चंदौली। गंगा के तटवर्ती गांवों में आजकल एक अलग तरह की हलचल है जिसमें ऐसे किसानों की माँगों को उठाया जा रहा है जिनके खेत-खलिहान गंगा की कटान के भेंट चढ़ते रहे हैं लेकिन सरकार ने कभी उनकी सुध नहीं ली। लेकिन अब किसानों ने तय कर लिया है कि वे अपने जैसे उन सभी पीड़ित किसानों को एकजुट करेंगे जिन्हें अपनी ज़मीनों से हाथ धोना पड़ा लेकिन न उनको एक पैसा मुआवजा मिला न उनका पुनर्वास ही किया गया।
इस हलचल के सूत्रधार सैयदराजा के पूर्व समाजवादी विधायक मनोज सिंह डबलू हैं जिन्होंने 73 तटवर्ती गांवों के किसानों को एक सूत्र में जोड़ने की एक पाँच दिवसीय यात्रा शुरू की। इस यात्रा का उद्देश्य महुजी गाँव से पड़ाव तक प्रभावित किसानों से संपर्क कर उनका दुख-दर्द जानना है। इस प्रकार चंदौली जिले में बरसों से पीछे ढकेल दिये गए एक जरूरी मुद्दे को उठाया जा रहा है।
इस यात्रा के क्रम में जगह-जगह होनेवाली सभाओं में शामिल किसानों ने इसे एक महत्वपूर्ण अभियान बताते हुये कहा कि जिन मकानों और बस्तियों पर संकट का साया मंडरा रहा है उन्हें पुनर्स्थापित कराने के लिए मुखर होती आवाज को जन समर्थन मिल रहा है। मनोज सिंह डब्लू कहते हैं ‘इससे इलाहाबाद से लेकर गाजीपुर तक के गंगा के किनारे रहने वाले इलाके के किसानों में उम्मीद जगी है और इससे पूर्वाञ्चल की राजनीति में व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
मनोज कहते हैं कि यह केवल मुआवजे और पुनर्वास का सवाल नहीं है बल्कि लगातार प्रकृतिक आपदाओं के शिकार होनेवाले किसानों में अपने अधिकारों को लेकर जन-जागृति का वातावरण भी बन रहा है। सवाल केवल गंगा का ही नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश की सभी नदियों के कटान से पैदा होनेवाली आपदाओं से भी बचाव और पुनर्वास का है। वे डबल इंजन सरकार को आड़े हाथों लेते हुये किसानों के मुद्दों पर उसकी बेरुखी की आलोचना करते हैं।
इससे पहले घाघरा के कटान में कई गांवों के समा जाने का ज़िक्र करते हुये वह कहते हैं कि कल तक जिनके पास खेत और घर था आज वे तंबुओं और खुले आसमान के नीचे रहने को अभिशप्त हैं। वे मुआवजे के लिए रिरिया रहे हैं लेकिन सरकार के लोग कोरे आश्वासन से ही उनका पेट भरना चाहते हैं।
नई नहीं है गंगा कटान की समस्या
उत्तर प्रदेश के एक बड़े कारीडोर को गंगा नदी का साथ मिलता है। प्रदेश में कानपुर से गाजीपुर तक की यात्रा में गंगा का प्रवाह जन-जीवन को बहुत कुछ देता है और बहुत कुछ छीन भी लेता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि हिन्दू धर्म में गंगा को मोक्षदायिनी बनाने और बताने तथा पूजे जाने का आग्रह इतना ज्यादा रहा कि गंगा के साथ जीवनदायिनी नदी जैसा व्यवहार किया ही नहीं गया। फिलहाल चंदौली जनपद में समाजवादी पार्टी के नेता और सैय्यदराजा विधानसभा के पूर्व विधायक मनोज सिंह डबलू ने गंगा कटान से प्रभावित किसानों के हक की आवाज उठाकर गंगा के उस पक्ष को सामने ला दिया है जिसकी वजह से उनके अपने जनपद के हजारों किसान अपना खेत, खलिहान और घर-बार गंवा चुके हैं।
चंदौली से लेकर गाजीपुर ज़िले की मुहम्मदाबाद तहसील तक गंगा की कटान के शिकार लोगों ने अपने सवाल उठाए लेकिन बरसों के संघर्ष के बावजूद उनकी लड़ाई को कोई मंज़िल नहीं मिल सकी है। लोग कहते हैं कि अपराध और दबदबे की राजनीति ने गाजीपुर के बुनियादी सवालों को बहुत पीछे छोड़ दिया है जिसके कारण दलितों, किसानों और मजदूरों के मुद्दे लखनऊ-दिल्ली तक कभी पहुँच ही नहीं पाते हैं।
जबकि गंगा के किनारे बसे गाँव के किसानों के जीवनयापन में भी गंगा नदी की एक बड़ी भूमिका देखने को मिलती रही है। गंगा की मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है जिसकी वजह से किसानों की एक पूरी सभ्यता गंगा के किनारे-किनारे विकसित हुई और उस विकसित समाज ने गंगा के परिक्षेत्रों में पशुपालन और कृषि कार्य के सहारे जीवन को विकसित और पोषित करना शुरू किया। गंगा का यह परिक्षेत्र ही इन परिवारों का पालनहार बना रहा। गंगा नदी के किनारे रहने वाले लोग पूरी तरह से नदी पर निर्भर हो गए और एक सहचर्य भरा जीवन जीने लगे। जिन ज़मीनों पर ये परिवार के खेत अथवा घर बसे थे वह समय सापेक्ष परिस्थितियों में लोगों के नाम दर्ज हो गए।
सब कुछ के बीच में एक बड़ी विडम्बना तब आती थी जब गंगा की धारा में तेज बहाव तेज हो जाता और किनारों की जमीन गंगा में बह जाती है। कभी-कभी यह स्थिति बाढ़ के समय के बाद ठीक हो जाती है पर कई बार बाढ़ के बाद भी स्थिति नहीं बदलती और स्थाई रूप से बाढ़ में समाई हुई जमीन गंगा का हिस्सा हो जाती है। इसी स्थिति को गंगा के कटान के रूप में जाना जाता है। गंगा के इस कटान की वजह से पिछले तीस-चालीस सालों में बहुत से किसानों की जमीन और घर-बार गंगा में समा चुके हैं। जिसकी वजह से वह किसान अब या तो पलायन को मजबूर हो गये हैं या फिर किसान से मजदूर होने का दंश झेल रहे हैं।
जनसापेक्ष राजनीति और निर्णायक लड़ाई का ऐलान
जिन किसानों के खेत और घर-बार गंगा में समा चुके हैं उन किसानों को सरकार की ओर से अब तक कभी कोई मुआवजा नहीं मिला। गाँव के गाँव कटान की इस पीड़ा का दंश झेल रहे हैं और इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बहुत से लोग तो अब यह उम्मीद भी खो चुके हैं कि उनकी पुनर्स्थापना के लिए सरकार कोई प्रयास करेगी। फिलहाल किसानों की बुझती उम्मीद को मनोज सिंह डब्लू के माध्यम से एक आस मिल गई है।
मनोज सिंह ने विधायक रहने के दौरान किसानों के इस पक्ष को लेकर विधानसभा में भी अपनी बात रखी थी पर उस पर कोई नीति बन पाती उससे पहले ही उनकी पार्टी की सरकार का कार्यकाल खत्म हो गया और वह इस योजना को कोई अमली जामा नहीं पहना सके। एक बार फिर जबकि वह ना तो सत्ता में हैं और ना ही विधायक हैं तब उन्होंने आंदोलन और सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से इस मसले को गंभीरतापूर्वक उठाकर एक निर्णायक लड़ाई का ऐलान कर दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने चंदौली जनपद के बाढ़ और काटन प्रभावित लगभग 73 गांवों को चिन्हित किया है और उन गांवो में सघन जनसम्पर्क अभियान चलाते हुये लोगों को अपने हक के पक्ष में खड़े होने की बात रखी है।
मनोज सिंह डब्लू स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्त्ता नहीं हैं बल्कि समाजवादी पार्टी के नेता भी हैं जिसकी वजह से पार्टी के बहुत से कार्यकर्त्ता भी उनकी इस मुहिम में उनके साथ खड़े दिख रहे हैं तो कुछ लोग इसे उनकी सामाजिक से ज्यादा राजनीतिक पहल मान रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों में उनकी यह पाँच दिवसीय यात्रा चर्चा का विषय बन गई है। अपने-अपने हित-लाभ और नफे नुकसान के माध्यम से राजनीतिक लोग भले ही कुछ भी व्याख्यायित करें पर इतना तो तय है कि मनोज सिंह ने चंदौली जनपद के इस सामाजिक मसौदे को उठाकर, एक तरह से ठहरे हुये पानी में कंकड़ मारकर एक विक्षोभ पैदा कर दिया है। चंदौली जनपद राज्य का एक छोटा सा जनपद है और प्राकृतिक रूप से काफी समृद्ध है और यहाँ के लोगों की एक बड़ी आबादी इसी प्राकृतिक संपन्नता पर निर्भर करती है। यह निर्भरता जब संकटग्रस्त होती है तब जीवनयापन का एक बड़ा संकट खड़ा हो जाता है। गंगा का कटाव भी जनपद के हजारों किसान परिवारों की प्राकृतिक निर्भरता के संकटग्रस्त होने का ही मामला है। जिसने उनके जीवन का वह आधार ही छीन लिया है जिसकी वजह से वह अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे थे।
उम्मीद खो चुके समाज को मिली आस
दुर्भाग्यपूर्ण किन्तु सत्य है पूरे प्रदेश में नदी के कटान से प्रभावित होने वाले समाज को लेकर, सरकार ने अब तक कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किया है। जिसकी वजह से न सिर्फ चंदौली बल्कि इलाहाबाद से गाजीपुर तक के कई हजार किसान गंगा कटान की वजह से अपना बहुत कुछ गंवा चुके हैं। यह समस्या कोई एक दिन में नहीं पैदा हुई है बल्कि यह सतत जारी रहने वाली समस्या है। हर साल बहुत से किसान अपना बहुत कुछ गंवा देते हैं और उन्हें किसी तरह के सरकारी सहायता प्राप्त करने का कोई रास्ता नहीं मिलता।
फिलहाल पूर्व विधायक मनोज सिंह डब्लू ने जिस अंदाज में इस मुद्दे को उठाया है उससे यह तो तय है कि अब हर राजनीतिक पार्टी को इस मामले के प्रति एक स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा। राज्य सरकार को भी इस मामले की तह तक जाना होगा। वजह साफ है कि गंगा कटान एक बहुत बड़ा मुद्दा होने के बावजूद भी अब तक राजनीति का विषय नहीं बना था पर पूर्व विधायक कि इस यात्रा ने इस बड़े मामले को राजनीतिक रंग दे दिया है। उम्मीद खो चुकी जनता के मन में पुनः उम्मीद जग गई है। यह उम्मीद अब निश्चित रूप से उस पार्टी के साथ जाएगी जो उसके हित की बात करेगा। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस मामले को उठाकर मनोज सिंह ने सत्तारूढ़ पार्टी को न सिर्फ कटघरे में खड़ा कर दिया है बल्कि उसे सामाजिक दबाव का सामना करने के लिए भी मजबूर कर दिया है।
कैसी है मनोज सिंह डब्लू की गंगा कटान मुक्ति जन संपर्क यात्रा
मनोज सिंह डब्लू की गंगा यात्रा की स्थिति और प्रभाव देखने के लिए सहयोगी अमन विश्वकर्मा के साथ उनसे हुई बातचीत के अनुसार दोपहर 1 बजे के आस-पास हम दिया गाँव पहुंचे। पता चला की थोड़ी देर पहले ही उनका काफिला यहाँ मीटिंग करके निकल गया है और बड़गाँवा की तरफ गया है। रास्ता भटकने की वजह से हम लोग ही समय पर नहीं पहुंच पाए। लोगों से पूछते हुये हम बड़गाँवा पँहुचे। जहां से गाँव के बाहर तक ढ़ोल-ताशे की आवाजें आ रही थीं और यात्रा ने एक ठहराव लिया था, पर काफिले की गाडियाँ सड़क पर इस तरह खड़ी थीं कि उन्हें ओवरटेक नहीं किया जा सकता था। वैकल्पिक रास्ता मालूम होने के बाद हमने रास्ता बदला और उस जगह पर पहुंचे जहां इस जनसंपर्क यात्रा की सभा होनी थी।
पता चला कि इस गाँव के लगभग तीन सौ किसान किसी न किसी रूप में अपनी जमीन गंगा कटान में गंवा चुके हैं। उनके इस दर्द की दवा बनकर जब मनोज सिंह गाँव में पहुंचे तब पुनर्नवा उम्मीद के सहारे खड़े लोगों ने उनका स्वागत सत्कार किया। एक बड़ी भीड़ काफी देर से उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। गाँव के पूर्व प्रधान मंगला तथा गाँव के लोग अपने गाँव में इस यात्रा को किसी उत्सव की तरह समायोजित करने में लगे थे। मंगला ने इसका कारण बताते हुये कहा कि आज तक तो सब अपने लिए मांगने आते थे आज पहली बार कोई हमारे हक के लिए संघर्ष करने हमारे साथ आया है, तो हम लोग भी पीछे नहीं हटेंगे, आज इस स्वागत के बहाने हम लोग भी नेता जी को बता देना चाहते हैं कि अब अगर आप हमारे लिए निर्णायक लड़ाई लड़ने निकले हैं तब हम हर कीमत पर आपके साथ खड़े हैं, चाहे जेल ही क्यों ना जाना पड़े। हम पूछते हैं कि जेल क्यों जाना पड़ सकता है तब वह बताते हैं कि सरकार ऐसी ही है, जब कोई उसके खिलाफ लड़ने को खड़ा होता है तब वह या तो घर पर बुलडोजर चलवा देती है या फर्जी तरीके से जेल भेज देती है लेकिन मैं आपके माध्यम से सरकार को बता देना चाहता हूँ कि हमारे हक के लिए लड़ने वाले मनोज सिंह डब्लू अकेले जेल नहीं जाएँगे बल्कि अगर सरकार ने उन्हें फँसाने और परेशान करने की कोशिश की तो घर-घर से लोग जेल जाएँगे।
उनके इतना कहते ही पीछे खड़ी भीड़ पूरे उत्साह में नारा लगाने लगती है। बात समझ में आ जाती है कि खुद को किसान नेता कहने वाले मनोज सिंह डब्लू ने लोगों की उस दर्द पर मरहम लगाने का काम कर दिया है जिसका अब से पहले कोई हाल-चाल भी नहीं पूंछता था।
मनोज सिंह के स्वागत सत्कार के बाद कुछ स्थानीय लोगों ने अपनी बात रखी और गंगा के कटान से किस तरह गाँव के लोग प्रभावित हुये हैं उसका परिचय दिया। इसके बाद पार्टी से जुड़े कुछ नेता और समाजवादी पार्टी के जिला प्रवक्ता छोटे लाल यादव ने विस्तार से इस यात्रा का मंतव्य बताया और कहा कि यह समस्या बड़ी है और सरकार तानाशाह है इसलिए मैं आप सबसे आह्वान करता हूँ कि इस गंगा कटान मुक्ति यात्रा जनसंपर्क अभियान से जुड़िये ताकि इस लड़ाई को पूरी ताकत के साथ लड़ा जा सके। इसके बाद मनोज सिंह अपनी बात रखते हैं। उन्हें गाँव के लोग पूरी तरह से समर्थन देने के लिए आश्वस्त करते हैं। मीटिंग खत्म होने के बाद भंडारा आयोजित था, यहीं पर यात्रा में शामिल लोग भोजन करेंगे, मनोज सिंह को भी भोजन करना है पर पहले वह हमारी टीम के साथ मुखातिब होते हैं। उनके साथ उनकी गंगा कटान मुक्ति जनसम्पर्क यात्रा तथा जिले से लेकर राज्य और राष्ट्रीय राजनीति पर लंबी बातचीत हुई।
स्थानीय राजनीति और समस्या दोनों पर उनका आत्मविश्वास बता रहा था कि उनकी यात्रा को लोगों का अच्छा साथ मिल रहा है। वह पार्टी के उन एजेंडों पर बात करने में जरूर थोड़ा असहज नजर आ रहे थे जो पार्टी की विचारधारा को लेकर थे। दरअसल धर्म को लेकर उनकी पार्टी का स्टैंड लंबे समय से पेंडुलम की तरह झूल रहा है और कोई स्पष्ट राय बनाने में पार्टी अब तक सफल नहीं हुई है। स्वामी प्रसाद मौर्य जहां रामचरित मानस की कुछ लाइनों को बैन करने या फिर उदयनिधि मारन के सनातन धर्म संबंधी उस बयान का समर्थन करते नजर आते हैं जिसमें वह कहते है कि ‘सनातन धर्म को खत्म किया जाना चाहिए’। दूसरी तरफ पार्टी के बड़े नेता रामगोपाल यादव खुले आम सनातन के समर्थन में नजर आते हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हिन्दू के धार्मिक वर्गीकरण पर खुद को मौके-बे-मौके शूद्र बताकर शूद्र समाज को अपने साथ खड़ा करने की कोशिश करते हैं तो कभी-कभी परशुराम का फरसा लेकर भी खड़े होते हैं।
ऐसे में मनोज सिंह का असहज होना अस्वाभाविक नहीं लगता। उनके लगातार कार्यक्रम होने की वजह से वह भंडारे में बैठकर भोजन करते हैं और अगली यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं। सबके जाने के बाद एक महिला जिनका नाम राधिया है और उम्र 50-55 के बीच होगी, वह हमारे थोड़ा करीब आकर खड़ी हो जाती हैं और धीरे से कहती हैं, अब जोगी बाबा(मुख्यमंत्री योगी) का हमार लोगन के हक देई का ही परी। यह एक बड़ा सपना है जो अपने हक से वंचित समाज की आँखों में मनोज सिंह ने रोप दिया है। जिसका जवाब समय के किसी पक्ष को तो देना ही होगा।
इसके बाद हम तिरगांवा की मीटिंग में भी उनके साथ खड़े जनसमर्थन और गंगा कटान मुक्ति के मुद्दे पर लोगों की सहभागिता देखने के लिए पहुँचते हैं। यहाँ पहले से ही उनके समर्थन में बिरहा चल रहा है जिसमें उन्हें तमाम मिथकीय रूपको से नवाजते हुये उनके इस प्रयास को अद्वतीय कहा जा रहा है। शेष कार्यक्रम पूर्ववत ही होता है। तिरगांवा में दिया हुआ उनका वक्तव्य का एक अंश नीचे के वीडियो में सुना जा सकता है।
मनोज सिंह ने लोकसभा चुनाव से पहले एक गंभीर और जनसापेक्ष मुद्दा उठाकर जहाँ सत्ताधारी पार्टी पर दबाव बढ़ा दिया है वहीं लोकसभा के प्रति अपनी मजबूत दावेदारी का दम भी दिखा दिया है। फिलहाल चंदौली की राजनीति में रोमांच का दौर शुरू हो चुका है। कटान नदी में ही नहीं राजनीति में भी होती है। कौन बहेगा, कौन रहेगा यह तो वक्त बताएगा, अभी तो मनोज डब्लू का ढ़ोल बज रहा है और इसकी हुंकार भी पहली बार सैय्यदराजा के पार तक सुनाई दे रही है।