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डॉ. केपी यादव ज़मीनी राजनीति से जुड़े रहे

सक्रिय राजनीति से डाक्टर के पी यादव का अचानक जाना समाजवादियों को बड़ा दर्द दे गया। उनका राजनीतिक जीवन उतार चढ़ाव भरा रहा। हालांकि आखिरी सांस तक वे समाजवादी ही रहे। वे जीवट के इंसान थे। जो आरंभ से अंत तक विचारधारा से समाजवादी और लोहिया के अनुयायी और मुलायमवादी  रहे। 1999 के दशक से […]

सक्रिय राजनीति से डाक्टर के पी यादव का अचानक जाना समाजवादियों को बड़ा दर्द दे गया। उनका राजनीतिक जीवन उतार चढ़ाव भरा रहा। हालांकि आखिरी सांस तक वे समाजवादी ही रहे। वे जीवट के इंसान थे। जो आरंभ से अंत तक विचारधारा से समाजवादी और लोहिया के अनुयायी और मुलायमवादी  रहे। 1999 के दशक से मेरा उनसे परिचय था। कुछ समय बाद वे अपने गृह नगर जौनपुर से वाराणसी आए और छात्र राजनीति में सक्रिय हुए। जब  कभी भी मिलते थे, अत्यंत आत्मीयता से कुशलक्षेम पूछते थे। अगर मैं वाराणसी या जौनपुर  में होऊं तो उनसे मिलने का भी प्रयास करते थे।

के पी यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत ही डॉक्टर लोहिया की विचारधारा से हुई थी। समाजवादी युवजन सभा, छात्र सभा फिर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और समाजवादी विचारधारा ही उनके जीवन का प्रवाह रहा। उनका मन डॉक्टर राममनोहर लोहिया और नेताजी मुलायम सिंह यादव  के विचारों को समर्पित था। लोहिया, चौधरी चरण सिंह की मौत के बाद वे राजनारायण जी से भी प्रभावित रहे।

स्वर्गीय राजनारायण योद्धा भी थे और योद्धा तैयार करने वाले सेनापति भी थे। परंतु उनकी कसौटी कठोरता से व्यक्ति परक होती थी। के पी सही मायनों में जन नेता थे। हर आदमी वह किसी भी जाति या धर्म का हो, बिना किसी भेदभाव के उन्हें केपी भाई  या डाक्टर साहेब  कहकर ही पुकारता था। उनसे भारी अपेक्षाएं रखता था और वह यथा संभव पूरा भी करते थे।     मेरे समाजवादी साथियों में के पी भाई ही ऐसे थे जो निरंतर संपर्क व सम्मान रखते थे। सच्चे थे, जिन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा। ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ की युक्ति उन पर सटीक बैठती थी। वे समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री भी रहे परंतु उनके मन व दिमाग पर मंत्री पद कभी भी हावी नहीं हो सका।  वे सपा प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी के भी प्रिय रहे। 2000 के दशक में नेताजी मुलायम सिंह यादव के मार्गदर्शन में उन्होंने डॉक्टर लोहिया पर केंद्रित एक पत्रिका प्रकाशित किया था।

वैज्ञानिक से बने नेता….

डॉ0 केपी यादव राजनीति के उन किरदारों में थे, जो महत्वाकांक्षी  सम्भावनाओं से भरा शैक्षणिक कैरियर छोड़कर साफ सुथरी राजनीति के संकल्प के साथ राजनीति में उतरे और इसीलिये जूझते भी रहे। दूषित पानी को शुद्ध करने के फार्मूले  से राजनीत को भी प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए मंसूबे के साथ राजनीति की पथरीली राह पर चले के.पी. हर्षवर्धन की इन पंक्तियों में भरोसा रखते थे कि, ‘माना कि रुकावटें मेरी राह में बहुत हैं, मगर मेरा हौसला  उनसे भी बड़ा है। रुकावटों को गुरुर है  अपने हुनर पर, मुकाम पाने का भरोसा मेरा, उससे भी बड़ा है।’

 डॉक्टर के पी यादव बचपन से प्रतिभावान रहे और प्राथमिक से लेकर उच्चशिक्षा तक में अव्वल आते रहे। उन्होंने कल-कारखानों से निर्गत गंदे पानी को प्रदूषण मुक्त कर पुन: पीने योग्य बनाने पर काम कर कम उम्र में विज्ञान के क्षेत्र में एक  पहचान बनाई। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ इलू नॉइज़ ने 1800 डालर महीने पर एक अच्छे शोधकर्ता के नाते उन्हें आफर भी दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति  रहे बराक ओबामा तब वहां प्रोफ़ेसर हुआ करते थे। शुचितापूर्ण राजनीतिक भूमिका की ललक उन्हें उसकी जगह राजनीति की ओर ले आई और सेतु बने समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव।

डॉ0 केपी समाजवादी पार्टी  से जुड़कर गरीबों, मजलूमों और  किसानों के ऊपर हो रहे जुल्म खिलाफ लड़ाई शुरू की।  दर्जनों बार पुलिस की लाठियां खाईं, 36 बार गिरफ्तारी दी, और 12 बार जेल की रोटियां भी खाई। शुचितापूर्ण और अन्याय के प्रतिरोध की राजनीति ने वैज्ञानिक क्षेत्र का परित्याग कर राजनीति की पिच पर उतरे। वे राजनीति में न्याय और मोहब्बत का जज्बा लेकर भले आये थे, लेकिन दुश्मनों कि बातें भी मिलीं और उनकी जान के दुश्मन भी उभरे और उनको सुपारी देकर मरवाने की साजिशें भी हुईं, लेकिन हौसला कभी कम नहीं हुआ। हमेशा किसानों, गरीबों, मजलूमों के ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ संघर्ष जारी रखा।

डॉ0 केपी यादव जौनपुर जिले के उतरगांवा में एक सामान्य परिवार में पैदा हुए  थे और प्राथमिक शिक्षा धर्मापुर जूनियर स्कूल से लिया, हाईस्कूल नगर पालिका विद्यालयऔर इंटर बी आर पी से किया। गोरखपुर यूनिवर्सिटी से कमेस्ट्री से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल किया। उसके बाद बीएचयू वाराणसी में अंतर विषयी शोध छात्र के रूप में सेलेक्शन  हुआ। केपी यादव पढ़ाई के साथ – साथ छात्र राजनीत में भी सक्रिय रहे। केपी यादव वर्ष 1986 में मुलायम सिंह की क्रांति रथ यात्रा से ही लोकदल बहुगुणा से पूरी तरह से जुड़ कर काम करने के साथ में अपनी पढाई भी जारी रखा।  इस बीच उनका चयन सिरामिक इंजीयरिता में रिर्सच एसोसियेट के पद पर हो गया। उनके 25 शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुए। अधौगिक क्षेत्रों के दूषित पानी को शुद्ध करने के तरीकों पर शोधपरक खोजें भी  कीं। अमेरिका जाने की तैयारी में थे और पासपोर्ट बनवाने लखनऊ जा रहे थे। देवरिया रामकोला गन्ना किसानों के बकाया मूल्य मांगने पर किसानों के ऊपर गोली भाजपा सरकार चलवा दी थी, किसानों के आन्दोलन में हिस्सा लेने जा रहे  मुलायम सिंह को भाजपा सरकार गिरफ्तार करके उन्हें  केंद्रीय कारागार, वाराणसी में बंद कर दिया था। डॉक्टर केपी यादव को मुलायम सिंह यादव के बंद होने की खबर मिली। वे वरुणा एक्सप्रेस छोड़कर सीधे जेल गये और उनसे मिले। उस मुलाकात ने जीवन प्रवाह को मोड़ दिया।

[bs-quote quote=”डॉ0 केपी समाजवादी पार्टी  से जुड़कर गरीबों, मजलूमों और  किसानों के ऊपर हो रहे जुल्म खिलाफ लड़ाई शुरू की।  दर्जनों बार पुलिस की लाठियां खाईं, 36 बार गिरफ्तारी दी, और 12 बार जेल की रोटियां भी खाई। शुचितापूर्ण और अन्याय के प्रतिरोध की राजनीति ने वैज्ञानिक क्षेत्र का परित्याग कर राजनीति की पिच पर उतरे। वे राजनीति में न्याय और मोहब्बत का जज्बा लेकर भले आये थे, लेकिन दुश्मनों कि बातें भी मिलीं और उनकी जान के दुश्मन भी उभरे और उनको सुपारी देकर मरवाने की साजिशें भी हुईं, लेकिन हौसला कभी कम नहीं हुआ।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

ट्रेन की यात्रा की जगह साथियों के साथ वाराणसी स्टेशन पर श्रमजीवी एक्सप्रेस को रोकने के आन्दोलन के अगुवा बन गये। गिरफ्तारी हुई और जिला जेल में बंद हो गये। सन् 1993 में समाजवादी युजनसभा के राष्ट्रीय महासचिव बनाये गये। आगे अनेक प्रदेशों में पार्टी संगठन से जुड़ी जिम्मेदारियां मिलीं। 1997 में सपा – बसपा गठबंधन टूटने के बाद मायावती ने  बनारस के सीर गोवर्धन गाँव की कीमती जमीन पर रविदास पार्क बनाने की योजना के विरुद्ध सफल किसान आन्दोलन का हिस्सा बने। शासन प्रशासन धमकाकर, फुसलाकर, लालच देकर उस आन्दोलन से तोड़ने के हर हथकंडे अपनाये, लेकिन वह  लक्ष्य एवं संकल्प से विचलित नहीं हुये। परिणाम यह रहा कि हेलीकाप्टर से शिलान्यास करने पहुंची मुख्यमंत्री मायावती भदोही चली गईं। इस जंग को जीतने के बाद डॉ0 केपी यादव के राजनीतिक कद और लोकप्रियता में इजाफा हुआ। फलत: रागद्वेष और हमलों के शिकार भी बने।  उनकी हमेशा यही चाहत रही कि राजनीत में हुजुर और मजूर की संस्कृति के प्रतिकार तथा राजनीति को संवेदना एवं भाईचारे की भूमिका का माध्यम बनायें।

उनके दुनिया को आदर्श लोक में बदलने की बेचैनी को बड़ी शिद्दत से महसूस किया था जब 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान लखनऊ अमर उजाला के एडिटर डॉक्टर इंदुशेखर पंचौली , न्यूज एडिटर श्री राजेन्द्र सिंह के  साथ जौनपुर डॉक्टर केपी के आवास पर समाजवादी कुटिया में था। आज फिर कानों में सहसा गूंज उठे उसके शब्द- ‘भाई, आप इन  अफसरों , आरएसएस और साम्प्रदायिक राजनीति को नहीं जानते। सब के सब कमीने हैं। किसी को पब्लिक की नहीं पड़ी। बस पब्लिक के पैसे पर ऐश चाहते हैं। मैं तो इनके खिलाफ हमेशा मोर्चे पर रहूंगा। आप तक कई शिकायतें आएंगी। देख लीजिएगा।’ डॉक्टर केपी यादव का यह संकल्प उन्हें भीड़ में अलग खड़ा कर देता था। हो सकता है उन्होंने इस सौगंध की कीमत भी चुकाई। व्यवस्था के दामुल पर बलि भी चढ़ा हो। मग़र सच्चे सिपाही की वो पहचान छोड़ गए, जो हर बार उसूलों की याद दिलाएगा। भीतर एक टूटन महसूस कर रहा हूं। पर जानता हूं, आपकी स्मृतियाँ हमें भविष्य के संघर्ष के लिए प्रेरित करती रहेंगी।

कृष्ण कुमार यादव पत्रकार हैं और जौनपुर में रहते हैं।

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