आज़ादी के लिए फिलिस्तीनी आवाम की जद्दोजहद और बेमिसाल क़ुर्बानियों के सिलसिले को आज की तारीख़ में जब भी याद किया जायेगा तो हमास के ज़िक्र के बिना ये मुमकिन न होगा। हमास इस वक्त फिलिस्तीनी आवाम की एक आज़ाद मुल्क के लिए की जा रही जंग को लीड कर रहा है। इस्माइल हानिया हमास के राजनीतिक हेड थे, जिनकी कल ईरान में हत्या कर दी गई, वे वहां ईरानी राष्ट्रपति के बुलाये पर गये थे।
अब सवाल पैदा होता है कि क्या ईरान ही इस्माइल हानिया के क़त्ल के लिए जिम्मेदार है या यह अमेरिका और इजराइल की साजिश का नतीजा है, साथ ही यह देखना भी अहम होगा कि इस्माइल हानिया की हत्या का फिलिस्तीनी आवाम के एक आज़ाद मुल्क के लिए जारी जद्दोजहद पर क्या असर होगा?
यहाँ यह बताना बेहद ज़रूरी है कि इजराइल ने इस्माइल हानिया की हत्या की न तो जिम्मेदारी ली है और न ही इसमें अपने शामिल होने से इंकार किया है, अमेरिका ने जरूर कहा है कि इस हत्या में उसका हाथ नहीं है। लेकिन जिस तरह इस्माइल हानिया की हत्या की गई, उससे लगता है कि यह ताक़तवर मुमालिक और उनके जासूसी नेटवर्क के परस्पर सहयोग के बिना मुमकिन नहीं है, ऐसे में सीआईए और मोसाद को इस मामले से अलग करके नहीं देखा जा सकता।
इस्माइल हानिया आलमी बिरादरी के बीच लगातार फिलिस्तीनी आवाम की रहनुमाई कर रहे थे और इसमें कोई दो राय नहीं की वे इजराइल की आँखों में खटक रहे थे, इससे पहले इजराइल गाजा के अन्दर इस्माइल हानिया के बेटों को क़त्ल कर चुका है, इतने बड़े सदमे के बाद भी इस्माइल हानिया हमास को न सिर्फ़ लीड कर रहे थे बल्कि एक पल को भी नहीं लगा कि इस दुःख ने कहीं से भी उनकी हिम्मत को कमज़ोर किया है। इसलिए कल जिस तरह तेहरान में उनका क़त्ल किया गया इसे देख कर ऐसा लगता है कि ये किसी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय साजिश का नतीजा हो सकता है और मुमकिन है कि इजराइल और अमेरिका ही इस साजिश के लिए जिम्मेदार भी हों।
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इस्माइल हानिया की ईरान में हत्या
इस्माइल हानिया ईरानी राष्ट्रपति और कुछ दूसरे अधिकारियों के साथ मीटिंग के बाद होटल में आराम कर रहे थे, जहाँ रात के दो बजे उस कमरे से एक मिसाइल आकर टकराती है जिसमें वो सो रहे थे, मौक़े पर ही उनकी और उनके बॉडीगार्ड की मौत हो जाती है। अब यहाँ कई सवाल पैदा होते हैं, जैसे जिस मिसाइल से इस्माइल हानिया की मौत हुई, उसे किसी और मुल्क से दागा गया था या फिर ईरान के ही अन्दर से, अगर किसी और मुल्क से मिसाइल दागा गया तो फिर ईरान का एयर डिफेन्स सिस्टम इसे क्यूँ नहीं पकड़ पाया और अगर ईरान के ही अन्दर से मिसाइल छोड़ी गयी है तो फिर ईरान के अन्दर ऐसा कोई गिरोह जरूर मौजूद है जो फलिस्तीन के हितों के ख़िलाफ़ काम कर रहा है। इन दोनों ही सवालों पर सोशल मीडिया में अलग-अलग राय जाहिर की जा रही है, एक समूह ऐसा है जो कह रहा है कि ईरान खुद हमास नेता की मौत का जिम्मेदार है तो दूसरा कह रहा है कि ईरान का सुरक्षा सिस्टम खोखला है।
बहरहाल, यह लोगों की राय है और एक आम इन्सान के तौर पर हमारे और आपके पास इतनी कूवत नहीं है कि हम सच्चाई तक पहुँच पाएं। लेकिन ईरान ने एक बार फिर जामकरन मस्जिद पर लाल झंडा फहरा दिया है जो इस बात का प्रतीक है कि ईरान इस्माइल हानिया की मौत का बदला लेगा। इसके पहले कासिम सुलेमानी और दूसरे इरानी फौजी अधिकारियों की इसी तरह के हमलों में हत्या के बाद ईरान ने लाल झंडा फहराया था।
इसके बदले की कार्यवाही के तहत इजराइल पर ईरान ने मिसाइलों की बौछार जरूर की थी लेकिन इस हमले की खबर पहले ही अमेरिका को दे दी गई थी लिहाजा एक दर्जन मुमालिक ने मिलकर इजराइल की हिफाज़त की थी और ईरान के हमले को नाकाम बना दिया था, यानि यह बात साफ़ नज़र आती है कि ईरान ने अपनी इज्ज़त बचाने के लिए हमला जरूर किया था लेकिन पूरी कोशिश की थी इजराइल और अमेरिका उस पर ज़वाबी हमला न करें। इसलिए इस्माइल हानिया की मौत का बदला लेने के लिए ईरान कोई फैसलाकुन कार्यवाही करेगा, इसकी उम्मीद कम ही है।
अब सवाल पैदा होता है कि क्या इस्माइल हानिया की मौत से फलिस्तीनी आवाम का संघर्ष कमज़ोर होगा? फिलिस्तीनी राजनेता मुस्तफा बरगौती का कहना है कि अतीत में ऐसी हर हत्या के बाद फलिस्तीनी आवाम के बीच एकता और मज़बूत हुई है, इसलिए इस्माइल हानिया की हत्या का कोई नकारात्कम असर फिलिस्तीनी अवाम के संघर्ष पर नहीं पड़ेगा। कमोबेश ज़्यादातर विश्लेषकों यही राय है।
लेकिन ऐसा लगता है कि इजराइल हमास और हिजबुल्लाह के अहम् नेताओं की हत्या के ज़रिये फलिस्तीन के लिए जारी जद्दोजहद को कमज़ोर करना चाह रहा है क्योंकि इस्माइल हानिया की हत्या, लेबनान में एक हिजबुल्लाह कमांडर की हत्या और गाजा के अन्दर कई महत्वपूर्ण हमले ये ज़ाहिर करते हैं कि इजराइल फलिस्तीनी आन्दोलन से जुड़े नेताओं की हत्या के ज़रिये इस जंग को ख़त्म करना चाहता है, हालांकि ऐसा होगा, इसके असार नज़र तो नहीं आते।
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आगे क्या रणनीति अपनाएगा ईरान
ईरान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में आपातकालीन मीटिंग बुलाई है, रूस, चीन और तुर्की जैसे ताक़तवर मुमालिक ने इस्माइल हानिया की हत्या पर शोक प्रकट करते हुए इसकी निंदा की है, तुर्की ने इजराइल को पूरी दुनिया के लिए ख़तरा बताया है, लेकिन इस सब के बावजूद ये बात बिलकुल साफ़ है कि अमेरिका को खुली चुनौती देने की हैसियत अभी किसी भी देश की नहीं है और चूंकि अमेरिका इजराइल के पीछे खड़ा है इसलिए इजराइल को भी चनौती देने की हैसियत किसी भी देश की नहीं है।
इसलिए उम्मीद यही है कि इस्माइल हानिया के क़त्ल के बाद भी फिलिस्तीनी आवाम का संघर्ष और फ़लिस्तीनियों का इजरायल द्वारा क़त्लेआम जारी रहेगा। हलांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि इजराइल और अमेरिका दोनों ही आर्थिक रूप से भारी नुकसान में हैं और विश्व जनमत लगातार इन्हें मानवता के दुश्मन के तौर पर देख रहा है, लेकिन इनकी सैनिक ताकत को चुनौती देने की हैसियत अभी भी किसी भी मुल्क में नहीं है, यानि अमेरिका और इजराइल की वजह से अरब जगत में अशांति अभी बनी रहेगी और मुमकिन है कि ये आलमी जंग में भी तब्दील हो जाये जिसकी चेतावनी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बार बार दे रहे हैं।