जगदेव प्रसाद की हत्या से जुड़ा एक दस्तावेज, जिसे गायब कर दिया गया डायरी (5 सितम्बर,2021)

नवल किशोर कुमार

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कल फिर एक तथाकथित महान पुरूष ने मीडिया और जाति का सवाल छेड़ दिया। खुद को दलित वैचारिकी का स्तंभ माननेवाले इस महान पुरूष ने व्हाट्सएप आदि से मिली जानकारी के आधार पर कहा कि मीडिया भ्रष्ट हो चुकी है। वे कई नामों का उल्लेख कर रहे थे और बार-बार यह दुहरा रहे थे कि वंचित जातियों के नेताओं को अपना अखबार निकालना चाहिए, न्यूज चैनल शुरू करना चाहिए। लेकिन मैंने जब उनसे कहा कि नेताओं से ही आपको उम्मीद क्यों है? क्यों नहीं विश्वविद्यालयों में जितने दलित, पिछड़े प्रोफेसर हैं, वे कम से कम एक पत्रिका के प्रकाशन की जिम्मेदारी लेते। हर महीने लाख रुपए से अधिक की आय का थोड़ा सा हिस्सा इस मद में खर्च करें।

खैर जिनसे मैं यह कह रहा था, वे स्वयं भी एक प्रोफेसर हैं और मोटी तनख्वाह पाते हैं। मेरी बात से उन्हें निराशा हुई। शायद इसलिए उन्होंने फोन काट दिया। वैसे भी मीडिया में जाति का सवाल कोई नया सवाल नहीं है। सवाल इसलिए भी नहीं है क्योंकि समाज में जातियां हैं और आजाद भारत में भी उन जातियों का वर्चस्व है जिनके लोगों की संख्या 15 फीसदी से भी कम है। मुझे लगता है कि यदि जातिगत जनगणना हो जाय तो निश्चित तौर पर 15 फीसदी घटकर 10-12 फीसदी हो जाएगी। अमर शहीद जगदेव प्रसाद तो इन वर्चस्ववादियों को 10 फीसदी ही मानते थे। उनका तो नारा ही यही था – सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे पर दस का शासन नहीं चलेगा, नहीं चलेगा। आज उनकी शहादत की बरसी है। आज के ही दिन यानी 5 सितंबर, 1974 को बिहार के कुर्था प्रखंड कार्यालय परिसर में एक जनसभा के दौरान गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गयी।

उनकी हत्या कैसे हुई, यह कोई छिपी बात नहीं थी। हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। लोगों ने उन्हें अपनी आंखों से देखा, जिन्होंने जगदेव प्रसाद पर गोलियां चलायी। लेकिन इस घटना को एक राज बनाकर रखा गया है। करीब 7 साल हो गए। अरवल जिला के एक पत्रकार साथी ने एक बुकलेट दिया था। उस बुकलेट में जो लिखा गया था, वह भले ही अदालती मामलों में सबूत नहीं माना जा सकता है, लेकिन उसे लिखा था एक ऐसे आदमी ने जिसने अपनी आंखों से जगदेव प्रसाद की हत्या को देखा था। अपनी बुकलेट में उन्होंने उन खबरों को भी शामिल किया, जो जगदेव प्रसाद की हत्या से संबंधित थे।

वाकई वह एक शानदार बुकलेट थी। भाषा और अन्य खामियों के बावजूद उस बुकलेट में दर्ज सूचनाएं महत्वपूर्ण थीं। एक सूचना तो इतनी महत्वपूर्ण थी कि मैंने बिहार पुलिस मुख्यालय से लेकर अरवल तक की दौड़ लगा दी। जब बात सीधे-सीधे नहीं बनी तब मैंने कुछेक विधायकों व दो मंत्रियों से कहा कि वह हस्तक्षेप करें। दरअसल, बुकलेट में दर्ज उस सूचना के मुताबिक जगदेव प्रसाद की हत्या के संबंध में दो प्राथमिकियां दर्ज हुईं। एक तो 5 सितंबर, 1974 को ही और दूसरी प्राथमिकी 9 सितंबर, 1974 को। अदालत तक पहुंचने वाली प्राथमिकी दूसरी वाली थी। पहली प्राथमिकी का क्या हुआ? उसमें लिखा क्या गया था? यही जानना था मुझे। दूसरी प्राथमिकी के संबंध में इतनी दिलचस्पी इसलिए भी नहीं थी क्योंकि अदालत ने उस मामले को केवल एक सामान्य घटना कहकर खारिज कर दिया था। अलबत्ता मुझे अदालत के उस फैसले की प्रति भी चाहिए थी, जिसमें उसने अपना अंतिम मंतव्य दिया।

वैसे भी मीडिया में जाति का सवाल कोई नया सवाल नहीं है। सवाल इसलिए भी नहीं है क्योंकि समाज में जातियां हैं और आजाद भारत में भी उन जातियों का वर्चस्व है जिनके लोगों की संख्या 15 फीसदी से भी कम है। मुझे लगता है कि यदि जातिगत जनगणना हो जाय तो निश्चित तौर पर 15 फीसदी घटकर 10-12 फीसदी हो जाएगी। अमर शहीद जगदेव प्रसाद तो इन वर्चस्ववादियों को 10 फीसदी ही मानते थे। उनका तो नारा ही यही था - “सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे पर दस का शासन नहीं चलेगा, नहीं चलेगा”।

दरअसल, जगदेव प्रसाद की हत्या से संबंधित दोनों प्राथमिकियां पुलिस द्वारा ही दर्ज करायी गयी थीं। पहली प्राथमिकी संभवत: एक चौकीदार के बयान पर आधारित थी। बुकलेट के हिसाब से हत्यारे अज्ञात थे। कुर्था प्रखंड कार्यालय में जब जनसभा का आयोजन किया जा रहा था, तभी दो अज्ञात हमलावरों ने जगदेव प्रसाद पर गोलियां चला दी। उस समय पूरे परिसर में पुलिस मौजूद थी। पुलिस की ओर से तब कोई फायरिंग नहीं की गयी थी।

खैर, बुकलेट से मिली उपरोक्त जानकारी मेरे लिए महत्वपूर्ण जानकारी थी। लेकिन मैं उसे हासिल करने में विफल रहा। किसी ने मेरी सहायता नहीं की। कुशवाहा जाति के एक मंत्री थे उन दिनों बिहार में। उनका तो कहना था कि नवल बाबू, अब इस तरह की सूचनाओं से क्या होगा? रहने दें जो अब इतिहास में दफन हो चुका है।वहीं एक मंत्री जो कि यादव जाति के थे, उनका कहना था कि “हत्यारा कौन था, यह बात किसी से छिपी है क्या। आपको नहीं मालूम है कि जिस एक खास आदमी को हमारे सीएम साहब ने 2005 में मंत्रिपरषद में जगह दी थी, वही था जगदेव बाबू का हत्यारा। लेकिन क्या करिएगा। सब राजनीति है। नीतीश कुमार हमारे नेता हैं। अब हम उनके बारे में क्या बोलें।”

दरअसल, मध्य बिहार की राजनीति को समझनेवाला हर शख्स जानता है कि जगदेव प्रसाद का हत्यारा कौन था और उसे कैसे बचाया गया तथा नीतीश कुमार ने उसे मंत्री क्यों बनाया था। लेकिन इतिहास केवल इसीके आधार पर नहीं लिखा जाता है कि लोग क्या जानते हैं। इतिहास को दस्तावेजों की आवश्यकता होती है। अदालती दस्तावेज महत्वपूर्ण संदर्भ होते हैं। परंतु जगदेव प्रसाद की हत्या के मामले में जो सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज था, उसे ही गायब कर दिया गया था।

खैर, जगदेव प्रसाद बेहद खास जननेता थे। उन्होंने मध्य बिहार की राजनीति को उलटकर रख दिया था। बिहार की राजनीति को भी वे बखूबी प्रभावित करने लगे थे। मेरा अनुमान है कि यदि वह उस आततायी की गोलियों के शिकार न होते तो बिहार के सबसे आदर्श मुख्यमंत्री बनते और बिना किसी की परवाह किए बिहार में भूमि सुधार को लागू कर देते। भूदानियों की साजिश वे खूब समझते थे। वर्ष 2016 में बिहार विधानसभा की लाइब्रेरी में मैंने जगदेव प्रसाद के कुछ संबोधनों को देखा था। तारीख याद नहीं है। लेकिन मैंने उसे अपनी डायरी में दर्ज कर कहीं रखा है। लेकिन जो कहा था, उसके मुताबिक जबतक जमीन का समुचित बंटवारा नहीं होगा, तबतक इस राज्य का विकास नहीं हो सकता। उनके पास अनेकानेक तर्क थे। एक तर्क, जिसने मेरा ध्यान आकृष्ट किया था, उसके मुताबिक जब कोई भूमिहीन होता है तो वह पहले ही अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा गंवा चुका होता है। उसके पास कहने के लिए भी कुछ नहीं होता है। फिर चाहे वह दलित वर्ग का हो, आदिवासी हो या फिर अन्य पिछड़ी जातियों के लोग। जमीन से आदमी को यकीन होता है कि वह इस धरती का हिस्सा है, राज्य का हिस्सा है, देश का हिस्सा है।

ऐसे थे हमारे साहसी पुरखा बाबू जगदेव प्रसाद।

लेकिन आज की डायरी में ओमप्रकाश चौटाला का नाम दर्ज कर रहा हूं। कितने कमाल के हैं चौटाला, इसका वर्णन बहुत जरूरी है। हरियाणा के इस पूर्व मुख्यमंत्री की उम्र करीब 86 साल की है। कल इन्होंने एक उपलब्धि हासिल की है। बोर्ड परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया। हालांकि बारहवीं की परीक्षा वे पहले दे चुके थे लेकिन उन्हें प्रमाणपत्र नहीं दिया गया था। वजह यह रही कि चौटाला दसवीं की बोर्ड परीक्षा में अंग्रेजी विषय में फेल रह गये थे। उन्होंने अंग्रेजी विषय की परीक्षा दी थी, जिसमें उत्तीर्ण होने के बाद उन्हें बोर्ड परीक्षा में उत्तीर्ण घोषित किया गया है। अब उन्हें बारहवीं का प्रमाणपत्र भी दिया जाएगा।

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला

 

है न कमाल की बात! अब मैं यह सोच रहा हूं कि चौटाला ने परीक्षा क्यों दी? उनका क्या स्वार्थ रहा होगा? जाहिर तौर पर उनका स्वार्थ व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं होगा। दरअसल, समाज से जुड़े नेता अपने आचरण और व्यवहार से एक बड़ी लकीर खींच देते हैं। जगदेव प्रसाद ने भी एक बड़ी लकीर खींची थी। ओमप्रकाश चौटाला ने भी बड़ी लकीर खींची है। उन्होंने तमाम वंचितों को संदेश दिया है कि शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। इसके बिना वर्चस्ववाद को परास्त नहीं किया जा सकता है।

जगदेव प्रसाद को मैं हमेशा इंकलाबी श्रद्धांजलि देता आया हूं तो उनके लिए इंकलाब जिंदाबाद और ओमप्रकाश चौटाला जी को खूब सारी बधाई।

नवल किशोर कुमार फारवर्ड प्रेस में संपादक हैं.

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