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दिल्ली दंगा मामले में जांच अधिकारी को कानून का पालन करने की चेतावनी

नई दिल्ली (भाषा)। दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के सांप्रदायिक दंगों के एक मामले की सुनवाई करते हुए दो पुलिस अधिकारियों को चेतावनी’ देकर कर उनसे आगे की जांच करने के लिए कानून का पालन करने को कहा है, जहां आरोप-पत्र पहले ही दाखिल हो चुका है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला गोकलपुरी थाने में […]

नई दिल्ली (भाषा)। दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के सांप्रदायिक दंगों के एक मामले की सुनवाई करते हुए दो पुलिस अधिकारियों को चेतावनी’ देकर कर उनसे आगे की जांच करने के लिए कानून का पालन करने को कहा है, जहां आरोप-पत्र पहले ही दाखिल हो चुका है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला गोकलपुरी थाने में 10 आरोपियों के खिलाफ दर्ज एक मामले की सुनवाई कर रहे थे, जो अभियोजन पक्ष द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत करने के चरण में है।

अदालत ने कहा, ‘थाना प्रभारी और जांच अधिकारी के लिए एक चेतावनी दर्ज की जाती है कि उन्हें अदालत के समक्ष आरोप-पत्र दाखिल करने के बाद आगे की जांच में शामिल होने से पहले दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 173 (8) के तहत कानून का पालन करना होगा। इस आदेश की प्रति अनुपालन के लिए थाना प्रभारी को भेजी जाएगी।’

सीआरपीसी की धारा 173(8) किसी मामले में आगे की जांच से संबंधित है। अदालत ने दिल्ली पुलिस द्वारा मामले में 25 सितंबर को दाखिल दूसरे पूरक आरोप-पत्र की स्वीकार्यता तय करते हुए यह टिप्पणी की।

एएसजे प्रमाचला ने सोमवार को एक आदेश में कहा था, ‘इस मामले में पहला आरोप-पत्र को पढ़ने पर मुझे पता चला कि इसमें उल्लेख किया गया था कि मामले में 30 मार्च (2020) को दो घटनाओं के घटित होने के स्थान के आधार पर, पूनम जौहर और रिंकू द्वारा की गई दो शिकायतों को जांच के लिए जोड़ दिया गया था। लेकिन उसी समय सूचना मिली कि पड़ोसियों और आस-पास खोजबीन करने के बाद भी शिकायतकर्ता रिंकू नहीं मिला।’

अदालत ने कहा कि इसका मतलब है कि जांच अधिकारी रिंकू से जुड़ी कथित घटना के संबंध में कोई सबूत नहीं ढूँढ पाया और शिकायत को वर्तमान मामले से अलग किया जाना चाहिए था।

इसने कहा कि रिंकू से जुड़ी कथित घटना में वर्तमान आरोपियों की भूमिका के बारे में ‘निराधार धारणाओं’ के आधार पर शिकायत को वर्तमान मामले के साथ जोड़ दिया गया था।

अदालत ने कहा कि दूसरे पूरक आरोप-पत्र में रिंकू का इस साल 12 सितंबर को दर्ज किया गया बयान है कि 2020 में दंगों के दौरान भीड़ ने उसके साथ लूट-पाट की और फिर उसके ई-रिक्शा में आग लगा दी, लेकिन रिंकू ने किसी दोषी की पहचान नहीं की।

न्यायाधीश ने कहा कि इसलिए यह ‘धारणा’ बनाने का कोई आधार नहीं है कि वर्तमान मामले में आरोपी व्यक्ति भी रिंकू के साथ हुई आगजनी और लूट-पाट की घटना के पीछे थे।

उन्होंने कहा, ‘वास्तव में मुझे लगता है कि इस शिकायत की जांच के नाम पर केवल जांच पूरी दिखाने का आधा-अधूरा प्रयास किया गया। इसलिए, इस शिकायत पर वर्तमान मामले में विचार नहीं किया जाएगा।’

अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में तीन दिसंबर (2021) को आरोप तय किए गए और उसके बाद अभियोजन पक्ष के 12 गवाहों से पहले ही पूछताछ की जा चुकी है। एएसजे ने कहा, ‘यह समझ से परे है कि इस पूरक आरोप-पत्र के माध्यम से रिंकू की शिकायत की पूरी जांच किस मकसद से दिखायी गयी। क्योंकि जांच अधिकारी के पास यह कहने के लिए कोई तथ्य नहीं था कि इस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे आरोपी व्यक्तियों ने इस घटना को भी अंजाम दिया है।’

इसने कहा कि सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत आगे की जांच करने की एक जांच एजेंसी की शक्ति ‘पूर्ण अधिकार’ नहीं है, खासकर मुकदमा शुरू होने के बाद।

न्यायाधीश ने कहा, ‘एक बार मुकदमा शुरू हो जाने के बाद यह दिखाना होगा कि पिछली कुछ बची हुई कार्रवाई के मद्देनजर अपेक्षित कदम (आगे की जांच करने के लिए) आवश्यक है। ऐसी वजहों के आधार पर, जांच एजेंसी उन पहलुओं पर आगे की जांच करने के लिए अदालत से अनुमति लेने के लिए बाध्य है।’

अदालत ने कहा, रिंकू की शिकायत को इस मामले में शामिल नहीं किया जा सकता। इसलिए, थाना प्रभारी को इसे वापस लेने और उसके बाद एक अलग मामला दर्ज करने का निर्देश दिया जाता है।’

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