आज के दौर में शैक्षिक जगत का सबसे बड़ा घोटाला ‘नॉट फाउंड सूटेबल’ है। आए दिन दिल्ली विश्वविद्यालय शैक्षिक भेदभाव के मामलों में सुर्ख़ियों में बना रहता है। ताजा मामला दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरु कॉलेज का है।
कमला नेहरू कॉलेज के पत्रकारिता विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए विज्ञापन 20 अक्टूबर 2022 को निकला था, जिसकी आवेदन की अंतिम तिथि 09 नवंबर 2022 थी। इसमें कुल दो पद थे। एक पद अनारक्षित (UR) और एक अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षित था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की साक्षात्कार समिति ने 24 फरवरी 2024 को उपर्युक्त पदों पर साक्षात्कार लिया। अनारक्षित श्रेणी के असिस्टेंट प्रोफेसर के 01 पद के लिए कुल 103 अभ्यर्थियों ने साक्षात्कार दिया, जिसमें अनारक्षित श्रेणी के 90, सुदामा कोटे (EWS) के 01, आदिवासी (ST) के 01 एवं अनुसूचित जाति (SC) के 11 अभ्यर्थी शामिल थे।
लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय की सवर्ण प्रोफेसरों से लदी हुई मनुवादी साक्षात्कार समिति ‘योग्यता केवल ब्राह्मणों में ही तलाश पाती है’ इस चर्चित मुहावरे को सत्य साबित करते हुए उसने इस पद पर एक ब्राह्मण अभ्यर्थी का चयन कर लिया एवं शेष गैर ब्राह्मण अभ्यर्थियों कोअयोग्य ठहरा दिया।
अन्य पिछड़ा वर्ग के असिस्टेंट प्रोफेसर के 01 पद के लिए भी दिल्ली विश्वविद्यालय की सवर्ण साक्षात्कार समिति ने साक्षात्कार 24 फरवरी 2024 को ही लिया था, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग के 31 अभ्यर्थियों ने साक्षात्कार दिया था। जब दिल्ली विश्वविद्यालय का कमला नेहरू कॉलेज 10 जुलाई 2024 को इसका परिणाम जारी करता है तो ओबीसी का परिणाम रहस्यमयी ढंग से गायब रहता है।
यह ‘नॉट फाउंड सूटेबल’ यानी NFS के उस ढंग का दुहराव है, जिसे देश के केन्द्रीय एवं राज्य विश्वविद्यालयों के विभाग एसोसिएट प्रोफेसर एवं प्रोफेसर पदों पर जमकर लागू करते हैं। यह अधिकतर आरक्षित सीट पर किया जाता है, जिसकी मंशा केवल यही रहती है कि विश्वविद्यालयों में येन केन प्रकारेण मनुवादी वर्चस्व बना रहे।
अभी इसी मनुवादी वर्चस्व का एक ज्वलंत उदाहरण दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय में सामने आया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय के सवर्ण एवं मनुवादी प्रोफेसरों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रेम के वशीभूत होकर पाठ्यक्रम में ब्राह्मणी वर्चस्व की गौरव-गाथा एवं वर्णव्यवस्था आधारित सामाजिक विभाजन की शिरोरेखा तथा जातीय विषमता की खाई पैदा करने वाली पुस्तक ‘मनुस्मृति’ को शामिल कर लिया।
विधि संकाय के मनुवादी प्रोफेसरों के इस कृत्य पर दिल्ली विश्वविद्यालय की खूब फजीहत हुई। देश के जागरूक नागरिकों ने सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ खूब लिखा, जिसका असर यह हुआ कि लागू किये जाने के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह यह बयान जारी करते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन पाठ्यक्रम समिति की मनुस्मृतियाँ माँगको ख़ारिज करता है।
जब तक पाठ्यक्रम समिति में अधिकांश प्रोफेसर सवर्ण जातियों से रहेंगे और पिछड़े, दलित एवं आदिवासियों के प्रोफेसर पदों को एनएफएस किया जायेगा तब तक वे ऐसी ही ऊलजलूल माँग रखते रहेंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को विभागों में किये गये एनएफएस पदों को शीघ्र भरने का आदेश देना चाहिए। या फिर इसी तरह बार-बार ऊलजलूल माँग को ख़ारिज करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज ने ओबीसी असिस्टेंट प्रोफेसर के एक पद को नए तरीके से एनएफएस क्यों किया? जाहिर है कि जब वह पिछड़े, दलित और आदिवासी कोटे की सीट के सामने‘नॉट फाउंड सूटेबल’ लिखता है तब कुछ स्कॉलर व जागरूक नागरिक इसका पुरजोर विरोध सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक करते नजर आते हैं, जिससे देश व दुनिया में दिल्ली विश्वविद्यालय की फजीहत होती है। इसी फजीहत से बचने के लिए उसने इस नए तरीके का आविष्कार किया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वुमन’ के हिंदी विभाग ने ओबीसी के 01 असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए 377 अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लेने के बाद भी उस पद को ‘NoneFoundSuitable’ कर दिया था। जब संसद के जुलाई सत्र में 02 जुलाई 2024 को समाजवादी पार्टी के सांसद लालजी वर्मा ने एनएफएस के इस मुद्दे को संसद में रखा तब देश ने शैक्षिक संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में पिछड़े, दलित और आदिवासियों के साथ किये जाने वाले भेदभाव को देखा। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में हडकंप मच गया।
इसका असर यह हुआ कि दिल्ली विश्वविद्यालय के उपर्युक्त कॉलेज ने एनएफएस किये गये पदों के साथ कुछ नए पदों का विज्ञापन 05 जुलाई 2024 को निकाल दिया। ठीक इसके पांच दिन बाद कमला नेहरू कॉलेज का पत्रकारिता विभाग ओबीसी के पद को एनएफएस करके एक नयी बला को अपने सिर मोल लेता है।
आखिर, देश के विश्वविद्यालयों में किस तरह की पढ़ाई हो रही है, जिसे पढ़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं उसके अनुषंगी संगठनों की सदस्यता लिए और ब्राह्मण जाति में जन्मे अभ्यर्थी योग्य हो जा रहे हैं और पिछड़े, दलित एवं आदिवासी अभ्यर्थियों को अयोग्य ठहराते हुए उनके आरक्षित पद को ‘नॉट फाउंड सूटेबल’ कर दिया जा रहा है? क्या यही आजादी का अमृतकाल है?