Sunday, March 9, 2025
Sunday, March 9, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराजनीतिछत्तीसगढ़ स्थानीय निकाय चुनाव : क्या कांग्रेस ने पहले से हार स्वीकार...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ स्थानीय निकाय चुनाव : क्या कांग्रेस ने पहले से हार स्वीकार कर ली थी?

छत्तीसगढ़ स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा ने बाजी मारी है। हालांकि उसकी इस जीत से किसी को भी आश्चर्य नहीं है। कांग्रेस की हार को लेकर भी लोगों में कोई चिंता नहीं दिखती। शायद कांग्रेस को भी इसका दुख नहीं है, क्योंकि वह दिखावे के लिए और हारने के लिए ही चुनाव लड़ रही थी। लेकिन जो लोग संघ-भाजपा के रूप में देश पर मंडरा रहे खतरे को जानते-समझते हैं, उन्हें इस बात का दुख अवश्य है कि पिछले एक साल में कांग्रेस का जनाधार और कमजोर हुआ है और जिन सीटों पर विधानसभा चुनाव में उसे बढ़त हासिल थी, उन क्षेत्रों के नगर निकायों में भी उसने अपनी बढ़त खो दी है।

छत्तीसगढ़ में 173 नगर निकायों, जिनमें 10 नगर निगम, 49 नगर पालिका परिषद तथा 114 नगर पंचायत शामिल हैं, में हुए चुनावों के नतीजे घोषित हो गए हैं। इन चुनावों में कुल 3200 वार्ड थे, जिनमें से भाजपा ने 1868, कांग्रेस ने 952 तथा अन्य ने 227 वार्डों में विजय प्राप्त की है।

भाजपा की जीत में आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि  विधान सभा चुनाव के ठीक एक साल बाद होने वाले नगर निकाय चुनावों में साधारणतः सत्ता पक्ष का पलड़ा ही भारी रहता है। कांग्रेस की हार का भी दुख नहीं है, क्योंकि कांग्रेस की हार तय थी। शायद कांग्रेस को भी इसका दुख नहीं है, क्योंकि वह दिखावे के लिए और हारने के लिए ही चुनाव लड़ रही थी। लेकिन जो लोग संघ-भाजपा के रूप में देश पर मंडरा रहे खतरे को जानते-समझते हैं, उन्हें इस बात का दुख अवश्य है कि पिछले एक साल में कांग्रेस का जनाधार और कमजोर हुआ है और जिन सीटों पर विधानसभा चुनाव में उसे बढ़त हासिल थी, उन क्षेत्रों के नगर निकायों में भी उसने अपनी बढ़त खो दी है।

10 नगर निगमों के सभी महापौर पदों पर भाजपा ने कब्जा किया है। नगर पालिका परिषदों के सिर्फ 8 अध्यक्ष पदों पर कांग्रेस जीती है, जबकि आम आदमी पार्टी ने 1 और निर्दलीयों ने 5 पद जीते हैं। भाजपा 35 अध्यक्ष पदों पर जीतने में सफल रही है। इसी प्रकार,  नगर पंचायत अध्यक्षों की केवल 22 सीटों पर ही कांग्रेस जीत पाई है, जबकि बसपा ने 1 और निर्दलीयों ने 10 सीटें जीती हैं। उल्लेखनीय है कि इन पदों पर चुनाव सीधे जनता के द्वारा किया गया है, न कि वार्ड के पार्षदों द्वारा।

इन नगर निकाय प्रमुखों के पदों पर कांग्रेस को कुल मिलाकर 31.25% वोट मिले हैं और वार्ड के पार्षद सीटों पर 33.58%, जबकि भाजपा को क्रमशः 56.04% तथा 46.62% वोट मिले हैं। विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को क्रमशः 42.23% तथा 46.27% वोट मिले थे। विधानसभा चुनाव के वोटों से तुलना करने पर कांग्रेस के जनाधार में गिरावट स्पष्ट है।

अपनी जिन कमजोरियों के कारण कांग्रेस विधानसभा चुनाव हारी, एक साल में भी उसने अपनी उन कमजोरियों को दूर नहीं किया। कांग्रेस पार्टी का संगठन अस्त व्यस्त और गुटबाजी से ग्रस्त है, जिसका नतीजा था कि एकजुट चुनाव प्रचार नहीं कर पाए। जनाधार वाले जमीनी नेताओं को टिकट देने के बजाए उसने पैसे खर्च कर सकने वाले प्रत्याशियों को तरजीह दी, लेकिन भाजपा के धन बल के आगे वे कहीं टिक नहीं पाए। अपने शासन काल में उसने बड़े-बड़े भ्रष्टाचार किए थे, जिसकी जांच का हवाला देते हुए भाजपा राज ने कई कांग्रेसी नेताओं और अफसरों को गिरफ्तार किया है। इन घोटालों का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है और वह भाजपा के आक्रामक हमलों को नहीं झेल पाई। उदार हिंदुत्व की नीतियों पर अमल जारी है, जिससे भाजपा की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की नीति का वह मुकाबला नहीं कर पाई। कांग्रेस का कोई राजनैतिक और नीतिगत प्रचार नहीं था। उसने अपना पूरा समय भाजपा नेताओं पर ‘पलटवार’ करने में ही लगाया। भाजपा भी ऐसा ही चाहती थी। नीतियों के मामले में दोनों खामोश थे। इसका नुकसान भी कांग्रेस को उठाना पड़ा।

लेकिन सबसे निचले स्तर के इन चुनावों ने यह भी दिखा दिया है कि सामान्य तौर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ध्रुवीकृत राजनीति में, प्रदेश की 15-20 प्रतिशत जनता आज भी कांग्रेस और भाजपा के राजनैतिक प्रभाव से बाहर है। यही कारण है कि निर्दलीयों सहित 12% पार्षद सीटें गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीती हैं। छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद से ही यह स्थिति बनी हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को 2% तथा आप को 1% वोट मिले थे और ये दोनों पार्टियां एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। बहरहाल, इन नगर निकायों के चुनाव में आप पार्टी ने 1 नगर पालिका अध्यक्ष और बसपा ने 1 नगर पंचायत अध्यक्ष का पद जीता है। ये जीतें जिन क्षेत्रों में हुई है, वहां उनके व्यापक राजनैतिक प्रभाव को दिखाता है। भाकपा के कुल 6 वार्ड पार्षद जीते हैं – किरंदुल में 5 और राजनांदगांव में एक। बाकीमोंगरा पालिका क्षेत्र में माकपा ने 4 पार्षद सीटों पर चुनाव लड़ा था, 3 में वह दूसरे स्थान पर रही। इस क्षेत्र में ये नतीजे माकपा के संघर्ष के प्रभाव को दर्शाते हैं। कांग्रेस-भाजपा के राजनैतिक प्रभाव से बाहर की यह जनता एक मजबूत भाजपा विरोधी मोर्चे के सपने को साकार करने में मददगार साबित हो सकती है, यदि कांग्रेस इस दिशा में राजनैतिक पहलकदमी करें और वामपंथ का इसे समर्थन मिले। लेकिन ऐसे किसी भी मोर्चे के साकार होने की पहली शर्त यही होगी कि आम जनता जिन समस्याओं से जूझ रही है, उस पर जमीनी स्तर पर एक तीखा और निरंतर संघर्ष छेड़ा जाएं, ताकि वह आम जनता का विश्वास जीत सके। इसके साथ ही उदार हिंदुत्व या हिंदुत्व की राजनीति से किसी भी प्रकार के समझौते की प्रवृत्ति के खिलाफ भी इस मोर्चे को चौकसी बरतनी होगी,  ताकि हमारी राजनीति में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत की रक्षा की जा सके।

संजय पराते
संजय पराते
लेखक वामपंथी कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here