Monday, October 20, 2025
Monday, October 20, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमअर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था

राजस्थान : मिट्टी से भविष्य की फसल उगाते युवा

पिछले कई दशकों में युवा गांव में खेती-किसानी की जगह शहरी नौकरियों, मेट्रो-ज़िंदगी और शहरों की चमक-दमक की तरफ खिंचे चले आए हैं। लेकिन अब एक बार फिर से बदलाव नजर आने लगा है। कुछ युवा वापस गाँव और खेती की तरफ लौट रहे हैं या कम-से-कम खेती को एक सम्मानजनक, तकनीकी और लाभदायक करियर विकल्प के रूप में देखते हुए लाखों की आमदनी कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में बिजली दरों में वृद्धि : अमीरों को राहत लेकिन किसानों और गरीबों पर बढ़ेगा भार

छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरों में भारी वृद्धि की घोषणा की है। 100 यूनिट तक उपभोग करने वाले लोगों पर, जिनमें से एकल बत्ती कनेक्शन धारी और गरीबी रेखा के नीचे और कम आय वर्ग के लोग शामिल हैं, उन पर 20 पैसे प्रति यूनिट का अतिरिक्त भार डाला गया है। जबकि कृषि क्षेत्र के लिए प्रति यूनिट 50 पैसे वृद्धि की गई है।

 टैरिफ युद्ध : क्या हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?

डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को अमेरिका की मुक्ति का दिन घोषित किया है। इसी दिन ट्रंप ने पूरी दुनिया के खिलाफ टैरिफ युद्ध छेड़ा है,जो अब तक के बनाए तमाम पूंजीवादी नियमों और बंधनों को तोड़कर केवल अमेरिकी प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा से संचालित होता है। यह प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा न्याय की किसी भी भावना और अवधारणा को कुचलकर आगे बढ़ना चाहती है।

राजस्थान के लोहार समुदाय के अस्तित्व और संघर्ष की कहानी : जब बर्तन बिकेंगे, तब खाने का इंतजाम होगा

लोहे के बर्तन बनाना लोहार समुदाय के लिए केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि उनकी पहचान और अस्तित्व का प्रतीक है। लेकिन बदलते समय के साथ उनके लिए रोज़ी रोटी चलाना मुश्किल होता जा रहा है। नयी तकनीक, सस्ते विकल्प और बदलते उपभोक्ता व्यवहार ने उनके पारंपरिक काम को संकट में डाल दिया है।

दाल देख और दाल का पानी देख!

नेफेड और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता फेडरेशन (एनसीसीसीसी) बता रहा है कि सरकार के गोदाम में केवल 14.5 लाख टन दाल ही बची है, जो कि न्यूनतम आवश्यकता का केवल 40% ही है। इसमें तुअर दाल 35000 टन, उड़द 9000 टन, चना दाल 97000 टन ही है, जिसे लोग खाने में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। इन दालों की जगह दूसरी दाल के इस्तेमाल के बारे में सोचें, तो मसूर दाल का स्टॉक भी केवल पांच लाख टन का ही बचा है। भारत के संभावित दाल संकट पर संजय पराते।

देवसत्ता का राजनीतिक अर्थशास्त्र

नए कृषि क़ानून खोटे, घटिया वाणिज्य को मजबूती देने के लिए लाए गए हैं। इसका असर पूरे सिस्टम पर पड़ेगा। यह मन और तन दोनों को विकृत करेगा|।हिंसा में उछाल आएगा। हत्याओं-आत्महत्याओं-मौतों का ग्राफ तेजी से बढ़ेगा। समाज के विभिन्न घटकों में पहले से चला आ रहा टकराव घातक शक्ल अख्तियार करेगा।

भारत में विकास और अर्थशास्त्र दोनों की डिजाइन खेती और गांव-विरोधी रही है

ये जो तीनों कानून है, एक है एमएसपी मंडी समिति वाला कानून। सीधी-सी बात है मैं किसान कार्यकर्ता हूं, मैं जिस तरह से देखता हूं, उसमें तीन बड़े फैक्टर हैं। अनाज को लोगों तक पहुंचाने का, एक तो अनाज उत्पादन होता है उसका वितरण या व्यापार होता है। फिर स्टोरों में रखा जाता है। और तीनों को व्यापारियों के हवाले कर दिया गया।

सहना को सरकारी सुविधा, हलकू अब भी कांप रहा है

प्रेमचंद का साहित्य आज भी कम प्रासंगिक नहीं हैं क्योंकि उस समय में और आज के समय में समस्याओं का स्वरूप बेशक बदल गया हो लेकिन समस्याएँ समाप्त नहीं हुई हैं। बल्कि कुछ समस्याएँ और गहरी हो गई हैं। ग्रामीण व शहरी बेरोज़गारी, बिना लाभ की खेती, दलितों व ग़रीबों का आर्थिक शोषण व उत्पीड़न, ऊँच-नीच व छूआछूत, अकर्मण्यता, अंधविश्वास व धार्मिक पाखण्ड, रिश्वतख़ोरी व भ्रष्टाचार आज भी ज्यों के त्यों बने हुए हैं। ग़रीबी का स्वरूप बदल गया है लेकिन ग़रीबी नहीं। खेतिहर किसान मज़दूर में बदल गया है। कुछ समस्याएँ ऐसी भी हैं जिनका स्वरूप तक नहीं बदला है।

जो दुनिया का सबसे बड़ा, निरंतर, शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन बन चुका है

हरियाणा में किसान आंदोलन और अन्य कुछ कारणों से पैदा हुए वातावरण के चलते हरियाणा विधानसभा सत्र को जल्दी स्थगित करना पड़ा । किसान विरोधी केंद्रीय कानूनों को निरस्त करने की मांग को विपक्षी नेताओं द्वारा विभिन्न तरीकों से सत्र में उठाया गया था हालांकि हरियाणा की मनोहर खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा-जजपा सरकार सत्र को बहुत छोटा करके अपने लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति से बच निकली।

  भारत बचाओ दिवस ट्रेड यूनियनों ने श्रमिकों और किसानों को सफलता के लिए बधाई दी

सरकार पेगासस स्पाइवेयर में जांच का जवाब नहीं दे रही है, लेकिन जनविरोधी बिलों को पारित करने में गतिरोध का उपयोग कर रही है, अपने क्रूर बहुमत का उपयोग कर रही है।  इस चल रहे संसद सत्र में आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक पारित किया गया है, बीमा कंपनियों के विनिवेश/बिक्री का निर्णय लिया गया है।

कोरोनाकाल और युवाओं के भविष्य पर अनिश्चितता की तलवार

इन तमाम समस्याओं को खत्म करने के लिए बहुत जरूरी है कि हम अपनी सोच में परिवर्तन लाएँ, यदि बचपन से ही बच्चों को यह सिखाया और दिखाया जाता कि घर के काम करना सिर्फ महिलाओं और लड़कियों का नहीं हैं बल्कि लड़के भी खाना बना सकते हैं उनकी रोटी भी गोल और मुलायम हो सकती है, बाहर कमाना सिर्फ लड़कों का ही काम नहीं हैं महिलाएं भी बाहर जा कर काम कर सकती हैं।
Bollywood Lifestyle and Entertainment