पिछले दस वर्षों के दौरान गाँधी के विचारों और उनके निशानों को ख़त्म करने की संघी गुंडों और भाजपा सरकार की कारस्तानियों की फेहरिस्त लगातार बढ़ती ही जा रही है। अब बात इससे भी आगे बढ़ चुकी है। गाँधी के रास्ते पर चलते हुए धरना-प्रदर्शन, सत्याग्रह और अनशन आदि को ख़त्म करने की भी ढेरों क्रूर घटनाएँ सामने आ रही हैं। अब सरकार और प्रशासन अपनी उपेक्षा और दमन से उन सभी लोगों को आसानी से मौत के मुंह में धकेलने पर आमादा है जो किसी भ्रष्टाचार अथवा अनियमितता के खिलाफ लड़ रहे हैं।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा की मांट तहसील के थाना नौहझील के अंतर्गत आने वाले शंकरगढ़ी गाँव में दिनांक 12 जून 2024 को एक सामाजिक कार्यकर्ता की 4 माह की भूख हड़ताल के बाद मौत हो गई लेकिन इस गम्भीर मामले पर जिला प्रशासन लीपापोती करने की कोशिश कर रहा है।
मृतक सामाजिक कार्यकर्ता का नाम देवकी नंदन शर्मा था, जिनकी उम्र लगभग 70 वर्ष होगी। वह शंकरगढ़ी गाँव के ही निवासी थे। देवकीनंदन शर्मा अपने गाँव में सरकारी विकास कार्यों में गड़बड़ी की जाँच के लिए पिछले 15 वर्षों से संघर्ष कर रहे थे। चार माह से वे अनशन पर थे जिसकी वजह से उनका स्वास्थ लगातार खराब होता जा रहा था पर स्थानीय प्रसाशन द्वारा इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। दिनांक 12 जून को उनका स्वास्थ बहुत खराब हो गया, वह एकदम बेहोशी की अवस्था में हो गए थे। जिसकी सूचना परिवार वालों ने स्थानीय प्रशासन को दी। सरकारी एम्बुलेंस द्वारा उन्हें सामुदायिक अस्पताल ले जाया जा रहा था लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गयी।
शर्मा चार महीने से अनशन पर थे और इस बीच उन्होंने लगातार जिलाधिकारी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री सभी को पत्र लिखकर अपनी मांगों से अवगत कराया। लेकिन कहीं से कोई माकूल जवाब नहीं मिला, जबकि स्थानीय प्रशासन उनकी बिगड़ती सेहत से अनजान नहीं था। अधिकारियों को पता था कि यदि अनशन तुड़वाया नहीं गया तो उनका जीवन खतरे में पड़ सकता है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनकी मौत का कारण हृदय गति रुक जाना बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया गया।
गौरतलब है कि शर्मा पिछले पंद्रह वर्षों से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। उन्होंने आबादी की ज़मीन पर गलत पट्टे दिए जाने, पंचायत भवन निर्माण में धांधली, पंचायत भवन पर पंचायती राज विभाग के अवैध कब्ज़े, ग्राम प्रधान और पंचायती राज विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत और सरकारी पैसे की बंदरबांट, सरकारी ज़मीन और चकरोड पर जबरन और अवैध कब्ज़ा, सामुदायिक शौचालय के निर्माण में की गई धांधली जैसे एक दर्जन मुद्दों पर अपना संघर्ष चलाया।
दिनांक 28 मई 2024 को प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखे आठ पृष्ठ लम्बे हस्तलिखित पत्र में देवकी नंदन शर्मा ने अपने अनशन की सूचना के साथ अपने द्वारा उठाये जा रहे मुद्दों के बारे में विस्तार से लिखा था। अपने पत्र में उन्होंने उल्लेख किया कि कई माह के अनशन के बावजूद जिला प्रशासन ने उन्हें सूचना के अधिकार अधिनियम २००५ की धारा (६) के तहत जो सूचनाएँ मांगी वे उन्हें आज तक नहीं मिलीं और उनकी तबियत लगातार खतरे में पड़ रही है। अंततः चार महीने के अनशन के बाद शर्मा की मौत हो गई लेकिन मौत के दो माह बीतने के बाद भी उनकी मांगों पर न कोई ध्यान दिया गया है और न ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई है।
मौखिक और झूठे आश्वासन देकर बचते रहे अधिकारी
स्थानीय सरकारी अधिकारियों की निष्क्रियता और लापरवाह रवैये के कारण देवकी नंदन शर्मा को अपनी जान गंवानी पड़ी। असल में उन्होंने जिन मुद्दों को उठाया वे इतने गंभीर थे कि उसमें स्थानीय प्रशासन और सत्ता के कई लोगों की गर्दनें फंसती नज़र आ रही थीं। इसीलिए ज्यादातर मामलों में लीपापोती का प्रयास किया गया और इस बात की ख़ास कोशिश की गई कि किसी तरह बात बहुत आगे न बढ़े। इसी प्रक्रिया में एक निर्दोष व्यक्ति की जान चली गयी। भारतीय जनता पार्टी की सरकारों में अनशन को गम्भीरता से नहीं लिया जाता। इसी तरह 2018 में स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद उर्फ प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल की भी गंगा को बचाने के लिए हरिद्वार में किए जा रहे अपने अनशन के 112वें दिन अस्पताल में भर्ती करने के बाद मौत हो गई।
बताया जाता है कि कुछ वर्ष पहले जब देवकी नंदन शर्मा भ्रष्टाचार के खिलाफ मथुरा जिले की मांट तहसील में अनशन कर रहे थे तब स्थानीय प्रशासन ने उनके स्वस्थ्य के नाम पर उन्हें उठा लिया और किसी अज्ञात स्थान पर ले गया। जबकि शर्मा का स्वस्थ्य बिलकुल दुरुस्त था। वे उस अज्ञात स्थान से किसी तरह बचकर वापस आये थे और उन्हें इस बार भी आशंका थी कि जिला प्रशासन उन्हें उठा सकता है। उनके भाई जीतेन्द्र शर्मा बताते हैं कि इसी आशंका के चलते उन्होंने किसी सरकारी या सार्वजनिक जगह पर अनशन करने के बजाय अपने घर के अहाते में स्थित मंदिर पर ही अनशन शुरू किया जो चार महीने लम्बा चला।
अनशन की खबर पाकर तहसीलदार उनसे मिलने आये और उनकी समस्याओं को दूर करने का मौखिक आश्वासन दिया। लेकिन देवकी नंदन शर्मा उनसे लिखित आश्वासन चाहते थे। यही रणनीति दुसरे अधिकारीयों ने भी अपने और ज़बानी जमाखर्च के माध्यम से अनशन तुड़वाना चाहा लेकिन शर्मा ने दृढ़ता से इनकार कर दिया। बेशक इस प्रक्रिया में उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी।
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय ने एक विज्ञप्ति के जरिये सूचित किया है कि देवकी नंदन शर्मा की मौत के प्रकरण पर एक तथ्यान्वेषण आख्या मुख्य सचिव को 1 अगस्त को सौंपी जा चुकी है। हम उम्मीद करते हैं कि प्रदेश सरकार जल्दी ही कोई कार्यवाही करेगी।
हमारी मांग है कि देवकी नंदन शर्मा की 4 माह अनशन करते हुए मौत हो जाने के पूरे मामले की न्यायिक जाँच की जाये। ग्राम शंकरगढ़ी, विकास खण्ड नौहझील, तहसील मांट, जिला मथुरा में पंचायत भवन का नियमितीकरण, सचिव आवास को कब्जामुक्त कराना, प्राथमिक विद्यालय के पीछे मार्ग को कब्जामुक्त कराना, आवंटित शौचालयों की पात्रता की जांच हो।
संदीप पांडेय कहते हैं यह अजीब बात है अधिकारियों ने शौचालय निर्माण के लिए देवकी नंदन शर्मा के खाते में 12,000 जमा करा दिए। ये रुपये क्यों डाले गए जिसकी उन्होंने खुद जांच की मांग की थी। क्या उनके आंदोलनों और मांगों को विकृत करने के उद्देश्य से ऐसा किया गया है? अगर ऐसा है तो यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने बताया कि आख्या में यह भी मांग की गई है कि जिले व प्रदेश में होने वाले विकास कार्यों में भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय निकाले जाएं ताकि फिर किसी देवकी नंदन शर्मा को अपनी जान न देनी पड़े। साथ उन्होंने मृतक के परिवार को उचित अनुदान और सहायता उपलब्ध कराने की मांग भी की है।
पाण्डेय कहते हैं कि देखा जाय तो यह अपने ढंग का एक अनूठा मामला है कि बरसों से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले और अंततः अपनी शहादत देनेवाले व्यक्ति की शहादत को सरकारी अधिकारी कर्मचारी कैसे बदनाम करने पर तुले हैं। जबकि उसके साथ न्याय करने की जरूरत है। नखशिख भष्टाचार में लिप्त प्रशासनिक व्यवस्था और सत्ता देवकी नंदन शर्मा की मौत के लिए जिम्मेदार हैं और यह जिम्मेदारी उन्हें लेनी पड़ेगी।