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ग्राउंड रिपोर्ट

उत्तराखंड : सुरक्षा और सुविधाओं के अभाव में आंगनवाड़ी में बच्चों की संख्या कम हो रही है

देश के दूरदराज़ और सभी ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थापना 3 से 5 वर्ष तक के नौनिहालों को आकर्षित करने के उद्देश्य से किया गया है, जहां बच्चों को पूर्व प्राथमिक शिक्षा के अतिरिक्त उनके पौष्टिक खानपान का विशेष  व्यवस्था की गई है। लेकिन सुरक्षा और देखरेख के अभाव में माएं निश्चिंत हो अपने बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्र भेजने से बच रही हैं क्योंकि आंगनवाड़ी केंद्र संचालन के लिए तय किए हुए मापदंड पूरा नहीं कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि दूरदराज और गांवों में रहने वाले 3 से 5 वर्ष के बच्चे फिर कहाँ जाए?

आंगनबाड़ी केंद्र एक महत्वपूर्ण सरकारी पहल है जो शिशुओं और बच्चों को सही विकास के लिए संबंधित सुविधाएं प्रदान करता है। इसकी शुरुआत का मुख्य उद्देश्य पूर्व प्राथमिक शिक्षा यानी 3 से 6 साल की आयु के दौरान बच्चों को खेल खेल में शिक्षा प्रदान कर भविष्य में उनके सीखने की कला को एक मजबूत आधार तैयार करना है। यही कारण है कि देश के दूर दराज़ और सभी ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनबाड़ी को विशेष रूप से खोला जाता है। इसे न केवल नौनिहालों को आकर्षित करने के उद्देश्य से तैयार किया जाता है बल्कि इसका निर्माण करते समय उनकी सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। लेकिन उत्तराखंड के दूर दराज़ पिंगलो गांव में एक ऐसा आंगनबाड़ी केंद्र खोला गया है जो इंसानी आबादी से दूर है। हालांकि इसमें बच्चों के लिए सारी सुविधाएं हैं लेकिन सुरक्षा के उचित बंदोबस्त नहीं होने के कारण अधिकतर मांएं यहां अपने बच्चों को भेजने से घबराती हैं।

 यह गांव राज्य के बागश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक से तक़रीबन साढ़े ग्यारह किमी की दूरी पर बसा है। यहां की आबादी करीब 1152 है। यहां संचालित आंगनबाड़ी केंद्र गांव से बाहर जंगल के करीब बना हुआ है। जहां जल्दी कोई इंसान नजर नहीं आता है। जंगल घने होने के कारण पेड़ के अलावा कुछ नजर नहीं आता है। ऐसे में कब और किधर से कोई जानवर आ जाए किसी को पता भी न चले। इस आंगनबाड़ी केंद्र में चारदीवारी के नाम पर छोटी छोटी दीवारें हैं जिसमें कोई गेट भी नहीं है। इसका आंगन भी इतना छोटा है कि बच्चे आराम से वहां पर न तो भाग दौड़ कर सकते हैं और न किसी किसी प्रकार से खेल सकते हैं।

इस संबंध में गांव की एक 24 वर्षीय पूजा देवी कहती हैं कि वह अपनी तीन साल की बेटी को आंगनबाड़ी भेजना तो चाहती हैं, लेकिन वह जिस स्थान पर बना हुआ है वहां कई सारे खतरे हैं। एक तो यह आंगनबाड़ी जंगल के करीब है, जिससे जानवरों के आने का खतरा तो बना ही रहता है। दूसरा यह इतनी ऊंचाई पर बनाया गया है कि छोटे बच्चों का ऊंचाई से गिरने का डर भी बना रहता है। जिसकी वजह से मैं अपनी बच्ची को बहुत कम ही आंगनबाड़ी भेजती हूं। जिस दिन फ्री रहती हूं, खुद लेकर जाती हूं और छुट्टी तक वहीं रहती हूं।

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वहीं एक 32 वर्षीय मंजू देवी कहती हैं कि ‘मेरी बेटी 4 साल की है। जंगल के पास बने आंगनबाड़ी में अपनी बेटी को भेजते हुए बहुत डर लगता है। वहां पर अक्सर बंदर आते रहते हैं। कब कोई बच्चों पर हमला कर दे पता भी न चले। मेरी बेटी कुपोषण की अवस्था से गुजर रही है। ऐसे में वह बहुत कमज़ोर है। खुद से भाग भी नहीं पाती है। ऐसे में यदि बंदर हमला कर दे तो वह बाकी बच्चों की तरह भाग भी नहीं पायेगी।’ वह कहती हैं कि आंगनबाड़ी छोटे बच्चों के लिए बहुत अच्छी जगह है, जहां वह उठना, बैठना, खेलना और पढ़ना सीखते हैं। हमारे गांव की आंगनबाड़ी में चारदीवारी और गेट की उपयुक्त सुविधा न होने की वजह से मैं अपनी बेटी को वहां भेजना फिलहाल सुरक्षित नहीं समझती हूं। यदि वह आंगनबाड़ी गांव के अंदर शिफ्ट कर दिया जाए तो सभी के लिए सही होगा। नाम नहीं बताने की शर्त पर गांव की एक अन्य महिला कहती है कि यहां संचालित आंगनबाड़ी को न केवल सुंदर और आकर्षक बनाया गया है बल्कि इसमें बच्चों के खेलने और उनमें शिक्षा के प्रति जिज्ञासा बढ़ाने की व्यवस्था भी है। यहां ज़रूरत की सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। लेकिन यह ऐसी जगह निर्मित की गई है जहां कोई भी माता अपने बच्चों को भेजने से घबराएगी। वह कहती हैं कि केवल बच्चे ही नहीं, बल्कि जानवरों के डर से अधिकतर गर्भवती महिलाएं भी इस केंद्र पर जाने से डरती हैं।

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इस आंगनबाड़ी केंद्र की कार्यकर्ता 38 वर्षीय मुन्नी देवी बताती हैं कि ‘हमारे आंगनबाड़ी केंद्र में 18 बच्चे नामांकित हैं। यहां बच्चों के खेलने के लिए खिलौने और पढ़ने के लिए किताबें भी उपलब्ध हैं। उनके बैठने के लिए कुर्सियां और टेबल की भी अच्छी व्यवस्था है. बच्चों के लिए शौचालय की भी सुविधा है। बच्चों को पौष्टिक आहार के रूप में दलिया, गेहूं, चावल और दाल दिया जाता है। वहीं प्रत्येक सप्ताह दूध भी उपलब्ध कराया जाता है। प्रतिदिन बच्चों को ताज़ा खाना खिलाया जाता है ताकि पिंगलों के सभी बच्चे कुपोषण मुक्त हो सकें।

इसके अतिरिक्त यहां पर हर तीन महीने में गर्भवती महिलाओं के लिए पोषक आहार भी उपलब्ध कराया जाता है।’ वहीं किशोरियों के लिए आयरन और कैल्शियम की गोली भी मुहैया कराई जाती है। लेकिन इन सुविधाओं के बीच मुन्नी देवी सुरक्षा से संबंधित कमियों को भी मानती हैं। हालांकि वह कहती हैं कि गांव से बाहर इसका निर्माण अथवा छोटी चारदीवारी को ठीक करना उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। लेकिन इसके बावजूद वह अपनी ओर से सुरक्षा की भरपूर व्यवस्था का प्रयास करती रहती हैं ताकि माताएं अपने बच्चों को भयमुक्त होकर केंद्र पर भेज सकें।

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इस संबंध में पिंगलो के ग्राम प्रधान पान सिंह का कहना है कि ‘पंचायत के पास जितना बजट था, उस आधार पर मैंने चारदीवारी बनवाने का प्रयास किया था, लेकिन अभी भी वह इतनी छोटी है कि उसके ऊपर से कोई भी जानवर आसानी से आ सकता है। आंगनबाड़ी में बहुत छोटे बच्चे आते है, उनके बाहर की तरफ गिरने का भी भय रहता है।’ पान सिंह इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि इस आंगनबाड़ी केंद्र का छोटा आंगन भी एक बड़ी समस्या है, जिससे यहां पर बच्चे खेल नहीं पाते हैं. सर्दियों में उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वह कहते हैं कि जैसे ही सरकार द्वारा इस संबंध में बजट आएगा, पंचायत इस दिशा में भी प्रयास करेगी ताकि बच्चों को खेलने का उचित वातावरण मिल सके।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, मिशन शक्ति के तहत पालना और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) जैसी योजनाएं संचालित कर रहा है। जिसके तहत आंगनबाड़ी व पोषण 2.0 के माध्यम से माताओं और उनके छह साल से कम उम्र के बच्चों को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसका उद्देश्य प्रशिक्षित कर्मियों, शैक्षिक संसाधनों, पोषण संबंधी सहायता और समग्र बाल विकास के लिए गतिविधियों के साथ एक सुरक्षित वातावरण में पूरे दिन व्यापक बाल देखभाल सहायता सुनिश्चित करना है। ज्ञात हो कि यह मंत्रालय देश भर में 13.9 लाख आंगनवाड़ी केंद्र चलाता है, जो छह साल से कम उम्र के आठ करोड़ से अधिक बच्चों की देखभाल करते हैं। लेकिन पिंगलों गांव में सभी सुविधाओं से लैस होने के बावजूद जिस प्रकार से माताओं में इसकी सुरक्षा को लेकर चिंता है, उसे दूर करने की आवश्यकता है ताकि पिंगलों के नौनिहालों का बचपन भी सुरक्षित आंगनबाड़ी में खिल सके। (चरखा फीचर्स)

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