Tuesday, December 3, 2024
Tuesday, December 3, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविविधउत्तराखंड : जंगलों में लगने वाली आग और पानी की कमी बनी...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

उत्तराखंड : जंगलों में लगने वाली आग और पानी की कमी बनी ग्रामीणों के चिंता का कारण

एक तरफ जंगलों को काटकर खत्म किया जा अरहा है, वहीं दूसरी तरफ जंगलों में आग लगने से खाक हो रहे हैं। धरती के पारिस्थिकीय तंत्र के लिए यह बहुत ही चिंताजनक है।

उत्तराखंड को देश के चंद हरियाली वाले राज्यों के रूप में जाना जाता है। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इसका हर इलाका लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। यही कारण है कि यहां के विभिन्न पर्यटक स्थलों पर वर्ष भर देश विदेश के पर्यटकों का तांता लगा रहता है। लेकिन अभी यही प्राकृतिक सुंदरता आग की भेंट चढ़ रही है और धीरे धीरे राज्य के बहुत से जंगली इलाके आग में जलने लगे हैं। चाहे वह जंगलों या खेतों की हरियाली क्यों न हो, अब धीरे-धीरे यह विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। लगभग ऐसा कोई दिन नहीं होगा जब स्थानीय समाचारपत्रों की हेडलाइंस आग की खबरों से भरी नहीं होती है। सरकार द्वारा इसके रखरखाव के सापेक्ष कार्य भी किये जा रहे हैं। लेकिन हमने कभी इस बात पर विचार ही नहीं किया कि आखिर इन जंगलों में आग कैसे लग जाती है? वह कौन से कारक हैं जिसके कारण यहां आग फ़ैल जाती है।

उत्तराखंड में स्थानीय स्तर पर यह माना जाता है कि जंगल में आग का सबसे बड़ा कारण है ‘चीड़’ का पेड़ है जिससे पिरूल निकलता है। इसमें उच्च तापमान होने पर स्वतः ही आग लग जाती है। यह आग को जल्द फैलाने का ज़िम्मेदार माना जाता है। विभिन्न समाचार स्रोतों के अनुसार इसी वर्ष के अप्रैल माह तक राज्य के जंगलों में आग की एक हजार से अधिक घटनाएं सामने आ चुकी हैं, वहीं नवम्बर 2023 से मई 2024 तक 1196 हेक्टेयर जंगल अग्नि की भेट चढ़ चुके हैं। कठिन नियमों के अन्तर्गत आग लगाने वाले व्यक्ति पर कार्यवाही व जंगलों में आग लगने पर सुरक्षा संबंधित गतिविधियों को देखा जाता है जबकि यह कार्यवाही आग लगने से पूर्व की जानी चाहिए। जैसे तैसे मनुष्य तो अपने घर को जलने से बचा लेता है पर यह आग केवल मनुष्यों के घरों को ही नुकसान नहीं देती है बल्कि यह जंगलों में रहने वाले उन बेबस लाचार जीव-जन्तुओं के घरों और उनके बच्चों को भी अपनी चपेट में ले लेती है। जिनका इस अग्नि से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता है।

यह भी पढ़ें – मीरजापुर : PMSGY योजना के इंतज़ार में है मनऊर गाँव के ग्रामीण

सिमित संसाधनों और फायर ब्रिगेड की कमी के चलते राज्य के अधिकतर जंगली क्षेत्र आग की चपेट में आ जाते हैं। दरअसल भौगोलिक परिस्थितियों के चलते हर प्रभावित क्षेत्रों में फायर ब्रिगेड का पहुंच पाना संभव नहीं होता है। हालांकि सरकार द्वारा आग पर काबू के उद्देश्य से पिरूल को खरीदने की योजना बनायी गई थी, लेकिन बजट की कमी बाधा के रूप में खड़ी हो गयी। जंगलों में लगने वाली आग पर काबू पाने के लिए इस बार भारतीय एयरफोर्स के एम17वी5 हेलीकॉप्टर को भी लगाया गया, लेकिन मौसम का उचित साथ न मिलने के कारण समय से आग पर काबू पाने के प्रयास सफल नहीं हो सके। अभी वर्षा के मौसम ने बारिश ने अपना काम तो कर दिया और अधिकतर जंगलों की आग बुझ चुकी है लेकिन तब तक राज्य एक बड़ा नुकसान झेल चुका है।

आग लगने और वर्षा न होने से केवल जंगलों या इसमें रहने वाले जानवरों को ही नुकसान नहीं हो रहा है बल्कि इसका प्रभाव कृषि उत्पादन में भी देखने को मिल रहा है। इस संबंध में नैनीताल स्थित घारी ब्लॉक के जलना गांव के किसान नीरज मेलकानी का कहना है इस वर्ष उनके द्वारा 20 कट्टे आलू का बीज अपने खेत में लगाया गया, जिससे भविष्य में आय सृजन की जा सकेगी। लेकिन समय से वर्षा के न होने, नजदीकी स्रोतों में घटते जल स्तर और आसपास के जंगलों में लगातार लग रही आग के कारण आलू का सही से उत्पादन नहीं हो सका। इतना ही नहीं, समय से वर्षा के नहीं होने के चलते मटर, आड़ू, पुलम, खुबानी जैसी फसलों का उत्पादन अपेक्षाकृत घट गया है। जिससे किसानों को बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान हो रहा है। एक आकलन के अनुसार अकेले इस वर्ष ही अब तक किसानों को 4 से 5 लाख रुपये तक का नुकसान हो चुका है।

हालांकि स्थानीय पर्यावरणविद् चन्दन नयाल का कहना है चीड़ का पेड़ आग फैलाने में सहायक अवश्य होता है। लेकिन यह मानव निर्मित या मानवीय लापरवाही का सबसे बड़ा परिणाम है। वह कहते हैं कि उत्तराखंड के जंगलों में चीड़ के पेड़ का काफी तेज़ी से विस्तार काफी तेजी से हो रहा है। यह राज्य के राजस्व वृद्धि में सहायक होते हैं। इनके पेड़ों से मिलने वाला लीसा राजस्व उत्पन्न करता है। जिसे प्राप्त करने के लिए चीड़ के पेड़ को जलाना ज़रूरी होता है। यही कारण है कि अप्रैल माह में अक्सर इन पेड़ों में आग लगा दी जाती है जिससे लीसा उच्च गुण्वत्ता व अधिक मात्रा में मिलता है। वहीं घास की नस्ल उन्नत के चलते पहले की घास में आग लगा दी जाती है जिसके पश्चात होने वाली घास उनके जानवरों के लिए लाभदायक होती है। चन्दन का मानना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही भी कुछ हद तक इस आग के लिए जिम्मेदार है। अक्सर जंगलों में होने वाले फायर कैम्प, बीड़ी सिगरेट, घरों के नजदीक कूड़ा व जानवरों को कीड़े मकौड़ों से राहत के लिए लगायी जाने वाली विकराल अग्नि का रूप धारण कर लेती है।

यह भी देखें – Azamgarh : आत्मनिर्भर होने की ललक और जुनून में महिलाएं रात में घर के लोगों से छिपकर करती थीं काम

जंगल में बढ़ती आग की घटनाओं ने स्थानीय ग्रामीणों को भी चिंतित कर दिया है। वह इसके लिए तेज़ी से होते निर्माण कार्य को भी ज़िम्मेदार मानते हैं। नैनीताल के रामगढ़ स्थित ल्वेशाल गांव की 60 वर्षीय खष्टी तिवारी कहती हैं कि वर्तमान समय में जहां उत्तराखंड के ग्रामीण जंगलों में आग की समस्या से जूझ रहे हैं वहीं दूसरी ओर जल समस्या की दोहरी मार भी झेल रहे हैं। वह कहती हैं कि पहाड़ों में खेती वर्षा पर आश्रित है। लेकिन आज पीने के पानी के लिए भी हाहाकार मचने लगा है। इसका प्रमुख कारण विकास के नाम पर राज्य के गांव गांव हो रहे निर्माण कार्य हैं। जिसके लिए काफी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। इस समस्या से निपटने के लिए वह अपना अनुभव शेयर करते हुए कहती हैं कि इसके लिए प्राकृतिक स्रोतों को छेड़छाड़ किये बिना निर्माण कार्य किये जाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त जंगलों में चौड़ी पत्तेदार पौधों को रोपित करना होगा जो भविष्य में जल की क्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगे।

बहरहाल, उत्तराखंड के जंगलों की आग ने न केवल पर्यटन कारोबार को चौपट किया बल्कि लाखों की संख्या में जंगली जानवरों की जाने गईं और उन्हें इंसानी आबादी की ओर आने के लिए विवश किया है। जिससे इंसान और जंगली जानवरों के बीच टकराव बढ़ने लगी है। आग के चलते दृश्यता कम होने से हिमालय दर्शन वाले पर्यटकों को निराशा हाथ लग रही है, जिससे पर्यटकों की आवाजाही में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। यदि आग के कारक हम हैं तो इसे रोकने के प्रयास भी हमें करने होंगे। इसके लिए अधिक से अधिक पेड़ों का संरक्षण करने की ज़रूरत है। यदि हमारे अंदर पर्यावरण के प्रति अपनत्व का भाव होगा तो शायद ही जंगलों में आग की घटना देखने को मिलेगी। (चरखा फीचर)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here