Sunday, September 8, 2024
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अर्थव्यवस्था

राजस्थान : अपनी लोकविद्या को बचाने का संघर्ष करता एक समुदाय

जयपुर से 12 किमी दूर स्थित स्लम बस्ती 'रावण की मंडी’ जिसमें 40 से 50 झुग्गियां हैं जिनमें लगभग 300 लोग रहते हैं, जो आज भी अपनी आजीविका को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। यह नित्य रोजगार कि तलाश में शहरों का चक्कर लगाते हैं। इनके पास अपनी कला (हस्तकला) है, परन्तु बाजार व बिक्री नहीं होने से उनको बेरोजगारी की मार सहनी पड़ रही है। प्लास्टिक और मशीन से बने उत्पादों ने हाथ से बने सामानों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। इससे इन उत्पादों को बनाने वाले कारीगरों की आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर पड़ा है। ऑनलाइन बाजार ने इनको और भी प्रभावित किया है।

शिक्षा के अभाव के कारण योजनाओं की पहुंच से दूर राजस्थान के ग्रामीण

पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में ऑनलाइन सिस्टम काफी तेजी से अपने जड़ें जमा चुका है। सारे कार्य ऑनलाइन हो चुके हैं फिर चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी। लेकिन फिर भी देश की आधी आबादी तक यह ऑनलाइन सिस्टम नहीं पहुँच पाया है, कारण है अभी भी शिक्षा की कमी। शिक्षा के अभाव में आज भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को सरकारी योजनाओं की सूचना नहीं मिल पाती और न ही वे इन योजनाओं का लाभ उठा पाते हैं।

राजस्थान : शिक्षा और रोजगार की कमी से जूझता कालबेलिया समुदाय

कालबेलिया सदियों से एक घुमंतू समुदाय के रूप में दर्ज रहा है। ऐतिहासिक रूप से इन्हें सांप पकड़ने वाला समुदाय माना जाता है। यह एक जगह स्थायी निवास की अपेक्षा गांव के बाहर खुले मैदानों या चरागाहों में अपना पड़ाव डाला करते थे। वर्तमान में इस समुदाय में साक्षरता की दर कम है। वहीं सरकार की ओर से कई कल्याणकारी योजनाएं चलाने के बावजूद रोज़गार के मामले में इस समुदाय को अभी भी काफी विकास करने की आवश्यकता है।

उप्र कारखाना संशोधन विधेयक 2024 : मजदूरों को गुलाम बनाने का कानून

सापेक्षिक विकास की दर एक भ्रामक संख्या होती है। औद्योगिक विकास की दर हमेशा गुणात्मक छलांग लेकर आती है। यह गणित की सरल एक रेखीय गति में नहीं होती है। मजदूरों के 12 घंटे वाले कानून का संशोधन सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं है बल्कि तमिलनाडु, कर्नाटक से लेकर राजस्थान तक में विकास की छलांग लगाने  के लिए 12 घंटे काम का प्रावधान चल रहा है। ये सारी कोशिशें पूंजी निवेश की इस उम्मीद पर की जा रही है कि चीन से निकली पूंजी भारत में आ गिरे और भारत एशिया का नया ताइवान बन जाए।

अच्छी नौकरी बनाम अच्छा वेतन : कॉर्पोरेट जितना खून चूसता है, उतना पौष्टिक भोजन खरीदने के पैसे नहीं देता

देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का समझौता कॉर्पोरेट से होता रहता है लेकिन उस मजबूत हुई अर्थव्यवस्था का असर आम जनता के जीवन की जरूरतों पर दिखाई नहीं देता बल्कि पूँजीपतियों का दुनिया के रईसों की सूची में आए हुए उनके नाम से सामने आता है। आर्थिक आंकड़ें और सामाजिक सूचकांकों में हुई प्रगति का विश्लेषण करने पर यह भले अन्य देशों से बेहतर दिखाई देगा लेकिन जमीनी हकीकत बद से बदतर है।

देवसत्ता का राजनीतिक अर्थशास्त्र

नए कृषि क़ानून खोटे, घटिया वाणिज्य को मजबूती देने के लिए लाए गए हैं। इसका असर पूरे सिस्टम पर पड़ेगा। यह मन और तन दोनों को विकृत करेगा|।हिंसा में उछाल आएगा। हत्याओं-आत्महत्याओं-मौतों का ग्राफ तेजी से बढ़ेगा। समाज के विभिन्न घटकों में पहले से चला आ रहा टकराव घातक शक्ल अख्तियार करेगा।

भारत में विकास और अर्थशास्त्र दोनों की डिजाइन खेती और गांव-विरोधी रही है

ये जो तीनों कानून है, एक है एमएसपी मंडी समिति वाला कानून। सीधी-सी बात है मैं किसान कार्यकर्ता हूं, मैं जिस तरह से देखता हूं, उसमें तीन बड़े फैक्टर हैं। अनाज को लोगों तक पहुंचाने का, एक तो अनाज उत्पादन होता है उसका वितरण या व्यापार होता है। फिर स्टोरों में रखा जाता है। और तीनों को व्यापारियों के हवाले कर दिया गया।

सहना को सरकारी सुविधा, हलकू अब भी कांप रहा है

प्रेमचंद का साहित्य आज भी कम प्रासंगिक नहीं हैं क्योंकि उस समय में और आज के समय में समस्याओं का स्वरूप बेशक बदल गया हो लेकिन समस्याएँ समाप्त नहीं हुई हैं। बल्कि कुछ समस्याएँ और गहरी हो गई हैं। ग्रामीण व शहरी बेरोज़गारी, बिना लाभ की खेती, दलितों व ग़रीबों का आर्थिक शोषण व उत्पीड़न, ऊँच-नीच व छूआछूत, अकर्मण्यता, अंधविश्वास व धार्मिक पाखण्ड, रिश्वतख़ोरी व भ्रष्टाचार आज भी ज्यों के त्यों बने हुए हैं। ग़रीबी का स्वरूप बदल गया है लेकिन ग़रीबी नहीं। खेतिहर किसान मज़दूर में बदल गया है। कुछ समस्याएँ ऐसी भी हैं जिनका स्वरूप तक नहीं बदला है।

जो दुनिया का सबसे बड़ा, निरंतर, शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन बन चुका है

हरियाणा में किसान आंदोलन और अन्य कुछ कारणों से पैदा हुए वातावरण के चलते हरियाणा विधानसभा सत्र को जल्दी स्थगित करना पड़ा । किसान विरोधी केंद्रीय कानूनों को निरस्त करने की मांग को विपक्षी नेताओं द्वारा विभिन्न तरीकों से सत्र में उठाया गया था हालांकि हरियाणा की मनोहर खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा-जजपा सरकार सत्र को बहुत छोटा करके अपने लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति से बच निकली।

  भारत बचाओ दिवस ट्रेड यूनियनों ने श्रमिकों और किसानों को सफलता के लिए बधाई दी

सरकार पेगासस स्पाइवेयर में जांच का जवाब नहीं दे रही है, लेकिन जनविरोधी बिलों को पारित करने में गतिरोध का उपयोग कर रही है, अपने क्रूर बहुमत का उपयोग कर रही है।  इस चल रहे संसद सत्र में आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक पारित किया गया है, बीमा कंपनियों के विनिवेश/बिक्री का निर्णय लिया गया है।

कोरोनाकाल और युवाओं के भविष्य पर अनिश्चितता की तलवार

इन तमाम समस्याओं को खत्म करने के लिए बहुत जरूरी है कि हम अपनी सोच में परिवर्तन लाएँ, यदि बचपन से ही बच्चों को यह सिखाया और दिखाया जाता कि घर के काम करना सिर्फ महिलाओं और लड़कियों का नहीं हैं बल्कि लड़के भी खाना बना सकते हैं उनकी रोटी भी गोल और मुलायम हो सकती है, बाहर कमाना सिर्फ लड़कों का ही काम नहीं हैं महिलाएं भी बाहर जा कर काम कर सकती हैं।