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ग्राउंड रिपोर्ट

देवरिया: हत्या के 28 साल बाद थोक में ‘इंसाफ’, मृतक के परिजन सहित 40 लोगों को जेल

उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित एक गाँव बलुअन में 28 साल पहले हुई एक घटना के सिलसिले में 16 फरवरी को फैसला आया जिसमें 41 लोगों को दस-दस वर्ष कारावास की सज़ा हुई है। एक साथ इतने लोगों को सज़ा दिये जाने को लेकर जिले में तरह-तरह की चर्चा है। ज़्यादातर लोग इसे गलत और एकतरफा फैसला बता रहे हैं।

देवरिया जिला न्यायालय ने 16 फरवरी को 28 साल पुराने एक मुकदमे का फैसला सुनाया। डकैती के इस मामले में 40 लोगों को एक साथ जेल हुई। इसके साथ ही हत्या के चार आरोपियों में से तीन को बरी कर दिया गया और एक को आजीवन कारावास की सज़ा हुई। हत्या और डकैती के ये मामले एक ही गाँव के हैं और एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

घटना उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित एक गाँव बलुअन की है, जब 28 साल पहले एक वृद्धा और उसके डेढ़ साल के पौत्र की हत्या हुई थी। हत्या के पीछे एक झगड़ा बताया जाता है। लोगों के मुताबिक गाँव के एक सम्पन्न और दबंग व्यक्ति अजय कुमार श्रीवास्तव उर्फ मुन्ना की बाइक से एक युवक की साइकिल टकरा गई थी जिसके बाद उसके साथ मारपीट हुई थी। दूसरे दिन जब युवक के पिता अपने पड़ोसियों के साथ अपने बेटे को मारने-पीटने का कारण जानने गए तो प्रतिपक्षी ने बंदूक निकाल ली और छत पर चढ़कर फायरिंग शुरू कर दी। इसमें एक वृद्धा, उसके पौत्र, आईपीएफ के स्थानीय नेता रामकिशोर वर्मा को गोली लगी। मौके पर वृद्धा और उसके पौत्र की मृत्यु हो गई। गंभीर रूप से घायल रामकिशोर वर्मा इलाज के बाद बच गए।

मृतक के परिवार द्वारा अजय कुमार श्रीवास्तव सहित उसके परिवार के तीन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज़ कराया गया।  इसके बाद श्रीवास्तव परिवार ने गाँव के 59 लोगों के खिलाफ डकैती का प्रकरण दर्ज़ कराया। हत्या के मामले में अजय कुमार श्रीवास्तव उर्फ मुन्ना को आजीवन कारावास और दस हज़ार रुपए अर्थदण्ड तथा दूसरे पक्ष के रामप्रवेश यादव, रामकिशोर वर्मा, प्रभुनाथ, राधा किशुन, जलेश्वर, नथुनी, शिवनाथ, कौशल किशोर, अमरनाथ शर्मा, रमायन, किशुनदेव, पारस, रामकैलाश, बलिस्टर, गंगासागर, योगेंद्र, चोकट, गणेश, लालबहादुर, सत्यनारायण, सत्यनारायन बरई, केशव शर्मा, सुरेन्द्र, शेषनाथ, हरिन्द्र, संतोष, दिनेश, स्वामीनाथ, हरिचन्द्र, हरिलाल, भोला, राधेश्याम, रामाश्रय, बब्बन, बुनेला, हरेराम, छोटेलाल, राजकिशोर, हंसनाथ और रतन को 10-10 साल के कारावास और 1-1 हज़ार रुपए अर्थदण्ड की सज़ा सुनाई गई।

हत्या के आरोप से जिन लोगों को बरी किया गया है उनमें राजू श्रीवास्तव, दीपू श्रीवास्तव तथा मोहन श्रीवास्तव शामिल हैं। अपर सत्र न्यायाधीश इन्दिरा सिंह ने 12 फरवरी 2024 को 58 पृष्ठ के फैसले में कहा है कि उपरोक्त के खिलाफ अभियोजन पक्ष दोष सिद्ध करने में सफल नहीं हो सका है जिस कारण इन्हें दोषमुक्त किया जा रहा है। दो अन्य नामजद लोगों में रामनाथ की मृत्यु हो चुकी है और रिंकू श्रीवास्तव घटना के समय नाबालिग था।

विगत अट्ठाइस वर्षों में इस केस से जुड़े ग्यारह लोगों की मृत्यु हो चुकी है। सात लोग घटना के समय नाबालिग थे। सभी को वाराणसी केंद्रीय कारागार भेज दिया गया है। एक ही गाँव के इतने लोगों को एक साथ सज़ा होने से गाँव में सन्नाटा पसर गया है और लोग भयभीत हैं। लोगों का कहना है कि यह सच है कि श्रीवास्तव परिवार ने हत्या की लेकिन उसने गाँव के लोगों पर डकैती और हमले का फर्जी मुकदमा लिखवाया और इतने लोगों को एक साथ इसलिए जेल भेजा गया क्योंकि वे गरीब मजदूर हैं।

घटना की पृष्ठभूमि

मामले की तह में जाने जाने पर पता चलता है कि इसके पीछे सामंती शोषण-उत्पीड़न और सामंत-पुलिस गँठजोड़ के विरुद्ध खेतिहर मजदूरों के प्रतिरोध की कहानी है जिसे दबाने के लिए पहले उनके ऊपर गोलियां चलाई गईं और जब इसके खिलाफ मजदूरों ने मुकदमा दर्ज़ कराया तो पुलिस की मिलीभगत से 59 लोगों पर डकैती का मामला बनाया गया।

स्थानीय लोगों बताते हैं कि 17 जनवरी 1995 को गाँव का एक किशोर छोटेलाल (पुत्र शिवनाथ) साइकिल सीख रहे थे। इसी बीच गाँव के सामंत अजय कुमार श्रीवास्तव अपनी मोटरसाइकिल से उधर से गुजरे और छोटेलाल उनसे टकरा गए। इस पर अजय कुमार श्रीवास्तव ने छोटेलाल को कई थप्पड़ मारे। इसके विरोध में छोटेलाल ने भी गाली दी जिससे चिढ़कर अजय श्रीवास्तव ने छोटेलाल की बुरी तरह पिटाई कर दी।

जब यह खबर गाँव में फैली तो छोटेलाल के परिवार और पड़ोसियों ने रोष व्यक्त किया और अगले दिन दस बजे वे लोग अजय कुमार श्रीवास्तव के घर यह पूछने के लिए पहुंचे कि आखिर उन्होंने लड़के को क्यों मारा। यह बात अजय कुमार श्रीवास्तव और उनके परिवार वालों को नागवार गुजरी कि उनकी बेगारी करने वाले लोग उनसे सवाल पूछने आ गए।

घर में से अपनी लाइसेंसी बंदूक और दूसरे हथियार लेकर पूरा परिवार छत पर चढ़ गया और फायरिंग करने लगा। फायरिंग में एक वृद्धा और उनका डेढ़ साल का पौत्र मारे गए। आईपीएफ के एक राजनीतिक कार्यकर्ता रामकिशोर वर्मा को भी गोली मार दी। वह बुरी तरह घायल हो गए। इस घटना में गोली लगने से गांव के चार-पांच अन्य लोग भी घायल हुए थे। प्रतिक्रिया में ग्रामीणों ने भी ईंट-पत्थर चलाये।

 अपराधियों को बचाने और ग्रामीणों को फँसाने का तानाबाना 

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के देवरिया जिला सचिव श्रीनाथ कुशवाहा के मुताबिक ‘सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस ने घायलों के साथ अन्य लोगों को थाने में लाकर रख दिया जबकि घायलों को तत्काल अस्पताल ले जाने की जरूरत थी। रामकिशोर वर्मा कि हालात ज्यादा गंभीर थी। वे लगभग मरणासन्न थे लेकिन विधायक के दबाव में पुलिसवाले घायलों का इलाज कराने के बजाय सलेमपुर थाने में ही मारना चाहते थे, लेकिन गांव के लोगों के धरना-प्रदर्शन और सड़क जाम करने के कारण पुलिसवाले दबाव में आए और घायलों का इलाज कराया।’

कुशवाहा के मुताबिक, ‘अजय कुमार श्रीवास्तव और उनके परिवार के तीन अन्य लोगों के खिलाफ ग्रामीणों ने हत्या का मामला दर्ज़ कराया, लेकिन कुछ ही दिनों बाद अजय कुमार श्रीवास्तव के परिवार की ओर से ग्रामीणों के खिलाफ फ़र्जी मामले दर्ज़ कराने के लिए पैसे और पहुँच का इस्तेमाल किया जाने लगा।’

वे बताते हैं, ‘इसके बाद पुलिस ने गांव में जाकर बच्चों से जानकारियां हासिल की। लोगों के नाम, उम्र और वल्दियत का पता लगाया और उसके आधार पर एफआईआर दर्ज कर लिया गाया। जिन लोगों के खिलाफ एफआईआर हुई खुद उन्हें भी इस बात का अन्दाजा नहीं था कि उनके खिलाफ थाने में फआईआर दर्ज हुई है। उस प्राथमिकी में 59 लोगों नाम शामिल था जिनके ऊपर डकैती का केस बनाया गया।’

उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित बलुअन गाँव का पंचायत भवन
अजय कुमार श्रीवास्तव के शोषण, अत्याचार और षड्यंत्र की कहानी

देवरिया जिले में बिहार की सीमा पर स्थित बलुअन गाँव के उत्तर में गोपालगंज और दक्षिण सिवान जिला है। सिवान बार्डर के पास एक बरसाती नदी बहती है जबकि गोपालगंज के पास ऐसी कोई सीमारेखा  नहीं है। यूपी और बिहार के लोगों का एक दूसरे की सीमा में आना जाना आसानी से होता रहा है।

बताया जाता है कि अजय श्रीवास्तव के चाचा की बिहार के एक अपराधी सुरेश यादव से काफी मित्रता थी। अपराध की घटनाओं को ये लोग मिलकर अंजाम देते थे। चारी, डकैती, छिनैती जैसे काम इन लोगों के लिए आम था। गांव का जमींदार होने के कारण गांव में इनका पूरा वर्चस्व था। ये लोगों से काम कराते थे और मजदूरी नहीं देते थे। दबंगई ऐसी थी कि लोगों की गाय-भैंस बेच देते थे। लोग इसका विरोध करते थे।

श्रीनाथ कुशवाहा कहते हैं, ‘गांव के लोगों की कोई राजनीतिक पकड़ नहीं थी। जबकि अजय श्रीवास्तव के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी इसलिए पुलिस भी इनका साथ देती थी। गांव के लोगों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। इसी दौरान बिहार में आईपीएस के बैनर तले गरीबों-मजदूरों का एक आन्दोलन चल रहा था। उसी दौरान यहां के एक गांव में सामंतवाद के खिलाफ एक-दो आंदोलन शुरू हो चुका था।’

‘यहां के लोगों ने आईपीएएफ के लोगों से सम्पर्क साधा। रामप्रवेश यादव यहां के एक दमदार नेता थे। जब उनका आईपीएफ के नेताओं से ठीक-ठाक सम्बन्ध हो गया तो रामप्रवेश के बुलावे पर वे नेता यहां होने वाली बैठकों में आने लगे, जिसका विरोध यहां के सामंतवादी लोगों द्वारा किया जाने लगा। इन तेनाओं को मीटिंग की समाप्ति पर रास्ते में अकेला पाने पर मारा पीटा जाने लगा। उनसे कहा जाता कि तुम लोग यहां के लोगों को भड़का रहे हो।’

‘यही नहीं, इन लोगों को पुलिस बुलाकार थाने में बंद भी करवा दे रहे थे। धीरे-धीरे इसकी प्रतिक्रिया भी होने लगी। इसी दौरान 16 जनवरी 1995 को साइकिल वाली घटना घट गई जिसमें अजय श्रीवास्तव ने छोटे बच्चे पर क्रूरता की थी।  जब लोग अजय से इस बाबत बातचीत करने 17 जनवरी की सुबह गए तो अजय के परिवार वाले पहले से ही मारपीट के मूड में तैयार बैठे थे।’

‘चार-पांच लोगों ने अजय श्रीवास्तव के घर की छत से गांव के लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दी। इस दौरान दूसरे पक्ष ने भी ईंट-पत्थर चलाया। गोलियां चलने से एक महिला और उसके नाती की मौत हो गई। आईपीएफ के नेता रामकिशोर वर्मा को भी इन लोगों ने गोली मार दी।’

श्रीनाथ कुशवाहा कहते हैं कि ‘यह कार्रवाई सत्ता के इशारे पर हुई। इनमें से जिन लोगों को जेल हुई है उनमें से अधिकांश से अजय श्रीवास्तव ने काम करवाकर पैसा नहीं दिया था। जब गांव के लोगों ने इसका विरोध किया तो अपनी ताकत का एहसास कराने और लोगों को सबक सिखाने के लिए इस तरह का कायराना काम को अंजाम दिया। जहां तक डकैती करने की बात है तो आरोपियों के घर से कुछ भी बरामद नहीं हुआ।’

जिनको सज़ा हुई है उनके घरों की कहानी

उत्तर प्रदेश के इतिहास में शायद यह पहला ऐसा मौका होगा जब एक साथ 40 लोगों को अट्ठाइस साल  पुराने मामले में सजा हुई है, लेकिन इतने बड़े मामले को लेकर स्थानीय और प्रादेशिक मीडिया में किसी तरह की कोई खबर नहीं प्रकाशित हुई। दैनिक हिंदुस्तान के देवरिया ब्यूरो ने तो इस खबर को विकृत करके पूरी तरह मनगढ़ंत तरीके से छापा है। जिन लोगों को सज़ा हुई वे दलित-पिछड़ी जातियों के मजदूर हैं। प्रायः सब के सब भूमिहीन हैं। देवरिया जिले के एक स्थानीय ‘बुलंद आवाज’ नामक यूट्यूबर ने बरुअन गांव में जाकर सजा पाए लोगों के घर के लोगों से बात की जिससे उनकी वास्तविक स्थिति का पता चलता है।

एक व्यक्ति की पत्नी कहती हैं, ‘उन्हें (पति) झूठे केस में फंसाकर जेल करवा दिया गया। वही एक थे जो कमाकर लाते थे और घर में दो जून की रोटी मिलती थी। मेरे पास चार लड़कियां ही हैं। अभी किसी की शादी नहीं हुई है। हम दिन भर काम करते हैं तो रात में रोटी मिलती है। हम लोगों की स्थिति रोज कमाने और रोज खाने वाली है।’

इसी गांव के सजा पाए गंगासागर की पत्नी कहती हैं कि ‘मेरे पास दो लड़के और दो लड़कियां हैं। घर में कमाने वाले एक वही थे जो कमाकर लाते थे। अब तो वे नहीं है। घर का गुजर-बसर कैसे होगा?’ यह कहते हुए वह रोने लगती हैं। गंगाराम के पास घर भी नहीं है। उनका परिवार मड़ई में जीवन यापन कर रहा है।

उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर स्थित एक गाँव बलुअन

गांव के ही एक अन्य सजायाफ्ता हंसनाथ की पत्नी कहती हैं, ‘इस समय वे जेल में हैं। वे उस घटना में शामिल नहीं थे। वे देवरिया मिल पर गए थे, लेकिन लोगों ने उनका नाम भी थाने में केस में लिखवा दिया।’ हंसनाथ मूलतः एक किसान हैं। हंसनाथ की एक बेटी है, जो बीएससी कर रही है।

गांव के बैजनाथ सिंह बताते हैं कि ‘घटना के समय मैं बाहर गया हुआ था। उस घटना में दो लोगों की मौत हुई थी। एक तो बच्चा था और दूसरी एक बूढ़ी दादी थी।’

रमेश कुशवाहा की पत्नी कमलावती कहती हैं कि ‘मेरे पति तो उस घटना में शामिल भी नहीं थे, लेकिन फर्जी तरीके से उनका नाम उसमें जोड़ दिया गया। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जिस समय यह घटना हुई थी, उसी साल मेरी शादी हुई थी और मेरा पति मेरे साथ मेरे मायके में था।’ कमलावती बताती हैं कि ‘मेरे दो बेटे और तीन बेटियां हैं। एक लड़की की शादी मैंने लोन लेकर की है। बाकी सभी बच्चों की शादी करनी शेष है। बच्चे अभी कमाने के लायक नहीं हैं।’ वे आगे बताती है ‘श्रीरामपुर थाने के दरोगा बोले कि अपने पति को बुलाओ वरना तुम्हारे घर की एक-एक ईंट उखाड़ दूंगा।’

एक अन्य महिला अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहती है कि ‘मेरे बेटे का नाम फर्जी तरीके से इस केस में डाल दिया गया। जिस समय यह घटना हुई थी, उस समय मेरा बेटा दिल्ली गया हुआ था। मेरे पति एक किसान थे और उन्होंने जमीन बेचकर इस मकान को बनवाया। मकान का सुख भी मेरे पति नहीं ले पाए और आज बेटा फर्जी मुकदमें में जेल में है।’

मामले में सजा काट रहे हरिलाल के घर में कोई उनके बच्चे के अलावा कोई नहीं मिला। जिन अभियुक्तों को सजा हुई है, उनमें से एक हरेराम कुशवाहा की पत्नी कहती हैं, ‘जिस समय यह घटना हुई थी, उस समय मेरे पति के नाना का देहांत हुआ था तो ये (पति) मेरी सास को लेकर वहां गए हुए थे और दो दिन बाद आए। लेकिन लोगों ने साजिश करके उनका नाम भी इस केस में डलवा दिया।’

जिनकी माँ और भतीजे की हत्या हुई थी उनको भी सज़ा हुई है 

इसी केस में सजा पाए पारस की माँ और उनके भाई का बेटा अजय श्रीवास्तव द्वारा चलाई गई गोली से मारे गए थे। पारस की पत्नी कहती हैं कि ‘मेरे पति को इस मामले में फर्जी तरीके से फंसाया गया। जब वे लोग चढ़कर हमारे घर के पास आए तो मेरी सास (दुर्गावती देवी) लोगों को समझाने-बुझाने के लिए गईं। इस पर उन लोगों ने उन्हें गोली मार दी जिससे उनकी मौत हो गयी। यही नहीं, जो लड़का इस कांड में मरा, वह मेरे देवर का लड़का था। इन सबके बावजूद मेरे पति और मेरे देवर ही दोषी बनाए गएहैं। यही है हमारे देश का न्याय।’

गांव के रहने वाले हरेन्द्र कुशवाहा की पत्नी कहती हैं कि ‘जिस समय की यह घटना है उस समय हमारा पूरा परिवार खेत में प्याज लगा रहा था। ये (पति) वहां झांकने तक नहीं गए, बावजूद उसके इनका नाम केस में घसीट दिया गया।’ हरेन्द्र की पत्नी आगे बताती हैं ‘मेरे तीन छोटे छोटे बच्चे हैं। हम लोग किसी तरह से खेती करके हम अपनी गृहस्थी चला रहे थे, लेकिन आज वे जेल में हैं।’

सुरेन्द्र वर्मा की पत्नी कहती हैं ‘मेरे पति गांव में घूम घूमकर काम करते हैं, उस समय मेरे पति काम पर गए थे, लेकिन उन्हें इस केस में फंसा दिया गया।’

गांव की एक महिला कहती है कि मेरे पति का एक पैर पतला है। वह विकलांग हैं। उनका हाथ भी ठीक से काम नहीं करता, वे हमेशा चारपाई पर ही बैठे रहते थे, उनका नाम भी इस केस में फर्जी तरीके से डाल दिया गया।’

जेल में सजा काट रहे एक व्यक्ति के बेटे अरुण कुमार बताते हैं कि ‘मेरे पिताजी गणेश चौहान राज मिस्त्री का काम करते थे, जिससे घर का खर्च चलता था। अब वे जेल में हैं और घर में शादी है।’

ज्ञात हो कि जिन 40 लोगों को लूट के मामले में जेल हुई है उसमें दो भूतपूर्व ग्राम प्रधान भी हैं। सजा पाने वाले प्रभुनाथ पासवान के बेटे चन्द्रशेखर कहते हैं ‘मेरे पिताजी उस गलती की सजा काट रहे हैं जो उन्होंने किया ही नहीं है।’ चन्द्रशेखर बताते हैं उनके पिताजी शिक्षामित्र थे। जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय प्रभुनाथ पासवान ही गांव के प्रधान थे। यही नहीं, इस मुकदमे में गांव के ऐसे लोगों का नाम शामिल किया गया जो गांव में थे ही नहीं।

इस पूरे प्रकरण पर बोलते हुए बलुअन गांव की वर्तमान प्रधान कलावती देवी कहती हैं, ‘जिन लोगों को सजा हुई है, उनके साथ अन्याय हुआ। जो फैसला आया वह सही नहीं है। पूरे प्रकरण पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करती हुई कलावती देवी कहती हैं, ‘जिस व्यक्ति के घर पर इतनी बड़ी संख्या में लोग जाएंगे, क्या उस व्यक्ति का घर बचेगा? कुल मिलाकर खेत का विवाद था। इसी विवाद की रंजिश के लिए लोगों का नाम केस में फर्जी तरीके से जोड़वा दिया गया।’

सवाल उठता है कि एक व्यक्ति के घर में क्या 50-55 की संख्या में लोग प्लास्टिक का मग, रिंच और यूरिया की बोरी लूटने जाएंगे। जैसा कि चोरी के इल्जाम में जेल की सजा काट रहे गणेश चौहान के बेटे अरुण कुमार चौहान कहते हैं ‘एक साजिश के तहत लोगों को फर्जी केस में फंसाया गया। क्या कोई आदमी किसी के घर में प्लास्टिक का मग, यूरिया की बोरिया या फिर रिंच चुराने जाएगा? चोरी के जो आरोप लगाए गए उसमें यह सब  दिखाया गया है।’

इस मामले का खास पहलू यह भी है जिन लोगों को सजा हुई है उन्हीं में से एक व्यक्ति ने अपनी मां और भतीजे को गोलीकांड में खो दिया। गोली चलाने वाला दूसरा पक्ष हत्या करने के बावजूद बरी हो गया।

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।

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