा है।’
‘लेकिन लोग कह रहे हैं कि उसमें तो डॉक्टर ही नहीं हैं?’ इस सवाल के जवाब में उपेन्द्र पटेल बोले, ‘यह तो बीजेपी सरकार को बताना चाहिए कि उसमें डॉक्टर क्यों नहीं हैं।’
यहीं के जनार्दन यादव चुनावी माहौल पर बोले, ‘इस बार सरकार बदलना है। रोजगार और महंगाई की समस्या अपने चरम पर है लेकिन सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। हर घर में आपको एक दो बेरोजगार मिल जाएंगे। लड़के फौज की तैयारी कर रहे थे। मोदी जी अग्निवीर योजना लाए। उम्र निकल गई। अब मोदी जी पकौड़ा बेचने की बात कर रहे हैं।’ नौजवान सरकार का विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं? इस सवाल पर जनार्दन यादव बोले, ‘लड़के डर के मारे नहीं बोल रहे हैं। सरकार जेल में डाल देगी।’ ‘डर के आगे जीत भी तो है। वह जीत कैसे होगी?’ इस पर जनार्दन यादव बोले, ‘सत्ता को बदलकर उस जीत को हम हासिल करेंगे।’
अधिवक्ता जनमेजय यादव सरकार की नीतियों से काफी रोष में दिखे बोले, ‘एक अध्यापक का काम बच्चों को शिक्षा देना होता है लेकिन आज उनसे शिक्षण के कार्य के अलावा दूसरे बहुत सारे काम लिए जा रहे हैं। जिससे शिक्षा का स्तर दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है। यही सरकार की नीति है। सरकार नहीं चाहती कि लोग पढ़े लिखें। वह नहीं चाहती कि लोग पढ़ लिखकर अपने अधिकारों को जाने।’
मनियर के सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक न्याय मोर्चा संगठन चलाने वाले दिनेश राजभर से जब यह जानने का प्रयास किया गया कि एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते आप यहां किस तरह की समस्या देख रहे हैं?
तब दिनेश राजभर बोले, ‘आज हमारे देश में संविधान को बदलने की बात हो रही है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक ऐसा नहीं हुआ कि भारतीय संविधान को किसी सरकार ने बदलने की बात की हो। एक पार्टी विशेष के लोगों को कुछ भी बोलने की छूट है। वहीं दूसरी ओर जब एक छात्र अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतरता है तो उसके बदले उसे लाठियां खानी पड़ रही हैं। गलत मुकदमों में फंसाया जाता है।’
यह पूछे जाने पर कि सामाजिक न्याय में राजभर समाज को कितनी भागीदारी मिली है? दिनेश राजभर बोले, ‘देखा जाय तो उत्तर प्रदेश में राजभर समाज को न तो नौकरी और न ही शिक्षा में कुछ मिला। राजभर समाज की 99 प्रतिशत आबादी अपनी मेहनत के दम पर मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहा है।’
अभी राजभर समाज के एक नेता उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। इनके अलावा एक और राजभरों के नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं। ऐसे में राजभर समाज की समस्याओं को कौन उठाएगा? इस सवाल पर दिनेश राजभर बोले, ‘अभी तक राजभर के नाम पर जो भी नेता आए हैं वे सब ढकोसलाधारी नेता ही हैं। वे अपने आपको राजभर समाज का अगुवा मानते हैं। रमाशंकर राजभर जो इंडिया गठबंधन के प्रत्यशी हैं राजभर समाज उनको ही वोट करेगा।’
हमने उनसे पूछा कि ‘एक आंकड़े के आधार पर यह बताइए कि पूर्वांचल में राजभर समाज की क्या स्थिति है?’ इस सवाल पर दिनेश राजभर बोले, ‘पूर्वांचल में आज भी 98 प्रतिशत राजभर भूमिहीन हैं। अपने खेतों में या किसी के यहां मजदूरी करके या कहीं सड़क बन रही है तो वहां, नहीं तो दूसरे प्रदेशों में जाकर मेहनत मजदूरी कर किसी तरह से अपना जीवनयापन कर रहे हैं। लेकिन उनकी जो कमाई है वह इतनी नहीं है कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकें और खुद अच्छा खाना खा सकें। इसी कारण से राजभर समाज के जो अगुवा बनते हैं उनसे लोग घृणा करने लगे हैं।’
स्थानीय निवासी कंचन आनंद चैरसिया बिजनेस करते हैं । कोचिंग चलाते हैं। उसके अलावा एक विद्यालय में पढाते भी हैं। कंचन आनंद तीन काम करते हैं तब जाकर इनके परिवार की रोजी-रोटी चलती है। बावजूद सबके आज यहां किस तरह की समस्याएं हैं, जिन पर फोकस करने की जरूरत है? इस सवाल पर कंचन आनंद बोले, ‘मैं तो मानता हूं कि मोदी सरकार में काम हुआ है।’ एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया, ‘मैं एक घर में कोचिंग पढ़ाने गया हुआ था। घर की दादी ने कहा बेटा रुको मैं आपके लिए चाय बना देती हूं। मैंने कहा कि दादी जी आप कब तक चूल्हा जलाएंगी रहने दीजिए। तो दादी जी बोलीं, ‘नहीं बेटा घर में गैस आ गई है, इसलिए चूल्हा नहीं जलाना है। बस दो ही मिनट लगेगा। तो मोदी के आने से कहीं से कहीं विकास तो हुआ है। इसे लोग मानें या न मानें। ऐसे ही यहां के कई राजभर परिवार के लोगों को पीएम आवास मिला। तो यह कहना कि काम नहीं हुआ है ऐसा नहीं कहा जा सकता।’
इसी इलाके के मनन सोनी एक छात्र हैं। छात्रों की समस्या के सवाल पर बोले, ‘मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र हूं। कोचिंग पढ़ाकर अपना खर्च भी निकालता हूं। एक छात्र कितनी कठिनाइयों से पढ़ाई करता है और उसके बाद पेपर लीक हो जाए तो उसके ऊपर क्या गुजरती है उसकी पीड़ा कोई दूसरा नहीं समझ सकता। योगी सरकार जितनी भी परीक्षाएँ करवाई सबके पेपर लीक हो गए। दोषियों के घर बुलडोजर चलाने की बात कही गई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। शिक्षा पर सरकार की ओर से 18 प्रतिशत टैक्स लग रहा है जो सबसे बड़े दुख की बात है। सरकार की नीतियों के चलते बड़ी संख्या में सरकारी स्कूल बंद होते जा रहे हैं। देखा जाय तो केवल उत्तर प्रदेश में ही बड़े पैमाने पर प्राथमिक विद्यालय बंद हुए हैं। ऐसे में लोग प्राइवेट स्कूलों की ओर भाग रहे हैं। 18 प्रतिशत जीएसटी लगने के कारण प्राइवेट स्कूलों की कॉपी-किताब इतनी महंगी हो गई है कि लोग खून के आंसू रो रहे हैं। एलकेजी और यूकेजी में पढ़ने वाले बच्चों के मां-बाप की कमर टूट जा रही है। ऐसा करने के पीछे सरकार का मकसद साफ नजर आ रहा है कि वह नहीं चाहती कि आपके बच्चे पढ़-लिखकर शिक्षित हों। वे अपने अधिकारों को जाने।’
‘क्या आपको लगता है कि सरकार आपको रोजगार देने में असमर्थ रही? अथवा क्या वह आपको रोजगार नहीं देना चाहती? इस सवाल पर मनन सोनी बोले, ‘बिल्कुल, यह सरकार रोजगार के मामले में विफल रही। सरकार की नियति रोजगार देने की नहीं है। इस सरकार की मंशा संविदा पर ही लोगों से नौकरी करवाने की है। कोविड के नाम पर बीजेपी को करोड़ों रूपए का चंदा मिला। कोविशील्ड वैक्सीन लोगों को लगाई गई और जिस प्रकार के उसके दुष्प्रभाव की बातें सामने आ रही हैं उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? राम मंदिर के नाम पर जो चंदा मिला उसका लेखा-जोखा क्या जनता को दिया गया?’
लोगों के बीच इस बात को लेकर गहरी बेचैनी दिखी कि इन तमाम प्रकार की समस्याओं से कैसे निजात पाया जा सकता है? मनन सोनी कहते हैं ‘अपने वोट की चोट से जनता किसी भी सरकार को सबक सिखा सकती है। मैं भी उसी हथियार का प्रयोग कर सरकार को सबक सिखाने की सोच रहा हूं।’
देखा जा सकता है कि छात्र, किसान और मजदूर वर्ग सभी इस सरकार की नीतियों, कामों से नाखुश हैं। लोकसभा के चार चरणों के चुनाव हो चुके हैं और तीन चरणों का चुनाव अभी भी बाकी है। ऐसे में लोगों की नाराजगी बीजेपी को कितना भारी पड़ेगी यह चार जून को ही पता लगेगा।