Sunday, November 9, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार : ईंटों के बीच दबे भट्ठा मजदूरों की व्यथा

ईंट भट्ठों में काम करने वाले मजदूर हमारी सभ्यता की नींव हैं। वे हमारी इमारतें बनाते हैं, हमारे घरों को खड़ा करते हैं, लेकिन उनके अपने घर रहने लायक नहीं होते। अगर हमें एक विकसित समाज बनाना है, तो हमें इन मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। वरना उनकी गरीबी की ये ईंटें हमेशा उनकी तरक्की का रास्ता रोकती रहेंगी।

रामपुर गांव : ‘क्राफ्ट हैंडलूम विलेज’ में बुनकरों का अधूरा सपना और टूटती उम्मीदें

रामपुर गांव की कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं है, बल्कि यह उन लाखों कारीगरों और बुनकरों की कहानी है, जो सरकारी योजनाओं के अधूरे वादों और बाजार की बेरुखी के बीच फंसे हुए हैं। यह समय है कि सरकार और समाज मिलकर इनके सपनों को साकार करने के लिए कदम उठाए। अगर समय रहते इनकी मदद नहीं की गई, तो यह अद्वितीय कला और कौशल हमेशा के लिए खो जाएगा। पढ़िए नाजिश महताब की ग्राउंड रिपोर्ट।

बिहार में ‘हर घर नल का जल’ की हकीकत : बरमा गांव की प्यास

पिछले कई वर्षों से हर घर नल जल योजना की धूम मची हुई है और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में प्रचारित किया जा रहा है लेकिन वास्तविकता प्रचार के बिलकुल उलट है। लगातार बढ़ते साफ पानी के संकट के मद्देनज़र यह योजना एक मज़ाक बनकर रह गई है। बिहार के लाखों ग्रामीण गंदे और ज़हरीले पानी का इस्तेमाल करने को विवश हैं। गया जिले के बरमा गांव में पानी का कैसा संकट है और सरकार की योजना किस हालत में है इस पर नाज़िश मेहताब की रिपोर्ट।

अवधी में गानेवाली यूट्यूबर महिलाएं : कहीं गरीबी से रस्साकसी कहीं वायरल हो जाने की चाह

पिछले कुछ ही वर्षों में अवधी भाषी महिलाओं ने बड़ी संख्या में यूट्यूब पर अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई है। यह ऐसी महिलाओं की कतार है जो निम्न मध्यवर्गीय और खेतिहर परिवारों से ताल्लुक रखती हैं और घर-गृहस्थी की व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अपने गीतों से एक बड़े दर्शक समूह को प्रभावित किया है। इनमें से कई अब पूर्णकालिक और स्टार यूट्यूबर बन चुकी हैं। अपने बचपन में सीखे गीतों को वे बिना साज-बाज के गाती हैं और लाखों की संख्या में देखी-सुनी जाती हैं। यू ट्यूब पर गाना उनके लिए न केवल अपनी आत्माभिव्यक्ति है बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता भी है। इसके लिए उन्होंने कठिन मेहनत किया है। परिवार के भीतर संघर्ष किया है। जौनपुर, आजमगढ़ और अंबेडकर नगर जिलों के सुदूर गांवों की इन महिलाओं पर अपर्णा की यह रिपोर्ट।

पॉल्ट्री उद्योग : अपने ही फॉर्म पर मजदूर बनकर रह गए मुर्गी के किसान

भारत में पॉल्ट्री फ़ार्मिंग का तेजी से फैलता कारोबार है। अब इसमें अनेक बड़ी कंपनियाँ शामिल हैं जिनका हजारों करोड़ का सालाना टर्नओवर है लेकिन मुर्गी उत्पादक अब उनके बंधुआ होकर रह गए हैं। बाज़ार में डेढ़-दो सौ रुपये बिकनेवाला चिकन पॉल्ट्री फार्म से मात्र आठ रुपये किलो लिया जाता है। अब मुर्गी उत्पादक स्वतंत्र इकाई नहीं हैं। कड़े अनुबंध शर्तों पर वे कंपनियों के चूजे और चारे लेकर अपनी मेहनत से उन्हें पालते हैं और कंपनी तैयार माल उठा लेती है। मुर्गी उत्पादक राज्य और केंद्र सरकार से यह उम्मीद कर रहे हैं कि सरकारी नीतियाँ हमारे अनुकूल हों और हमें अपना उद्योग चलाने के लिए जरूरी सहयोग मिले। लेकिन क्या यह संभव हो पाएगा? पूर्वांचल के पॉल्ट्री उद्योग पर अपर्णा की रिपोर्ट।

राजस्थान : कालू गांव के लोग बेरोज़गारी के कारण पलायन को हो रहे मजबूर

राजस्थान के कालू गाँव के लोग रोजगार न मिलाने से परेशान तो हैं ही रोजगार की तलाश में वे गाँव से पलायन भी कर रहे हैं । ग्रामीणों को रोज़गार के लिए पलायन करने पर मजबूर होना पड़े तो सरकार को अपनी बनाई नीतियों की फिर से समीक्षा करने की ज़रूरत है।

जौनपुर: स्थानीय लोगों के लिए जी का जंजाल बन गया है चंदवक पुल

वाराणसी से गोरखपुर वाया आजमगढ़ जाते समय वाराणसी के बाद जौनपुर की सीमा के तकरीबन 4-5 किलोमीटर की दूर गोमती नदी पर बना हुआ सेतु नजर आ जाता है। यह स्थान जौनपुर जिले के चंदवक बाजार के समीप है। इसे चंदवक- गोमती नदी पुल के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ दो-दो समानांतर सेतु हैं। ठीक बगल में तीसरे सेतु का भी निर्माण कार्य अधर में लटका हुआ दिखाई देता है।

झारखंडः क्या है अबुआ आवास और क्यों हैं इसके चर्चे

झारखण्ड में आजकल पीएम आवास से ज्यादा चर्चा अबुआ आवास योजना की हो रही है। हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी और इस्तीफे के बाद 31 जनवरी से नये मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अबुआ आवास योजना को तेजी से आगे बढ़ाने में जुटे हैं। राज्य सरकार की अबुआ आवास योजना क्या है और यह योजना गरीबों को क्यों प्रभावित कर रही है, पढ़िए नीरज सिन्हा की ग्राउंड रिपोर्ट

उत्तराखंड : पिंगलों गांव के लोग बेरोजगारी के कारण अभाव में जी रहे हैं

उत्तराखंड के पिंगलों ‘गाँव में रोजगार का कोई साधन नहीं होने की वजह से लोग पलायन कर रहे हैं। नौजवान दिल्ली, मुंबई, सूरत, अमृतसर और अन्य शहरों के होटलों और ढाबों में काम करने को मजबूर हैं।

बिहार में सालों से रेलवे वैकेंसी की बाट जोह रहे प्रतियोगी छात्रों पर लाठीचार्ज, क्या कह रहे छात्र?

पटना। बिहार में पटना के भिखना पहाड़ी, मुसल्लहपुर और बाज़ार समिति के इलाक़े एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। कोचिंग संस्थानों और प्रतियोगी...

मऊ के बुनकरों के लिए क्यों खोती जा रही है भविष्य की उम्मीद

साठ के दशक में अपनी बुनकरी के चलते पूर्वाञ्चल का मैनचेस्टर कहा जानेवाला मऊ शहर दिनोदिन बदहाली का शिकार होता जा रहा है। यहाँ...
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