Friday, May 16, 2025
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उत्तराखंड : सुरक्षा और सुविधाओं के अभाव में आंगनवाड़ी में बच्चों की संख्या कम हो रही है

देश के दूरदराज़ और सभी ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थापना 3 से 5 वर्ष तक के नौनिहालों को आकर्षित करने के उद्देश्य से किया गया है, जहां बच्चों को पूर्व प्राथमिक शिक्षा के अतिरिक्त उनके पौष्टिक खानपान का विशेष  व्यवस्था की गई है। लेकिन सुरक्षा और देखरेख के अभाव में माएं निश्चिंत हो अपने बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्र भेजने से बच रही हैं क्योंकि आंगनवाड़ी केंद्र संचालन के लिए तय किए हुए मापदंड पूरा नहीं कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि दूरदराज और गांवों में रहने वाले 3 से 5 वर्ष के बच्चे फिर कहाँ जाए?

उत्तराखंड : विकास के जुनून में पर्यावरण और स्थानीय आबादी को बर्बाद करने की परियोजना

प्राकृतिक रूप से समृद्ध उत्तराखंड के जंगल प्राकृतिक आपदाओं के साथ मनुष्यजनित नुकसान के कारण खत्म होते जा रहे हैं। जिसकी वजह से हिमालय की तराई वाले क्षेत्रों में इस बार गर्मी मैदानी इलाकों के जैसे ही पड़ी। गर्मियों में सबसे ज्यादा खतरनाक जंगलों में आग लगना है, जिसके कारण जंगल में रहने वाले जीव-जन्तु तो मरते ही हैं, मनुष्य का जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। उत्तराखंड के जंगलों से विद्याभूषण रावत की ग्राउन्ड रिपोर्ट

कुमाऊनी बोली और भाषा से जुड़कर क्या नई पीढ़ी उसे संरक्षित कर पाएगी?

किसी भी भाषा का विकास आने वाली पीढ़ी से संभव है लेकिन कुमाऊनी भाषा अपने ही क्षेत्र में कम बोली जारही है जिससे आज की पीढ़ी अपनी भाषा बोलने और सीखने में शर्म महसूस करती है जो चिंताजनक बात है।

हलद्वानी हिंसा: एक और शख्स की मौत, मृतकों की संख्या बढ़कर 6 हुई

पुलिस ने मौके पर एक अस्थायी चौकी बना दी है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा की थी कि सरकार अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान ‘मुक्त’ की गई जमीन पर एक पुलिस स्टेशन बनाएगी। इस घोषणा के 24 घंटे के भीतर ही पुलिस ने वहां चौकी बना दी, जिसका उद्घाटन दो महिला सब-इंस्पेक्टरों ने किया, जो हिंसा में बुरी तरह से घायल हो गई थीं।

लैंगिक असमानता का शिकार होती पर्वतीय महिलाएं

'लड़की हो दायरे में रहो...' यह वाक्य अक्सर घरों में सुनने को मिलता है, जो लैंगिक असमानता का सबसे ज्वलंत उदाहरण है। विश्व आर्थिक...

खेती के नए स्वरूप को अपना रहे हैं पहाड़ों के किसान

उत्तराखण्ड राज्य पर्यटन के लिए विश्व में अपनी खास पहचान रखता है, जिसके चलते लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष पर्यटक यहां आते हैं। जहां उनके खाने में मशरूम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके चलते भीमताल को मशरूम उत्पादन का हब बनाने को लेकर जिला प्रशासन की योजना कामयाब हो रही है। वर्ष 2022-23 में नैनीताल जिले में 1292 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ, जबकि पिछले वर्ष 942 मीट्रिक टन था।

कांग्रेस का डबल अटैक, पंजाबियत और दलित कार्ड

पंजाब विधानसभा का चुनाव यूं तो भाजपा के लिए किसान आंदोलन से ही मुश्किल भरा चुनाव नजर आ रहा था, और कांग्रेस के लिए...

विधानसभा चुनाव 2022 में कैसे हो हेट पॉलिटिक्स की काट

2022 के पूर्वार्द्ध में चुनाव आयोग के अनुसार निष्पक्ष, प्रलोभनमुक्त व कोविड के बचाव की फुलप्रूफ तैयारियों के साथ 5 राज्यों- पंजाब, गोवा, मणिपुर,...

ध्रुवीकरण का ज़हर घोलती ‘धर्म संसद’

उत्तराखंड का  हरिद्वार इस समय तथाकथित 'धर्मसंसद' की एक बैठक के वीडियो से विवादित चर्चा मे है, जो बहुत तेजी से सोशल मीडिया पर...

विकास के बोझ तले क्यों रौंदी जा रही है हमारी संस्कृति ?

पर्यावरण मानदंडों और दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए यहाँ काम कर रही कंपनियों को दंडित करें। जिस तरह से हमारे खूबसूरत क्षेत्र के साथ दुर्व्यवहार किया गया है, वह बस विनाशकारी है। चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग अभी अधूरा है और कई जगह सड़कें बिल्कुल खतरनाक हैं।  सरकार को इन सड़कों की स्थिति के बारे में अपडेट करना चाहिए ताकि लोगों को पहले से पता चल सके और उचित निर्णय लिया जा सके। बिना तैयारी के चारधाम यात्रा को शुरू करना बेहद खतरनाक है और ये लोगो के जीवन के साथ खेलना है। जरूरत इस बात की है केंद्र और राज्य के मंत्रीगण इन क्षेत्रों में यदि कार से दौरा करे तो उन्हे सड़कों की स्थिति का सही पता चलेगा। 

‘जनसत्ता’ का ‘राजसत्ता’ बन जाना (डायरी, 18 नवंबर 2021)

बौद्धिक लेखन में किसी को क्रेडिट देना महत्वपूर्ण माना जाता है। मेरे हिसाब से यह दिया भी जाना चाहिए और ना केवल लेखन में...

मस्जिद में लगेगी आग तो मंदिर भी नहीं बचेंगे (डायरी 20 अक्टूबर, 2021)

जिन दिनों भारत ने वैश्वीकरण की नीति को अपना समर्थन दिया था और जब मेरे गांव-शहर में दीवारों पर डंकल प्रस्ताव के खिलाफ नारे...

चिपको आंदोलन का केंद्र रहा रेणी गाँव अब राजनीति और कॉर्पोरेट के गिद्धों का शिकार है

रेणी गाँव के लोग निराश हैं।  गाँव में गौरा देवी की आदमकद प्रतिमा थी जो अब वहाँ से हटा दी गयी है। नेताओं को इसका कोई दर्द नहीं कि एक आदिवासी महिला, जिसने हमारे देश को दुनिया के पर्यावरणवादियों की नज़र में ऊंचा स्थान दिलवाया उसका गाँव ख़त्म होने वाला है।  वह जगह हमारे नक़्शे से गायब हो सकती है जहाँ से दुनिया को चिपको का सन्देश मिला।

उत्तराखंड के आदिवासियों की ज़मीनें हड़प ली गईं, उनको न्याय चाहिए

बोक्सा जनजाति अधिकतर तराई और भावर के इलाके में रहती है और यहाँ पर यह अब अपनी ही जमीन से बेदखल और बंधुआ हो गई है। तराई भावर में वे देहरादून के डोईवाला क्षेत्र से लेकर पौड़ी जनपद के दुगड्डा ब्लाक तक इनकी काफी संख्या थी। कोटद्वार के तराई भावर के इलाकों जैसे लाल ढंग में भी इनकी संख्या बहुत है।  कोटवार-उधम सिंह नगर के मध्य रामनगर में भी इनकी आबादी निवास करती है।

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