बलिया। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में कार्यरत एक जवान के खिलाफ फर्जी निवास प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हासिल करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गयी है। पुलिस के एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी है।
अपर पुलिस अधीक्षक (एएसपी) अनिल कुमार झा ने बताया कि सीआईएसएफ के एक उप सेनानायक की शिकायत पर बांसडीह रोड थाना क्षेत्र के पटखौली शेर गांव के निवासी सुधीर कुमार पाठक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
उन्होंने बताया कि शिकायत में उल्लेख किया गया है कि पाठक की नियुक्ति सीआईएसएफ के दुर्गापुर स्टील संयंत्र में आरक्षक के पद पर 25 अगस्त 2023 को हुई थी। इस दौरान पाठक ने स्वयं को ओडिशा के बरगढ़ जिले का निवासी बताया था तथा इस आशय का निवास प्रमाणपत्र दाखिल किया था।
उन्होंने बताया कि स्थानीय तहसीलदार की जांच रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ है कि प्रमाणपत्र उनके स्तर से जारी नहीं किया गया था और पाठक बरगढ़ का निवासी नहीं है।
पुलिस के अनुसार पाठक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467, 468 व 471 (दस्तावेजों में हेराफेरी) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी है।
फर्जी प्रमाणपत्र लगाकर नौकरी प्राप्त करने का यह कोई पहला मामला नहीं है । इससे पहले भी देश में बहुत सारे लोगों ने फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर नौकरियां हासिल की हैं।
इस प्रकार का एक मामला इंदौर में सामने आया था। यहां फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल करने वाले व्यक्ति को सत्र न्यायालय ने 2 फरवरी 2024 को दस वर्ष कठोर कारावास की सजा सुनाई। आरोपित का नाम सत्यनारायण वैष्णव है, जो इंदौर का रहने वाला है। जांच में यह बात सामने आई कि आरोपित वैष्णव ब्राह्मण है लेकिन उसने कोरी जाति का प्रमाण पत्र लगाकर नौकरी प्राप्त की है। आरोपित का नाम सत्यनारायण वैष्णव है और वह लक्ष्मीपुरा कालोनी इंदौर का रहने वाला है।
24 सितम्बर 2019 को दिल्ली की एक अदालत ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिये दो सरकारी नौकरियां पाने वाले एक व्यक्ति को पांच साल कैद की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि उसने वैध दावेदार को लाभ प्राप्त करने से वंचित कर दिया। अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अनु अग्रवाल ने रमापति महतो नाम के व्यक्ति को यह सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि दोषी व्यक्ति ने संविधान के साथ धोखा किया और उस पर 75 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
महतो ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र का इस्तेमाल कर दो नौकरियां पाई। पहली नौकरी उसने दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में पाई, जबकि दूसरी नौकरी कर विभाग में निरीक्षक के रूप में पाई। महतो का 28 जनवरी 1985 को जारी किया गया अनुसूचित जनजाति (एसटी) प्रमाणपत्र जांच के दौरान फर्जी पाया गया। दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश पर सीबीआई ने उन मामलों की जांच शुरू की थी जिनमें लोगों ने सरकारी नौकरियां पाने के लिए फर्जी प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल किया था। इसके बाद महतो के खिलाफ फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी का एक मामला दर्ज किया गया था।
यह मामला भी फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी हासिल करने का ही है। लेकिन मजेदार बात तो यह है कि व्यक्ति ने फर्जी तरीके से नौकरी प्राप्त कर रिटायर भी हो गया। उसके बाद व्यक्ति की फर्जीगिरी पकड़ में आई। इस बीच शिकायत मिलने के बावजूद प्रशासन कुंभकर्णी नींद सोता रहा।
मामला गाजीपुर जिले के सदर कोतवाली का है जहां एक शख्स ने राजस्व विभाग में चपरासी की नौकरी फर्जी दस्तावेज के आधार पर हासिल की। शिकायतकर्ता लगातार इसकी शिकायत करता रहा। लेकिन विभाग पर कोई असर नहीं पड़ा। वह 2008 में रिटायर भी हो गया। वहीं शिकायत के आधार पर फर्जी तरीके से नौकरी करने वाले शख्स के ऊपर 419, 420, 467, 468 का मामला भी दर्ज हुआ। 11 अक्टूबर 2008 को इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई।
फर्जी प्रमाणपत्र पर नौकरी करने की जानकारी रिटायर होने के बाद नहीं बल्कि सालों से शासन-प्रशासन के संज्ञान में थी। इसके बाद भी कोई कार्रवाई न होना हैरान करने वाली बात है। जिले के सदर कोतवाली इलाके के सकलेनाबाद में रहने वाले संतोष गुप्ता फर्जी प्रमाणपत्र से चपरासी की नौकरी की। इस बात की शिकायत करने के लिए लोग पिछले कुछ समय से अधिकारियों और उनके कार्यालयों और का चक्कर लगाते रहे, लेकिन अफसरशाही मौन ही रही। लोगों ने न जाने कितनी बार तहसील दिवस और जनता दर्शन आदि में सैकड़ों शिकायत पत्र दिए। बावजूद इसके उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इसी प्रकार से उत्तराखंड के सितारगंज में एक मामला सामने आया। जन्म प्रमाणपत्र में कम आयु दिखाकर बासमती राय नामक एक महिला ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ती की नौकरी प्राप्त कर ली। 7 अक्टूबर 2023 को पुलिस ने महिला को कोर्ट में पेश किया। कोर्ट के आदेश पर महिला को जेल भेज दिया गया। तत्कालीन एसपी सिटी मनोज कत्याल ने बताया था कि जिला कार्यक्रम अधिकारी उदय प्रताप सिंह ने एक तहरीर दी थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ती बासमती ने जन्म प्रमाण पत्र में कम आयु दिखाकर नौकरी प्राप्त की है।
प्रमाणपत्र में पाया गया कि बासमती की असली जन्मतिथि तीन अक्टूबर 1964 को गलत तरीके से तीन अक्टूबर 1972 कर दिया गया। इस पर आरोपी महिला के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468 व 471 के तहत के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई थी। मामले की विवेचना के बाद आरोप सही पाए जाने के बाद महिला को गिरफ्तार कर कोर्ट के सामने पेश किया गया । कोर्ट के आदेश के बाद महिला को जेल भेज दिया गया।
फर्जीवाड़े के पीछे का कारण
इस तरह के फर्जीवाड़े के पीछे का सबसे बड़ा कारण नौकरियों की कमी है। केन्द्र में जब से मोदी की सरकार आयी है तब से सरकारी नौकरियों में भारी मात्रा में कटौती की गई। मोदी ने सत्ता में आने से पहले एक करोड़ युवाओं को नौकरी देने का वादा किया था। सत्ता में आने के बाद से मोदी ने सरकारी नौकरियों पर कैंची चलाना शुरू कर दिया। सरकारी संस्थाओं का निजीकरण शुरू कर दिए। सारे काम ठेके पर दिए जा रहे हैं। किसी विभाग में वैकेंसी आ भी रही है तो पांच -पांच साल बीत जा रहा है और वैकेंसी पूरी नहीं हो पा रही है। इससे साल दर साल बेरोजगारों की फौज खड़ी होती जा रही है। देखा जाय तो अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन परीक्षाएं कराई और तीनों ही परीक्षाएं धांधली की भेंट चढ़ गईं।
ऐसे में युवाओं के सामने कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। वे किसी भी प्रकार से नौकरी प्राप्त करना चाह रहे है। नौकरी की इसी चाह के कारण वे फर्जी तरीका अपनाने में भी पीछे नहीं हट रहे हैं। हालांकि आज सब कुछ ऑनलाइन हो चुका है, उसके बावजूद भी बेरोजगार युवा अपने आपको खतरे में डालकर फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी प्राप्त कर रहा है।
बहरहाल, जो भी हो फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी प्राप्त करने वाले लोगों पर लगाम लगाने में सरकार नाकाम है। नौकरी के अकाल के इस दौर में एक तरफ जहाँ सारी योग्यताओं के बावजूद अच्छे युवा नौकरी पाने से वंचित हो जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर बिना योग्यता के बावजूद फर्जीगिरी करके ढेरों लोग मलाई काट रहे हैं।